ब्रिटिश राज की एक ऐतिहासिक हत्या
आज से ठीक 100 साल पहले देश स्वतंत्र नहीं हुआ था और भारत ब्रिटिश हुकूमत के अधीन था . उस समय हुई एक हत्या ने ब्रिटिश सरकार की उलझनें बढ़ा दी थी . यह हत्या सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका , ऑस्ट्रेलिया आदि अन्य देशों में भी चर्चा का विषय बन गया था और यहाँ तक कि मामला ब्रिटेन की संसद ’ हाउस ऑफ़ कॉमन ‘ तक पहुँच गया था .
यह एक ऐसी हत्या थी जो देखने में एक साधारण हत्या थी पर इस हत्या की खबर से ब्रिटिश इंडिया में भूचाल सा आ गया था . इस हत्या के परिणामस्वरूप तत्कालीन अत्यंत शक्तिशाली रियासत के महाराज को अपना ताज छोड़ना पड़ा था .
12 जनवरी 1925 की शाम में एक जोड़ी तत्कालीन बॉम्बे ( अब मुंबई ) के पॉश एरिया मालाबार हिल में कार में सफर कर रहे थे . उन दिनों कार एक दुर्लभ वस्तु थी जो चंद गिने चुने अमीरों के पास हुआ करती थी . अचानक एक कार उनकी कार को ओवरटेक कर के उनकी कार के सामने खड़ी हो गयी . इस कार से कुछ लोग उतर कर जोड़ी की कार के पास आये . उस कार में बैठे पुरुष को गाली देने लगे फिर उसे गोली मार दी और महिला को बाहर निकलने के लिए कहा . कुछ देर बाद पुरुष की मृत्यु हो गयी . फिर महिला के चेहरे पर वार किया ( जैसा कि महिला ने बाद में कोर्ट में अपने बयान में कहा था ) .
गोली की आवाज सुनकर आसपास के कुछ ब्रिटिश सैनिक वहाँ पहुंचे . हमलावर महिला को अगवा कर ले जाना चाहते थे . सैनिक घायल महिला को अस्पताल ले जाना चाहते थे . ब्रिटिश सैनिकों से उनकी झड़प हुई , इस दौरान एक ब्रिटिश सैनिक भी हमलावर की गोली से ज़ख़्मी हुआ था . हमलावरों ने दो बार सैनिकों के हाथों से महिला को अपनी गिरफ्त में लेना चाहा था पर वे विफल रहे . एक हमलावर , शफी अहमद , पकड़ा गया था बाकी भागने में सफल हुए . बाद में शफी के दिए सुराग से सात और लोगों को इंदौर में गिरफ्तार किया गया .
मामला पुलिस तक पहुंचा . मृतक 25 साल का युवक अब्दुल क़ादिर बावला था और उसके साथ अति सुंदर यौवना 22 वर्षीय मुमताज़ बेग़म थी . यह कोई साधारण हत्या होती तो बात तूल नहीं पकड़ती पर घटना के तार इंदौर के महाराजा से भी जुड़े थे . बावला एक मशहूर टेक्सटाइल व्यापारी था और वह बॉम्बे के सर्वाधिक अमीरजादों में एक था . मुमताज़ बेग़म इंदौर महाराज के अंतःपुर की एक वेश्या नर्तकी थी . उन दिनों इंदौर रियासत अंग्रेजों के अधीन एक वफादार और शक्तिशाली राज्य था . उस समय इंदौर के महाराजा तुकोजीराव होलकर III ( तृतीय ) थे . मुमताज बेग़म उनके राज में तीसरी पीढ़ी की रखैल थी .मुमताज 13 साल की उम्र में हरम में आ गयी थी . महाराज उसकी सुंदरता के दीवाने थे .
मुमताज महाराजा के यहाँ ऐश ओ आराम का जीवन बिता रही थी पर उसके ऊपर हर समय सख्त निगरानी रहती थी . उसके परिवार का भी कोई सदस्य जब मिलने के लिए आता तब भी महाराजा का कोई न कोई विश्वासपात्र उसके साथ रहता . इंदौर में मुमताज़ ने एक बच्ची को भी जन्म दिया था . उसे कहा गया था कि वह मर गयी थी . बाद में मुमताज़ ने कोर्ट में अपने बयान में कहा था कि उसकी बेटी मरी नहीं थी उसे मार दिया गया था . इन सब बातों से मुमताज़ के मन में राजा के प्रति खटास थी . करीब 10 साल तक इस तरह जीने से तंग आकर उसने दरबार से भागने का फैसला किया .
