Bairy Priya - 48 in Hindi Love Stories by Wishing books and stories PDF | बैरी पिया.... - 48

The Author
Featured Books
  • શ્રાપિત પ્રેમ - 18

    વિભા એ એક બાળકને જન્મ આપ્યો છે અને તેનો જન્મ ઓપરેશનથી થયો છે...

  • ખજાનો - 84

    જોનીની હિંમત અને બહાદુરીની દાદ આપતા સૌ કોઈ તેને થંબ બતાવી વે...

  • લવ યુ યાર - ભાગ 69

    સાંવરીએ મનોમન નક્કી કરી લીધું કે, હું મારા મીતને એકલો નહીં પ...

  • નિતુ - પ્રકરણ 51

    નિતુ : ૫૧ (ધ ગેમ ઇજ ઓન) નિતુ અને કરુણા બીજા દિવસથી જાણે કશું...

  • હું અને મારા અહસાસ - 108

    બ્રહ્માંડના હૃદયમાંથી નફરતને નાબૂદ કરતા રહો. ચાલો પ્રેમની જ્...

Categories
Share

बैरी पिया.... - 48


दुबे के फोन पर मैसेज आया तो वह मैसेज चेक करने लगा ।


मैसेज देखकर ना जाने क्यों उसके चेहरे पर एक हल्की सी स्माइल आ गई और एक उम्मीद सी जगी ।
शिविका की लगातार सुनाई दे रही चीखें उसके सीने को‌ मानो चीर सा रही थी ।


दुबे से रहा नहीं गया तो वो जल्दी से दरवाजा खोलकर अंदर चला गया ।


सामने देखा तो शिविका जमीन पर लेटी हुई थी और ओमप्रकाश उसके ऊपर । उसने बेरहमी से शिविका के दोनों हाथों को उसके दोनों ओर अपने हाथों से जकड़ा हुआ था और जमीन से लगाया हुआ था ।

अपना चेहरा उसने शिविका की गर्दन में छुपाया हुआ था । वो बेतहाशा शिविका के चेहरे गर्दन और कॉलरबोन पर अपने दांतो से निशान बनाते हुए काटता जा रहा था ।


शिविका बहुत छटपटा रही थी लेकिन ओम प्रकाश उसकी चीखों और छटपटाहट पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रहा था । दुबे एक गहरी सांस लेते हुए कहता है " सर वो नरेन श्रीवास्तव वापस आ गया है.. । मुझे लगता है कि अभी उसे हैंडल करना ज्यादा जरूरी है । " ।


ओमप्रकाश शिविका की गर्दन से सर बाहर निकाल कर एक झलक दुबे की तरफ देखकर " तो तुम किस लिए हो दुबेे..... , जाओ और देखो उसको.... " । बोलकर वह वापस शिविका की तरफ झुक गया ।



शिविका की आंखों से बेतहाशा आंसुओं की धारा बहे जा रही थी । उसकी सिसकियों से ही उसका दर्द साफ सुना जा सकता था । लेकिन ओमप्रकाश जैसे राक्षस को उस पर जरा सी भी दया नहीं आ रही थी ।



दुबे अपनी आंखें बंद करके दोबारा से खोलते हुए बोला " सरकार मुझे लगता है कि वो यहीं आ रहा है... और मेरा औधा अभी भी उससे छोटा ही है... , मेरी प्रमोशन नहीं हुई है सरकार । तो मैं उसे अभी नहीं संभाल पाऊंगा.... । और ऊपर से इलेक्शन का समय भी नजदीक है अगर कोई इल्जाम लग गया तो गड़बड़ हो जाएगी.... " ।



ओमप्रकाश ने चिढ़ते हुए दुबे की तरफ देखा ।
" किसी काम का नहीं है... । बैल बुद्धि.... " कहते हुए वो शिविका के ऊपर से उठ गया।



" अंदर बंद कर इसे । बाद में आकर देखता हूं... । " बोलते हुए ओमप्रकाश ने वही पास में फेंका हुआ अपना कुर्ता उठाकर पहनने लिया ।

शिविका उठकर पास में रखी टेबल से अपनी पीठ टिकाकर घुटनों को समेट कर अपनी छाती से लगाकर बैठ गई । वो बहुत ज्यादा सहमी हुई थी ।


दुबे उसके पास आकर खड़ा हो गया । दुबे ने देखा शिविका की गर्दन से खून बह रहा था । उसके चेहरे पर काटने के निशान थे जो बहुत ज्यादा दर्द देने वाले दिखाई दे रहे थे । शिविका की कमीज लगभग फट चुकी थी और उसकी इनरवियर दिखाई दे रही थी ।



