YoYo event! in Hindi Travel stories by तेज साहू books and stories PDF | YoYo प्रसंग!

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YoYo प्रसंग!

YoYo प्रसंग! 

"चल मैं निकलत हंव! ते लिख के डार दे! 
नए शहर को अच्छे से समझने के लिए, साथ में लोग पुराने होने चाहिए! कुछ जगहों पर ट्रेन कनेक्शन ऐसा है कि मानो लगे, भाई मंगल और चंद्र पर पहुंचना ज्यादा आसान काम है। बाकी, उनके सतह पर पहुंचने से पहले, धरती पर ही बढ़िया कनेक्टिविटी बना डालो, फिर आगे का सोचेंगे! ये सब सोचना, राजनीतिक विकास की अवधारणा पर ग्रहण लगाने जैसा है, टार हमला का हे!

जैसे-तैसे एक शहर से दूसरी शहर पहुंचा, देर हो गई। बारिश भी बराबर हो रही थी। किसी परिचित को फोन करने से ज्यादा YOYO रूम का सहारा लेना ठीक समझा! ये समझ ही सबसे नासमझ निकली! इसलिए भी डिजिटल से ज्यादा धरती पर रहने और मिलने वाले संगवारी होना जरूरी है। मेरी कोशिश रहती है कि नए शहर में लोग परिचित मिलें तो ज्यादा बेहतर। रुकने के साथ ही शहर के किस्से-कहानी से भी यात्रा रोचक बन जाती हैं।

लेखन के दौरान व्यक्ति निजी जीवन के अनुभव को भी संकेतों के माध्यम से साझा कर रहा होता है। कह भले दे! ये तो बस काल्पनिक है। जैसे रियल टाइम अनुभव लिखूं, तो अभी लोकल ट्रेन से यात्रा कर रहा हूं और बाजू में बैठी सहयात्री कह रही, ‘ये तो सब टेसन (स्टेशन) में रुकत जाही! तोला बेरा लग जाही पहुंचत ले।"

"लौटता हूं! ठहरने का उत्तम व्यवस्था YOYo वाले प्रसंग पर। एक बार लिखा था, *चैटिंग, सेटिंग, डेटिंग... बीप.*  
आगे की बात के लिए आईडी कार्ड चाहिए होगा!

बाकी, रोड और ट्रेन टाइमिंग की स्थिति पर चिंतन किया जाए, तो एक लाइन हमेशा प्रासंगिक नज़र आएगी:  
- साल के साथ सरकार भी बदली, लेकिन हाल नहीं!

ऐसा ही घटना की पुनरावृत्ति हो गई! ऑनलाइन माध्यम से रूम बुक किया और पहुंच गया एक कॉलोनी के अंदर!  
जैसे फिल्टर के आने से डीपी पर मत जाना, वही नियम होटल पर भी लागू हो सकता है।

सोलो ट्रैवल के दौरान मितव्ययी होना सबसे जरूरी कला हो सकता है! बिना लग्जरी थॉट के, हर तरह की परिस्थितियों में अपने को संतुलित रखने का प्रयास ही लंबी और लोक यात्रा को आसान बना देगा।  
बाकी, युगल या समूह के साथ अच्छे जगहों का चुनाव आवश्यक भी होना चाहिए।"

**
"रिवर दर्शन के नाम पर बाजू घर की बालकनी दिख जाएगी! जब यह घटना दूसरी बार प्रासंगिक होते अनुभव किया, तो बस अब इस परिस्थिति को स्वीकार कर, कुछ अच्छा होने का इंतजार किया। बदले में मिला ऑफलाइन जगह पर ऑनलाइन बुकिंग की अस्वीकार्यता वाला अनुभव और बहुत कुछ! इस प्रसंग में शहर और रूम के नाम का सीधा जिक्र तो नहीं किया, लेकिन इतना भी नहीं छिपाया कि लोग समझ न पाएं!

यात्रा के दौरान सभी तरह की परिस्थितियाँ नया अनुभव कराती रहती हैं। चाहे वह गमछा बिछाकर एक स्कूल के बरामदे में रात्रि विश्राम का अनुभव हो, या देश के सबसे बड़े शहर के 5 स्टार होटल में रुकने का अनुभव हो, सबको बस इस भाव से स्वीकार कर लेना चाहिए कि यह भी वक्त बदल जाएगा। फिर जीवन थोड़ा आसान होने लगता है, तभी लोक यात्रा संभव है।

आज एक साथी ने कहा, *आपकी यात्रा खत्म कब होती है!* 
 
इसीलिए कहता भी हूं:  
*जीवन है यात्रा और यात्री हैं हम!

ट्रेन में बैठाकर प्रिय रमताजोगी ने कहा, 'तैं YOYO प्रसंग लिख के डार! चल में निकलत हंव...भैया!

तेज, ४ Oct