Me and my feelings - 116 in Hindi Poems by Darshita Babubhai Shah books and stories PDF | में और मेरे अहसास - 116

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में और मेरे अहसास - 116

दिलबर

दिलबर की आँखों के इशारे को ना समझे वो अनाड़ी हैं l

समझकर भी ना समझी का दिखावा करे वो खिलाड़ी हैं ll

 

लहजा समझ में आ रहा है कुछ कुछ बात करने का l

अब पलभर में बदलते हुए मौसम की रवानी बतानी हैं ll

 

केवल लिहाज़ रखने के लिए मुस्कराहट ही बेहतर है l

फिझाओ के मिजाज के हिसाब से अब कहानी बनानी हैं ll

 

खुद को खुद के वास्ते आज झाड़ कर ले आए हैं l

नाजुक लम्हों में हाथ पकड़कर कहीं हुई बात निभानी हैं ll

 

यादों के ज़ख्म की सिलाई-कटाई को काम आएँगी l

बहुत ही संभालकर रखेगे एक आखरी बची निशानी हैं ll

१-१२-२०२४ 

दिल

हमेशा दिल की बातें सुननी चाहिये l

चाहे कटु ही हो सत्य कहनी चाहिये ll

 

असली चहरा दिखने में देर लगती है l

बात की असलियत सहनी चाहिये ll

 

क़ायनात तो कड़वाहट से भरी पड़ी है l

रूह के भीतर मोहब्बत पहनी चाहिये ll

 

भले ही सबसे खास हो लड़ते रहना l

दिल में जुदाई की कसक रहनी चाहिये ll

 

गर तआल्लुक हद से बढ़ाना चाहते हो l

एक मुलाकात की तड़प लगनी चाहिये ll

२-१२-२०२४ 

लेन देन

जीवन में लेन देन का हिसाब-किताब रखना चाहिए l

दिल की बातों को ध्यान से मुकम्मल कहना चाहिए ll

 

चार दिन की जिन्दगी को हसीख़ुशी से गुजार के लिए l

चाहनेवालो के ख्वाबों ओ खयालों में रहना चाहिए ll

 

चहरे की रौनक ए छीनने वालों से दूरियाँ ही अच्छी l

जितना सह सको रंजो ग़मों को उतना सहना चाहिए ll

 

सब को पार करने वाला नाविक अकेला रह जाता है l

वक्त तेज की रफ़्तार के साथ साथ ही बहना चाहिए ll

 

मंजिल तक जीवन भर अकेले ही क्यूँ ना चलना पड़े l

चाहे कुछ भी हो जाए सदा सच्चाई को पहना चाहिए ll

३-१२-२०२४ 

पिता

पिता जैसा प्यार कोई नहीं कर सकता हैं l

ख़ुद भूखा रहके बच्चों का पेट भरता हैं ll

 

खून पसीना पानी की तरह बहाकर वो l

दो वक्त की रोटी के लिए घूमता रहता हैं ll

 

भीतर से चकनाचूर हो गया हो फ़िर भी l

अपनों की ख़ुशी की ख़ातिर हसता हैं ll

 

घर परिवार के खुशहाल जीवन देने के लिए l

जी जान से मेहनत मजदूरी भी करता हैं ll

 

बच्चों को उज्ज्वल भविष्य देने के वास्ते l

दिन का चैन ओ रातों की नींद हरता हैं ll

 

माँ, बहन, पत्नी और बेटी की हिफाजत को l

जीवनभर वो पूरी क़ायनात से लड़ता हैं ll

 

मानो या ना मानो ये बात तो सच ही है l

अपनों के लिए जीता है और मरता हैं ll

४-१२-२०२४ 

पिता

पिता घर संसार का श्वास हैं l

घर वालों के वास्ते खास हैं ll

 

जिंदगी को सलीके से जीने को l

बुज़ुर्ग ओ बच्चों की आस हैं ll

 

ताउम्र हर लम्हा हर पल रहता l

खुशहाली देने का प्रयास हैं ll

 

अविरत ओ निरंतर प्रयत्नों से l

सदा हसता खेलता निवास हैं ll

 

नेक प्रामाणिक जीवन शैली से l

घर में रहता प्रभु का वास हैं ll

 

बच्चों की सब जरूरतो का l

माता पिता को एहसास हैं ll

 

बच्चे, जवान, बूढे सब से l

सदस्यों के लिए समास हैं ll

 

खुद को जलाकर भी करता l

परिवार में उजला प्रकाश हैं ll

४-१२-२०२४ 

 

खुशी

दबदबा, हुकूमत, नशा, दौलतें से खुशी नहीं मिलतीं हैं l

वो तो अपनों के साथ और उनके प्यार से खिलती हैं ll

 

