गार्डन की सैर
बोर्ड की एक्जाम खत्म हो गई थी। 10th के स्टूडेंट्स ट्यूशन में नहीं आ रहे थे तो सेकेंडरी में सिर्फ हम 9th ही थे जो मेहुल सर और मणिक सर का लेक्चर अटेंडेंट करते थे। मणिक सर बोर्ड्स के पेपर्स चेक करने गए थे इसलिए उसका लेक्चर नहीं आता था सिर्फ मेहुल सर आते थे। ट्यूशन का टाइम भी बदल गया था। हमे आधे घंटा पहले छोड़ देते थे पर में नहीं जा सकती थी क्योंकि मेरी बस साढ़े पांच बजे होती थी और माही के पापा भी उसी वक्त आते थे क्योंकि उसका भाई तब छूटता था। कुछ स्टूडेंट्स ही घर जा सकते थे जैसे ध्रुवी, खुशाली, अंजनी, क्रिशा सब जा सकते थे पर हम सब साथ बैठकर बातें करते थे।
इतने में अंजनी बोली, “ मेरे पास शारीरिक शिक्षण की बुक नहीं है, चलो उमिया में आना है किसको, मुझे बुक लेने जाना हैं।”
“ अब बुक लेने जानी है? साल खत्म होने पर?” में हंसकर बोली।
“ मेरा तो ऐसा ही है सब साल शुरू होने पर लेते है और में साल खत्म होने पर जागती हूं।
“ चलो में आती हूं, वैसे भी मुझे बस में जाना है तब तक आ जायेंगे।”
“ सब जाते है, मज़ा आएंगा।”
हम सब साथ में गए। हम वहां पहुंचने ही वाले थे की क्रिशा ने प्रस्ताव रखा गार्डन में जाने की। हम सब ने मज़ाक में लिया की हम इतने छोटे थोड़े ही है की गार्डन में जाए। पर वह किसी की बात सुनने को तैयार नहीं थी। “ चलो ना, वहां हम झुला झूलेंगे। मज़ा आएगा।” “ नहीं, तुम छोटी बच्ची हो की तुम्हे झुला झूलने जाना है।” अंजनी ने सीरियस होकर कहा। पर क्रिशा अपनी जिद्द पर अड़ी थी जैसे आज उसमे छोटी बच्ची की आत्मा घुस गई हो। आखिर हमने भी हर मां की तरह उसके आगे विवश हो गए। वैसे भी ध्रुवी ने भी कहा था की झुला तो उसे भी झुलाना है। बहुत दिन हो गए झुला झूले।
अंजनी की किताब लेकर और थोड़ा नाश्ता लेकर हम पहुंचे गार्डन। क्रिशा तो दौड़कर पहुंच गई झुला झूलने। हम सब वहां बेंच पर बैठकर नाश्ता कर रहे थे। बातें करते करते कब समय निकल गया पता ही नहीं चला। हमे भी मज़ा आने लगा। हमने लगे हाथ झुला झूल लिया। क्रिशा कहने लगी देखा सब मना कर रहे थे आए तो मज़ा आया ना और हमने भी उसकी बात को हंसकर स्वीकार किया। हम भी आज बच्चे बन गए थे। फिर जाने का मन ही नही ही रहा था। पर माही ने अपना डर व्यक्त किया की अगर उसके पापा आ जायेंगे और उसे पता चला की वह गार्डन में है तो उसे बहुत डांट पड़ेगी। धुलू ने भी जाने की बात कही और आखिर हम निकल गए पर मज़ा बहुत आया था।
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दूसरे दिन, क्लास में ही हमने तय कर लिया की आज फिर हम गार्डन जायेंगे। हम बहुत एक्साइटेड थे की कब लेक्चर खत्म हो और हम फिर से गार्डन की सैर पर जाए। आज फिर हमने नाश्ता लिया। आज तो पूरी प्लानिंग के साथ हम गए थे। आज झुला जुलने का प्रोग्राम नही था। नया गार्डन बना था तो पूरा गार्डन देखा और स्लाइड्स में भी बैठे। फिर आराम से नाश्ता भी किया क्योंकि कल तो हम थोड़ी देर लेट आए थे लेकिन आज तो तुरंत निकल गए। अब गार्डन जाना जैसे हमारी लत बन गई थी। हमने घर पर कुछ नहीं कहा था और वैसे भी हम कोई लेक्चर बैंक नहीं कर रहे थे सिर्फ वेइट करने के बजाय एंजॉय करते थे। हम सबने कल का भी प्रोग्राम बना लिया था। मुझे और ध्रुवी को स्केटिंग का ग्राउंड देखकर हमने प्लान बनाया की हम स्केटिंग लाकर यहां स्केटिंग करेंगे। इस तरह दूसरे दिन हमे पहले दिन से भी ज्यादा मज़ा आया।
