: आंसुओं से भरी एक सच्चाई
चारों ओर घना अंधेरा था, और जमीन की गहरी खामोशी में एक मासूम आवाज गूंज रही थी, "मम्मा... मम्मा... मुझे बचा लो!" वह आवाज दर्द से कांप रही थी, जैसे कि वह अपनी आखिरी उम्मीद के साथ पुकार रहा हो। उसके शब्द हवा में खो जाते, लेकिन ऊपर, जमीन के उस पार, एक मां अपने घुटनों के बल बैठी बोरवेल के मुंह को पकड़े हुई थी, उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे और वह लगातार चिल्ला रही थी, "मेरा बेटा आर्यन! कोई इसे बचा लो!"
आर्यन का पिता, रामेश्वर, हमेशा मजबूत दिखने वाला, उस दिन अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख सका। उसकी आंखों में आंसू थे, और वह बेबस होकर अपनी पत्नी गीता के पास बैठा था। उनका चार साल का बेटा, आर्यन, जो उनकी दुनिया था, अब एक गहरे बोरवेल में फंसा हुआ था, और किसी के पास उसे बचाने का तरीका नहीं था। पूरा गांव इकट्ठा हो चुका था, लेकिन हर किसी के चेहरे पर एक ही खामोशी थी—सिर्फ असहायता और डर।
आर्यन का खेल और हादसा
आर्यन, एक मासूम बच्चा था, जिसकी आंखों में दुनिया के सारे सपने थे। उसकी हंसी घर के आंगन में गूंजती थी, और उसका मासूम चेहरा किसी भी दिल को छू लेता था। गीता अक्सर कहती, "मेरा आर्यन एक दिन बड़ा आदमी बनेगा।" लेकिन उस दिन, जिस दिन एक लापरवाही ने उसे हमेशा के लिए छीन लिया, गीता के सारे सपने चूर हो गए।
सुबह का वक्त था, और रामेश्वर ने अपने खेत पर काम करने के लिए निकलने का निर्णय लिया। वह बोरवेल के पास खड़ा था, जिससे खेतों को पानी मिल सकता था। कई बार बोरवेल को बंद करने के लिए कहा गया था, लेकिन रामेश्वर ने कभी इसे सील करने की जरूरत नहीं समझी। उस दिन, जैसे ही आर्यन और उसकी मां गीता खेत पर पहुंचे, उन्होंने खेलना शुरू कर दिया। आर्यन एकदम उत्साहित था, दौड़ते-दौड़ते वह खेतों की ओर बढ़ गया। खेलते-खेलते वह बोरवेल के पास पहुंचा, और जैसे ही उसका पैर फिसला, वह सीधे गहरे बोरवेल में गिर पड़ा। आर्यन की चीख सुनकर गीता दौड़ पड़ी, लेकिन तब तक वह 40 फीट नीचे अंधेरे में समा चुका था।
गांव में हड़कंप मच गया
जैसे ही गीता ने बोरवेल में आर्यन को गिरते हुए देखा, उसकी चीखें सुनकर पूरा गांव इकट्ठा हो गया। लोग दौड़े-दौड़े पहुंचे, लेकिन कोई भी इस छोटी सी जगह में आर्यन तक नहीं पहुंच पा रहा था। किसी ने रस्सी डाली, तो किसी ने लकड़ी का सहारा लिया, लेकिन बोरवेल इतना संकरा था कि कोई भी उसे बाहर नहीं निकाल पा रहा था।
गीता, जो पहले बेफिक्र थी, अब बोरवेल के पास बैठकर लगातार चिल्ला रही थी, "मेरा बेटा! मुझे मेरा बेटा चाहिए!" उसकी आवाज में एक मां की बेज़ुबान तकलीफ और दिल की टूटन थी। रामेश्वर, जो हमेशा अपनी ताकत दिखाने वाला था, आज चुपचाप खड़ा था, उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे, लेकिन उसके पास शब्द नहीं थे।