बहुत ही खास प्यारी व्यक्ति ने दी हुई खुशियाँ l

भीतर की चमक चहरे पर नूर ए रोशन दिखती हैं ll

 

हररोज ममता, प्रेम, आदर, स्नेह के सिंचित करके l

प्यार से संजोकर रखो तो सब के दिल में पलती हैं ll

 

जहाँ से उम्मीद ना हो वहां से ढेर सारी खुशी एकाएक l

हद से ज्यादा मिली हुई निगाहों से छलकने लगती हैं ll

 

एक प्यार भरी नशीली रसीली मीठी सी मुस्कान l

टूटे हुए दिलों के तारों को हसी के धागों से सिलती हैं ll

५-१२-२०२४ 

नदी 

पहाड़ो से निकलकर दरिया को समर्पित होती हैं l

हस्ती, नाचती, कूदती ख़ुद का अस्तित्व खोती हैं ll

 

रुक जाना नहीं कभी हारकर हौसलों के साथ साथ l

समय की रफ्तार के साथ बहते रहो गाती हैं ll

 

कड़ी धूप हो या कड़ी ठंड बस मुस्कराते हुए वो l

शांत धीर गंभीर बहती रहती कभी ना सोती हैं ll

 

चाहे खुशी मिले या दर्द आज माझिल की आगे बढ़ो l

मीठेपानी वाली खराश में मिलकर प्यार को बोती हैं ll

 

प्रेम की रसधारा को लेकर दोस्ती करने निकली है ll

दरिया से मिलन वक़्त उसका हरएक बूंद मोती हैं ll

६-१२-२०२४ 

 

जिन्दगी

कोई जिन्दगी में रह गया l

कोई जिन्दगी में बह गया l

तकदीर का खेल है सब l

कोई दुआएँ मागता रह गया ll

 

खामोशी से दर्द सह गया l

मन ही मन में चह गया l

तदबीर की बात है सब l

कोई खुशी चाहता रह गया ll

 

तन्हाइयों को पह गया l

भावनाओं में तह गया l

आख़िरकार भ्रम है सब l

कोई प्यार बाटता रह गया ll

 

कटु वचन को गह गया l

फ़िर कुछ ना कह गया l

जुठी ही तसल्ली है सब l

कोई ताउम्र जागता रह गया ll

 

स्वप्नों में भी लह गया l

गुमसुम रहकर दह गया l

ख़ुदा की मर्जी है सब l

कोई गम को पालता रह गया ll

७-१२-२०२४ 

 

जिद

ख्वाबों को जिद बनाकर देखो l

सिर पे जीत को सजाकर देखो ll

 

बुलंद हौसलों से मुकम्मल हुई l

खुशियो को गले लगाकर देखो ll

 

आज भरी महफ़िल में इशारों से l

सखी मोहब्बत को जताकर देखो ll

 

तहखाने में रूठ कर बैठी हुई l

ज़िदी तकदीर को मनाकर देखो ll

 

सुना है बड़े जिगर वाले हो तो l

दिल के घरौदे में समाकर देखो ll

८-१२-२०२४ 

 

सुहाना सफ़र

जिंदगी के सुहाने सफ़र का लुफ्त उठाना चाहिए l

हमसफ़र के साथ राहे मंजिल को सजाना चाहिए ll

 

साँसों का अहसान उतारने के लिए नहीं जीना है l

सुकूं से जीने भीतर के इन्सान को जगाना चाहिए ll

 

ज़माने की हवा ही कुछ इस तरह चली है बारहा l

गर मोहब्बत है तो वक्त वक्त पर जताना चाहिए ll

 

आयना देखकर खूबसूरती की तसल्ली करने को l

आज प्यारदेने वाले को खास गले लगाना चाहिए ll

 

जाने वाला वक्त कभी लौटकर वापिस नहीं आता l

रूठे हुए प्यार को कस्मे देकर मनाना चाहिए ll

९-१२-२०२४   

सर्द हवाएँ

सर्द हवाएँ फिझाओ में गुलाबी ठंड लेकर आई हैं l

साथ अपने साजन का प्यारभरा सन्देशा लाई हैं ll

 

मौसम के बदलने का अंदाजा आने से आज तो l

बाद मुद्दतों के धड़कनों ने सुकूं की सांसे पाई हैं ll

 

इतने नादां है छोटे से कमसिन बच्चे की तरह के l

सखी मनचाहे ने की हुई हर बात दिल को भाई हैं ll

 

कौए की का का से कुछ अंदेशा हो रहा है कि l

मुलाकात के ख़यालात से दिलने ग़ज़ल गाई हैं ll

 

