haldi akhat ke geet - rajesh sharma in Hindi Book Reviews by ramgopal bhavuk books and stories PDF | हल्दी आखत के गीत -राजेश शर्मा

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हल्दी आखत के गीत -राजेश शर्मा

हल्दी आखत के गीत गाते चलो

                       रामगोपाल भावुक

 

महाकवि भवभूति की कर्मस्थली ग्वालियर के चर्चित साहित्यकारों के साथ गाइड के रूप में मुझे जाने का अवसर मिला। जिसमें राजेश शर्मा जी  भी साथ थे। उनके गीतों को अनेक वार कवि सम्मेलनों में सुनने का अवसर मिला था। लौटते समय वे मुझे अपना गीत संग्रह हल्दी आखत के गीत देकर गये हैं। उस दिन से जब मन करता है उन्हें गाकर आनन्द लेता रहता हूँ।

 देश को स्वतंत्र हुए लम्वा समय व्यतीत हो गया लेकिन आज भी हम तमाम बादों के बाद भी अखिरी इंसान तक नहीं पहुँच पाये हैं-

    आखिरी सोपान तक पहुँचे नहीं हैं हम अभी

    बाँटते है रोज लाखों लाख खुषियाँ हाँ मगर

    आखिरी इंसान तक पहुँचे नहीं है हम अभी।

         आत्मकथ्य में कवि स्वीकार करता है कि लिखना न तो मेरे स्वभाव में है और न योग्यता में। यह जितनी भी रचनायें  इसमें कुछ गीत और कुछ दोहे हैं जो ईश्वर प्रदत्त संवेदनशीलता ने मुझे सौप दिये हैं। मैं खुद भी नहीं जान पाया।

            इतने संवेदनशील गीत रचने वाला गीतकार, अह्म् से इसीकारण  इतनी दूर! निश्चय ही ऐसे ही रचनाकार चिरकाल तक के लिये अपनी कृतियाँ समाज को सौप जाते हैं।

             आपका एक एक शब्द जिम्मेदारी के साथ नाप तौल कर सामने आता है

            साँस गिनती रही जब से पुरवाइयाँ

        जब से पछुआ पवन की कहानी लिखी

        आपके प्रण धवल पृष्ठ ही रह गये

        हमने अपने वचन की रवानी लिखी

 वे सत्ता की शल्यक्रिया करने से भी नहीं चूकते-

       योजनाये हैं वड़़ी परियोजनायें, हाँ मगर

       बस सही अनुमान तक पहुँचे नहीं हैं हम अभी

       प्रार्थनाएँ हैं, अजानें आरती हैं हाँ मगर

       देश के यशगान तक पहुँचे नहीं हैं हम अभी

            जब जब तृष्णा भटकाती है तब तब चलते चलते बंजारे अपने मनकी बात कह जाते हैं-

      तृष्णा ने दिनभर भटकाया

      खुद से भागा खुदतक आया

      सम्मोहन ने जाल  बुने हैं

      सूरज डूबा तम गहराया

मन के पंछी लौट चले हैं

साँझ हुई अब घर जाने दो।

     गीतकार अपनी अधीरता और व्याकुलता यों व्यक्त करता है-

 

शारदा कौ लाल जन्म-जन्म से बिहाल

  लिए आरती कौ थाल मैं पुजारी एकदंत कौ

  प्रीति कौ पराग लिए राग में विराग

  आज सृष्टि के प्रमाण हेतु सेतु आदि अंत कौ

  भक्त ज्ञानवान कौ न भूखौ मान पानकौ

  हिय कौ दुखारी आभारी रसवंत कौ

  काव्य कौ अबीर बाँटिबे कों हूँ अधीर

  हूँ तो ऐसो दानवीर पै भिखारी हौं बसुत कौ

 

            गीतकार के मन की कसक देखिये-

        गीत बन गई हर कसक, दोहा बना रिसाव।

            धन्य भाग्य मुझको मिले, ऐसे अद्भुत घाव।।

 

            एक खिलौना होगया के माध्यम से वे कहते हैं-

            सम्बन्धों की डोर का, रखा हमेषा ध्यान,

            फिर भी एक गठान में, निकलीं लाख गठान।।

 

दोनों को सम्बन्ध पर... में वे प्रेम को परिभाषित करते हुए कहते हैं-

            प्रेम, सूक्ष्म सा भाव है, व्यापक इसकी षक्ति,

            बहुत सरल है प्रकटना,बहुत कठिन अभिव्यक्ति।

 

आदमी की तृष्णा को आप इस तरह सामने रखते हैं-

             कल्पवृक्ष भी हो मगर, तो जायेगा सूख,

             चिस पर जितनी सम्पदा, उसको उतनी भूख।

 

            आपके गीत हमें रसवन्त बनाकर समाज की शल्यक्रिया करते हुये आगे बढ़ते जाते हैं। मानव मन की अनुभूतियों से सरावोर करते  हुये व्यवस्था पर चोट करने से नहीं चूकते।

             आपकी गीतों की भाषा भाव के अनुसार भावातीत होती चली जाती है। जिसकी मिठास पाठक के जहन में समा जाती है, जिसे व्यक्ति करने के लियें उसे शब्द खोजने पढ़ते हैं। अतः आप भी इन रागमय गीतों का आनन्द लेकर तो देखें। मुझे पूरा विश्वास है, आप इसी तरह गीतों की धरती पर विचरण करते और कराते रहेंगे।

          आव-ओ -हवा पत्रिका के वर्तमान अंक में देश के चर्चित गीतकार राजा अवस्थी, करुणा-उदात्तता का संकट और नवगीत के विमर्श में लिखते हैं कि आज कवि का उत्तर दायित्व है कि वह इस छीजती रागात्मकता को बचाकर मनुष्यता की रक्षाकरे। सौ-पचास वि़द्वानों द्वारा पढी़ जा सकने वाली गद्य कविता से इतर जन-जन के कंठ से होकर जन-जन की चेतना को जगानेवाली कविता ही इस महत्व पूर्ण दायित्व को पूरा कर सकती है। इस कार्य को भाई राजेश शर्मा जी बखूबी निर्वाह  करने में लगे हैं। इसके लिये वे बधाई स्वीकर करें।

  कृतिका नाम- हल्दी आखत के गीत 

कृतिकार का नाम-  राजेश शर्मा

प्रकाशक-सन्दर्भ प्रकाशन , भोपाल

मूल्य-250रु

वर्ष- 2023

पता- कमलेश्वर कालोनी डबरा भवभूति नगर जिला ग्वालियर

म. प्र. 475110

        मो0 9425715707, 8770554097

               ई. मेल. tiwariramgopal5@gmail.com