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तीसरे दिन भी हम वहीं उत्साह के साथ गए गार्डन में। नाश्ता भी लेकर गए पर अच्छे से कर नहीं पाए क्योंकि अंजनी ने स्कूल के टेरेस पर हॉस्टल के बॉयज को हमारी ओर देखते हुए देख लिया और साथ में भैरव जिसे उसके दोस्त उसके सामने और हम उसके पीठ पीछे 'काली' कहते थे, वह साइकिल लेकर गार्डन में आया और हमारी ओर देखने भी लगा। हम सब ने उसे देखा। दो तीन बार चक्कर काट कर वह गायब हो गया। हम समझ गए की बॉयज को पता चल गया था की हम गार्डन आते है मतलब वह हमारा पीछा करते होंगे। हम बात कर ही रहे थे की हर्षित भी साइकिल लेकर पहुंच गए। सबकी निगाहें हमारी ओर थी और हमारी गेट की तरही हमे चिंता होने लगी की बॉयज कनक टीचर को बता देंगे तो वह हमे तो डांटेंगे और तो और हमारे पैरेंट्स को भी बता देंगे। वैसे भी माही तो सबसे ज्यादा डर गई थी और अंजनी भी। हम सबने नाश्ता अधूरा छोड़कर स्कूल की ओर निकल पड़े। सब गुस्से में और डरे हुए थे। सब अब क्रिशा को कोस रहे थे उनकी वजह से हम गए तो वह कहने लगी की उसने सिर्फ उसी दिन कहा था। दो दिन तो आपने डिसाइड किया था। उसका कोई कसूर नहीं हैं। हम सब स्कूल पहुंचकर बेल बजाने का इंतजार कर रहे थे। फिलहाल तो सब अपने - अपने घर पहुंच गए थे पर कल क्या होगा वह भगवान ही जाने।
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हम मेहुल सर के लेक्चर में थे। गर्ल्स और बॉयज दोनों तरफ बातें हो रही थी। मेहुल सर पढ़ा रहे थे पर किसी का ध्यान नहीं था यह शायद सर को पता भी था। क्लास का माहौल गरम था। दोनो और आग लगी थी मानो। क्रिशा और अंजनी को गुस्से से लाल हो गई थी और मौका मिलते ही बोल पड़ी,” आप सब क्यों हमारे पीछे पीछे आए थे?”
“ हम आपके पीछे क्यों आयेंगे?” भैरव ने कहा।
“ हमने देखा था की तुम साइकिल पर आए थे फिर सब बॉयज को बुलाया था। अगर पीछा नहीं किया तो तुम्हे पता कैसे चला की हम गार्डन में थे?” अंजनी भी अब चुप नहीं बैठने वाली थी।
“गार्डन क्या आपका है? कोई और नहीं आ सकता।” निखिल ने भी नहीं छोड़ा मौका बोलने का।
“तुम तो बोलो ही मत, तुम टेरेस से हमे ही देख रहे थे और तुमने ही बताया होगा ना भैरव को।” क्रिशा ने अपनी भड़ास निकाल ही दी।
तभी सर ने पीछे घूम के देखा हम सब चुप हो गए। पर निखिल कुछ बोलने ही वाला था। सर ने मुझसे कुछ ग्रामर का सवाल पूछा पर में कुछ जवाब नहीं दे पाई। सर भी मेरे तरफ देखते रह गए की इस आसन सवाल का जवाब में कैसे नहीं पाई। सर को भी शायद पता चल गया था की किसका भी ध्यान पढ़ने में नहीं था पर वह कुछ नहीं बोले ना ही कुछ पूछा। वह वापस पढ़ाने लगे।
फिर धीरे से निखिल बोला, “क्या हम टेरेस पर खड़े भी नहीं रह सकते थे?
