बसंत बाबू, ये ही बोलते थे लोग, 23 साल का खूबसूरत युवक, 6 फिट लंबा, तगड़ा बदन, सांवली रंगत पर बड़ी बड़ी आँखें रोबदार लगती थी। कोई एब नहीं था, बस दबंगई का शौक था। वो भी हर किसी के साथ नहीं दिखाता था, बल्कि जो अपने मे कुछ होते थे उनपर ही दबंगई चलाने का शौक था।
अपनी बूलेट मोटर साइकिल पर अपने खास यार टुन्नु के साथ चला आ रहा था। सामने से विधायक का काफिला आ रहा था। विधायक के काफिले का हुटर सुनकर ही बसंत का दिमाग तनतना गया। जो बुलेट अभी तक हर बुग्गी वाले और रिक्शा वाले को रास्ता देते हुए एकदम साइड मे चल रही थी अब वो रास्ते के बीच मे आ गई थी। विधायक के काफिले के लोग समझ गए कि बसंत बाबू हैं तो सारी गाडियाँ एक साइड होती चली गईं। विधायक के चेलो समेत विधायक ने भी गर्दन बाहर निकाल कर दोनों हाथ जोड़कर बोला “बसंत बाबू प्रणाम”।
बसंत ने बिना देखे हल्का सा सर को हिला कर अभिवादन स्वीकार कर लिया। बसंत का परिवार अत्यंत धनाढ्य परिवार था। तीन भाई और दो बहनो मे सबसे छोटा था बसंत। इसलिए सबै का लाड़ला था। परिवार का बहुत सम्मान था क्षेत्र मे। ज़मीन जायदाद, ईंट के भट्टे, कोल्ड स्टोर और ठेकेदारी के बड़े काम थे। और बसंत को ये दबंगई अपने बड़ों से ही विरासत मे मिली थी। हालांकि घर मे अन्य कोई एसा नहीं था जो एसे रंगाबाजी करता घूमता हो, लेकिन यदि फिर भी कोई मसला हो जाये तो परिवार के सभी लोग सबसे बड़े रंगबाज़ बन जाते थे।
लोग बोलते थे कि गोड़ परिवार ना राजनीति करता है और ना ही गुंडई, लेकिन इलाके मे ये सब इनके बिना हो भी नहीं सकता। लेकिन कहा ना दबंगई उनको दिखाते थे जो खुद को कुछ समझते थे। बाकी सभी के लिए हमेशा मददगार। ये ही गुण बसंत मे भी था, लेकिन अभी बसंत का मन काम धंधे मे नहीं लगता था। बस अपनी बुलेट पर यारो के साथ घूमना-फिरना।
गाँव के बाहर ही बस-अड्डा था जहाँ बसे रुकती थी। बाज़ार और एक मैदान भी था। अब कुछ घर भी बन गए थे। बसंत दुकान पर रुका और एक मीठा पान लगाने को कहा। कुछ चेले-चपाटे पास ही आकर मंडराने लगे। जिसको जो चाहिए था वो ले लिया। मैदान मे सामियाना सज रहा था। कोई कार्यक्रम होने वाला था।
बसंत पास के नल पर चल दिया, दुकानदार ने आवाज़ लगाकर बोला भी “बसंत बाबू पानी यहीं मँगवा दे रहे हैं” बसंत ने अनसुना कर दिया। नल पर बसंत मुंहु धोने लगा। फिर पानी पिया और जैसे ही ऊपर देखा तो सामने बाल्टी लिए एक लड़की खड़ी थी। लड़की की उम्र कोई 20 साल होगी। सामन्य से कपड़े, थोड़े बिखरे हुए से बाल जो हल्के से घुँघराले थे, आम की फाँक जैसी बड़ी-बड़ी आँखें और गेहुआँ रंग, सुंदर नैन-नक्सा और एकदम नपी तुली देहयष्टि। इस युवती को सुंदर ही कहा जाएगा। युवती ने बसंत की तरफ ध्यान नहीं दिया और चुप-चाप नल पर पानी भरने लगी लेकिन बसंत तो जैसे उसमे ही खो गया था।
ऐसा भी नहीं कि ये युवती दुनिया की सबसे सुंदर युवती थी या फिर बसंत ने इससे खूबसूरत लड़की नहीं देखि थी। बसंत शहर के कॉलेज मे पढ़ा था, और बसंत के परिवार की धमक और इज्ज़त इतनी थी कि शहर मे भी बसंत की शान अलग ही थी। कॉलेज की एक से एक खूबसूरत लड़की बसंत के निकट आना चाहती थी। लेकिन बसंत इस मामले मे बहुत ही मजबूत था। आज तक लंगोट को ढीला नहीं पड़ने दिया था। परंतु इस युवती के घुँघराले बालो मे कहीं बसंत का दिल उलझ कर रह गया था।
बसंत खड़ा होकर इस लड़की को एक टक देखने लगा। तभी आवाज़ आई “बसंत भैया, कहाँ खो गए?” उनका एक चेला गुठके से जंग खाये लोहे जैसे लाल खीसों को निपोर रहा था।
बसंत एकदम से सहम गया और तुरंत पीछे हटकर चल दिया। बसंत और इसका परिवार चरित्र के विषय मे बहुत साफ परिवार था।
बसंत आकर दुकान के बाहर रखी कुर्सी पर बैठ गया। बसंत अपनी झेप उतारते हुए बोला “मैदान मे कोई प्रोग्राम है आज?”
