किशोर काका जल्दी-जल्दी अपनी चाय की लारी का सामान समेट रहे थे। बाहर हाईवे पर गाड़ियों की रोशनी बारिश की तेज़ बूंदों से लड़ती दिख रही थी। उनकी लारी, जो एक पुराने वटवृक्ष के नीचे थी, उस पर बड़े अक्षरों में लिखा था: "किशोर काका की चाय"।
यह लारी सिर्फ चाय बेचने का ठिकाना नहीं थी, बल्कि आसपास के गांववालों के लिए एक चौपाल बन चुकी थी। यहां हर शाम गांव के लोग जमा होते, सुख-दुख की बातें करते और किशोर काका की मसालेदार चाय के मजे लेते। जो मुसाफिर यहां एक बार रुकते, वे इस जगह की चाय और किशोर काका के अपनेपन के कायल हो जाते। लेकिन आज, मूसलाधार बारिश के कारण, किशोर काका ने लारी जल्दी बंद करने का फैसला किया।
वह लारी का शटर गिराने ही वाले थे कि पीछे से किसी की आवाज आई:
"काका, एक कप चाय..."
किशोर काका ठिठक गए। यह आवाज़ उन्हें जानी-पहचानी लगी।
"राजू बेटा? तू इतनी देर से क्यों आया? मैं तो लारी बंद करके घर जा ही रहा था," काका ने अपनी बूढ़ी आंखों से अंधेरे में झांकते हुए कहा।
राजू, जो पास ही एक छोटे से घर में रहता था, बचपन में ही अनाथ हो गया था। किशोर काका और जमुना काकी ने उसे अपनी संतान की तरह पाला। राजू के माता-पिता अपने पीछे एक छोटा-सा घर छोड़ गए थे, जहां वह अब अकेला रहता था। वह गांव के बाहर तहसील कार्यालय में क्लर्क की नौकरी करता था।
किशोर काका का अपना एक बेटा था, जिसे उन्होंने अपनी जमा पूंजी और मेहनत से विदेश पढ़ने भेजा था। लेकिन वहां उसने एक विदेशी लड़की से शादी कर ली और वहीं का होकर रह गया। तब से किशोर काका और काकी के लिए राजू ही सब कुछ था, और राजू के लिए काका-काकी।
हर शाम राजू ऑफिस से लौटता और कहता,
"काका, एक कप चाय..."
उसके बाद वह उनकी मदद करता, लारी समेटने में हाथ बंटाता, और दोनों साथ घर लौटते। घर पर जमुना काकी दरवाजे पर इंतजार करती मिलतीं। इस छोटे से परिवार ने खून के रिश्तों के बिना भी दिल के रिश्तों की डोर को मजबूत बना रखा था।
काका ने गरमागरम चाय का कप बनाया और राजू को पकड़ा दिया। राजू हमेशा की तरह चुपचाप चाय लेने लगा, पर काका ने महसूस किया कि वह आज कुछ अजीब सा बर्ताव कर रहा है।
"क्या हुआ, बेटा? तू आज इतना चुप क्यों है?"
राजू ने कोई जवाब नहीं दिया। जैसे ही काका ने उसे कप पकड़ा दिया, उन्हें अपने हाथ पर किसी गीली चीज़ का एहसास हुआ। उन्होंने नीचे देखा, तो उनके हाथ पर खून का निशान था।
"अरे, ये खून? ये कहां से आया?" काका बड़बड़ाते हुए इधर-उधर देखने लगे।
उन्होंने जल्दी से अपनी लारी के कोने-कोने में देखा, पर वहां कोई नहीं था।
"राजू? बेटा, कहां गया तू?"
अचानक आसमान में बिजली जोर से कड़कड़ी। उसकी रोशनी में काका ने देखा कि बेंच पर जहां राजू बैठा था, वहां कुछ गिरा पड़ा था। पास जाकर देखा, तो वह एक खून से सना हुआ सफेद रुमाल था।
काका का दिल तेजी से धड़कने लगा। उन्होंने रुमाल उठाया और आवाज लगाई:
"राजू! बेटा, तू कहां है?"
लेकिन कोई जवाब नहीं आया। बारिश की तेज़ बूंदों और अंधेरे के बीच काका राजू को ढूंढने लगे। सड़क के दोनों तरफ देखा, आवाजें लगाईं, पर राजू कहीं नहीं था।
"क्या ये मेरा वहम था? या कुछ और?"
