It's not the temple bell that's ringing, it's yours in Hindi Human Science by Review wala books and stories PDF | घन्टा मन्दिर का नहीै आपका बज रहा है

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घन्टा मन्दिर का नहीै आपका बज रहा है

कोई मन्दिर मे घण्टा बजाए और देश की समस्याएं को भूल जाए

कोई मन्दिर मे घण्टा बजाए, और देवता से प्रार्थना करे
कि देश की समस्याएं दूर हो जाएं, और शांति और खुशी बरसे
कोई मन्दिर मे घण्टा बजाए, और अपने आप को धार्मिक माने?
भगवान को ऐसा भक्त नहीं चाहिए न

वह जानता है, कि घण्टा बजाने से कुछ नहीं होगा
कि देश की समस्याएं तो वही हैं, जो वह भूलना चाहता है,शातिर
देश को बदलने के लिए, तो वह खुद को बदलना होगा
कि देश को सुधारने के लिए, तो वह खुद को सुधारना होगा

कोई मन्दिर मे घण्टा बजाए, और देश की समस्ययाएँ लोग भुला दें?
ये तो एक भ्रम है, एक आत्म मुग्धता है, एक आत्मघात है
कोई मन्दिर मे घण्टा बजाए, और देश की समस्याएं का डट कर सामना करे
यही एक सत्य है, एक साहस है, एक आत्मनिर्भरता है
```
भगवान को सच्चे भक्त की आवश्यकता होती है, जो केवल बाहरी आडंबरों में नहीं, बल्कि अपने दिल से भक्ति करता हो। मंदिर में घंटा बजाना और देवता से प्रार्थना करना एक धार्मिक क्रिया हो सकती है, लेकिन यह सच्ची भक्ति का प्रतीक नहीं है। सच्ची भक्ति का अर्थ है अपने कर्मों और विचारों में ईमानदारी और समर्पण।

    सच्ची भक्ति का अर्थ

सच्ची भक्ति का अर्थ है भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण और विश्वास। यह केवल मंदिर में जाकर पूजा करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे दैनिक जीवन के हर पहलू में झलकनी चाहिए। सच्चा भक्त वह है जो अपने कर्मों से भगवान को प्रसन्न करता है, न कि केवल धार्मिक अनुष्ठानों से।

   बाहरी आडंबर और सच्ची भक्ति

बहुत से लोग मंदिर में जाकर घंटा बजाते हैं और सोचते हैं कि उन्होंने अपनी धार्मिक जिम्मेदारी पूरी कर ली। लेकिन भगवान को ऐसे भक्त नहीं चाहिए जो केवल दिखावे के लिए पूजा करते हैं। भगवान को ऐसे भक्त चाहिए जो अपने दिल से, अपने कर्मों से, और अपने विचारों से उनकी भक्ति करते हैं। 

    कर्म और भक्ति

भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद गीता में कहा है कि कर्म ही भक्ति का सबसे बड़ा रूप है। अगर हम अपने कर्मों को ईमानदारी और समर्पण के साथ करते हैं, तो वही सच्ची भक्ति है। केवल मंदिर में जाकर पूजा करने से भगवान प्रसन्न नहीं होते, बल्कि हमें अपने कर्मों से यह साबित करना होता है कि हम सच्चे भक्त हैं।

  समाज के प्रति जिम्मेदारी

सच्चा भक्त वह है जो समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझता है और उन्हें निभाता है। अगर हम समाज की समस्याओं को दूर करने के लिए अपने स्तर पर प्रयास करते हैं, तो वही सच्ची भक्ति है। भगवान को ऐसे भक्त चाहिए जो समाज की भलाई के लिए काम करें, न कि केवल अपने स्वार्थ के लिए।

    निष्कर्ष

भगवान को सच्चे भक्त की आवश्यकता होती है, जो केवल बाहरी आडंबरों में नहीं, बल्कि अपने दिल से भक्ति करता हो। मंदिर में घंटा बजाना और देवता से प्रार्थना करना एक धार्मिक क्रिया हो सकती है, लेकिन यह सच्ची भक्ति का प्रतीक नहीं है। सच्ची भक्ति का अर्थ है अपने कर्मों और विचारों में ईमानदारी और समर्पण। भगवान को ऐसे भक्त चाहिए जो अपने दिल से, अपने कर्मों से, और अपने विचारों से उनकी भक्ति करते हैं। 

इसलिए, हमें यह समझना चाहिए कि सच्ची भक्ति केवल मंदिर में जाकर पूजा करने तक सीमित नहीं है। हमें अपने कर्मों और विचारों में भी भगवान के प्रति समर्पण और ईमानदारी दिखानी चाहिए। यही सच्ची भक्ति है और यही भगवान को चाहिए।