Swayamvadhu - 31 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 31

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स्वयंवधू - 31

विनाशकारी जन्मदिन भाग 4

दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाशक्ति के पूरे शरीर पर छिड़क दी और व्हिपर्स को समीर के आदेश पर वो सुनहरी व्हिप दी गयी जिसका इस्तेमाल, वो ऊर्जा निकालने के लिए इस्तेमाल किया जाता था।

इस व्हिप की खासियत?
शक्तियों को दंडित करने के लिए मानवीय सज़ा। इससे उन्हें चोट तो पहुँचती थी और उनकी ऊर्जा भी खत्म हो जाती थी पर कुछ दिनों में घाव ठीक होने पर वो सामान्य भी हो जाते। यह उनके लिए एकमात्र मानवीय सज़ा थी लेकिन जब शक्ति से ऊर्जा चूसने के लिए विशेष मंत्र के साथ नियमित रूप से प्रयोग किया जाता है... तो घाव लगभग लाइलाज हो जाते हैं। 

इस समय देश-विदेश के अन्य माफिया लीडर भी इसमें शामिल हो गये। वे रोमांचित थे। समीर मुस्कुराया, उसकी मुस्कुराहट में कुछ रहस्य था।
प्रहार पर प्रहार से कवच की शर्ट छोटे-छोटे टुकड़ों में फट गई। अब उसकी नग्न त्वचा उजागर हो गई, हर निर्दयी प्रहार उसकी नग्न त्वचा पर पड़ता और उसे फाड़ता जाता। उसकी पीठ, उसकी छाती, उसका कंधा, उसका लॉकेट, सब कुछ उसके उर्जा से भरे खून में भीगने लगा। उससे निकली उर्जा अद्वितीय थी। प्रचुर मात्रा में रक्त मिश्रित ऊर्जा प्रवाहित होने से पूरे कमरे का वातावरण भारी हो गया था।
महाशक्ति के शरीर में हलचल होने लगी।
विशेषकर शक्तियों पर ही नहीं, बल्कि यहाँ प्रस्तुत सामान्य लोग पर भी इसका प्रभाव पड़ने लगा। कमरे में मौजूद हर व्यक्ति का दम घुट रहा था, सबसे ज़्यादा वे लोग भी जो उसे कोड़े मार रहे थे। कुछ और घंटे तक कोड़े मारने के बाद उनका चित साथ छोड़ने लगा। कोई भी इस प्रकार की ऊर्जा को सहन नहीं कर सकता, कभी ना खत्म होने वाली ऊर्जा, कभी ना खत्म होने वाली पीड़ा, कभी ना खत्म होने वाली घुटन, कोई भी इसे सहन नहीं कर सकता था, यहाँ तक कि समीर भी अपनी समझ खोने लगा था। यह उससे अधिक था जिसे वह अवशोषित कर सकता था। वह ऊर्जा से पागल हो रहा था। उसकी नज़र टेबल पर गयी। महाशक्ति गायब थी। वह अपनी जीत पर मुस्कुराया।
सामान्य जैसे माफिया, सहायक-सहायिका, कयाल, प्रांजलि, अंजलि, प्रतिज्ञा, साक्षी, दिव्या एक-एक कर घुटन और दबाव से बेहोश होने लगे। व्हिपर्स ने अंततः हार मान ली और कवच के सामने अचेत होकर आत्मसमर्पण कर दिया। बचे केवल समीर और शक्तियाँ थी।
राज अपना माथा झाड़ उठा, "क्या आप इसे महसूस कर रहे हैं माफिया बॉस 'वृषा'?", ताना मारते हुए कहा।
"इस सारे मनोरंजन से आप बहुत ज़्यादा उत्साहित महसूस कर रहे होंगे ना 'वृषा'?!", वृषाली हाथ में कुछ डायरियाँ और टैब लेकर आई। उसके हाथ ज़ख्मी, खून से सने थे।
"मनोरंजन में असली रंग अब आऐंगे 'वृषा'!",
सबको लगा वो वृषा बिजलानी की बात कर रही थी।
"क्या ये वही है? दिनांक,
'दो जनवरी 1990,
मैंने आज अपने पिता को सोखने के बाद उन शक्तियों को भी सोखने में सफल रहा। वे कमज़ोर थे! बहुत कमज़ोर! अंदर और बाहर वे बस दयनीय थे। अब उन्हें मौत का वह स्वाद पता चल गया है जो उन्होंने मेरी दिवंगत बड़ी बहन को चखाया था। मैं तो बस यही चाहता था पर...
आज पहली बार मैंने इसका स्वाद चखा! इसका स्वाद मीठा था! मज़बूत था! ऊर्जा से भरपूर था जो मैंने पहले कभी अनुभव नहीं किया था! श्रेष्ठता का स्वाद अद्वितीय है। यह वही रोमांच है जिसकी मुझे तलाश थी। हर एक को डरा हुआ, पराजित और आत्मसमर्पण करते हुए देखना... कुछ और ही है। कोई भी इस भावना को समझा नहीं सकता।'

