1. बाल कहानी - गलती
सूर्या नामक बालक अपने माता - पिता के साथ शहर में रहता था । सूर्या बहुत शैतान बालक था । हर समय वह नयी - नयी शैतानियाँ करता रहता था ।सूर्या का एक और शौक था । सूर्या हर समय किसी न किसी चीज में अपने - आप को बन्द कर लेता था । कभी वह थैले में बन्द हो जाता था । कभी वह बोरी में बन्द हो जाता था । ऐसा करके सूर्या को बहुत मजा आता था कि मैं इनमें से आसानी से निकल आऊँगा ।एक दिन सूर्या के घर के पास एक घर में किसी की भैंस टैंकर में बन्द होकर आयी । भैंस को टैंकर से उतार कर घर के मालिक भैंस को लेकर घर में घुस गये । सूर्य ने सोचा - "भैंस को कितना अच्छा लगा होगा इसमें बन्द होकर ! क्यों न मैं भी इसमें बैठ जाऊँ !" यह सोचकर सूर्या अन्दर बैठ गया । ड्राइवर टैंकर को लेकर चला गया ।जब ड्राइवर ने टैंकर को खड़ा किया और उसने से रोने की आवाज आयी । उसने टैंकर को खोलकर देखा तो सूर्या उसमें बन्द था । ड्राइवर ने सूर्या से पूछा - "वह कहाँ से और कैसे इसके अन्दर बैठा?" तब सूर्या ने बताया कि - "जहाँ पर उसने भैंस को उतारा था, वहीं से वह बैठ गया था ।"अब सूर्या रो रहा था और कह रहा था कि - "मुझे वापस घर जाना है ।" ड्राइवर ने कहा - "घबराओ नहीं बेटा ! मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़कर आऊँगा ।" ड्राइवर ने तुरन्त ही सूर्या को आगे बैठाया और वापस उसको उसके घर छोड़ने गया । वहाँ पर पहुँचकर उसने देखा कि उसके माता - पिता सूर्या को ढूँढ रहे थे । जैसे ही सूर्या के माता - पिता ने अपने बच्चे को देखा, तुरन्त उसको गले से लगा लिया और ड्राइवर को धन्यवाद दिया और पैसे देकर कहा कि - "तुम अपना मेहनताना ले लो ।"ड्राइवर ने कहा कि - "यह तो उसका फर्ज था ।" ड्राइवर ने सूर्या से कहा - "आज के बाद वादा करो कि कभी भी किसी भी चीज में बन्द नहीं होगे !" सूर्या के माता - पिता ने कहा - "बेटा ! ऐसी चीजों से हमेशा जान जाने का खतरा रहता है ।" आगे से तुम कभी ऐसे काम मत करना ।" सूर्या ने वादा किया कि - "वह कभी ऐसा काम नहीं करेगा ।" माता - पिता ने सूर्या को गले से लगा लिया और उनकी आँखों से आँसू बहने लगे ।
संस्कार सन्देश - हमें कभी भी ऐसी चीज में खुद को बन्द नहीं करना चाहिए, जिसमें हम साँस ना ले सकें ।
2. वो आसमाँ का चाँद भी मुझ से रश्क करता है
कहता है तुम्हारा चाँद मुझे ज्यादा प्यारा है
3. चाँद नही निकला आज मेरे शहर मे
कहो तो तुम्हे लेने आ जाऊँ साहिबा
4. मैं तसव्वुर भी जुदाई का भला कैसे करूँ
मैंने क़िस्मत की लकीरों से चुराया है तुझे।
5. इक ज़रा-सा ग़म-ए-दौराँ का भी हक़ है जिसपर
मैंने वो साँस भी तेरे लिए रख छोड़ी है।
6. इश्क कितना भी सच्वा क्यों न हो दिनेश
मिलन वहीं होता हैं जहां नसीब लिखखा हो