एक लड़के ने सिगरेट मे कश खींच कर कहा “बसंत भैया वीरेंद्र सिंह के घर पोता हुआ है ना... तो वो यहाँ आज वेराइटी शो होगा, मस्त डांस होगा”
बसंत ने सुना या नहीं पता नहीं, क्योंकि बसंत तो उस लड़की के ख़्यालो मे खो गया था। दिल कर रहा था कि एक बार और नल पर देखे पर हिम्मत नहीं हो रही थी।
तभी एक लड़का बोला “वो जो नल पर थी ना वो भी डांसर है बसंत भैया, आ जाओ रात को, इसका आपके लिए पर्सनल सो करवा देंगे”
बसंत एकदम से झेंप गया, लेकिन अब बसंत ने मौका देखकर उस लड़की को फिर से देखा। वो लड़की बाल्टी भरकर वापस जा रही थी।
तभी एक लड़के ने कहा “ससुरी छिनार, बसंत भैया बोले तो बिस्तर पर भी पिरोग्राम करवा देंगे इसका तो”
ये बात सुनते ही बसंत की आँखें एकदम लाल हो गईं, बसंत ने उठकर एक जोरदार थप्पड़ उस लड़के के गाल पर जड़ दिया और गुस्से मे बोला “ससुरे तू और तेरी लुगाई रोज इन्स्टाग्राम रील बनाते हो कूल्हे मटकाकर, तुम क्या हो बे, अबे इनकी मजबूरी इन्हे नौटंकी मे नचाती है, तेरी लुगाई काहे अपनी चोली के रंग दिखाती है रील पर”
बसंत ने बोला तो सच ही था लेकिन था बहुत तीखा। बसंत मोटरसाइकिल पर किक मारकर टिल्लू के साथ चल दिया वहाँ से।
टिल्लू ने आगे चलकर कहा “बसंत यार क्या बोल दिया तूने? इतनी लगती बात नहीं बोलनी चाहिए थी”
बसंत ने कोई जवाब नहीं दिया।
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शाम हो गयी थी लेकिन बसंत के लिए समय वहाँ उस नल पर ही रुक गया था। बसंत की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। बसंत उठा और मोटरसाइकिल उठाकर चल दिया। बसंत कभी भी नौटंकी या नाच जैसे कार्यक्रम नहीं देखता था लेकिन आज वो पहुँच लिया डांस प्रोग्राम मे। बसंत को देखकर वहाँ लोगो एकबार को अचकचा गए। क्योंकि बसंत के पिताजी ने ही बोला था “ये कार्यक्रम गाँव के बाहर मैदान मे करो, यहाँ गाँव मे ये छिछोरापन नहीं चाहिए”
वीरेंद्र सिंह आगे आया और बसंत का अभिवादन करते हुए सबसे आगे ले गया। बसंत कुर्सी पर बैठ गया। टुन्नु यहाँ पहले से ही आया हुआ था। वो बसंत से बोला “ये कहाँ चला आया बे तू, दिमाग को ठिकाने पर ले आ”
टुन्नु समझा गया था कि बसंत के हृदय मे कौन सी आग सुलग रही है। बसंत बैठ गया लेकिन वो लड़की स्टेज पर नहीं थी। एक गाना खत्म हुआ दूसरा आ गया पर वो लड़की नहीं आई। फिर वो लड़की आई, गाना था “परदेशी परदेशी जाना नहीं” लड़की ने अपनी आँखों और हाथों से नृत्य कला का प्रदर्शन शुरू कर दिया। बसंत को हर इशारा बस अपने लिए ही लग रहा था।
इतने मे किसी ने बसंत की तरफ एक शराब का गिलास बढ़ा दिया। टुन्नु ने रोकने की कोशिश भी की लेकिन बसंत ने गिलास लिया और एक घूंट मे गटक लिया। वहाँ तो चेलो की लाइन लगी थी बसंत को खुश करने के लिए। तो एक और गिलास दे दिया, फिर एक और। बसंत शराब पीता नहीं था, कभी ले लिया होगा एक या दो पैग। एक तो पहले ही प्रेम का नशा फिर ये शराब, बसंत एकदम से झूम गया।