मुमताज़ इंदौर से भाग कर अमृतसर गयी जहाँ उसकी माँ और सौतेले पिता रहते थे . उधर महाराजा के शान की बात थी . उनके आदमी निरंतर मुमताज़ की खोज में लगे थे . अमृतसर से भागकर वह बॉम्बे आयी जहाँ उसकी मुलाकात अब्दुल क़ादिर बावला से हुई . वह बावला के साथ रहने लगी . बावला को भी बार बार मुमताज़ को लौटाने की धमकी मिल रही थी वरना उसका अंजाम बहुत बुरा होगा , कहा जाता था . अंततः उसे कार में मार ही दिया गया .
इस हत्या की छानबीन शुरू हुई . कदाचित किसी दबाव के चलते शुरू में मामले को ले कर धीमी गति से कार्रवाई हो रही थी . तत्कालीन पुलिस कमिश्नर इसकी सघन जांच कर रहे थे . जांच के दौरान पता चला कि इस हत्या के तार इंदौर राजघराने से जुड़े हैं .शफी अहमद की सुराग से जो सात आदमी गिरफ्तार किये गए थे उनमें अधिकाँश महाराजा के ही आदमी थे . बावला भी बॉम्बे और गुजरात का एक प्रतिष्ठित अमीर व्यक्ति था . इस हत्या की चर्चा इंडिया के प्रमुख समाचार पत्रों व पत्रिकाओं के अतिरिक्त ब्रिटेन , अमेरिका , ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में भी सुर्ख़ियों में थी . यहाँ तक की ब्रिटिश संसद ‘ हाउस ऑफ़ कॉमन ‘ में भी इस पर चर्चा हुई .
मामला बॉम्बे हाई कोर्ट तक पहुंचा . अभियोग और बचाव पक्ष दोनों तरफ से नामी गिरामी वकील मुकदमा लड़ रहे थे . केस की गंभीरता को इस बात से समझा जा सकता है कि बचाव पक्ष के वकील मोहम्मद अली जिन्ना थे , जो बाद में पाकिस्तान के जन्मदाता बने . जिन्ना आनंदराव गंगाराम फांसे ( जो इंदौर महाराजा की सेना में एक जनरल थे ) को मृत्यु दंड से बचाने में सफल रहे थे . कोर्ट ने तीन आरोपियों को मृत्यु दंड दिया और तीन को आजीवन कारावास . कोर्ट ने इंदौर महाराजा को सीधे तौर पर इस हत्या के बारे में कुछ नहीं कहा . कहा जाता है कि न्यायमूर्ति जस्टिस एल सी क्रंप , जिनके अधीन यह केस था , ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा था “ इस हत्या के हमलावरों के पीछे ऐसे लोगों का हाथ रहा है जिसे हम सटीक बता नहीं सकते हैं . पर एक औरत जो 10 साल इंदौर महाराज की मिस्ट्रेस रही हो उसके अगवा करने का आरम्भ इंदौर से हुआ है , ऐसा सोचना अकारण नहीं हो सकता है “
कोर्ट के कठोर रुख को देखते हुए ब्रिटिश सरकार को इंदौर महाराजा को कहना पड़ा “ या तो आप इन्क्वारी कमिटी का सामना करें या फिर अपनी गद्दी छोड़ दें . “
महाराजा तुकोजीराव होलकर III ने अपनी गद्दी त्यागने का फैसला किया और अपने बेटे को उत्तराधिकारी बनाया . साथ में शर्त थी कि इस घटना की आगे कोई जांच नहीं होगी . “
मुमताज़ बेग़म को अमेरिका के हॉलीवुड से भी ऑफर मिला . वह अपना भाग्य आजमाने अमेरिका गयी पर उसके बाद अंधकार में खो गयी , उसका कोई पता नहीं .
उपरोक्त हत्या इतनी सनसनीखेज थी कि इस पर कुछ पुस्तकें भी लिखी गयीं और एक फिल्म भी बनी . 1925 में ही कोहिनूर फिल्म कंपनी ने “ कुलीन कांता “ नामक एक फिल्म बनाई थी . उस समय मूक फिल्म का ज़माना था .
1928 में तुकोजीराव होलकर ने एक अमेरिकी युवती नैंसी मिलर से शादी की . नैंसी ने शादी के पहले हिन्दू धर्म अपनाया और वह शर्मिष्ठा देवी होलकर बनीं . उनको चार बेटियां हुईं . 1978 में पेरिस में तुकोजीराव का निधन हो गया .1995 में इंदौर में शर्मिष्ठा का देहांत हो गया .
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नोट - इस लेख का आधार ब्रिटिश , अमेरिकी समाचार पत्रों / पत्रिकाओं में छपे लेख / समाचार का यथासंभव अनुवाद है .