72 घंटे की लड़ाई
बचाव दल को सूचना दी गई, लेकिन समय बहुत कीमती था। एक टीम बचाव के लिए आई, लेकिन बोरवेल इतना संकीर्ण था कि उसमें काम करना मुश्किल हो गया। बोरवेल में कैमरा डालकर देखा गया, तो आर्यन की नन्ही काया नीचे से कांप रही थी। उसकी आवाज बार-बार आ रही थी, "मम्मा, मुझे डर लग रहा है!" और उस समय गीता बेहोश हो गई। वह बोरवेल के पास गिर पड़ी, जैसे वह किसी डरावने सपने में खो गई हो।
हर पल के साथ बचाव दल की कोशिशें नाकाम होती जा रही थीं। मिट्टी बार-बार गिरने लगी, और बोरवेल की दीवारें कमजोर हो गईं। रात के अंधेरे में बचाव दल और गांव वाले सभी थक चुके थे, लेकिन कोई भी हार मानने को तैयार नहीं था।
आर्यन की मौत: गीता का दुःस्वप्न
72 घंटे की कड़ी मेहनत के बाद, अंत में बचाव दल ने आर्यन को बाहर निकाला, लेकिन वह अब जीवित नहीं था। उसका शरीर पूरी तरह से सर्द था, उसकी आंखों में सिर्फ अंधेरा था। गीता ने उसे अपनी गोदी में लिया, लेकिन अब वह उसकी नन्ही जान नहीं थी। उसकी आंखों में मौत की छाया थी। गीता के दिल में एक कटी हुई चीख थी, लेकिन उसकी आवाज बाहर नहीं आ रही थी। उसकी दुनिया चूर-चूर हो चुकी थी।
रामेश्वर, जो कभी अपनी ताकत और धैर्य का उदाहरण था, अब टूट चुका था। वह गीता के पास बैठकर सिर झुकाए रो रहा था। उनकी दुनिया में अब केवल खालीपन था। उनके प्यारे बेटे के खिलौने अब घर में पड़े हुए थे, लेकिन उन खिलौनों में कोई खेल नहीं रहा था।
गांव में मातम
पूरे गांव में शोक की लहर दौड़ गई। लोग गीता के घर जाकर सांत्वना दे रहे थे, लेकिन उनके आंसू कम नहीं हो रहे थे। उन घरों के आंगन में अब हंसी की गूंज नहीं थी, बल्कि वहां केवल एक गहरी शांति थी, जो दर्द और खालीपन से भरी हुई थी। आर्यन के बिना, उनके घर में कुछ भी पहले जैसा नहीं था।
गांव के लोग अब समझ गए थे कि यह हादसा केवल एक परिवार का नहीं था, बल्कि यह पूरे गांव और समाज की लापरवाही का नतीजा था। खुला बोरवेल और कुआं, जो किसी के ध्यान में नहीं था, उसने एक मासूम की जान ले ली।
एक कड़वा सबक
रामेश्वर और गीता की पीड़ा ने पूरे जिले को झकझोर दिया। सरकार ने तुरंत सभी खुले बोरवेल और कुओं को बंद करने के आदेश दिए और यह तय किया कि जो किसान अपनी लापरवाही के कारण ऐसे हादसों का कारण बनेगा, उसे सख्त सजा दी जाएगी। लेकिन यह कदम बहुत देर से आया था, और इस कदम ने किसी के दर्द को कम नहीं किया।
गांव में अब हर बच्चा और हर व्यक्ति यह जानता था कि लापरवाही की कोई माफी नहीं होती। इस घटना ने हमें यह समझने पर मजबूर किया कि एक छोटी सी चूक किसी के पूरे जीवन को बदल सकती है। लेकिन क्या हम वाकई समझ पाए कि हम क्या खो रहे हैं, या हमें फिर किसी गीता को अपना आर्यन खोने के लिए और कितनी मौतें चाहिए?
क्या हम अब भी नहीं जागेंगे?