बसंत अपने रेशमी मफ़लर को गले मे लपेटते हुए डांस करने लगा। और गाने “परदेशी परदेशी जाना नहीं, मुझे छोड़कर... मुझे छोड़कर” पर अपने होठ बुदबुदाने लगा। कुछ एसा शमा बंधा कि ये गाना उस नर्तकी और बसंत के मध्य का संवाद बन गया। ज्यों ज्यों गाना आगे बढ़ा बसंत की दिवांगी बढ़ती गयी। सभी लोग देख रहे थे आज बसंत की रंगबाजी को, टुन्नु परेशान था कि बसंत के घर पता चलेगा तो क्या होगा?
गाने का अंत आते-आते बसंत ने उस लड़की के हाथों को स्पर्श किया तो जैसे बसंत किसी दूसरी ही दुनिया मे चला गया। बसंत ने हल्के से उस लड़की के हाथों को चूम लिया, पूरे पंडाल मे शोर मच गया। गाना समाप्त हो गया और वो लड़की झटके से हाथ छुड़ाकर चली गयी।
बसंत अपनी कुर्सी पर आकर बैठ गया।
टुन्नु पीछे मैनेजर के पास गया और बोला “सुनो बे ये लड़की स्टेज पर नहीं आनी चाहिए अब, समझ गए”
मैनेजर ने वीरेंद्र सिंह की तरफ देखा, टुन्नु ने वीरेंद्र से कहा “समझ नहीं आया क्या तुम्हारे”
वीरेंद्र ने मैनेजर को कहा “मत जाने देना इस लड़की को स्टेज पर”
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टुन्नु भागकर बसंत के पास आया और बोला “चल बे घर चल”
बसंत ने दिवानगी के आलम मे उत्तर दिया “हम नहीं जाएंगे बे, तुम जाओ”
बसंत ने खूब मनुहार की, बसंत को उसके पिताजी और माताजी की धमकी दी, दोस्ती का वास्ता दिया, गालियां भी दी, लेकिन बसंत तो हिला भी नहीं।
टुन्नु भी वहीं बैठ गया, आखिर छोड़कर भी तो नहीं जा सकता था।
गाने पर गाने चले, रात आधी हुई फिर सुबह भी निकट आने लगी, लेकिन वो लड़की दुबारा स्टेज पर नहीं आई।
प्रोग्राम खत्म हो गया। सब अपने घरो को चले गए। लेकिन बसंत वहीं जमा रहा। ना ही तो उसकी आँखों मे नींद थी और ना ही चैन। शराब का नशा भी उतर चुका था। चारो तरफ दिन का उजाला बिखर गया था। टैंट वाला कुर्सी समेटने लगा था। लेकिन बसंत के आस-पास की कुर्सी उठाने वो नहीं आया।
बसंत उठा और नल पर मुँह धो लिया। इस बीच टुन्नु ने कई बार बसंत को चलने को कहा लेकिन वो तो अपनी जगह से हिला भी नहीं।
सुबह होने पर वो लड़की बाहर आती दिखाई दी। बसंत भागकर उसके पास गया और बोला “अच्छा किया जो तुम दुबारा स्टेज पर नहीं आई, हमे अच्छा नहीं लगता यूं नाचते देखकर”
लड़की ने बेरुखी से उत्तर दिया “कल फिर दूसरी स्टेज सजेगी, उस पर फिर नाचूँगी। ये तो चलता रहेगा बाबूजी”
इतना कहकर लड़की आगे बढ़ चली। उस लड़की ने बसंत को देखा तक भी नहीं। कल जब लड़की ने बसंत को देखा था इतनी बेचैनी तब बसंत को नहीं हुई थी जितनी इस बेरुखी से हुई।
बसंत ने आगे बढ़कर रास्ता रोक लिया और लड़की से कहा “नाम क्या है तुम्हारा?”