'तीन जनवरी 1990,
आज मैंने पहली बार बंदूक को अपने हाथ में पकड़ा। उसका भारीपन, बारूद की सुगंध, नशे के जंजाल में फँसे लोग की सनक सब अनोखा था!'

'छब्बीस सितंबर 1992,
लोग कितने नाज़ुक है ना, एक गोली और खेल खत्म! मैंने बस ट्रिगर खींचा और पाँच लोग मारे गए। आज मैं सिर्फ एक गैंगस्टर हूँ लेकिन एक दिन दुनिया मुझसे डरेगी।'

'छह फरवरी 1994,
...अब मैं मालिक हूँ! गैंगस्टर, दुनिया का खतरनाक माफिया। इस देश में एक चौथाई संपत्ति मेरी है, राजनीतिक पार्टियाँ, सरकार में रहने के लिए मेरे जूते चाटती हैं।'

'चौदह जनवरी 1994,
जीवन में मेरी पहली गलती यह बच्चा है। मान्या मेरी चित्रित प्रसिद्धि का लालच करती है और इस परजीवी का उपयोग करके उसे प्राप्त करना चाहती है। लेकिन देखते हैं उसका प्रदर्शन कैसा रहता है, शायद वह बच जाए?'

कुछ गर्भावस्था और उसकी माँ, आमलिका के बारे में बकवास। कुछ और नशीली दवाओं की तस्करी, मानव तस्करी, सोने की तस्करी, महंगी चीजों की तस्करी (पता नहीं क्या?) हत्याएँ, आगजनी, राजनीतिक हत्या, सत्ता पलट इत्यादि। फिर,

'सात सितम्बर 1994 प्रातः 3:00 बजे,
हमारे परिवार में एक कवच का जन्म हुआ। मैं उसकी नवजात शक्ति को महसूस कर सकता हूँ, वह ऊर्जा जो वो मुझे प्रदान करेगा! अधिक ऊर्जा का अर्थ है अधिक शक्ति, अर्थात सम्पूर्ण विश्व में अंतहीन प्रभुत्व। स्वागत है मेरे दास!'

'चार नवंबर 1995,
पाँच गाँव में आगज़नी, एक हीरा व्यापारी का अपहरण, बीना कुमारी की निलामी...', और भी बहुत कुछ, जिससे मेरी रीढ़ में सिहरन पैदा हो गई।",
उसने कवच की ओर देखा। कुछ और पन्ने पलटने के बाद,
"अ-हा! यह तो कुछ मसाला है! कोई तारीख नहीं। इसमें लिखा है,
'अब जब मेरा एक परिवार है, तो मैं असली पारिवारिक नाटक देख रहा हूँ। सास और बहू के बीच वर्चस्व की लड़ाई। यह बहुत हास्यास्पद है। लेकिन लगता है कि एक अच्छी मनोरंजन होने के लिए मुझे उसे वह जहर देकर पारितोषित करने चाहिए जो वह इतने समय से चाह रही थी।'

अगली प्रविष्टि बस थी,

'ओह! उसने उसी से माँ को मार डाला। आशा है कि ज़हर ने बेहतर काम किया होगा और वह बिना तड़पे चल बसी होगी। मेरे दास को इतना आज्ञाकारी बनाने के लिए धन्यवाद। मैं उसकी पूरी तरह से देखभाल करूँगा।'

