Kill: - Movie Review in Hindi Film Reviews by Dr Sandip Awasthi books and stories PDF | किल: - फिल्म समीक्षा

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किल: - फिल्म समीक्षा

फिल्म किल:अतिहिंसा के साथ भावनाओं और हिम्मत का सैलाब

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कल्पना करें कि आप ट्रेन में जा रहे हैं और उस ट्रेन की आपकी यात्रा एक ऐसी भयानक यात्रा बन जाती है लगता है कभी खत्म ही नहीं होगी l और जब खत्म होती है तब तक बहुत से साथी और जिंदगियां बिछड़ चुके होते हैं।

अपनी तरह की एक नई कहानी कहती यह फिल्म है जिसमें एक युवा जोड़ा है,अपने साथी के रिश्ते की बात करने जा रहे दो या तीन कमांडो हैं। साथ में दो बेटियों के साथ एक माता-पिता है जो बेटी के रिश्ते के लिए कहीं जा रहे हैं। और यह वही लड़की है जिसे कमांडो बचपन से प्यार करता है। ट्रेन में बहुत सारे अनजाने मुसाफिर हैं और उन्हीं के मध्य है ट्रेन लुटेरे। वह ट्रेन को रास्ते में हाईजैक कहा जाए कर लेते है। आप जानते हैं सामान्य सुपरफास्ट ट्रेन में कुछ स्टेशंस दो-दो घंटे बाद आते हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार में ऐसी कई वारदातें पहले भी हुई हैं। अभी दो-तीन साल पहले भी हुई थी जहां उस गैप को, अंतर को पकड़ कर के डकैत ट्रेन में चलते हैं। खून खराब,लूटपाट करके ट्रेन के अगले स्टॉपेज से पहले चैन पुलिंग करके अंधेरे में उतर जाते हैं। दुखद और दरिंदगी यह है कि यह देसी हथियार फरसा,कुल्हाड़ी,चाकू,हंसिया लिए होते हैं और बेहद क्रूर और निर्मम होते हैं। क्या करेंगे आप जब ऐसा हादसा चलती ट्रेन में करके अनजाने,गुमनाम लुटेरे उतर जाएं अंधेरे में आप किसके खिलाफ, क्या रिपोर्ट देंगे? और ट्रेन में अपनी मंजिल की तरफ जा रहे निर्दोष और असहाय यात्रियों के साथ ऐसी हिंसक घटना? बेहद खौफनाक और दर्द से भरी हुई है।

इस घटनाक्रम को एक नए और रोचक अंदाज में इस पिक्चर में दिखाया गया है। इतना हार्ट बीटिंग ड्रामा और भावनाएं हैं कि अगर आप जरा से भी संवेदनशील हैं तो आप फिल्म के हर अगले दृश्य का इंतजार करते हैं। तलवार की धार पर जिंदगी होती है कि अगले ही पल क्या होने वाला है कोई नहीं कह सकता है ।

कई बार सामान्य यात्रियों में भी ट्रेन लुटेरे निकल आते हैं।

 

 

कहानी और ट्रीटमेंट

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कहानी में कुछ कमांडो अपने साथी के लिए जा रहे हैं शादी की बात करने।

उधर लड़की के रइस,दबदबे वाले पिता दूसरे लड़के से लड़की का रिश्ता करने जा रहे हैं। दोनो ,लड़की वाले और कमांडो उस शहर से ट्रेन में सवार होते अलग अलग डिब्बे में। ट्रेन चलती है और कुछ दूर बाद ही आम यात्रियों में बैठे कम से कम तीस चालीस डकैत उठ खड़े होते हैं और लूटपाट शुरू।

वह लड़की ,हीरोइन तक जाते हैं और उसके पिता जो एक दबंग जमींदार हैं, विरोध करते हैं। और यूं लुटेरे राघव जुयाल ,के हाथ से पीटे जाते हैं। अपने आन बान शान वाले पिता को यूं मार खाता देखकर बड़ी बेटी,जिसकी शादी की बात चल रही,और जिससे कमांडो शादी करना चाहता है, वह विरोध करती है, झपटती है। फिर तो लुटेरे उसे अलग ले जाकर आगे ले जाते हैं। वह विरोध करती हुई एक बार तो भाग कर दूसरे कोच में छुप जाती है।लगता है वह बच गई।उसे ढूंढने वाले दूसरे डिब्बे में उसे ढूंढ रहे हैं। उनमें से एक ढूंढता हुआ उस एसी डिब्बे में भी आता है और लड़की छुपी हुई है।

तभी एक यात्री उसे सीट के नीचे से निकालकर ढूंढ रहे लुटेरे के आगे फेंक देता है। और अब वह फिर गिरफ्त में है। लड़की किसी चीज से वार करती है अपनी इज्जत बचाने को। लुटेरा उसके पेट में चाकू मार देता है पर लड़की संघर्ष करती है। उधर दूसरे कोच में कमांडो को लुटेरे लूटने पहुंचते है और मारे जाते हैं । वह कमांडो आगे बढ़ते है तभी पीछे वाले कमांडो पर उनका सरगना, जो आम यात्री बनकर मफलर लपेटे बैठा होता है, उठकर उसकी पीठ में बड़े फरसे से वार करता है और उसे गंभीर घायल कर देता है। और सरगना,आशीष विद्यार्थी बहुत दिनों बाद नजर आए एक इंटेंस रोल में ,के चारों और के यात्री भी लुटेरे ही होते हैं।