हसीन वादियों में सर्द मौसमों का हाल देख कर l

जल्द ही फ़िर से मिलने की आज कसमें खाई हैं ll  

९-१२-२०२४ 

 

 

चाँद के उस पार

चाँद के उस पार मनमोहक कायनात बसानी हैं l  

ईमानदार, सदाकत और शरीफों से सजानी हैं ll  

 

बाग, बगिया, महकते हुए फ्वारै, स्वप्न नगरी l   

रंगबिरंगी, सुगंधित और खुशबूदार बनानी हैं ll  

 

मजहब और जातिवाद से बाहिर निकलकर l

मुकम्मल खुशनुमा जिंदगी देकर बतानी हैं ll  

 

सुख समृद्धि भरपूर मादकता से छलकती हुई l

चाहे औरों को लगती ये मनघडत कहानी हैं ll  

 

कंधे से कंधा मिलाकर साथ जीवन जीने की l

एक दूसरे को समझदारी दिखाकर समानी हैं ll  

११-१२-२०२४ 

 

सागर की लहरें 

बहना है सागर की लहरों के संग संग l

देखना है पानी के बहाव का रंग ढ़ंग ll

 

मदमस्त फिझाओ की हवा के साथ l

होती है पूनम की भरती में तंग तंग ll

 

अपनी ही धुन में मग्न आगे बढ़के l

शांत रफ़्तार को करती है भंग भंग ll

 

जब पूरी सिद्दत से मिलने आती तब l

साहिल से होकर रहती है ज़ंग ज़ंग ll

 

चाँद रात में जवानी चड़ जाती है तो l

उसे देखने वाले रह जाते हैं दंग दंग ll

१२-१२-२०२४ 

 

मौसम की खुमारी 

 

मौसम अपनी खुमारी क़ायनात को दिखा रहा हैं l

तरीके औ सलीके से जीनेका सबक सिखा रहा हैं ll

 

कुदरतसे मिली हुई हवा पानी को बिना प्रदुषित किये l

उपयोगिताका तरीका बतानेका फर्ज निभा रहा हैं ll

 

खुमार इस तरह चढ़ा है कि बदलियों का झुण्ड l

ज़मीं और आसमान को मुकम्मल मिला रहा हैं ll

 

चित्रकार शुक्रगुज़ार है मौसम की रवानी को देख l

ज़िंदगी के साथ पतझड़ बसंत बिता रहा हैं ll

 

मौसम और हुस्न की प्रकृति एक ही जैसी है वो l

मन की भावना को फिझा ओ पर लिखा रहा हैं ll

१३-१२-२०२४ 

 

चुपके से कानों में ये क्या कह गई 

 

बहती सर्द हवाएँ चुपके से कानों में ये क्या कह गई l

कुछ ज्यादा ही जल्दीमें बात पतेकी कहकर बह गई ll

 

अच्छा है खुले आम न कहीं कानों में कहने वाली l

दिल में चुभने वाली बात चुपचाप से आज सह गई ll

 

जीतनी सुनी उनमे से काम की जानकारी लेकर अब l

मुकम्मल पूरी तरह से कहानी खामोशी से पह गई ll

 

कहने के अंदाज निराला, नेक, सादगी भरा था कि l

कहने की अदा, बाकपन और संजीदगी चह गई ll

 

वक्त की जरूरत नजाकत को देखते हुए कही हुई l

बंद दरवाजे में जहां पर कही वहीं पर बात रह गई ll

 

कहने का रंग ढंग ही कुछ अज़ीब सा था सखी के l

फलसफा और मतलब को समझकर रूह तह गई ll

 

रुबरु होकर कानों में मीठी मधुर आवाज़ सुनने को l

मौन धारण कर सुनी पर दिल की दुनिया लह गई ll

१४-१२-२०२४ 

चुपके से कानों में ये क्या कह गई l

आकर सपनों में ये क्या कह गई ll

 

हर जनम में मिलते रहेगे यही पे कहीं l

महकी फिझाओ में ये क्या कह गई ll 

 

आँखों के इशारों से पिलाते रहते हैं l

नशीले प्यालों में ये क्या कह गई ll

 

कोरा काग़ज़ भेज दिया ख़त में वो l

अनकहे लब्जों में ये क्या कह गई ll

 

जाते जाते मुडकर देखा ही किये कि l

मौन अल्फाजों में ये क्या कह गई ll

 

क्या जबाव चाहते थे कुछ बोले बिना l

खामोश सवालों में ये क्या कह गई ll

 

बजाकर रसीले मनमोहक नशीले l

पुराने कलामों में ये क्या कह गई ll

१५-१२-२०२४  

सखी 

दर्शिता बाबूभाई शाह