लड़की ने कहा “हंसनी”
“ये नहीं असली नाम” बसंत ने तुनककर कहा।
लड़की बोली “आपको मेरे नाच और मेरे इस नाम से ही मतलब होना चाहिए बसंत बाबु”
बसंत के दिल मे तंरगे उठ गयी उसके मुँह से अपना नाम सुनकर।
बसंत ने उल्लास से पूछा “तुम्हें मेरा नाम कैसे पता”
लड़की ने कहा “कल रात चर्चे सुने आपके”
लड़की रास्ता बदल कर आगे चल दी।
बसंत ने फिर रोक लिया। बसंत की ये हरकते वहाँ काफी लोग देख रहे थे। सब घबरा रहे थे लेकिन बसंत को कुछ कहने की हिम्मत भी नहीं हो रही थी।
बसंत ने कहा “छोड़ दो ये काम, चलो हमारे साथ”
उस लड़की ने बसंत की आँखों मे देखकर कहा “तुम्हारे साथ चलकर कुछ दिन बिस्तर गरम करूँ तुम्हारा, जब मन भर जाएगा फिर यहीं आना पड़ेगा। तो यहीं ठीक हूँ साहब”
बसंत के दिल मे एक तीर सा चुभ गया, वो पीड़ा से आहत होकर बोला “साथ चलो, जैसे मर्जी हो रहना, कोई छुवेगा भी नहीं तुम्हें, सम्मान के साथ रहना, पढ्न-लिखना। तुम्हारे परिवार का खर्च भी हम ही संभाल लेंगे, हमें उठाईगीर मत समझना एमएससी किए हुए हैं हम। अपने दम पर भी इतना तो कर ही सकते हैं”
लड़की ने एक फीकी मुस्कान के साथ कहा “चार साल से नाच रहीं हूँ, लोगो की कपड़े चीरती निगाहें देखि हैं। अपनी निगाहों से इज्ज़त उतार देते हैं लोग। अप बात करते हो यहाँ”
बसंत ने हिम्मत करके उसका हाथ पकड़ लिया और बोला “बहुत निगाहें देखिन हैं ना एकबार मेरी भी देखों, इतना तो पहचान ही लोगी कि इन निगाहों मे क्या है?”
लड़की ने बसंत से हाथ छुड़ाकर कहा “इतनी छिनरई अच्छी नहीं बसंत बाबू, मुझे सब छिनार बोलते हैं। अपने परिवार कि इज्ज़त मत उछालो... कुछ करना है तो बोलो, 1000 रुपे लगेंगे, जैसे मज़ा लेना है ले लेना”
अब तक इस लड़की की पक्की सहेली एक दूसरी थोड़ा उम्रदराज डांसर भी आ चुकी थी इसके पास।
बसंत को ये बात इतनी बुरी लगी कि उसने एक चांटा लड़की को मार दिया।
बसंत के दिल की पीड़ा उसकी आकन्हों से पानी बनकर बह निकली थी।
बसंत ने लड़की से कहा “छिनरई तुम्हारी मजबूरी है इसे आदत मत बना”
इतने मे दूसरी लड़की बोली :ये क्या बाबू अब गुंडई पर उतर आए”
हंसनी बिना कुछ आगे बढ़ चली
इस सब से वहाँ लोगो मे हड़कंप मच गया। टुन्नु ज़बरदस्ती बसंत को वहाँ से खींचकर ले गया।
पूरे गाँव और कस्बे मे इस बात की चर्चा थी कि बसंत ने शराब के नशे मे डांसर के साथ बदतमीजी की
पहली बार बसंत के पिता ने बसंत को खूब पीटा।
बसंत ने अपनी सफाई मे कुछ भी नहीं बोला।
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वहाँ से नौटंकी वाले अपने डेरा समेत कर चल दिये थे।
हंसनी से उसकी वो सहेली डांसर ने कहा “क्या बोल रही थी री तू, 1000 रुपए मे सब कुछ कर लेगी। तुझे 50000 रुपए भी मिल रहे थे। तब तो तूने कुछ नहीं किया”
हंसनी ने मुसकुराते हुए कहा “अरे मज़ा ले रही थी मैं तो”
उस लड़की ने कहा “मज़ा ले रही थी, तेरी आँखों मे तो नहीं दिख रहा वो मज़ा”
हंसनी ने कहा “छोड़ो ना दीदी”
वो लड़की बोली “इतना तो तुजुर्बा हो चुका है लोगो के बिस्तर और दिल गरम करके, वो लड़का दीवाना हो गया था तेरा। लड़का बिलकुल गलत नहीं था। और यहाँ सब ये ही बोल रहें हैं कि लड़का बहुत अच्छा है पता नहीं कैसे ये सब हो गया”