हम थोड़ी देर चुप ही रहे तभी श्रेयांश ने बुलाया,
“ये लोग आपके पीछे नहीं आए थे सिर्फ ऐसे ही गए थे फिर भी अगर बुरा लगा हो तो…”
वह अपना वाक्य पूरा करे उसके पहले ही अंजनी ने क्लियर कह दिया, “हमे कोई फर्क भी नहीं पड़ता आप आए या ना आए पर हमे सिर्फ यही डर था की आप कहीं कनक टीचर से कह न दो।”
निखिल ने शांत स्वर में कहा कही सर आवाज़ न सुन ले, “हम किसी को नहीं कहने वाले थे।” फिर हसकर बोला, “तो इसीलिए आप हमसे गुस्सा थे, पर हम कैसे बता सकते थे? अगर हमने बताया तो हम ही फस जाते की आपको कैसे पता चला क्योंकि टेरेस पे जाना मना है और वह भी किसी टीचर के बिना।”
हम रिलैक्स्ड हो गए हम तो एक ही कश्ती के सवार हो गए थे अब कोई डर न था
क्रिशा ने अपना गुस्सा वापस ले लिया, “ सॉरी, मैने कुछ ज्यादा ही कह दिया आपको वहा देखा तो लगा की आप हमारे पीछे आए थे”
“कोई बात नहीं ऐसा तो चलता रहता है वैसे आप कब से जा रहे थे?
“दो दिन से” मैंने कहा
“अच्छा”
तभी छूटी का बेल बज गया हम सब बेग पेक करने लगे और जा ही रहे थे की सर ने हमसे कहा,
“ऐसा कोई इश्यू हो तो बताना हा ठीक कर दूंगा इस लडको को।”
“ कुछ नहीं किया हमने।” निखिल कूद पड़ा।
“डरना मत इससे। इसको तो यूं सीधा कर दूंगा।” सर ने निखिल को हाथों से पकड़ते हुए कहा।
“कुछ नहीं हुआ, सर।” मैंने भी हसकर जवाब दिया ताकि सर को पता न चले।”
फिर सभी बॉयज चले गए और हम जाने की तैयारी कर रहे थे तभी जो सर ने कहा उनसे मेरे में मन में उसका मान और भी बढ़ गया।
सर ने धीरे से कहा, “अगर सच में यह बॉयज आपको तंग कर रहे हो तो बता देना में उसकी अच्छे से खबर लूंगा।”
“सर, सच में कोई सीरियस बात नहीं है, वह तो हम गार्डन गए तो वह भी आए थे हमे लगा के हमारे पीछे आए थे पर अब सब ठीक हो गया है।”
“अच्छा, कुछ कहना नहीं है ना।”
“नहीं सर, थैंक यू।” मैंने कहा और हम निकल गए।
सर की एक बात अच्छी लगी की उन्होंने हम लड़कियों को गलत समझ ने के बजाय हमारी हेल्प करने की सोची और इसलिए हमने जिस बात को कनक टीचर तक पहुंच जाने के डर से बॉयज के साथ झगड़ा किया वही बात सर को आसानी से बता दी क्योंकि सर हमे सच में समझते थे।
हमारी बातों को रोकने या इंटरफीयर करने के बजाय हम सब को अपनी बात हैंडल करने दिया, हमे अपने नादानी, मासूम बातों के साथ छोड़ दिया और तो और हमे लास्ट में हेल्प करने के लिए भी पूछा। सच में, सर ने अपने आप को एक सच्चे मायने में 'शिक्षक' साबित किया।
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