काका का मन सवालों से भर गया। वह सब कुछ वहीं छोड़कर घर की ओर चल दिए। बारिश की वजह से रास्ता कीचड़ में तब्दील हो चुका था। जैसे ही वह गांव के पादर (शिव मंदिर के पास का क्षेत्र) पहुंचे, उनके पैर किसी ठोस चीज़ से टकराए। वह फिसलकर नीचे गिर पड़े।
उन्होंने उठने की कोशिश की, लेकिन तभी उनकी नजर सामने पड़ी। कीचड़ में एक इंसान बेसुध पड़ा था। पास ही एक टूटी-फूटी बाइक गिरी हुई थी।
"हे भगवान, यह कौन है?"
काका कांपते हाथों से उस इंसान का चेहरा पलटते हैं, और जैसे ही रोशनी में उसकी शक्ल देखी...
"राजू!"
काका की आवाज कांप गई। यह राजू ही था, जो खून से लथपथ हालत में बेसुध पड़ा था। काका ने उसे जोर से हिलाया:
"राजू! बेटा, आंखें खोल! क्या हुआ तुझे?"
लेकिन राजू की आंखें बंद थीं। काका ने चारों तरफ मदद के लिए पुकारा, लेकिन बारिश की तेज़ आवाज में उनकी चीखें दब गईं। आखिरकार, उन्होंने खुद को संभाला, और पास के मंदिर में जल रहे दिए की तरफ दौड़े। वहां से उन्होंने गांववालों को मदद के लिए बुलाया।
कुछ ही देर में लोग जमा हो गए। किसी ने एंबुलेंस बुलाई, तो किसी ने राजू को उठाने में मदद की।
राजू को स्ट्रेचर पर लेकर डॉक्टरों की टीम दौड़ती हुई आई। काका हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना करने लगे:
"हे भगवान, इसे बचा लो। इसके अलावा हमारा और कोई नहीं है।"
डॉक्टरों ने काका को बाहर इंतजार करने को कहा। बारिश अब थम चुकी थी, पर काका की बेचैनी और आंसुओं का सैलाब थमने का नाम नहीं ले रहा था।
घड़ी की सुईयां जैसे रुक गई थीं। किशोर काका ऑपरेशन थिएटर के बाहर फर्श पर बैठ गए। उनके हाथ अब भी खून से सने थे। वह बार-बार भगवान से प्रार्थना कर रहे थे,
"हे भगवान, कुछ भी ले ले, पर मेरे राजू को बचा ले।"
जमुना काकी को खबर मिलते ही वह भी अस्पताल पहुंचीं। उनकी आंखों में आंसू थे, और वह डर के मारे कांप रही थीं।
"काका, क्या हुआ हमारे राजू को? वह तो रोज़ तुम्हारे साथ होता है। आज ऐसा कैसे हो गया?"
काका ने कांपते हुए सारी बात बताई। रुमाल के खून के दाग, राजू का गायब हो जाना, और फिर गांव के पास बेसुध मिलना...। जमुना काकी सन्न रह गईं।
तभी डॉक्टर बाहर आए। उनकी गंभीर शक्ल देखकर काका-काकी का दिल बैठ गया।
"डॉक्टर साहब, राजू कैसा है? वह ठीक तो है ना?" काका ने कांपते हुए पूछा।
डॉक्टर ने गहरी सांस ली और कहा,
"हमने उसका काफी खून बहने की वजह से हालत गंभीर है। हमें खून चढ़ाने की जरूरत है। क्या आपमें से किसी का ब्लड ग्रुप ओ नेगेटिव है?"
काका ने तुरंत कहा,
"मेरा खून ले लो, डॉक्टर साहब। जो चाहिए, ले लो। बस मेरे बेटे को बचा लो।"
ऑपरेशन के दौरान घंटों बीत गए। बाहर काका और काकी के साथ गांव के कुछ लोग भी आ गए थे। हर कोई यह सोचकर हैरान था कि राजू जैसे सीधे-सादे लड़के के साथ ऐसा क्या हुआ होगा।
उसी वक्त पुलिस भी वहां पहुंच गई। एक इंस्पेक्टर, जिसका नाम अरुण था, काका के पास आकर बोला,
"किशोरजी, हमें आपके बेटे के साथ हुई इस घटना की पूरी जानकारी चाहिए। यह एक्सीडेंट नहीं, बल्कि कोई साजिश लगती है।"
"साजिश? क्या मतलब?" काका ने चौंककर पूछा।
"हमें हाईवे पर राजू के गिरने की जगह से कुछ सबूत मिले हैं। बाइक के पास से खून के अलावा, हमें वहां एक टूटा हुआ पेन, सिगरेट का टुकड़ा, और एक रुमाल मिला है, जिस पर एक अजीब सा निशान है।"
काका का दिल तेजी से धड़कने लगा।
"रुमाल? वह रुमाल तो मैंने खुद देखा था! लेकिन वह राजू का नहीं था। आखिर वह किसका था?"
