Apradh hi Apradh - 36 in Hindi Crime Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | अपराध ही अपराध - भाग 36

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अपराध ही अपराध - भाग 36

अध्याय 36

 

“धना तुम गलत फैसला नहीं करोगे ऐसा तुम्हारे ऊपर मुझे भरोसा है इसलिए तुम जो करना है उसे करो” एकदम से बात को काट कर अम्मा सुशीला ने कह दिया।

“ऐसे आपके विश्वास करने से ही मुझे डर लगता है। जाने दो अब मैं जो कहने वाला हूं उसे भी ध्यान से सुनो। यह शादी नहीं होना चाहिए ऐसा सोचने वाले भी कुछ लोग हैं” ऐसा कहकर थोड़ा चुप रहने वाले को सदमे के साथ अम्मा सुशीला ने देखा।

“हां अम्मा मेरे मालिक कृष्णराज जी के एक लड़की कार्तिका के विरोधी एक है। वे मुझे खरीदने की कोशिश कर रहा हैं। मैंने मना कर दिया।

“इसीलिए मुझे रास्ते में लाने के लिए कहीं तक भी जा सकते हैं उनकी वजह से कुछ परेशानी होगी इसलिए इस शादी को बहुत धूमधाम से सभी लोगों को बुलाकर मैं बड़े आडंबर से नहीं कर सकता। वह मुझसे नहीं होगा। किसी को खबर ना लगे इस तरह रजिस्टर ऑफिस में जाकर शादी को रजिस्टर करवा देंगे।

“शादी अच्छी तरह हो जाए तब एक महीने के बाद एक बड़े से फाइव स्टार होटल में ग्रैंड रिसेप्शन दे देंगे। इसके लिए आप लोग सहमत हैं क्या?” ऐसे कहने वाले धनंजय को बड़े आश्चर्य और सदमें से अम्मा सुशीला, शांति श्रुति, कीर्ति चारों लोगों ने देखा।

“क्यों ऐसा देख रहे हो, आप लोगों ने ऐसे एक फैसले के बारे में उम्मीद नहीं की थी?”

“हां, रे, तुम्हारे मालिक के विरोधी है तो उनसे ही तो लड़ाई करनी चाहिए। तुमसे क्यों विरोध करना चाहिए?”

“ किसी को भी उनके पक्ष में नहीं होना चाहिए। ऐसा उन्हें परेशान करना है। उसके लिए मैं एक बड़ा बाधक हूं। फिर मैं भी तो उनका शत्रु हुआ ना?”

“उसके लिए, एक लड़की की शादी में उसके जिंदगी के साथ भी खेलेगा क्या?”

“अम्मा बहुत विस्तार से तुम किसी बात को मुझसे मत पूछो। मैं भी सभी बातों को तुम्हें नहीं बता सकता। मिलिट्री में काम करने वाले अधिकारी अपनी पत्नी से भी सब बातों को नहीं बताते हैं। वह उनके धंधे का कर्तव्य है। मैं भी अभी इस स्थिति में हूं।”

“इतना बड़ा बंगला, कार लाखों रुपयों में मासिक सैलरी, बोलते समय ही मैंने संदेह किया था। वह बिल्कुल ठीक है। ऐसा एक आपत्ति वाला काम तुम्हें करने की क्या जरूरत है धना। हम अपने पुराने जिंदगी में ही लौट चलते हैं” सुशीला घबराते हुए बोलीं।

“तुम ऐसे कहोगी इसीलिए मैंने तुमसे कुछ भी नहीं कहा था। डरपोक बनकर 100 साल जीने से तो हिम्मती बनकर कुछ साल जीना ही बड़ी बात है अम्मा।”

“क्या है रे सिनेमा में बोलते हैं जैसा बोल रहा है। गरीबी में जीना कोई डरपोक की बात नहीं है। मां के लिए शांति बड़ी चीज है।”

“बस करो मां मैं आफत बोला उसे सुनकर तुम बहुत ही डर गईं। इसीलिए ऐसी बातें कर रही हो? जिंदगी में जितना है सके उतना रिस्क लेना ही पड़ेगा। मैंने भी ऐसा ही एक रिस्क लिया है अम्मा! इसे मुझे लेना ही पड़ेगा। नहीं तो इतनी बड़ी जगह से रिश्ता हमें ढूंढ कर नहीं आएगा। इस बात को तुम समझो।”

“अरे मेरे लिए तुमसे बढ़कर कुछ भी बड़ा नहीं है। अच्छे ढंग से व्यवसाय में रिस्क लो। हमें क्यों इन अमीरों से शत्रुता लेनी है?”

“ठीक है मां। मैं इस काम में बहुत दूर चला गया हूं। अब एकदम से उससे अलग होकर आना संभव नहीं है। इसमें किसी तरह की विपत्ति आप लोगों पर नहीं आएगी। ऐसा नहीं आना चाहिए इसीलिए रजिस्टर मैरिज करना है कह रहा हूं।

“मुझे थोड़े दिन और दो मां। कुछ कर्तव्य अभी बाकी हैं। उसके खत्म होते ही जैसे आप कह रही हो उसी तरह इस नौकरी को छोड़ दूंगा और तुम्हारा बेटा तुम्हारे पास ही आ जाएगा। अभी तुम कोई बड़ा बाधा मत उत्पन्न करो” उसने एक पक्के निर्णय के साथ बोला।

अक्का शांति से “अम्मा को तसल्ली दो। तुम हिम्मत से रहो। रजिस्टर मैरिज में तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं है?”

“धना, मुझे क्या कहना चाहिए मुझे समझ में नहीं आ रहा है।”

“कुछ भी मत बोलो खुशी से शादी करके दामाद के साथ विदेश चली जाओ। यही मुझे चाहिए। बाकी बातें धीरे-धीरे ठीक हो जाएगी” वह बोला।

कुमार की तरफ मुड़कर, “मेरे साथ कुमार एक मजबूत साथी बनकर खड़ा है। आप फिकर मत करो” वह बोला।

“हां अम्मा…एक अच्छा काम होने वाला है इसीलिए खुशी से रहो। हमारी उलझने धीरे-धीरे ठीक हो जाएंगी” कुमार बोला।

दूसरे दिन-

पत्नी रंजीतम बेटा मोहन के साथ बड़ी गंभीरता के साथ ऑडी कार से मलेशिया के रामकृष्णन आकर उतरे। बहुत से काम करने वाले लोग थाली भर-भर कर कई सामानों को लेकर आए।

रामकृष्णन आते ही धनंजयन के हाथों को पकड़ कर “यह हमारे लिए हाथ नहीं है पैर…” बोले।

उसे देखकर सुशीला रोमांचित हो गई।

एक अलग कमरे में दामाद मोहन और शांति अपने दिल खोल कर बातें करना शुरू कर दिये। उस मिलन के दौरान ही मोहन ने शांति के हाथों की अंगुली में एक हीरे जड़ी अंगूठी पहना दी।

“शादी स्वर्ग में पक्की होती है ऐसा कहते हैं। उसमें कितनी सच्चाई है अभी मैं इसे महसूस कर रहा हूं ” शांति को इस तरह कहकर दामाद मोहन ने गदगद किया। 

उसी समय रामकृष्णन को एक फोन रवि का मलेशिया से आया । 

“सर… सर.. हमारा एक एजेंट इंटरनेशनल पुलिस के हाथों में फंस गया है। जब उसको टॉर्चर किया तो उसने आपके बारे में सब कुछ बता दिया” फोन करने वाले ने बताया।

रामकृष्णन को बिजली गिरी जैसे लगा।

आगे पढ़िए….