Narbhakshi Aadmi - 3 in Hindi Adventure Stories by Abhishek Chaturvedi books and stories PDF | नरभक्षी आदमी - भाग 3

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नरभक्षी आदमी - भाग 3

अन्तिम संघर्ष पर.........

समय बीतता गया, और काली वन में एक अस्थायी शांति लौट आई थी। लेकिन गाँव के बुजुर्ग जानते थे कि यह शांति धोखा थी। महादेव की बहादुरी ने नरभक्षी आदमी की शक्ति को कमजोर किया था, लेकिन उसे पूरी तरह खत्म नहीं किया था। वे जानते थे कि जब तक उस आत्मा का पूरी तरह से नाश नहीं हो जाता, काली वन के गाँव पर खतरा मंडराता रहेगा।

कुछ सालों बाद, महादेव की बेटी, देवी, जो बचपन से ही तंत्र-मंत्र और जादू-टोना सीख रही थी, अब बड़ी हो गई थी। उसने अपने पिता की मौत के बाद उनकी किताबों और सीखों को ध्यान से पढ़ा और समझा। देवी को यह विश्वास हो गया था कि नरभक्षी आत्मा का नाश करने का सही तरीका उसके पास था।

देवी ने गाँव के बुजुर्गों और मुखिया को इकट्ठा किया और उन्हें अपनी योजना के बारे में बताया। उसने समझाया कि उस आत्मा को हमेशा के लिए खत्म करने के लिए एक विशेष यज्ञ करना होगा, जिसे जंगल के उसी स्थान पर करना होगा जहाँ गुफा थी। यह यज्ञ बहुत कठिन और खतरनाक था, लेकिन देवी के अलावा कोई और इसे कर पाने की क्षमता नहीं रखता था।

अमावस्या की रात एक बार फिर नजदीक आ रही थी। देवी ने गाँव के कुछ साहसी लोगों को अपने साथ ले लिया और उन्होंने यज्ञ की तैयारी शुरू कर दी। यज्ञ के लिए विशेष सामग्री की जरूरत थी, जिसे देवी ने जंगल के भीतर ही इकट्ठा किया। वह जानती थी कि यह काम बेहद कठिन और जानलेवा हो सकता है, लेकिन उसके मन में कोई डर नहीं था।

अमावस्या की रात आई, और देवी ने यज्ञ की शुरुआत की। जैसे ही उसने मंत्रों का उच्चारण शुरू किया, जंगल की हवा भारी हो गई और अजीब सी आवाजें फिर से गूंजने लगीं। यह वही आवाजें थीं, जो गुफा में सुनाई देती थीं—जिनसे अर्जुन और महादेव का सामना हुआ था।

देवी ने ध्यान नहीं भटकाया और यज्ञ को जारी रखा। तभी, वह नरभक्षी आत्मा फिर से प्रकट हुई। इस बार, उसकी शक्ल और भी भयानक थी। उसकी आँखों में और भी ज्यादा पागलपन था और उसकी उपस्थिति ने हवा में जहर घोल दिया। देवी ने यज्ञ को रोकने की बजाय और तेज कर दिया, लेकिन आत्मा ने उस पर हमला करने की कोशिश की। 

देवी ने अपने पिता के द्वारा सिखाए गए सभी तंत्रों और मंत्रों का इस्तेमाल किया, लेकिन वह आत्मा बहुत शक्तिशाली थी। वह देवी के चारों ओर एक घातक ऊर्जा का घेरा बनाने लगी, जिससे वह यज्ञ को खत्म करने की कोशिश कर रही थी। 

लेकिन देवी ने हार मानने से इनकार कर दिया। उसने अपने मंत्रों की गति बढ़ाई और आखिरी उपाय के तौर पर अपने जीवन का बलिदान देने का फैसला किया। उसने यज्ञ की अग्नि में अपनी अंतिम सांस लेते हुए अपनी आत्मा का बलिदान कर दिया। जैसे ही उसने यह किया, यज्ञ की अग्नि अचानक से प्रचंड हो गई और उसकी लपटें आसमान तक उठ गईं। 

नरभक्षी आत्मा, जिसने सदियों तक काली वन में आतंक मचाया था, अचानक से चीखने लगी। वह आग की लपटों में घिर गई और उसके पागलपन से भरे चेहरे पर दर्द की लहर दौड़ गई। अंततः, वह आत्मा जलकर राख में बदल गई, और एक तेज आवाज के साथ जंगल में सब कुछ शांत हो गया। 

जंगल के लोग, जो यज्ञ के स्थल से दूर खड़े थे, उस प्रचंड अग्नि और आत्मा की चीखें सुनकर सहम गए थे। जब अग्नि बुझी, तो वहाँ सिर्फ राख और शांति बची थी। देवी ने अपने जीवन का बलिदान देकर काली वन और गाँव को उस भयानक श्राप से मुक्त कर दिया था।

