सर्दियों की एक ठंडी शाम थी। दिल्ली की गलियां कोहरे की चादर ओढ़े हुए थीं। वही पुरानी किताबों की दुकान के सामने एक लड़का खड़ा था—आर्यन। 23 साल का आर्यन, जो हर शाम यहां आता था, किसी खास का इंतजार करने। लेकिन वो 'खास' कौन थी, ये कोई नहीं जानता था।
आज भी उसकी नज़रें उसी गली की तरफ थीं, जहां से अनन्या अक्सर गुजरती थी। अनन्या, जो अपनी सादगी और मुस्कान से किसी का भी दिल जीत सकती थी। वो अक्सर वहीं से गुज़रती थी, अपने स्केचबुक और पेंसिल के साथ।
आर्यन को याद था वो पहली मुलाकात। बारिश हो रही थी, और अनन्या अपनी स्केचबुक को बचाने की कोशिश कर रही थी। तभी उसकी नजर आर्यन पर पड़ी, जो उसे छतरी देने के लिए आगे बढ़ा। वो मुस्कुराई और बस इतना कहा, "शुक्रिया।" उसी दिन से आर्यन का दिल उसके लिए धड़कने लगा।
हर दिन आर्यन उसे देखने के बहाने वहीं किताबों की दुकान पर खड़ा रहता। लेकिन कभी अपने दिल की बात कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।
एक दिन, अनन्या ने खुद पहल की। उसने आर्यन से पूछा, "तुम हर दिन यहीं क्यों खड़े रहते हो?"
आर्यन झेंपते हुए बोला, "तुम्हें देखना मेरी आदत बन गई है।"
अनन्या खिलखिलाकर हँस पड़ी। उसने कहा, "तो आदत को इश्क में बदलने का इरादा है?"
उनकी बातों का सिलसिला यहीं से शुरू हुआ। अब अनन्या और आर्यन रोज़ मिलने लगे। कभी कॉफी शॉप, तो कभी दिल्ली की पुरानी गलियों में। अनन्या अपने सपनों की बातें करती, और आर्यन उसे सुनते-सुनते खुद खो जाता।
लेकिन प्यार की कहानियां इतनी आसान नहीं होतीं। अनन्या का सपना था पेरिस जाकर एक मशहूर आर्टिस्ट बनना। एक दिन उसने आर्यन से कहा, "मुझे पेरिस जाना है। ये शहर मेरा इंतजार कर रहा है।"
आर्यन चुप था। वो जानता था कि अनन्या के सपनों के बीच उसकी मोहब्बत नहीं आ सकती। उसने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हारे हर सपने में मेरी दुआ शामिल है।"
अनन्या पेरिस चली गई। उनकी आखिरी मुलाकात में आर्यन ने उससे बस इतना कहा, "अगर कभी तुम्हारे दिल में मेरी याद आए, तो जान लेना, मैं यहीं उसी किताबों की दुकान पर तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं।"
साल बीत गए। अनन्या ने पेरिस में अपना नाम बना लिया। उसकी पेंटिंग्स दुनियाभर में मशहूर हो गईं। लेकिन कभी-कभी उसे वो दिल्ली की गलियां और आर्यन की मुस्कान याद आ जाती।
एक दिन, जब अनन्या पेरिस की एक प्रदर्शनी में थी, उसने अपने दिल के कोने में छुपे आर्यन को फिर से महसूस किया। वो बिना सोचे-समझे फ्लाइट लेकर दिल्ली वापस आ गई।
पुरानी किताबों की दुकान के पास पहुँचकर उसने देखा कि आर्यन वहीं खड़ा था, उसी मुस्कान के साथ। उसकी आँखों में आज भी वही इंतजार था।
अनन्या दौड़कर उसकी ओर गई और कहा, "तुम आज भी यहीं हो?"
आर्यन मुस्कुराकर बोला, "मैंने कहा था, तुम्हारे लौटने का इंतजार करूँगा।"
दोनों एक-दूसरे के गले लग गए। ये प्यार था—एक अधूरी मोहब्बत, जो वक्त के साथ मुकम्मल हो गई।
-समाप्त-अधूरी मोहब्बत की कहानी 🥺
लेखक-मोहम्मद साकिब रज़ा
(आर.के.के कॉलेज अध्यक्ष पूर्णिया कॉलेज )