उसकी कलाइयों पर ओमप्रकाश की उंगलियों के गहरे निशान छप चुके थे । जिस तरह से दुबे शिविका को अब तक देखता आया था आज वह उससे बहुत ज्यादा अलग दिखाई दे रही थी । शिविका हमेशा से एक जिंदादिल और निडर लड़की रही रही । लेकिन हालातों ने उसे बहुत कमजोर बना दिया था ।



हमेशा लड़ने के लिए तैयार खड़ी शिविका आज कितनी ज्यादा बेबस नजर आ रही थी ।



दुबे ने शिविका को बाजू से पकड़कर उठाया । इस वक्त दुबे की पकड़ शिविका पर बहुत सहज थी ।



उसी सहजता और नाजुकता के साथ वो शिविका का हाथ पकड़कर उसे सेल के अंदर ले जाकर छोड़ दिया । और बाहर से ताला लगा दिया। शिविका दर्द में डूबी हुई आंखों से दुबे को देखे जा रही थी । आज से पहले दुबे ने कभी भी इतने प्यार से शिविका के साथ व्यवहार नहीं किया था... और शिविका को भी यह उम्मीद नहीं थी कि वो कभी उसके साथ इतनी सहजता और प्यार के साथ व्यवहार कर सकता था ।

ओम प्रकाश हैवानियत भरी नजर शिविका पर डालकर गुस्से में अपना गमछा अपने गले में लपेटते हुए वहां से बाहर निकल गया ।



ताला लगाने के बाद दुबे चाबी को अपने हाथ में कसकर पकड़ते हुए शिविका को देखते हुए कहता है " चाहे जिस भी मामले में हुई होो.... लेकिन आज मेरी जीत हुई है... शिविका चौधरी । और इस बात को तुम भी नहीं नकार सकती... " ।



बोलकर दुबे वहां से बाहर जाने लगा । दुबे को समझ आ चुका था जिन लोगों का साथ दुबे दे रहा था वह लोग बहुत ज्यादा बुरे थे और उनमें इंसानियत नाम की कोई भी चीज नहीं थी । उन्होंने शिविका की जिंदगी को पूरी तरह से उजाड़ कर रख दिया था उसके घर के सभी लोगों को मार दिया था । और शिविका बहुत बुरी तरह से उन लोगों के जाल में फंस चुकी थी ।



दुबे को प्रमोशन मिल रहा था तो वो अब इन लोगों के साथ काम करने से मना नहीं कर सकता था और नरेन की भी यहां से किसी दूसरी जगह को पोस्टिंग की जा रही थी तो वह भी अकेला शिविका की कोई मदद नहीं कर सकता था ।



कहीं ना कहीं दुबे को अहसास था कि आज वो शिविका को आखिरी बार देख रहा था । दुबे यह भी जानता था कि अगर आज शिविका यहां से बचकर नहीं भाग पाई तो फिर वो कभी नहीं भाग पाएगी... ।
और वो लोग उसे किस तरह से तड़पा तड़पा कर उसकी जान लेंगे... , ये दुबे सोच भी नही सकता था और ना ही सोचना चाहता था ।



दुबे ने चाबी को नीचे जमीन पर गिरा दिया और अपने पैर से स्लाइड कराते हुए उसे सलाखों के नीचे से सेल के अंदर पहुंचा दिया ।



शिविका हैरान निगाहों से उसे देख रही थी । दुबे ने अपनी कमीज उतारकर वही कुर्सी पर रख दी । फिर अपने वॉलेट से एक एटीएम कार्ड निकाल कर कमीज की जेब में डाल दिया ।



" 1973 " बोलते हुए वह एक झलक शिविका को देख कर वहां से बाहर निकल गया ।


शिविका नम आंखों से उसे जाते हुए देखती रही फिर जमीन पर पड़ी चाबी उठाते हुए रूंझी हुई आवाज में रोते हुए अपने आप में ही कहती है " कभी उम्मीद नहीं की थी आपसे... , लेकिन आज आप वाकई में जीत गए दुबे जी... " ।



शिविका तो पहले ही यह मान चुकी थी कि यह कुछ पल उसकी जिंदगी के आखिरी पल है । लेकिन इस वक्त दूबे ने उसके लिए बाकी में एक मदद का काम किया था ।



शिविका ने ‌जल्दी से सलाखों के बीच में से हाथ बाहर निकाल कर ताले को खोल दिया और चाबी को उसी में लटका रहने दिया । ठीक से ना चल पाने के बाद भी शिविका लड़खड़ाते हुए कुर्सी के पास पहुंची और उसने दुबे की शर्ट पहन ली ।


