Dwaraavati - 53 in Hindi Classic Stories by Vrajesh Shashikant Dave books and stories PDF | द्वारावती - 53

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द्वारावती - 53

53


गुल के घर पर कुछ मज़हबी लोग आए हुए थे। सभी के मुख पर कड़ी रेखाएँ थी। मां, पिता तथा गुल कक्ष के एक कोने में खड़े थे। मां के मुख पर भीती थी। पिता शांत थे, स्वस्थ थे। गुल सभी के मुख देखकर स्थिति को समझने का प्रयास कर रही थी। 
कुछ समय के मौन के पश्चात आगंतुकों में से एक ने कहा, “गुल को मदरसा से निकाल दिया गया है। अब वह मदरसा में पढ़ाई नहीं कर सकती।” उसने एक पत्र गुल के पिता को दिया। उसने उसे पढ़े बिना ही अपने पास रख लिया। 
“ऐसा क्यों किया?” भय के साथ मां ने पूछा।
“गुल काफिरों के साथ रहकर काफिर होती जा रही है।”
“ऐसा क्या कर दिया हमारी गुल ने?”
“वह इतनी बड़ी हो चुकी है कि उसे अब हिजाब पहनना पड़ेगा। काफिरों से मिलना बंद करना पड़ेगा। किंतु आपकी बेटी यह दोनों बातों को नहीं मान रही है। वह काफिर हो गई है। काफिरों का मदरसा में कोई स्थान नहीं होता।”
मां ने पिता की तरफ़ चिंतित दृष्टि से देखा।उसके मुख पर चिंता के कोई भाव नहीं थे। 
उस व्यक्ति ने आगे कहा -
“अभी तो मदरसा से निकाली जा रही है। आगे यदि गुल काफिरों के ज्ञान को पढ़ती रही तो …।”
“मदरसा में नहीं पढ़ सकती तो क्या हुआ? वह गुरुकुल में ….।”
“यदि ऐसा हुआ तो कुछ भी हो सकता है।” कहते हुए वह उठा। बाक़ी सभी भी उठकर चलने लगे। 
जाते जाते उसने जो कहा ‘कुछ भी’ का अर्थ गुल के पिता भली भाँति जानते थे, समजते भी थे। किंतु गुल की मां ने पूछ लिया, “यह ‘कुछ भी’ का क्या अर्थ होता है?”
“अर्थात् हमें जाना होगा।” 
“क्या हमें हमारे मज़हब से निकाल देंगें? तो हम कहाँ जाएँगे?”
“इस्लाम में कभी किसी को मज़हब से निकाला नहीं जाता।” 
“तो?” 
“जीवन से निकाल दिया जाता है।”
“यह कहकर पिता घर से बाहर चले गए। मां सम्भावित मृत्यु के विषय में विचार करने लगी। ऐसी स्थिति में वह स्वयं को कैसे सम्भालेगी उसकी योजना बनाने लगी। उसने योजना बना ली। गुल मां के बदलते भावों को देखती हुई बाहर चली गई। बाहर पिताजी अकेले ही थे, टोली जा चुकी थी। 
“मदरसा की परम्परागत शिक्षा में वैसे भी मेरी रुचि नहीं थी। अच्छा हुआ कि वह स्वयं छूट गई।”
“तुम्हारी रुचि क़िस में है, गुल?”
“मैं शास्त्रों का अध्ययन करना चाहती हूँ। क्या आप मेरे लिए गुरुकुल में प्रवेश ….?”
“मैं प्रयास करूँगा।” गुल पिताजी से लिपट गई। 
********* ** 
“गुल, तुम गुरुकुल में पढ़ाई कर सकती हो। तुम जब चाहो, जो चाहो पढ़ सकती हो। गुरुकुल के पुस्तकालय से अध्ययन हेतु किसी भी पुस्तक ले सकती हो। किसी भी शिक्षक से ज्ञान प्राप्त कर सकती हो। प्रधान आचार्य से भी प्रश्न पूछ सकती हो।” गुल के पिता ने घर आते ही कहा। 
“तो मैं अभी चलती हूँ गुरुकुल।”
“रुको तो। अभी रात्रि ढल चुकी है।प्रातः काल चले जाना।”
गुल रुक गई। रात्रिभर प्रसन्नता से प्रातः काल की प्रतीक्षा करने लगी।घर के किसी कोने में मां यह सुनकर विषाद में डूब गई। 
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