The truth about the labyrinth in Hindi Moral Stories by Lokesh Dangi books and stories PDF | भूलभुलैया का सच

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भूलभुलैया का सच

"अनदेखी राहें"

शहर के कोलाहल से दूर, हिमालय की गोद में बसा एक छोटा-सा गाँव था – वसंतपुर। वहाँ के लोग सीधे-सादे और प्रकृति के करीब थे। लेकिन गाँव के बीचोबीच एक ऐसा स्थान था, जिसे हर कोई "भूलभुलैया जंगल" कहकर डरता था। यह जंगल रहस्यमयी था, जहाँ जाने वाले लोग अक्सर लौटकर नहीं आते थे। गाँववालों ने इसे अभिशप्त मान लिया था।

गाँव के किनारे एक साधारण-सा घर था, जिसमें रोहन और उसकी दादी रहते थे। रोहन 18 साल का युवक था, जिसका सपना था कि वह अपने गाँव को बाकी दुनिया से जोड़ सके। लेकिन दादी उसे अक्सर कहती, "बेटा, सपने देखो, पर जंगल की तरफ भूलकर भी मत जाना। वहाँ मौत का साया है।"

रोहन दादी की बातों को समझता, पर उसकी जिज्ञासा जंगल को लेकर कभी खत्म नहीं होती। एक दिन, गाँव में एक खबर फैल गई कि एक पर्यटक, जो जंगल के भीतर गया था, अब तक वापस नहीं आया। यह सुनकर रोहन का मन विचलित हो गया। उसने ठान लिया कि वह उस पर्यटक को ढूंढने जाएगा, भले ही सब उसे रोकते रहें।

अगली सुबह, बिना किसी को बताए, रोहन अपने छोटे से बैग में खाना और पानी लेकर जंगल की ओर चल पड़ा। जंगल के प्रवेश द्वार पर पहुँचते ही उसे ठंडी हवा का एक झोंका महसूस हुआ। पेड़ों की ऊँचाई इतनी ज्यादा थी कि सूरज की रोशनी भी ज़मीन तक नहीं पहुँच पाती थी। चारों ओर पक्षियों की आवाज़ें और पत्तों की सरसराहट के बीच, रोहन का साहस थोड़ा डगमगाया।

जंगल के अंदर जाते-जाते, उसे एक प्राचीन पत्थर का रास्ता दिखा। वह उस पर चलने लगा। थोड़ी दूर चलने पर उसे एक वृद्ध साधु मिले। साधु ने उसे चेतावनी दी, "जंगल में हर रास्ता दिखने में सीधा लगता है, लेकिन यह तुम्हें भटकाएगा। सही रास्ता वही होता है, जिसे दिल से महसूस किया जाए।"

रोहन ने साधु की बात को ध्यान में रखा और आगे बढ़ा। चलते-चलते उसे एक अद्भुत दृश्य दिखाई दिया – एक झरना, जिसके चारों ओर रंग-बिरंगे फूल खिले थे। वहाँ से उसे एक धुँधली आवाज़ सुनाई दी। वह आवाज़ पर्यटक की मदद के लिए पुकार रही थी।

आवाज़ की दिशा में चलते-चलते रोहन एक गुफा तक पहुँचा। गुफा के अंदर अंधेरा और सन्नाटा था। उसने अपनी टॉर्च जलाई और अंदर जाने लगा। गुफा के बीचोबीच एक आदमी बेहोश पड़ा था। यह वही पर्यटक था, जिसे गाँववाले ढूँढ रहे थे। रोहन ने उसे होश में लाने की कोशिश की। कुछ देर में वह आदमी होश में आ गया और रोहन से बोला, "तुम्हें पता है, यह जंगल कैसा है? यह तुम्हारे डर और इच्छाओं का परीक्षण करता है।"

पर्यटक के शब्दों ने रोहन को चौंका दिया। उसने पूछा, "तो आप यहाँ कैसे फँस गए?"
आदमी ने जवाब दिया, "मैंने यहाँ अपने डर का सामना नहीं किया। यह जंगल आत्मा की परीक्षा लेता है।"

रोहन ने समझा कि उसे साहस और समझदारी से काम लेना होगा। उसने पर्यटक को सहारा देकर गुफा से बाहर निकाला। लेकिन जैसे ही वे दोनों गुफा से बाहर निकले, जंगल ने अपना असली रूप दिखाना शुरू कर दिया। रास्ते बदलने लगे, पेड़ घूमने लगे, और धुंध छाने लगी।

रोहन ने मन में ठान लिया कि वह डर को खुद पर हावी नहीं होने देगा। उसने अपनी आँखें बंद कीं और दिल से एकाग्र होकर सही रास्ते का एहसास करने की कोशिश की। कुछ पलों बाद, उसे एक हल्की रोशनी का आभास हुआ। उसने पर्यटक को उस दिशा में चलने को कहा।

धीरे-धीरे वे दोनों उस रोशनी की ओर बढ़े और आखिरकार जंगल के बाहर पहुँच गए। गाँववालों ने उन्हें सुरक्षित देखकर राहत की साँस ली।

रोहन ने उस दिन सीखा कि डर सिर्फ एक भ्रम है और आत्मा की सच्चाई में विश्वास ही असली ताकत है। उसने दादी को गले लगाया और कहा, "दादी, जंगल उतना डरावना नहीं था जितना हम उसे समझते थे।"

इसके बाद, रोहन ने जंगल का नक्शा बनाने का काम शुरू किया, ताकि भविष्य में कोई और वहाँ न भटके। उसने वसंतपुर को दुनिया से जोड़ने का अपना सपना पूरा किया और लोगों को सिखाया कि हर डर को साहस और विश्वास से हराया जा सकता है।

"हर अनदेखी राह में एक सीख छिपी होती है, बस उसे ढूँढने का साहस चाहिए।"