Mohabbat Ka Test in Hindi Love Stories by Wajid Husain books and stories PDF | मोहब्बत का इम्तिहान

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मोहब्बत का इम्तिहान

वाजिद हुसैन सिद्दीक़ी की कहानी पहली बार जब मैंने अशरफ को देखा था, तो उसे देखती ही रह गई थी। मेरा कार्ड एटीएम मशीन में फंस गया था। उसे निकालने के लिए ज़ोर आज़माइश कर रही थी। उसने कहा, 'में आई हेल्प यू?' उसने टच स्क्रीन पर उंगलियां सरकाईं और कार्ड निकाल कर मुझे दे दिया था। 'दूसरी बार रेहाना सुल्तान चैरिटेबल अस्पताल में मुलाक़ात हुई जिसमें मैं डॉक्टर थी। वह अस्पताल में डोनेशन देने आया था। उसने कहा मैंने आपको हर जगह ढूंढा पर आप नहीं मिलीं। मैंने पूछा, 'क्या आपका कुछ मेरे पास रह गया था?'उसने कहा, 'डॉक्टर सीमा बताइए, बाई दी वे, अगर किसी का दिल किसी के साथ चला जाए तो उसे ढूंढेगा या नहीं।' मैंने उसके सवाल का जवाब तो नहीं दिया पर मेरे गालों पर रंग आ गया था। तीसरी बार उससे मुलाक़ात हुई जब वह पेरेंट्स के साथ रिश्ते की बात करने आया था। ड्राइंग रूम में दोनों परिवार दुनियादारी की बातें कर रहे थे और मैं अशरफ के साथ बालकनी में खड़ी थी। वह चाय का कप थामें रेलिंग से टिक्कर खड़ा दूर पेड़ों के बीच दुबकते सूरज को देख रहा था और मैं उसके चेहरे की गरिमा को देख रही थी। पढ़ाई और जाब जैसी बातें करने के बाद वह चुप हो गया, लेकिन मेरे मन में कुलबुलाहट हो रही थी कि वह कुछ और पूछे। आपको कुछ और नहीं पूछना हारकर मैंने ही कहा।कुछ और बताना है, बता दो, उसने मुझे देखा। मैं जो अब तक उसे देख रही थी फौरन सामने देखने लगी। मुझे कुकिंग का शौक नहीं है। घूमना फिरना पसंद है,थोड़ी मनमौजी हूं। घर वाले कहते हैं कि लाड़ ने बिगाड़ दिया है। मुझे लगता है यह मेरा बेसिक नेचर है, कहते हुए मैंने उसे देखा। चाय का कप स्टूल पर टिकाते हुए वह बोला, 'तुम्हारे बेसिक नेचर में प्यार करना है, क्या मुझसे प्यार कर पाओगी तुम?' मैंने एक लंबी सांस खींच कर सिर हिला दिया। उसने झुक कर मेरी कलाई पकड़ी। मेरी उभरी नस यूं  फड़की जैसे दिल उतर कर यहीं आ गया हो।मुझे याद नहीं, छे महीने के कोर्टशिप पीरियड में मैंने वैसा ही धड़कता दिल कई बार महसूस किया। काॅफी हाउस में काॅफी पाउच खोलते वक्त उसने उंगलियां छू लीं। शादी का सूट खरीदते वक्त मेरे जिस्म से लगाकर देखा था। शादी से दो रात पहले घर के पिछले दरवाज़े पर बुलाकर मुझे आई लव यू सीमा कहा और मेरा चेहरा हथेलियों में भरकर मेरा माथा चूम लिया था।शादी के बाद मैंने उसके रिज़ाॅर्ट के जगमगाते लान में क़दम रखा तो अपने भाग्य को सराहा था। घर में सभी से बहुत प्यार मिला था। कुछ दिन बाद मेरी सास ने अशरफ से कहा, 'ख़ुदा के फज़ल से हर तरह की नेमत हमें हासिल है, अब सीमा को इस्तीफा दे देना चाहिए। थोड़ी ना- नकुर के बाद मैंने उनकी बात मान ली और इस्तीफा दे दिया। हमारी शादी के तीन साल बहुत अच्छे रहे उसके बाद बच्चा न होने को लेकर घर में कानाफूसी होने लगी।छुट्टी का दिन था। अशरफ लैपटॉप पर बिज़ी थे। मैं स्टडी में गई। अशरफ ने मुझसे निगाह चुराते हुए कहा, 'हाय कहां थी, क्या कर रही थीं?''किचन मैं खाना बना रही थी।''