पुलिस इंस्पेक्टर ने गंभीर स्वर में कहा,
"यही जानना है। क्या राजू ने हाल ही में किसी से झगड़ा किया था? क्या वह किसी परेशानी में था?"
काका ने याद किया कि पिछले कुछ दिनों से राजू थोड़ा चुप-चुप रहता था। उसने एक-दो बार किसी अजनबी फोन कॉल के बारे में भी जिक्र किया था, पर राजू ने कुछ साफ-साफ नहीं बताया था।
अस्पताल के कोने में खड़ी जमुना काकी लगातार भगवान का नाम ले रही थीं। तभी एक नर्स आई और बोली,
"पेशेंट को होश आ गया है। लेकिन वह बहुत कमजोर है। आप में से सिर्फ एक व्यक्ति अंदर जा सकता है।"
काका तुरंत अंदर जाने को उठे, लेकिन काकी ने उन्हें रोका,
"नहीं, काका। मुझे जाने दो। मेरा दिल नहीं मान रहा। मैं उससे बात करूंगी।"
जमुना काकी जब कमरे में गईं, तो राजू बहुत कमजोर लग रहा था। उसकी आंखें बमुश्किल खुल रही थीं। काकी ने उसका माथा सहलाया और धीरे से पूछा,
"राजू, ये सब क्या हुआ? तुझे किसने मारा? बेटा, सच बता।"
राजू ने कांपते हुए कहा,
"काकी... वो... वो लोग... मुझे मारने आए थे।"
"कौन लोग, राजू? क्या तूने किसी को देखा?"
राजू ने आंखें बंद करते हुए कहा,
"मुझे नहीं पता, काकी। लेकिन वे कुछ मांग रहे थे। शायद कुछ कागज या... या पैसे।"
जमुना काकी चौंक गईं। वह बाहर आकर काका और पुलिस इंस्पेक्टर को बताने लगीं,
"राजू कह रहा है कि यह कोई लूट या पैसे से जुड़ा मामला है।"
पुलिस जांच में यह बात सामने आई कि पिछले कुछ महीनों में उसी हाईवे पर कई ऐसे अजीब हादसे हुए थे, जिनमें कई बार खून-खराबा हुआ था, पर गुनहगार कभी नहीं पकड़े गए।
इंस्पेक्टर अरुण ने कहा,
"किशोरजी, हमें लगता है कि यह मामला हाईवे पर सक्रिय किसी गैंग से जुड़ा है। लेकिन हमें यकीन नहीं कि इस बार उनका मकसद सिर्फ लूट था। यहां कुछ और भी हो सकता है।"
अगले दिन, राजू को अस्पताल से छुट्टी मिल गई, लेकिन वह अब भी डरा हुआ और असहज महसूस कर रहा था। काका ने उससे आराम करने को कहा, लेकिन राजू के चेहरे की बेचैनी कम नहीं हो रही थी।
रात को जब काका सोने गए, तो उन्होंने खिड़की के बाहर अंधेरे में एक परछाई को देखा। वह तेजी से उठे और बाहर जाकर देखा, लेकिन वहां कोई नहीं था।
उसी वक्त, राजू के कमरे से एक जोरदार आवाज आई।
"काका! बचाओ!"
जब काका भागते हुए राजू के कमरे में पहुंचे, तो देखा कि वह पसीने में लथपथ, बुरी तरह कांप रहा था। उसकी आंखें किसी डरावने ख्वाब को देखकर फटी हुई थीं।
"काका... वो... वो लोग फिर आएंगे। उन्होंने कहा था कि अगर मैंने वो चीज नहीं दी, तो..."
