रात का सन्नाटा था और निश्चय हाईवे पर अकेला गाड़ी चला रहा था। बारिश की हल्की बूंदें शीशे पर टकरा रही थीं, और आस-पास सिर्फ घने जंगल और अंधकार था। अचानक, हेडलाइट की रोशनी में उसे सड़क के किनारे एक आकृति दिखी.. एक महिला, पर्पल साड़ी में लिपटी हुई, सिर झुकाए खड़ी थी।
निश्चय ने गाड़ी धीरे की और उसकी ओर देखा। उसकी आँखें अजीब तरह से झुकी हुई थीं, मानो वह किसी गहरे विचार में डूबी हो। उसके चेहरे पर एक तिल था, जो उसकी सुंदरता को और भी खास बना रहा था। उसकी सुंदरता देखकर निश्चय अवाक रह गया।
"क्या आपको लिफ्ट चाहिए?" निश्चय ने खिड़की से बाहर झाँकते हुए पूछा।
महिला ने सिर उठाया। उसकी आँखों में गहरा दुःख था। उसने बिना कुछ कहे हल्के से सिर हिलाया और धीरे से कार की पिछली सीट पर बैठ गई। निश्चय ने गाड़ी स्टार्ट की और आगे बढ़ने लगा। कुछ मिनट तक दोनों के बीच खामोशी छाई रही, फिर निश्चय ने बातचीत शुरू करने के लिए कहा, "आप बहुत खासकर आपके चेहरे का तिल!"
वह स्त्री निश्चय की बात सुनकर मुस्कुराई, लेकिन उसकी मुस्कान अजीब और रहस्यमयी थी। उस स्त्री ने कहा, "तुम झूठ बोल रहे हो। मैं सुंदर हो ही नहीं सकती। कोई मुझे सुंदर कह ही नहीं सकता।"
निश्चय बोला, "सच में, आप बहुत सुंदर हैं! मैं झूठ नहीं बोल रहा।"
निश्चय ने सिर झटकते हुए फिर पूछा, "आपको कहाँ जाना है?"
महिला ने धीरे से जवाब दिया, "जहाँ रास्ता खत्म होता है.।"
निश्चय को यह सुनकर थोड़ी हैरानी हुई, लेकिन उसने कोई सवाल नहीं किया। वह महिला अब तक चुपचाप बैठी थी, लेकिन निश्चय को महसूस हुआ कि उसकी मौजूदगी कुछ अजीब थी। गाड़ी के अंदर एक ठंडक फैलने लगी थी, जो असामान्य थी।
थोड़ी देर बाद, जब निश्चय ने फिर से पीछे मुड़कर देखा, तो उसकी साँस रुक गई। महिला का चेहरा अब वैसा नहीं था जैसा पहले था। उसकी आँखें खाली थीं, मानो उनमें कोई आत्मा न हो, और उसका तिल अब खून से सना हुआ था। उसका चेहरा धीरे-धीरे विकृत हो रहा था, जैसे मांस गायब होकर केवल हड्डियाँ बची हों।
उस स्त्री ने निश्चय की ओर देखते हुए पूछा, उसकी आवाज मानो किसी जर्जर हवेली से आ रही हो, "अब भी कहोगे कि मैं सुंदर हूँ? मैं सुंदर हो ही नहीं सकती, क्योंकि मैं जिंदा ही नहीं हूँ।"
निश्चय ने झट से गाड़ी रोक दी और डरते हुए पीछे मुड़कर देखा। पिछली सीट पर अब कोई नहीं था। उसकी दिल की धड़कन तेज हो गई और वह घबराहट में गाड़ी से बाहर निकला। चारों ओर घना अंधेरा और सन्नाटा था, और वह महिला गायब हो चुकी थी।
हड़बड़ाते हुए निश्चय ने फोन निकाला, लेकिन कोई नेटवर्क नहीं था। अचानक उसे महसूस हुआ कि उसकी पीठ पर कोई छाया पड़ रही है। उसने धीं मुड़कर देखा। वही महिला उसकी गाड़ी के ठी + खड़ी थी, और उसके चेहरे का तिल अब और भे।रा
और भयावह लग रहा था।
"मैंने तुमसे कहा था.. मुझे वहाँ छोड़ दो जहाँ रास्ता खत्म होता है," उसने धीमे लेकिन ठंडे स्वर में कहा।
निश्चय को कुछ समझ नहीं आया। उसने तेज़ी से गाड़ी में बैठकर इंजन चालू किया और वहाँ से भागने की कोशिश की, लेकिन गाड़ी स्टार्ट नहीं हो रही थी। महिला की छाया उसके चारों ओर फैलने लगी, मानो वह उसके पास आ रही हो। उसकी आवाज गूंजने लगी, "तुम मुझसे दूर नहीं जा सकते। मैं हर उस जगह हूँ, जहाँ तुम हो।"
निश्चय की चीख रात के सन्नाटे में खो गई, और हाईवे फिर से शांत हो गया। अगले दिन, जब राहगीर उस रास्ते से गुजरे, तो उन्होंने एक खाली गाड़ी पाई, लेकिन निश्चय का कोई निशान नहीं मिला। गाड़ी के पीछे सिर्फ खून के कुछ निशान थे और एक जगह, जहाँ एक तिल के आकार का निशान उभर आया था।
उस दिन के बाद से, जो भी उस रास्ते से गुजरता, वह उसी रहस्यमयी महिला को देखता, पर्पल साड़ी में सिर झुकाए और उसके चेहरे का तिल... जो अब दि भी रुह को कंपा देने के लिए काफी था