आज तो नमक देखकर डाला है न, कल की तरह अगर ज़्यादा हो गया तो मां फिर तुम्हें बातें सुनाएगीं। 'वह मुझे बातें सुनाती है, तुम उन्हें कुछ कहते क्यों नहीं हो?'कम ऑन यार। तुम्हें पता है वह हाइपरटेंशन की पेशेंट है। साल्ट उनके लिए ठीक नहीं है। वैसे भी तुम उनकी बातों को सीरियस मत लिया करो।'प्रॉब्लम यह है कि मैं एक डॉक्टर हूं, हाईपरटेंशन सिम्पटम्स और बात का बतंगड़ बनाने में सही तरह फरक़ कर सकती हूं। 'शुरू हो गई न तुम्हारी डॉक्टरी।' तुम मुझसे नज़रें मिलाकर बात क्यों नहीं करते? जब भी घर में होते हो, लैपटॉप या मोबाइल के पीछे छुपे क्यों रहते हो? मैं एक इंपॉर्टेंट प्रेजेंटेशन बना रहा था। 'यह देखिए।' मैंने अशरफ को लिफाफा देते हुए कहा। 'क्या है यह?' 'सेकेंड ऑपिनियन के लिए एक लैब से अपने यह टेस्ट करवाए थे और सब सही है। अशरफ, तुम्हें मेरी कैफियत का अंदाज़ा क्यों नहीं हो रहा है, तुम्हारी मां, तुम्हारी भाभी, तुम्हारी बहने, सारे ख़ानदान वाले चचियां फुफियां मुझसे एक ही सवाल करते हैं, 'बच्चा कब होगा, होगा कि नहीं। तुम मुझे बताओ कि मैं उन्हें क्या जवाब दूं?'सारे सवाल सिर्फ तुमसे तो नहीं करते, मुझसे भी सौ सवाल करते हैं ना, जवाब देता हूं उनका। मैं भी तुम्हारे साथ यह सब कुछ भुगत रहा हूं। तुम्हें अंदाज़ा नहीं है इसका, एक औरत जो मां नहीं बन सकती, दूसरी औरतें उसे ताने दे देकर उसकी जिंदगी नर्क बना देती हैं। चार साल से मैं यह ताने सुन रही हूं। मियां- बीवी बनने से पहले हम दोस्त थे। तुम मुझ पर ट्रस्ट नहीं करोगे? प्यार करते हो तुम मुझ से, तुम्हारे साथ सिर उठा कर चलती हूं तुम मुझसे नज़रें क्यों चुराते रहते हो। मैं तुमसे टेस्ट ही कराने को तो कह रही हूं। टेस्ट कराया था मैंने। खोट तुममें नहीं है। बात यह है कि शायद मैं तुम्हें कभी औलाद नहीं दे सकूं। तुम मां बन सकती हो लेकिन मैं शायद कभी भी बाप नहीं बन सकता। मेरी तुम बीवी हो, मेरी तुम दोस्त हो, मेरी यह बात तुम कभी किसी से नहीं कहोगी।मैं दोराहे पर खड़ी थी -अशरफ की सच्चाई से दुनिया को रूबरू नहीं करा सकती थी। उधर मेरी सास ने सवेरे नाश्ते के समय कहा, 'बच्चों के बगैर कोई घर, घर होता है। छे साल हो गए तुम्हारी शादी को बच्चा नहीं हो रहा है, तलाक़ दो इसे, मैं तुम्हारी दूसरी शादी करा दूंगी। तुम्हारे ख़ानदान का नाम कैसे आगे चलेगा। फिर डाइनिंग टेबल पर बैठे रिश्तेदारों से कहा, 'कैसे समझाऊं मैं आपको, मां की हर बात इसे बुरी लगती है। इस बार साफ-साफ कह दे रही हूं, सबके सामने कह दे रही हूं, 'यकीन जान अगर दो-चार महीने में मुझे ख़ुशखबरी नहीं मिली तो तेरी दूसरी शादी करवा दूंगी।अशरफ ने धीरे से मां से कहा, 'क्या सबके सामने यह बात करना ज़रूरी थी‌।' हां ज़रूरी थी...।मैं दिन भर अपनी बेबसी पर रोती रही। रात को अशरफ ने कहा, 'बहुत रात हो गई, सोना नहीं है।'तुम चलो मैं आती हूं। 'आई एम सॉरी।' अशरफ ने कहा।सॉरी बोलने की जरूरत नहीं है। तुम अपनी दूसरी शादी की तैयारी शुरू करो।कैसी पागलों वाली बातें कर रही हो। मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता, बहुत प्यार करता हूं तुमसे।