इसके बाद भी वह नहीं रुका। उसने अपनी पत्नी को कार दुर्घटना में मार डाला। नहीं! वह कार दुर्घटना में नहीं मरी। उसने उसकी सारी ऊर्जा चूस ली। वृषा, आपकी माँ उनकी नियति थी। इसलिए वह उन्हें सहन करने में सक्षम थी। इस प्रकार आप कवच के रूप में पैदा हुए। यह उन दो कारणों में से एक है, जिनके कारण आप अब तक जीवित रह पाए।", उसने आखरी वाक्य अपनी नियति को देखते हुए कहा,

"क्या सभी अपराधी अपने अपराध लिखते हैं या सिर्फ वह ही ऐसा करता है? जो भी हो, ऐसे कई और इकबालिया बयान हैं जिन्हें पढ़ने की मेरी हिम्मत नहीं हुई। इसने क्रूरता की हद आर कर दी। यह वही चीज़ है जो आपने मांगी थी-", इससे पहले कि वह कुछ कह पाती और प्रांजलि को दे पाती पुलिस अंदर घुस आई और समीर को हिरासत में ले लिया।
वे सभी माफियाओ को घटनास्थल से ले गए, तथा जंजीर फरार हो गया। जैसा कि उन्होंने वादा किया था, उन्होंने राज और वृषा को छोड़ दिया, लेकिन उनकी भी मदद नहीं की। उन्हें वहाँ से जाने के लिए आधे घंटे का समय दिया गया। राज ने अपने आदमियों को बुलाया और सभी को सुरक्षित मर्यादा वापस ले गए।
आर्य और शिवम ने वृषाली की मदद की और अर्ध बेहोश कवच को उसके कमरे में ले गए। जब वह डायरी की प्रविष्टियाँ पढ़ रही थी तो उसकी आँखें पूरे समय उसकी हालत पर टिकी हुई थीं। अंदर ही अंदर उसे उस पोटली की याद आती रही जो पंडित जी ने उसे दी थी। उसने वह पोटली पकड़ी और कवच के कमरे की ओर दौड़ी। उसने वह पोटली खोली। उस पोटली में एक पीतल का कटोरा, एक चाकू, एक ओखल और मूसल तथा कुछ जड़ी-बूटी की गोलियां और जड़ें थीं। दवाओं की भीड़ में वह केवल हल्दी ही पहचान सकी। वह ठिठक गई। उसका दिमाग खाली हो गया। कुछ बुरा होने का डर उसे डरा रहा था और वह पीछे हटने की कोशिश कर रही थी। "जल्दी करो!" मैं उस पर चिल्लाई।
"बस वही करो जो मैंने कहा है।", मैंने उसके दिमाग के अंदर चिल्लाई, "मैं परम शक्ति हूँ। मैं तुम्हारी नियति को उस असाध्य घाव से ठीक करने में तुम्हारी मदद करूँगी।",
वह होश में आ गई।
"हाँ! मेरे निर्देशों का पालन करो।", मैंनें आदेश दिया, "सबसे पहले कटोरे को साफ कपड़े से साफ करों। इसे स्वयं करना और किसी को भी इसे छूने मत देना।",
आर्य और शिवम ने मदद करने की कोशिश की। वृषाली को मैंने उन्हें मना कर दिया।
जैसा कि मैंने कहा उसने कटोरा साफ किया।
"अब ओखल और मूसल भी।"
उसने काँपती हुए हाथों से किया।
"काँप मत! अब सारी सामग्रियों को ओखल में डालो और एक महीन चूर्ण बना लो।",
वह एक-एक टिक्कियाँ को डालकर चूर्ण कर रही थी।
"अब जड़ो को अपने खून के साथ पीसो।",
खून सुनते साथ वो रुक गयी।
(खून?) उसने अचरज में पूछा,
"हाँ, खून!", मैंने ज़ोर देकर कहा,
(लेकिन कैसे?) उसने हाथों को देखते हुए पूछा,
"वो चाकू लो अपने दाहिने हाथ को गहराई से चीरो। इस सूखे चूर्ण का लेप पानी या कोई अन्य द्रव्य से नहीं, तुम्हारे ऊर्जा भरी खून से होगा।",