हंसनी ने कहा “छोड़ो ना दीदी, हमे क्या अच्छे बुरे से”
उस लड़की ने कहा “गलत होता तो 1000 रुपए देकर ले जाता, बल्कि उठाकर भी ले जाता। उसकी आँखों का पानी नहीं दिखा तुझे। या तेरी आँखों का पानी मर चुका है”
हंसनी ने उस लड़की की तरफ देखा, उसकी आँखों मे आँसू थे। हंसनी बोली “लड़का अच्छा है, पढ़ा लिखा है, इज़्ज़तदार घर का है...तो क्या चल दूँ उसके साथ। मेरी तो ज़िंदगी बर्बाद है ही उसकी भी कर दूँ। एक छिनार के साथ ज़िंदगी कोई नहीं गुजार पाएगा दीदी।“
इतना बोलकर हंसनी वहाँ से चली गयी।
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इसके बाद से सब कुछ पहले जैसा हो गया था, लेकिन बसंत की ज़िंदगी बादल चुकी थी। अब उसकी रंगबाजी और दबंगई दिखाई ही नहीं देती थी। ना ही पहरने का कोई होश और ना ही खाने का। दाढ़ी बढ़ चुकी थी और शराब अब रोज पीने लगा था। शाम होते ही उस मैदान मे चला जाता और आधी रात को टून्नु उठाकर लाता।
माँ, पिता भैया भाभी दोस्त सभी को जब कुछ नहीं सुझा तो ब्याह करने की सोची। सबको लगता था कि ब्याह हो जाएगा तो शायद सुधार जाये।
लेकिन बसंत ब्याह का नाम आते ही घर से निकल लिया।
कहाँ गया पता नहीं?
इस तरह एक वर्ष बीत गया। तब घर वालो को खबर आई कि इलाहबाद के घाट पर कोई बेहाल युवक पड़ा है जो शायद बसंत हो सकता है।
घर वालो ने जाकर देखा तो बसंत ही था लेकिन एकदम बदल गया था। हड्डियों का ढांचा बन चुका था।
लोगो ने बताया कि हर समय नशे मे डूबा रहता था। लोग उसे छिनार का दीवाना बोलते थे। क्योंकि बस किसी छिनार को याद करके गाने गुंगुनाता रहता था। कभी-कभी ज़ोर से चिल्ला कर बोल पड़ता था, “कहाँ गयी छिनार ।तेरे बिना नहीं रह पाएंगे रे, एकबार शकल दिखा जा... नाम बता जा। निकल लेंगे इस दुनिया से”
जिसने भी बसंत का हाल देखा उसकी ही आंखो से आँसू बहने लगे। डॉक्टर ने भी जवाब दे दिया। घर पर ही सेवा करने को बोला।
टुन्नु को आखिर कुछ नहीं सुझा तो तलाशने चल दिया बसंत की छिनार को। अधिक मेहनत और समय नहीं लगा।
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टुन्नु को देखते ही हंसनी ने पहचान लिया। लेकिन उसे भी अनुमान नहीं था कि टुन्नु क्यों आया होगा?
टुन्नु को पास बैठाकर बोली, बोलो भैया जी कहाँ पिरोग्राम करवाना है, वैसे टाइम तो मैनेजर बाबू ही देंगे।
टुन्नु खुद को काबू नहीं कर पाया और फुट-फुट कर रो पड़ा। हंसिनी देखकर थोड़ा असहज हो गयी थी।
टुन्नु ने खुद को संभाल कर कहा “बहुत बुरी घड़ी थी वो जब तुमने हमारे गाँव मे कदम रखा था। पूरा कुनबा बर्बाद कर गयी री तू”
हंसिनी के कुछ समझ नहीं आया तो टुन्नु ने बसंत का पूरा हाल कह सुनाया।
हंसिनी सुनती रही और रोती रही।
बाद मे हंसिनी ने कहा “पता था सच्चा प्यार करने वाला मिला है लेकिन इतना सच्चा ये नहीं पता था। टुन्नु भैया सच तो ये हैं कि मैं अपना सब कुछ वहीं हार गयी थी। भला हमारी ज़िंदगी मे कौन हमे ऐसे चाहेगा। लेकिन नहीं चाहती थी कि उनका जीवन बर्बाद करूँ। मुझ जैसी नाचने वाली छिनार को अपनाते तो सब मिटा बैठते। सोचा था कुछ दिन मे भूल जाएंगे, वैसे भी एक छिनार को कौन याद रखेगा?”