सच कहूं, बहुत प्यार करते हैं तो मेरी एक बात मानो। डॉक्टर शशिकांत से कंसल्ट करो, वह जाने-माने गायनेकोलॉजिस्ट हैं। अब मेडिकल साइंस उस एरा में है, सब ठीक हो जाएगा, हमारा घर हमारी फैमिली बन जाएगी।मुझसे यह नहीं होगा सब कुछ। तुम मुझे जितना भी वक्त लगे एक साल दो साल मैं तुमसे कुछ नहीं कहुंगी। और तुम्हें नहीं पता यह सब कुछ कितना तकलीफ दे है मेरे लिए। तुम्हारी यह मेल इगो, तुम्हें एक्सेप्ट नहीं करने दे रही है कि तुम्हें भी मर्ज़ हो सकता है। देखो अशरफ मेडिकल साइंस ने हर मर्ज़ का इलाज बनाया है। तुम शुरू तो करो। 'अच्छा सोचता हूं।' अशरफ ने कहा। एक और बात कहनी है -घर बैठे बैठे बोर हो जाती हो, तुम अस्पताल जाना फिर शुरू कर दो।और अम्मी?'वह तो राज़ी नहीं होगी।' फिर भी मैं अम्मी से बात करूंगा।अशरफ के ऑफिस जाने के बाद अम्मी गुस्से में मुझसे बोली, 'एक बात बताओ तुमने, अशरफ को क्या पट्टी पढ़ाई है?  'कोई नौकरी-शौकरी नहीं होगी। ऐसी घर में कौन सी भूखी पड़ी है जो तुम्हें नौकरी करना पड़ रही है।' पिछले चार साल से घर में बंद हूं। आप बाहर निकलकर देखें तो सही, सरकारी अस्पताल में मरीज़ों की लाइन लगी हुई है। अगर मैं उनके काम आ सकी, तो पैसा भी मिलेगा और दुआएं भी...। 'शोहर और उसके घर वालों को सूली पर चढ़ाकर दुनिया की ख़िदमत करने चली हो तुम। शादी के बाद लड़की को शौहर और उसके घर वालों की ज़रूरतों का ख़्याल रखना चाहिए। तुम घर में आराम से बैठो। इतनी बात समझ में नहीं आती क्या तुम्हें।''सॉरी अम्मी, मैं घर में बैठकर आपकी जली- कटी बातें नहीं सुन सकती हूं। मैं डॉक्टर हूं, मरीज़ों को मेरी ज़रूरत है और मुझे उनकी दुआओं की।'अस्पताल से लौटकर मैने अशरफ से कहा, 'थैंक यू, आप सपोर्ट नहीं करते तो मैं अम्मी के सामने स्टैंड नहीं ले पाती।' अशरफ ने कहा, 'तुम्हें बहुत पहले यह जाब शुरू कर देना चाहिए था।'छे महीने बाद अस्पताल में एक बच्ची पैदा हुई। उसकी मां मुझसे बार-बार कह रही थी, 'इसे पैदा होने से पहले मार दो।' मैंने उसका कहा ना माना तो वह बच्ची को अस्पताल में छोड़कर चली गई। अस्पताल की ट्रस्टी रेहाना सुल्तान ने मुझे मशवरा दिया, 'तुम इस बच्ची को अपनी बेटी बना लो। इस बच्ची को मां मिल जाएगी और तुम्हें औलाद।' मैं बरसों से सिर्फ ताने सुन रही थी और मां बनने का इंतजार कर रही थी। अतः मैंने उनकी राय से इत्तेफाक किया और अस्पताल के सारे पेपर्स साइन करके इस बच्ची की लीगल कस्टडी ले ली। फिर रेहाना सुल्तान ने कहा, 'देखो मैं तुम्हारे इस फैसले की कद्र करती हूं लेकिन हमारी सोसाइटी में एक शादीशुदा औरत के लिए बिना घर वालों की मर्ज़ी के क्या यह ठीक रहेगा? इसे घर ले जाने से पहले अपने शौहर से बात कर लो।'मैंनें अशरफ को फोन किया, 'आप अभी घर आ सकते हो, फौरन।'घर पर मेरी गोद में बच्ची को देखकर मेरी सास ने कहा, 'यह क्या तमाशा लगा रखा है। किसका बच्चा उठा कर ले आई हो?'अम्मी, आप दो मिनट बैठें, मैं आपको सब कुछ बताती हूं।''हमारी नर्मियों का नाजायज़ फायदा उठा रही हो तुम? ''अम्मी वही तो कह रही हूं, आप दो मिनट बैठें तो सही।''उस बेवकूफ को पता है या उसे अंधेरे में रखा है।''वह अभी घर आ रहे हैं। मैंने उन्हें फोन कर दिया है।''