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हम लोग एक व्हाट्सएप समूह के मार्फत आभासी मित्र थे। वह लगभग अस्सी-नब्बे लोगों का समूह। रोज सभी लोग एक दूसरे को सुप्रभात वाले पोस्टर डालते। दिन में कुछ लोग तो अपनी मौलिक रचनाएँ पर अधिकतर सोशल मीडिया से कट-पेस्ट करके डालते रहते।
रचना अच्छी-बुरी, मौलिक, कट-पेस्ट कैसी भी हो सभी एक-दूसरे की जमकर तारीफ करते और शाम को सभी लोग देर रात तक एक-दूसरे को गुडनाइट बोलते।
जन्मदिन पर सभी एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देते, हवाई गुलदस्ते भेंट करते हुए बधाई देते, आभासी केक खिलाते। पर यहाँ सदस्यों के जन्म दिनांक ही उजागर रहते, जन्म-वर्ष नहीं। जाहिर है अधिकतर महिलाएँ और उम्रदराज लोग अपनी उम्र छुपाते और डीपी पर अपनी जवानी के दिनों के ही फोटो लगाते।
पर मैं ऐसा नहीं करता क्योंकि उम्र न छुपाने का फायदा मुझे ग्रुप के वरिष्ठ सदस्य के रूप में मिला हुआ था। वे सब मुझे आदरेय दादा या आदरणीय सर संबोधित कर सम्मान जो देते थे। वरिष्ठता के इस तमगे के साथ ही मैं खुद को धर्म शास्त्रों का अध्येता और पूजा पाठ वाला भी सिद्ध कर चुका था, इसलिए सम्मान द्विगुणित हो चुका था। हालांकि मेरे समसामयिक विचारों से भक्त और हिंदूवादी बड़े आहत हो जाते, उनमें से एक मीनाक्षी भी थी...।
कहानी यहीं से शुरू होती है कि- एक दिन मैंने पटल पर दो दोहे प्रकाशित कर दिए जो इस तरह थे :
झूठ नया रंग गढ़ रहा सत्य हुआ बेहाल। क्या जाने किस भेष में मिल जाए बेताल।।
खूब खबर उस धूर्त को नहीं मूर्ति में राम। फिर भी अपने स्वार्थ-वश रटता रहता नाम।।
मीनाक्षी ने जब इन्हें पढ़ा तो बड़ी तुर्शी के साथ लिखा- लगभग अच्छे दोहे पंडित जी, लेकिन एकाध दोहा क्रिश्चियन या मुस्लिम धर्म पर लिख कर दिखाओ तो जानें। हिंदू धर्म का मजाक उड़ाने में तो सभी लेखक माहिर हैं... दम है तो... अल्ला या यीशु के बारे में लिखो!
प्रशंसा के बजाय ऐसी जलीकटी बात पर जाहिर है मैंने उसे तुरन्त फोन लगाया पर उसने कट कर दिया।
अब मुझे किसी करवट चैन नहीं। दोपहर में मैंने फिर फोन लगाया। लेकिन उसने फिर काट कर दिया।
और मैं जानता था कि वह इन्हीं दो दोहों से चिढ़ गई हो, ऐसी बात नहीं थी। दरअसल, इसके पहले भी मेरे द्वारा समूह पर धार्मिक कथाओं की अपने तरीके से व्याख्या करते रहने से वह खासा खफा थी...।
जब मैंने एक बार लिख दिया कि- देवताओं के राजा इंद्र ने ऋषि पत्नी अहल्या को चोरी से भोगा... तो उसने तुरन्त ही जवाब में लिखा, चोरी से भोगा नहीं, छल से रेप किया। ऐसे रेपिस्ट आज भी हैं। उन्हीं को दंडित करने हिंदू राष्ट्र की स्थापना होना चाहिये।
और मैंने प्रति टिप्पणी की कि- वह रेप नहीं, अहल्या की सहमति से हुआ सहवास था। क्योंकि वह भी अपने रूप के अहं को पोषित करना चाहती थी कि- देखो, देवताओं का राजा भी मेरे प्रणय का याचक है!
पर इसे पढ़कर वह समूह छोड़ गई...। तब एडमिन ने किसी तरह समझा-बुझाकर उसे फिर जोड़ा। और मुझे हिदायत दी कि- आगे से ऐसी विवादित पोस्ट न डालूँ!
सो कुछ दिन तो मैं चुप रहा लेकिन फिर एक दिन अपनी आदत मुताबिक लिख दिया कि-
जिस धर्म के लिए हम छाती पीटते हैं उसके सिरमौर विष्णु ने पतिव्रता वृंदा को और सृष्टि रचयिता ब्रह्मा ने स्वयं अपनी पुत्री सरस्वती को नहीं छोड़ा...।
मीनाक्षी उस दिन तो चुप रह गई क्योंकि ऐसी कथाएँ शास्त्रों में मौजूद थीं। पर अगले दिन मेरी पोस्ट को कोट करते उसने लिखा- राक्षस जालन्धर के संहार के लिए यह जरूरी था। फिर वृंदा तुलसी के रूप में रूपांतरित हो पावन भी तो हो गईं! और अपने प्रण और भक्ति से विष्णु को बांध लिया उन्होंने। तुलसी-शालिग्राम भगवान का विवाह आज भी प्रतिवर्ष कितनी धूमधाम से कराया जाता है! रही बात वृद्ध सठियाये हुआ ब्रह्मा की, तो उन्हें कौनसा हिंदू पूजता है? एक पुष्कर को छोड़ भारत भर में उनका तो कोई मंदिर ही नहीं।
इस पर मैंने तंज किया कि- न हो पूजा! पूजा और मंदिर न होने पर भी हम सनातनी उन्हीं के वंशज हैं!