फिर संघर्ष होता है और जब कमांडो भारी पड़ थे होते हैं तभी दूसरी तरफ से उसी लड़की के गले पर चाकू लगाए (राघव जुयाल )लुटेरा आता है और हमला करता है। साथ में एक सात फीट का डकैत आता है जो कमांडो पर वार करता है।

यहां से हालत लुटेरों के पक्ष में एक कमांडो मर गया,एक गंभीर घायल और जो लड़की को चाहने वाला वह पहलवान और चार के वारो से घायल।लड़की यह देख लुटेरे पर हमलावर होती है। लुटेरा बेरहमी से उसका गला काट देता है। और धीरे धीरे मरती लड़की को घायल पड़े उसके प्रेमी कमांडो के सामने ट्रेन से नीचे फेंक देता है।

हिंसा में यह दूसरे पक्ष की भावनाओं को दर्शकों के दिल तक फिल्म पहुंचा देती है। दोनो एक दूसरे के सामने हैं पर कोई भी नहीं जानता लड़की के पिता भी नहीं की यह एक दूसरे को चाहते हैं। और वह लड़की जिसकी शादी की बात तय हो रही है।जो सपने संजोती ट्रेन में अपने पिता मम्मी और छोटी बहन के साथ चढ़ी अब दूसरी दुनिया में क्रूरता से पहुंचा दी गई उसे जिंदा ट्रेन से फेंक दिया गया। अब आगे फिल्म के नायक कमांडो क्या करेंगे यह हम समझते हैं परंतु फिल्म वास्तविकता भी दिखाती है कि बेशुमार मारने मरने को तैयार डकैतों का आप क्या करेंगे?तो हारते जीतते हुए कई लोगों को खोने के बाद फिल्म समाप्त होती है।दुखों के कई नए आयाम जोड़कर।

अनेक उतार चढ़ावों के बाद जब अंत में ट्रेन रुकती है तो दर्शकों और आपको भी लगेगा कि मात्र पौने दो घंटे की यह यात्रा कितनी बार आपके दिल की धड़कनों को थाम गई।

लक्ष्य, जो बिल्कुल परम्परागत हीमैन हीरो लगे हैं की पहली फिल्म है।और वह अपने रोल के साथ न्याय ही नहीं करते बल्कि कई इमोशंस बखूबी दिखाते हैं चाहे वह भावुक प्रेमी हो,कमांडो हो या फिर एक दोस्त हो लक्ष्य सभी उम्मीदों पर खरे उतरे हैं। राघव जुयाल जिनकी इमेज एक डांसिंग हीरो की है वह इस फिल्म में हार्डकोर डकैत का किरदार कुछ इस अंदाज में निभाते हैं कि हीरो को बराबरी की टक्कर देते हैं।

ट्रेन में पिता पुत्र की डकैतों में कई जोड़ियां हैं। और

निर्देशक निखिल नागेश इस विदेशी फिल्म की रीमेक को पूरी शिद्दत के साथ भारतीय स्थितियों,भावनाओं और एक्शन के साथ पेश करते हैं। फिल्म डिज्नी प्लस हॉट स्टार पर देखी जा सकती है।फिल्म में दो गाने हैं जो फिल्म के हार्डकोर एक्शन को बैलेंस करते हैं।

फिल्म की फोटोग्राफी और कैमरा वर्क बहुत अच्छा है। चलती ट्रेन में डकैती जैसे विषय पर बनी अनूठी फिल्म है।

कुछ तकनीकी कमियां हैं कि एसी कोचों में डकैती हो रही है और कोई टीटी या आरपीएफ नहीं है? हालांकि कुछ दशक पूर्व की कहानी है पर यह तो होते ही थे। दूसरे कोचों के कोई भी यात्री विरोध नहीं करते? आखिर में दो तीन करते हैं उनमें से भी एक गैंग का ही सदस्य होता है।

सबसे बढ़कर इस डकैती और लुटेरों का उद्देश्य क्या है और क्यों है यह बातें गायब हैं। आशीष विद्यार्थी के हावभाव कुछ नक्सली जैसे उन्होंने किए हैं पर ऐसी कोई बात फिल्म में है नहीं।

तो यह कुछ लॉजिकल बातें अगर छोड़ दी जाए तो ओवरऑल पिक्चर दिलचस्प थ्रिलर है और अवश्य देखी जानी चाहिए कि हमारे और आपके साथ ऐसा हो तो हम क्या करेंगे?

फिल्म को मैं देता हूं चार स्टार।

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डॉ संदीप अवस्थी,फिल्म आलोचक ,मो 7737407061