"क्या चीज, बेटा? साफ-साफ बता, तुझे किस बात का डर है?" काका ने उसे शांत करने की कोशिश की।
राजू ने कांपते हुए कहा,
"काका, वह कोई कागज मांग रहे थे। पर वह मेरे पास नहीं है। मैंने उनसे कहा, लेकिन उन्होंने मुझे मारने की कोशिश की।"
काका और काकी अब समझ चुके थे कि यह मामला सिर्फ राजू की दुर्घटना का नहीं था। इसमें कुछ ऐसा छिपा था, जो राजू से जुड़ा था, और शायद उनके गांव के अतीत से भी।
अगली सुबह, किशोर काका ने ठान लिया कि वे राजू के माता-पिता की छोड़ी हुई पुरानी चीज़ों को खंगालेंगे। जमुना काकी ने उनसे कहा,
"काका, जब राजू इतना परेशान है, तो हो सकता है कि इस सारे मामले की जड़ उन्हीं दस्तावेज़ों में हो। हमें कुछ न कुछ ज़रूर मिलेगा।"
राजू के माता-पिता का पुराना संदूक उनके घर के कोने में धूल से ढका हुआ पड़ा था। किशोर काका ने उसे खोलने की कोशिश की, लेकिन ताले ने जंग खा ली थी। काकी ने पास रखे औजार से उसे तोड़ा।
जब संदूक खुला, तो उसमें पुराने कागज़, कुछ तस्वीरें और एक डायरी थी।
काका ने उत्सुकता से डायरी उठाई और उसके पन्ने पलटने लगे। उनमें से एक पन्ने पर लिखा था:
"अगर यह कागज़ कभी गलत हाथों में गया, तो हमारी जान खतरे में पड़ जाएगी। इसे संभाल कर रखना।"
काका का माथा ठनका। उन्होंने डायरी के साथ बाकी कागज़ देखे। उनमें से एक कागज़ ऐसा था, जो राजस्व विभाग से जुड़ा हुआ लग रहा था। उसमें गांव की एक ज़मीन का जिक्र था, जिसे राजू के पिता ने खरीदा था।
"काका, ये क्या है?" जमुना काकी ने घबराकर पूछा।
"काकी, ऐसा लगता है कि यह कोई विवादित ज़मीन है। शायद किसी ने इसे हथियाने के लिए राजू पर हमला किया।"
इसी बीच राजू को कमरे में अकेले छोड़ दिया गया था। वह अब भी कमजोर था और बिस्तर पर लेटा हुआ था। तभी खिड़की पर हलचल हुई। उसने देखा कि बाहर कोई परछाईं खड़ी है।
राजू ने उठकर खिड़की से बाहर झांका। एक आदमी तेजी से भागता हुआ नजर आया। राजू डर गया। उसने दरवाजे की ओर दौड़ने की कोशिश की, लेकिन तभी किसी ने पीछे से उस पर हमला किया।
जब किशोर काका और जमुना काकी दौड़ते हुए कमरे में पहुंचे, तो देखा कि राजू बेहोश पड़ा था, और खिड़की से एक आदमी बाहर भाग रहा था।
काका ने चिल्लाकर कहा,
"किसी ने मेरे राजू को फिर से मारने की कोशिश की है! जमुना, पुलिस को फोन करो!"
अगले दिन, किशोर काका की चाय की लारी पर खुद ठाकुर साहब पहुंचे। उन्होंने काका से कहा,
"किशोर, ये ज़मीन का मामला छोड़ दो। यह तुम्हारे राजू के लिए ठीक नहीं है। मैं जो कह रहा हूं, वह मान लो। वरना..."
काका गुस्से से लाल हो गए।
"ठाकुर साहब, यह ज़मीन मेरे राजू की है। मैं इसे किसी के भी दबाव में आकर नहीं छोड़ूंगा। आप चाहें तो जो करना है, कर लीजिए।"
ठाकुर साहब हंसते हुए बोले,
"ठीक है, किशोर। अब देखता हूं, यह मामला कैसे सुलझता है।"
राजू और पुलिस ने मिलकर ठाकुर साहब की गतिविधियों पर नजर रखनी शुरू की। एक दिन, राजू ने देखा कि ठाकुर साहब के आदमियों ने उसके घर के पास संदूक में रखे बाकी कागजों को चुराने की कोशिश की।
पुलिस ने तुरंत उन्हें रंगे हाथ पकड़ लिया। ठाकुर साहब की पूरी साजिश सामने आ गई।
"यह ज़मीन गांव की है, और इसे हथियाने के लिए उन्होंने राजू पर हमला करवाया।" इंस्पेक्टर अरुण ने कहा।
ठाकुर साहब को गिरफ्तार कर लिया गया। गांववालों ने भी इस लड़ाई में किशोर काका और राजू का पूरा साथ दिया।
इस घटना के बाद, राजू ने काका और काकी को गले लगाया।
"काका, आपने हमेशा मेरा साथ दिया। अगर आप न होते, तो मैं यह लड़ाई कभी नहीं लड़ पाता।"
काका ने मुस्कुराते हुए कहा,
"राजू, तुम हमारे बेटे हो। यह लड़ाई तुम्हारी नहीं, हमारी थी।"
गांव ने एक नई शुरुआत की। राजू और किशोर काका की चाय की लारी अब भी हाईवे पर थी, लेकिन अब वह सिर्फ चाय का ठिकाना नहीं, बल्कि जीत और उम्मीद की मिसाल भी बन चुकी थी।
अंधेरी रात और खून के धब्बों से शुरू हुई यह कहानी अब उजाले और हिम्मत की कहानी बन चुकी थी।