टुन्नु ने कहा “कुछ नहीं भूले एक पल को भी नहीं भूले। बस एक प्रार्थना है, चलो एक बार देख लो अपने बसंत को और दिखा दो अपनी शकल उसे, शायद तुम्हें देखे तो सबकुछ ठीक हो जाये। दुनिया क्या कहेगी हमे चिंता नहीं, हम अपने दोस्त के साथ हैं, हम देखेंगे कोन बोलता है कुछ”
हंसिनी को कुछ सूझ नहीं रहा था। तभी उसकी एक सहेली ने उसे अलग बुलाया और कहा “जा हंसिनी मिल आ, इतना बड़ा पाप अपने सर रख कर जी नहीं पाएगी तू”
टुन्नु को पूरी आशा थी कि शायद हंसिनी को देखकर बसंत की हालत सुधर ही जाएगी।
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टुन्नु अपने साथ हंसिनी को ले आया था। परिवार वाले नहीं समझ पा रहे थे कि ये कौन है। हंसिनी ने जब बसनत की हालत देखी तो उसकी छाती पर सर रख कर फुट-फुट कर रोयी।
बसंत की आँखों से भी अश्रु धारा रुक नहीं रही थी। लेकिन बसंत के चेहरे पर खुशी की चमक भी दिखाई दे रही थी।
बसंत ने हंसिनी को चुप करके उसके चेहरे को अपने हाथो मे लिया और बोला “कहाँ चली गयी थी री, क्या मुझे भी औरों जैसा लोफ़र ही समझी थी। प्रेम हो गया था तुझसे”
हंसिनी ने रोते हुए बोला “मैं एक नाचने वाली छिनार, आपके इस प्रेम के लायक नहीं थी। आपकी ज़िंदगी को बदसूरत नहीं बनाना चाहती थी। इसलिए आपसे दूर चली गयी। आपके सच्चे प्रेम को ठुकराने का महापाप किया क्योंकि नहीं चाहती थी मेरी बदनामी आपके साथ जुड़े”
बसंत ने आँखें बंद करके कहा “तू समझी ही नहीं प्रेम को”
फिर बसंत ने हंसिनी की आँखों मे देखकर कहा “नाम बता अपना क्या है? वो जो तेरी माँ ने रखा होगा।“
हंसिनी ने कहा “माँ ने तो कुसुम नाम रखा था, माँ और बापू दोनों मर गए तो चाचा भी कितने दिन पालता बस भेज दिया नौटंकी मे नाचने को”
बसंत ने तंज़ कसते हुए कहा “और तूने इस मजबूरी को आदत बना लिया”
हंसिनी ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी और बोली “मजबूरी ही थी आदत नहीं, आपको उस दिन कर ही मई भी सब कुछ हार बैठी थी। लेकिन बताया ना, नहीं थी आपके लायक। अब कभी आपको छोड़कर नहीं जाऊँगी। जो सज़ा दोगे उस पाप के लिए वो जनम भर भूगतुंगी। बस आप ठीक हो जाइए”
बसंत ने एक फीकी मुस्कुराहट के साथ उस पुराने दबंगई के अंदाज़ मे कहा “बहुत देर कर दी पगली, ये तो बस ज़िद थी तुझे एक बार देखने की तो बोल दिये थे यमराज जी को अभी ना छेड़िएगा हमे, एकबार मेरी छिनार को देख लेने दीजिये मन भर के”
बसंत ने हंसिनी का चेहरा अपने हाथो मेन लिया हुआ था और एक टक उसे ही निहार रहा था।
हंसिनी बोली “अब एक पल को आपसे दूर जाऊँ तो नरक की आग मे जलूँ, कहीं नहीं जाऊँगी, कभी नहीं जाऊँगी”
बसंत उसे निहारते हुए ही बोला “सबको मेरे प्रेम से समस्या थी। तुम्हें भी, मेरे घर वालो को भी, दोस्तो और दुनिया वालो को भी। तो आज सभी को मुक्त किए जा रहा हूँ। बस तेरे लिए मेरा प्रेम मेरे साथ जाएगा कुसुम”
और बसंत सभी को मुक्त करके चला गया।