कान खोलकर मेरी बात सुन लो अगर तुम इस बच्ची को मेरे घर में औलाद बनाने के लिए लाई हो तो मैं ऐसा नहीं होने दूंगी। न जाने किसका गंदा खून है यह?''यह ग़रीब औरत की बच्ची है। वह इसे पाल नहीं सकती। वह इसे अस्पताल में छोड़कर चली गई।''हमारे घर को यतीम ख़ाना समझा है तुमने?''अशरफ देखो, अपनी आंखों से। छे साल के प्यार का क्या सिला दिया है इसने। कह रही है, गरीब की औलाद है, हलाल है या हराम है, अल्लाह जाने।' 'अशरफ, मैं इस बेटी बनाना चाहती हूं।' मैंने कहा।'आर यू मैड? ऐसा नहीं हो सकता। तुम्हें औलाद न देने की वजह से तुम ऐसा तमाचा मारोगी। मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता।' हमें इस बच्ची को अडॉप्ट कर लेना चाहिए।'कौन है किसकी बच्ची है हमें तो कुछ भी नहीं मालूम इसके बारे में। तुम कह रही हो मैं इसे अपनी बेटी बना लूं।''यह इंसान की बच्ची है। लाचार बेघर, तुम ऐसा क्यों नहीं सोचते, अल्लाह हमें इस बच्ची को पालने की हिम्मत दे।''यह दुनिया की किताबी बातें हैं। मेरे अंदर इतनी हिम्मत नहीं कि मैं दुनिया वालों के सवालों का जवाब देता फिरूं। मैं और कुछ नहीं सुनना चाहता। यह बच्ची इस घर में नहीं रह सकती। जहां से इसे लेकर आई हो, वही छोड़कर आओ। नहीं रह सकती यह यहां पर, नहीं।' 'मैं यह नहीं कर सकती। मैं इसे अपनी बेटी बनाना चाहती हूं।''ठीक है तुम बनाओ इसे अपनी बेटी पर यह मेरी बेटी नहीं बनेगी और तुम भी यहां नहीं रह सकती। मुझे इस बारे में और कोई बात नहीं करनी है।' 'एक रात तो रह सकती हूं?''ठीक है कल सवेरे चली जाना। कल का मतलब है कल।' सवेरे अशरफ ने मुझसे कहा, 'चेंज कर लो, मैं तुम्हें छोड़ आता हूं।'मैं सबा को गोदी में लेकर उसके बराबर वाली सीट पर बैठ गई। उसने मुझसे पूछा, 'कहां जाओगी?' 'पता नहीं।' मैंने कहा। 'मैं आपके बिना जी नहीं पाऊंगी। और मेरे मरने से सबा यतीम हो जाएगी।''मैं भी जी नहीं पाऊंगा।' उसने नम आंखों और रूंधे गले से कहा। 'एक बार तुमने गाइनेकोलॉजिस्ट शशिकांत से कंसल्ट करने को कहा था। चलो उसके पास चलते हैं।'मैंने कहा, 'अशरफ तुम मोहब्बत के इम्तिहान में पास हो गए अब मेरी बारी है ...। चलो, सबा को उसकी मां को लौटाने चलते हैं।' उसने मेरे हाथ को हल्का सा दबा दिया और ढूंढते- ढूंढते सबा की मां के पास पहुंच गया।अपनी बच्ची को देखकर उसकी ममता जाग गई। उसने  बच्ची लौटने को कहा। अशरफ ने उससे कहा, 'यह बच्ची हमारी अमानत है, जो तुम्हारे पास रहेगी। इसके और तुम्हारे  ख़र्च की ज़िम्मेदारी हमारी रहेगी।' उसकी मां ने दुआ दी, 'अल्लाह तुम्हारी गोद खुशियों से भर दे।'  उसके बाद हम डॉ शशिकांत के क्लीनिक गए। उन्होंने हमें यकीन दिलाया, 'आपको पैरेंट्स बनने की ख़ुशी अवश्य मिलेगी।'अशरफ मुझे लेकर घर गया। उसने अम्मी को सारा वृत्तांत सुनाया और बताया, जो कुछ डॉक्टर शशिकांत ने उससे कहा था। अम्मी ने मुझसे कहा, 'मैं तो समझती थी मर्द में ऐब नहीं होता, कमी औरतों में होती है। मुझे माफ कर देना बेटी।' कुछ महीने के इलाज के बाद मैंने उन्हें मां बनने की ख़ुशख़बरी सुनाई। उन्होंने मुझे गले लगा लिया और वह गोद भराई की रस्म की तैयारी में जुट गई।348 ए, फाइक एंक्लेव, फेस 2, पीलीभीत बायपास, बरेली (उ प्र) 243 006 मो :9027982074, ईमेल wajidhussain963@gmail.com