(ये 'ऊर्जा', 'शक्ति', 'कवच', 'नियति' सब क्या है? सब इसकी बात कर रहे है। सब इसके बारे में जानते है। सब मुझे इसके लिए अपमानित करना चाहते है। पर ये है क्या और इसका मुझसे, भाई से और मेरे परिवार से क्या मतलब है?) उसने तंग आकर पूछा,
"अच्छा सवाल है पर यहाँ लाइव एक आदमी अपने प्राण त्याग रहा है और तुम्हें सब अभी ही जानना है?! पहले सारे जड़ो को दर-दरा कूटो फिर अपने खून के साथ उन्हें बारीक पीसो।", मैंने उसके सिर पर दो बार कूदकर कहा।
"आउच!",
"क्या तुम ठीक हो?", शिवम ने पूछा,
"शायद?",
कह उसने जड़ो को दर-दरा कूटा।
उसने चाकू को घूरकर देखा, "नहीं। इसमे कोई तुम्हारे मदद नहीं करेगा। खुद को खुद काटो।",
उसने चाकू उठाई और भगवान का नाम ले उसने काँपते हाथों से खुद को चीरा। चीरा गहरा नहीं था। दोंनो उसे देख डर गए।
"वृषाली तुम ये क्या कर रही हो?", शिवम चिल्लाया।
"फिर से।",
उसने आँखे बँदकर फिर से वही चीरना चाहा पर उसका निशाना हमेशा की तरह बेकार था पर इतना था कि उसके हाथ से पर्याप्त खून निकल से।
"अ-आह! माँ।",
उसने अपना रक्त चूर्ण में डाला।
"हाथ मत पोंछना। अब बाकि मिश्रण को उसी हाथ से कूटो।",
उसने कुछ पूछा नहीं बस आँखो में आँसू और दर्द लिए मूसल ठोके जा रही थी। खून अब भी हर मार से उसका हाथ से टपक रहा था। धीरे-धीरे दर-दरा लेप महीन लेप तैयार था।
"अब इसे उसी हाथ से लगाओ।",
उसने हिचकते हाथों से उसके पीठ पर लाल ऊर्जा भरा लेप लगाया। फिर शिवम और आर्य की मदद से लेप उसके शरीर के सामने भाग में लगा रही थी।
जैसे ही उसने उसके सीने में लगे घावों पर लेप लगाना शुरू किया वो होश में आने लगा। वह दर्द से करहाया। उसने अपना हाथ छुड़ाते हुए वृषाली के हाथों को पकड़ लिया। वह झटके से सहम गयी। उसे वहाँ सिर्फ उसकी का अहसास हुआ। कवच ने वृषाली को नम आँखो से गले लगा लिया।
"अक!"
"क्या तुम ठीक हो?", उसकी पकड़ में अब भी ताकत थी,
"ज-जी।", उसने सेकेंडो में कहा,
आर्य ने वृषाली के हाथ से छलकती दवा ले ली।
"वृषाली?", धीरे दर्द से कराहते हुए पूछा,
"हाँ।", उसने आँसू निगलते हुए कहा,
"क्या तुम ठीक हो, बच्चे?", उसने घबराकर पूछा,
"मैं ठीक हूँ। उन्होंने सब कुछ सेटअप कर दिया था।", उसने उसे अकेले पकड़ते हुए कहा, (लेकिन मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है। कुछ भी ठीक नहीं है।)
"तो फिर यह आश्वस्त करने वाली बात है। थोड़ा आराम करो।", उसने उसके माथे और गालों को चूमते हुए कहा, "कम से कम आज मैं अकेला नहीं हूँ।",
"क्या!", वह अपनी चेतना खो बैठा और वृषाली की आंतरिक चेतना भी खो गयी।
पीछे खड़े दो लोग आश्चर्यचकित रह गए।
"वाह! फस्ट किस!", वे तनाव के बीच उनका उत्साहवर्धन कर रहे थे।
"चुप रहो!", वह शर्मिंदगी से चिल्लाई और अकेले ही कवच के घाव पर पट्टी बाँधकर वहाँ से लाल चेहरा ले भाग गई।
घड़ी में तीन बज रहे थे।


-जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ, हमारे कवच और महाशक्ति।