" 1973 " रिपीट करते हुए शिविका जल्दी से वहां से बाहर निकल गई ।


बाहर गहरा काला अंधेरा था । शिविका कुछ दूर पर खड़ी की जीप के पास जाने लगती है तो दूर से ही उसे वहां पर लोग खड़े थे । उन लोगों ने अपने हाथों में टॉर्च पकड़ी हुई थी । शिविका देख सकती थी कि वो पुलिस वाले थे । लेकिन वो शिविका की मदद करने वालों में से नहीं थे बल्कि उन लड़कों के साथ ही मिले हुए थे ।



अंधेरे में शिविका को कोई नहीं देख सकता था । शिविका पेड़ के पीछे छुपकर उनकी बातें सुनने लगी.. तो उसे समझ आया कि हर स्टेशन पर उसे ढूंढने के लिए नाकाबंदी करवा दी गई थी ।



क्या एक 19 साल की लड़की किसी के लिए इतनी बड़ी मुसीबत थी कि उसके पीछे पूरा सिस्टम ही हिला कर रख दिया गया था । रातों रात लोगों के तबादले और promotions करवाई जा रही थी ।



या फिर उन लोगों को ये डर था कि कहीं शिविका अपनी आवाज उठाकर उन लोगों के बारे में सबको किसी तरह बता ना दे... वर्ना उन लोगों के पॉलिटिकल करियर पर इसका बोहोत बुरा असर पड़ेगा.. । या वो शिविका को अपने मतलब के लिए अपनी कैद में लाना चाहते थे ।



लोग जीप के पास से थोड़ा दूर हटकर देखने लगे तो शिविका चुपके से बिना शोर किए धीरे से जाकर जीप में बैठ गई । और जीप स्टार्ट कर दी ।


जीप स्टार्ट होने की आवाज सुनकर वो लोग जीप की तरफ देखकर उस ओर बढ़ने लगे ।



एक लड़की को जीप में बैठा देखकर वो समझ चुके थे कि ये वही लड़की है जिसकी तलाश की जा रही थी.. ।


सब लोग शिविका को देख उसकी ओर बढ़ चले लेकिन शिविका ने जीप को वहां से पूरी स्पीड में भगा दिया । लोगों ने उसे पकड़ने की बहुत कोशिश की लेकिन शिविका वहां से भागने में कामयाब हो चुकी थी । कुछ आगे जाकर नाके से पीछे वो जीप से उतर गई और एक ट्रक में जाकर छुप गई ।



ट्रक में बैठकर वो सभी नाकों पर हो रही तलाशियों से किस्मत से बचते हुए हिमाचल प्रदेश से बाहर निकल चुकी थी । उसे नहीं पता था कि यह ट्रक का सफर उसे कहां ले जा रहा था बस इतना पता था कि अगर अब अपने आप को बचाना है और अपनों की मौत का बदला लेना है तो फिलहाल के लिए यहां से जाना ही सही है ।


वर्तमान में :


शिविका दरवाजे के पास खड़े अंदर से आ रही लड़कों की चीखों को सुने जा रही थी ।


उसने दरवाजा खोला और अंदर चली गई । लड़कों के कपड़े फट चुके थे । उनको बांध कर बोहोत बुरी तरह से मारा जा रहा था ।


शिविका ने याद किया कि जब उसकी बहन कुवें में मरी पड़ी मिली थी । जब उसको बाहर निकाला गया था तो उसके कपड़े पूरे फटे हुए थे और बॉडी पर दांतों के काटने और खरोच के निशान थे ।


शिविका के पापा ने अपनी शर्ट उतारकर उसे कर किया था ।


शिविका की आंखें आंसुओं से भर आई ।
पारस ने शिविका को देखा तो बोला " शिविका... शिविका हमें बचा लो... ये लोग मार डालेंगे.. शिविका... । " ।


शिविका को समझ में नहीं आया कि वो इंसान इतना बेशरम कैसे हो सकता था । जिसके पूरे परिवार को उसने मार दिया था अब वो उसी से छोड़ देने की गुहार लगा रहा था । उसी से कह रहा था कि वो उसे बचाए ।


शिविका " मेरी बहन ने भी मिन्नतें की होंगी... पर किसी ने उसपे दया नही दिखाई... उस वक्त तो सिर्फ अपनी हवस नजर आ रही थी ना... वो मर भी गई फिर भी कोई गम नही था " ।


