Apradh hi Apradh - 25 in Hindi Crime Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | अपराध ही अपराध - भाग 25

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अपराध ही अपराध - भाग 25

अध्याय 25

 

पिछला सारांश:

कीरंनूर जाकर वापस आए धनंजय शिव लिंग के ऊपर नाग के फन निकाले हुए बात को, और आज रात को नटराज के मूर्ति को मंदिर में ले जाकर रख देंगे यह बात कार्तिका को बताया। कार्तिका ने कहा विवेक को यह बात पता चलें तो विपरीत परिस्थिति हो सकती है। पहले उनके घर के खाना बनाने वाली मामी को जहर देकर मारने के लिए बोला था कार्तिका ने बताया। मूर्ति को मंदिर में रखने की बात को धनंजय ने कार्तिका को बता दिया।

ड्राइवर के वेष में कुमार को देखकर धनंजयन की अक्का और दोनों बहनों ने उसका मज़ाक उड़ाया । सिनेमा जा रहे हैं ऐसा कहकर कार्तिका के घर जा रहे धनंजयन के बारे में अक्का को कुछ गलत रास्ते पर चल रहे हैं ऐसा महसूस हुआ।

योजना बनाकर नटराज की मूर्ति को वेन में रख ली की बात को जानकर विवेक ने बंदूक से वेन पहिए पर गोली मारी।

अपने बड़ी गाड़ी से उतर कर विवेक बाहर आया। उसके कार के हेडलाइट का प्रकाश पेड़ के ऊपर पड़ और धनंजयन के वेन

पर पड़ रहा था।

एक बड़ी अच्छी बात थी दोनों को कोई बहुत बड़ी चोट नहीं लगी। हड़बड़ा कर वेन से बाहर निकाल कर उन्होंने विवेक को देखा।

“क्या बात है धनंजय! तुमने इस विपत्ति के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचा?” ऐसे कहते हुए विवेक ने एक सिगरेट  जलाया।

जवाब में धना उसे जब घूरने लगा। तो “ओ…. आई एम सॉरी मैं ही विवेक हूं। तुमसे मैंने ही फोन में बात की थी। वहीं विवेक ग्लैड टू मीट यू….” ऐसा कहकर अपने सीधे हाथ को, हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाया।

आक्रोश के साथ धनंजय ने अपने सर को लगे चोट से निकल रहे खून को छूकर देखते हुए उसके पास कुमार खड़ा था।

इस बीच विवेक के कार में से दो लोग उतरे और जल्दी से धनंजयन के वेन के सभी भागों को खोल कर देखा। फिर पीछे के दरवाजे को खोलकर नटराज की मूर्ति जो डिब्बे में रखी थी उसे देखा। 

‘सर…वह बॉक्स पीछे की तरफ है….’ वह बोला।

“पहले उसे अपने गाड़ी में बदलो” विवेक बोला।

धनंजय और कुमार के देखते-देखते वह डब्बे की जगह बदल गई।

हंसते हुए विवेक बोला “इस मूर्ति को मंदिर से चोरी करने के लिए हमने बहुत ही मेहनत की। मालूम है इसकी कीमत कई करोड़ रुपए हैं। वह कृष्णा राज को पता नहीं क्या क्रैक पन सूझा, परंतु इस जमाने के तुम युवा हो तुम्हें क्या हो गया धनंजयन?”

धनंजयन का मौन जारी था।

“क्यों बात नहीं कर रहे हो? यहां मैं कैसे बीच में घुसूंगा? यह तुमने सोचा नहीं था क्या? बात कर यार, कुछ तो बोल। मुझे लांघ कर तुम कृष्णराज और कार्तिका को किसी तरह की मदद नहीं कर सकते।

“आज जो कुछ घटा है वह तुम्हारे लिए एक लेसन है। फिर से बोल रहा हूं इस काम को तुम छोड़कर भाग जाओ। नहीं तो आज तुम्हें चोट लगी है। अगली बार तुम्हारे प्राण भी जा सकते हैं। मैं जाऊं?” इस तरह धमका कर अपने कार में विवेक चला गया ।

कुमार एकदम स्तंभित रह गया। उसके सर से खून रिस रहा था। धनंजय ने अपने जेब में से रुमाल निकाल कर उसको बांधते हुए “क्यों रे बहुत डर गया क्या?” ऐसा कह बात करना शुरू किया।

“यह क्या प्रश्न है? सिनेमा में ही ऐसा सब होते हुए मैंने देखा है। अब तो सचमुच में ही हो गया। हां, कौन है वह विवेक?”

“मैंने तो पहले ही शुरू में तुम्हें कहा था…. विवेक एक आदमी है तुम्हें फोन करके वह तुम्हें भी धमकाएगा। नहीं तो तुम्हें खरीदने की कोशिश करेगा वही विलन है ये।”

“ठीक है, उसको कैसे पता हम इस तरह वेन में एक मूर्ति को लेकर आ रहे हैं?”

“मुझ पर निगरानी रखने के लिए ही  कई आदमियों को इसने रख रखा है। पुलिस समेत, ‘साइबर क्राइम’ में भी इसके आदमी है। मेरे मोबाइल के द्वारा ही मैं कहां पर हूं यह लोग बता लेते हैं।

“सुबह हम लोग कीरंनूर आए यह सूचना भी पहुंच गई होगी। रात को रवाना हो रहे हैं यह सूचना भी पहुंच गई होगी। इसीलिए आराम से आकर वेन के टायर में गोली मारकर उसे रोक कर मूर्ति को लेकर चले गए।”

“इसका मतलब इस मूर्ति को चुराने वाले तुम्हारे कृष्णाराज ही हैं?”

“वही नहीं है इस विवेक के अप्पा दामोदरन भी है।”

“अब समझ में आ रहा है…. ऐसा किए हुए कृष्णाराज अब सुधारना चाहते हैं। परंतु यह उन्हें नहीं छोड़ रहा है।”

“बिल्कुल सही बोला, यही बात है।”

“जाने दो। मूर्ति को उठाकर ले गया, आप क्या करेंगे?”

“तमाशा देखो। वह क्रिमिनल है तो मैं सुपर क्रिमिनल हूं।”

“इसमें तमाशा देखने के लिए क्या है….. हम तो वेन खराब होने से बीच सड़क पर खड़े हैं। इस अंधेरे में क्या तमाशा देखने को कह रहे हो?”

कुमार के पूछे दूसरे ही क्षण उन पर एक कार की हेडलाइट चमकने लगी। वह कार भी पास में आकर खड़ी हुई। अंदर से कार्तिका उतर के आई।

उसको देखते ही “आईए मैडम आप ठीक समय पर आ गई” धना बोला।

“ओह … वेन का एक्सीडेंट हो गया। इसीलिए यहां खड़े हो क्या?”

“यह एक्सीडेंट करने वाला विवेक था। मैंने सोचा वैसे ही सब हो गया। वह वेन में हम लोग जो मूर्ति लेकर आए उसे ले गया। जाते समय हमेशा की तरह धमका कर चला गया।”

“आपके कैलकुलेशन को अब मैं भी अप्रिशिएट करती हूं धना। अब हम ही उस काम को अच्छी तरह करेंगे है ना?”

“श्योर…. इस वन को ऐसे ही खड़े रहने दो। हम लोग भी अभी आपके साथ ही आ रहे हैं। चलें?”

धना के ऐसे पूछते ही कार पर बैठकर कार्तिका ने कार स्टार्ट किया।

हकबका कर देखते हुए कुमार भी कार में पीछे चढ़ कर बैठा।

वहां से कार रवाना हुई।

आगे पढ़िए…..