The difference between village and city in Hindi Moral Stories by Munavvar Ali books and stories PDF | गाँव और शहर के दरमियान फर्क

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गाँव और शहर के दरमियान फर्क

मैं जब भी रिश्तेदार के वहाँ खाने जाता हूं, तो बहुत दिलचस्प बातें सुनने मिलती है।

अब जब मैं मेरे फूफीजी के घर डिनर की दावत खाने गया था, वहाँ पर चूंकि गाँववाले लोग है।सो उनकी बातें भी थोड़ी सी पिछड़ी होती है।मिसाल के तौर पर जब बातें हो रही थी, तब अमियाने कहा,"मेरे ससुरालवाले खाने में काफी तेज़ है। जब मेरे सोहर खाने बैठते है, तब रोटी के चार बड़े टुकड़े कर देते है। फिर एक रोटी सिर्फ 1 मिनटमें कहाँ खत्म कर देते है, पता ही नही चलता।"(अमिया फूफी की लड़की का नाम है।)उसके बाद मुझे कहते है, "तुम कुछ खा नही रही हो, खाना शुरू करो!"

खाने के बाद फुफड़ बाबा ने अमियासे कहा, 'कल it रिटन वाला आनेवाला है, सब फाइल्स तैयार रखना तब' में समझ गया कि यहाँ पर विदेश जानेकी प्लानिग हो रही है।जब पापाने उनसे पूछा, 'आईटी क्यो अभी से?'तब वह कहने लगे, 'भविष्यमे कोई दिक्कत ना आए लोन आसानी से मिल जाए इस लिए।'तो आप इस बात से चौक जाएंगे कि ये कितने बड़े झुठे है!

ईस बात से आप अंदाज़ा लगाइए की इनकी बातोंमें किस चीज की कमी है? क्या इनमे शिक्षा की कमी है? पापाके हिसाब से तो ये लोग अत्यधिक पढ़े हुए है। और तो और संस्कार भी कूट कूट कर भरे हुए है। बावजूद इसके ये लोग केनेडा जाकर बसना चाहते है। ये लोग गलती इस प्रकार करते है कि ये उस बस्ती से ताल्लूक रखते है, जहाँ पर नॉकरी पाने के लिए शहरमे आना ही होगा। जबकि, ये लोग शहरमें पले हुए परिवार को न्यूक्लियर फेमिली कहकर पुकारते है। ये लोग क्या कर रहे है? गाँव से सीधा हाई प्रोफाइल कंट्री में माइग्रेट करते है। फिर बहार जाकर फोन करते है कहते है कि "नौकरीयां नही है इस देश मे।"

अरे दादा, कुछ तो शर्म करो, कुछ तो लिहाज रखो! अरे तुमने एक नॉकरी पाने के लिए अपने देश मे थोड़ा सा भी संघर्ष किया था क्या? तुमको सिर्फ पेढ़े खाने है। उसको हाँसिल करने के लिए कितनी मशक्क़त लगती है! क्या तुम जानते हो? जो देश तुमको वहाँ रख रहा है, बावजूद इसके कि तुम वहाँ के नागरिक नही हो। उसे ही बुरा भला कहते हो? कुछ तो मर्यादा रखो!

खैर छोड़ो! अब में जब मेरे मौसी के वहाँ पर खाने गया था, तब मुम्बई से रिश्तेदार आए थे। इनकी बातें मजेदार थी, आम चीजोंको ख़ास बताना इनकी खूबी है। जो मुझे बेहद पसंद आई। पानी को लिम्का बोलते है। खिचड़ी को पुलाव बोलते है।

फिर जब भाभी इनसे बातें कर रही थी। वह कह रही थी, आप खिचड़ी नही लोगे? उन्होंने कहा, 'यह खिचड़ी नही पुलाव है, हमारे यहाँ इसे पुलाव कहते है।'भाभी, "अच्छा, वह कैसे?"वे बोले, "रातमे खाओ तो भी चलता, दिन में खाओ तो भी चलता।"इस पर भाईने कहा, 'हमारे गुजरातमें तो इसे खिचड़ी ही कहते है, क्योंकि इसमें दाल और हल्दी डलती है।'वे बोले, 'अरे, तुम चेन्नई जाओ, हैदराबाद जाओ, अंधेरी में जाओ। सब पुलाव ही बोलते है। खिचड़ी तब कही जाए जब खड़े मसाले पड़ते है।'फिर भाई बोले, 'मे गुलबर्गा गया था, तब वहाँ पर खिचड़ी खाई थी। जो बिल्कुल अलग थी, सिर्फ उबले चावल में पिला रंग छोड़ा हुवा था, पतला रसा भी था उसमें।'

यदि आप ने संज़ीदगीसे पूरा पढा हो, तो आपको पता चलेगा, की भिन्न भिन्न इलाको में होनेवाली बातोंमें जमीन आसमान का फर्क है। जहाँ मेरे एतराफ़के गाँवके लोग देशके माहौलसे ऊब गए है, मानते है कि इस देशमें रहेंगे तो गरीबी में जियेंगे गरीबी में गुज़ारा करना होगा, तो दूसरी तरफ शहरके माहौल में बिल्कुल ऐसा नही है। ये लोग संयमसे काम लेते है। इस कलचर में आप रहोगे तो आपको विभिन्न शैलीको करीब से जान पाओगे। हालांकि गाँव पूरी तरह से बुरे भी नही है। गाँव से तो हमे फसलें मिलती है। लेकिन, गाँवके लोंगोके बीच नाकामयाबी और मायूसीकी बू आती है, बस वह बुरी बात है।