यह पढ़ वह कई दिनों तक पटल पर नहीं आई। तब एडमिन ने फिर समझा-बुझा कर सक्रिय किया और आज मैंने फिर ये दोहे डाल दिए तो उसने बवाल काट दिया। एडमिन पढ़ेगा तो कहेगा कि- आप अपनी हरकतों से बाज क्यों नहीं आते? इन दिनों राम-लहर के चलते हम पर ईशनिंदा जैसी कार्यवाही भी हो सकती है!
-क्या सचमुच!' कल्पना में उसकी पर्सनल टिप्पणी पढ़ मैं घबरा गया और मीनाक्षी के नम्बर पर बार-बार रिंग कर उठा। हालांकि हर रिंग पर मन इस आशंका से भी भर उठता कि कहीं वह ब्लॉक न कर दे!
आखिर गई रात उसने फोन उठाया तो मैं गिड़गिड़ाया- मीनाक्षी, मीनाक्षी जी! मैं हिंदू हूँ। सनातनी हूँ। प्रतिदिन सुंदरकाण्ड का पाठ करता हूँ। और शाम को एक मंदिर पर जाकर घंटे-दो घण्टे कथा-प्रवचन भी। मैं वैसा नहीं हूँ जैसी कि आप पर छाप बन गई है।'
सुनकर वह दो क्षण चुप रही, फिर बोली-
सर! मेरे दो बेटे जर्मनी में हैं... अगर मैं उन्हें आपके सामने कर दूँ तो आप परास्त हो जाएँगे। जबकि मैंने उन्हें कभी यह नहीं सिखाया... वे खुद ही इतने सुसंस्कृत हैं कि वहाँ परदेश में भी अपने धर्म और स्वाभिमान की रक्षा कर रहे हैं... और आप इस देश में होकर भी हमारी जड़ें खोदने पर आमादा हैं!'
मैं उसे कोई माकूल जवाब देना चाहता था लेकिन फोन कट गया। उसके बाद मैंने कई बार फोन मिलाया लेकिन लाइन बिजी बनी रही। तब गई रात मैंने उसे वीडियो कॉल किया जो उसने उठा लिया! और तब मैंने देखा कि उसने डीपी पर जो फोटो लगाया था, वह हू-ब-हू वैसी ही थी... एकदम खूबसूरत और मोहक। उसका रूम भी दर्शनीय था। और वह अकेली ही दिख रही थी! तब मैंने कहा, 'मीनाक्षी, मैं आपको फोन पर नहीं समझा सकता। मेरी इच्छा है कि आप दो-तीन दिन मेरी कथा सुन लें।'
सुनकर उसे अचरज-सा हुआ, तपाक से बोली- 'शौक से आ जाइए। कथा-श्रवण के लिए तो मैं सदैव तत्पर... मेरी बिल्डिंग के लोग भी धार्मिक... पर मैं एक ही बात कहूँगी कि आप घोर प्रदर्शनकारी हैं, अंदर से सनातनी और धार्मिक बिल्कुल नहीं।'
बात सुनकर मैं तिलमिला गया और तुर्शी में बोला, 'ऐसा करो, तुम किसी बड़े पीठाधीश्वर को बुला लो और हमारा शास्त्रार्थ सुन लो! इसके अलावा दो-तीन दिन मेरे साथ रह लो, मेरी जीवन पद्धति देख लो, तो यह साफ हो जाएगा कि मैं क्या हूँ; प्रदर्शनकारी अथवा वास्तविक?'
तब उसने मुझे लगभग झटकते हुए कहा, 'अरे छोड़िए सर! अगर चार दिन आप ही मेरे साथ रह लेंगे ना तो कट्टर हिन्दू हो जाएँगे और पक्के राष्ट्रवादी भी! फिर आप धर्म का मजाक नहीं उड़ाएँगे।'
और नहले पर दहला-सा जड़ता मैं भी बोला, 'मीनाक्षी मैं भी वादा करता हूँ कि मैं तुम्हें बदल दूँगा, और तुम असली-नकली का भेद समझ जाओगी।'
तब उस हाजिर जवाबी ने कहा, 'मैं आपको चुनौती देती हूँ सर, गर चंद रोज में ही आपका नजरिया न बदल दूँ तो मैं भी मैं नहीं!'
मीनाक्षी की चुनौती मैंने स्वीकार कर ली और अपना झोला उठा कर अगले दिन ही उसके घर पहुँच गया।
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