पारस " तुम्हे..... तुम्हे इंसाफ चाहिए तो कानून के ज़रिये लो ना... तुम क्यों गुंडी बन रही हो.. । अरे कोई और कुछ गलत करेगा तो तुम भी करोगी क्या.. । ये लोगों को बीच में क्यों ला रही हो... । ये मामला तो हमारा और तुम्हारा है ना... । " ।


शिविका हल्का सा हंस दी ।


पारस को समझ नही आया कि अब क्या बोलकर वो शिविका को convience करे.. । शिविका को मनाने के अलावा उसके पास बचने का और कोई रास्ता नहीं था... क्योंकि वो समझ गया था कि इतने दूर तक उसके बाप की पहुंच नही है । अगर हिमाचल होता तो शायद उसका बाप पहुंच भी जाता लेकिन इतनी दूर तक उसके बाप की सोच में उन्हें नही ढूंढ सकती ।


पारस " कानून इंसाफ देगा शिविका... । इन लोगों से बचा लो.. । दया करो शिविका... लड़कियां तो माफ करना जानती हैं.... । मेरी मां मेरा इंतजार कर रही होगी... । उनसे उनका बेटा मत छीनो... " ।


शिविका " मेरी दी का भी मेरी मां , भाई , बाप सब इंतजार कर रहे थे । मेरी मम्मा , पापा और भाई ने भी मिन्नतें तो की होंगी... कि उन्हें छोड़ दिया जाए... । पर बेरहमी से तुम ही लोगों ने उन्हें मार डाला... । एक 15 साल के बच्चे पर भी रहम नहीं खाया.. ।



एक परिवार जिसने अपनी बेटी खोई हो वो इंसाफ लेने निकला था... लेकिन इंसाफ मांगने की वजह से पूरा परिवार ही खतम करा दिया गया... । Case करने पर case वापिस ले लेने की धमकियां दी जाने लगी , रास्ते में चलते हुए हमले किए जाने लगे और आखिर में जब धमकियों और हमले से कुछ ना हो सका तो सब को मार दिया..... " ।


पारस ने अपने बगल में खड़े गार्ड को देखा और फिर बोला " शिविका... माफ माफ कर दो हमे.. । इतनी जल्लाद मत बनो.... " ।


पारस ने कहा तो बाकी लड़के भी शिविका से माफी मांगने लगे । शिविका दर्द भरी हंसी हंस दी फिर उसने गार्ड की ओर अपना हाथ बढ़ाया.. ।


वहां खड़े सभी गार्ड शिविका को देखकर हाथ बांधे और सिर नीचे किए खड़े थे ।


शिविका का हाथ बढ़ा देखकर गार्ड ने शिविका को देखा ।


शिविका " हंटर दो... " ।



गार्ड ने हंटर शिविका को पकड़ा दिया ।



शिविका ने हंटर हाथ में कसा और फिर बोली " सुना था कि वक्त हर किसी का आता है.... । अच्छा हो या बुरा लेकिन आता जरूर है... । इतनी संत मैं नहीं हूं कि अपनी पूरी फैमिली को खत्म कर देने वालों को माफी बांटती फिरूँ और ना ही इतनी मूर्ख हूं कि हाथ आए मौके को जाने दूं... । जब तुम लोगों में कोई हमदर्दी कोई रियायत नहीं बरती तो मुझसे किस बात की उम्मीद लगाए हो... " बोलते हुए शिविका ने हंटर को पटका ।



फिर उनकी ओर आगे बढ़ते हुए बोली " अब भगवान को याद करो या मुझे.. । क्योंकि या तो अब तुम्हे भगवान बचा सकते है या मैं.... । पर भगवान बचाएंगे नही क्योंकि पापी को सजा देना उनका सबसे पहला धर्म है... और मैं छोडूंगी नही क्योंकि अपने परिवार के लिए ये मेरा कर्म है... " बोलते हुए शिविका ने उन लोगों पर कोड़े बरसाने शुरू कर दिए ।


पहले से ही चोटिल लड़कों की दर्द भरी चींखें निकलने लगी । शिविका बेतहाशा उन लोगों को मारने लगी । एक एक पल में बसे दर्द का हिसाब आज उसे लेना था ।


वो हर एक दर्द भरी सांस जो उन लोगों ने उस दहशत भरे माहौल में ली थी उन सब का बदला आज इन लड़कों को दर्द भरी सांसों से लेना था ।


कमरे में खड़े गार्ड्स शिविका को उन लड़को को मारते हुए देखते रहे ।


संयम भी दरवाजे पर खड़ा शिविका का रूद्र रूप देखे जा रहा था । भले ही उस पर शिविका जैसा दर्द बीता ना हो लेकिन वो समझ सकता था कि शिविका को कैसा महसूस हो रहा होगा.... ।