उस रात के बाद, काली वन में कभी भी वह भयानक आवाजें नहीं सुनाई दीं। गाँव के लोग धीरे-धीरे सामान्य जीवन में लौट आए। लेकिन देवी की बहादुरी और त्याग की कहानी पीढ़ियों तक याद की जाती रही। 

कहते हैं, देवी की आत्मा काली वन के चारों ओर एक सुरक्षा कवच के रूप में हमेशा के लिए बसी रही, ताकि उस जंगल में फिर कभी कोई बुरी आत्मा या श्रापित शक्ति पनप न सके। 

और इस तरह, काली वन एक बार फिर से शांतिपूर्ण स्थान बन गया, जहाँ अब किसी भी अंधेरे शक्ति का कोई वजूद नहीं था। देवी ने अपने बलिदान से उस नरभक्षी आदमी और उसकी श्रापित आत्मा का अंत कर दिया था, और गाँववालों के लिए वह हमेशा एक देवी के रूप में पूजी जाने लगी।



काली वन की नई शुरुआत.....

देवी के बलिदान और नरभक्षी आत्मा के नाश के बाद, काली वन में एक नई शुरुआत हुई। वर्षों से जो भय और आतंक गाँव पर छाया हुआ था, वह अब धीरे-धीरे समाप्त हो रहा था। देवी का त्याग और साहस गाँववालों के दिलों में एक नई उम्मीद जगाने लगा। 

गाँव के लोग अब पहले से ज्यादा एकजुट हो गए थे। उन्होंने देवी के सम्मान में एक मंदिर का निर्माण किया, जो काली वन के किनारे पर स्थित था। इस मंदिर को "देवी काली" के नाम से जाना गया और वहाँ रोज़ पूजा-अर्चना होने लगी। गाँव के हर व्यक्ति के लिए वह मंदिर एक पवित्र स्थान बन गया, जहाँ वे अपनी चिंताओं को छोड़कर शांति और सुरक्षा का अनुभव करते थे।

काली वन, जो पहले केवल डर और मृत्यु का प्रतीक था, अब एक पवित्र और रहस्यमय स्थान के रूप में देखा जाने लगा। लोग धीरे-धीरे जंगल के अंदर जाने लगे, जहाँ वे देवी के आशीर्वाद से सुरक्षित महसूस करते थे। जंगल में पेड़-पौधे और जानवर फिर से जीवंत हो गए थे, और वह जगह अब हरियाली और समृद्धि से भर गई थी।

लेकिन हर कहानी के अंत में कुछ अधूरा रह जाता है। एक दिन, जब गाँव में उत्सव मनाया जा रहा था, एक अजनबी गाँव में आया। वह बूढ़ा आदमी था, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जो उसकी उम्र से मेल नहीं खाती थी। वह सीधा देवी के मंदिर की ओर बढ़ा, और वहाँ पहुँचकर उसने धीरे से मंदिर के दरवाजे को छुआ।

गाँव के लोग उसके पास आए और उससे उसका नाम और मकसद पूछा। बूढ़े ने एक लंबी सांस ली और कहा, "मैं देवी का रक्षक हूँ। जब देवी ने उस श्रापित आत्मा का नाश किया था, तो उन्होंने मुझे इस गाँव और काली वन की रक्षा का दायित्व सौंपा था।"

लोगों को यह सुनकर आश्चर्य हुआ, लेकिन बूढ़े की आँखों में सच्चाई और दृढ़ता थी। उसने बताया कि हर सौ साल में एक बार, काली वन में एक परीक्षा होती है। अगर गाँव के लोग उस परीक्षा को सफलतापूर्वक पार कर जाते हैं, तो अगले सौ साल तक वहाँ शांति बनी रहती है। 

वह परीक्षा, देवी के द्वारा छोड़ी गई अंतिम चुनौती थी। यह परीक्षा उस श्रापित आत्मा से जुड़ी नहीं थी, बल्कि यह गाँव के लोगों की एकजुटता, साहस, और श्रद्धा की परीक्षा थी। अगर गाँववाले अपने साहस और विश्वास को बनाए रखते, तो काली वन में फिर कभी कोई बुरी शक्ति जन्म नहीं लेती।

इस बात ने गाँववालों के दिलों में एक नई जिम्मेदारी का भाव भर दिया। उन्होंने यह तय किया कि वे हमेशा एकजुट रहेंगे और देवी के मंदिर की सेवा करेंगे। 

समय बीता, और सौ साल की अवधि भी धीरे-धीरे खत्म होने लगी। गाँव के नए पीढ़ी के लोग अब उस परीक्षा की तैयारी कर रहे थे, जो उनके पूर्वजों द्वारा दिए गए बलिदानों और कहानियों से प्रेरित थी। 

और फिर वह दिन आया, जब काली वन में हवा अचानक से शांत हो गई। यह वह संकेत था, जो परीक्षा की शुरुआत का प्रतीक था। गाँव के लोग देवी के मंदिर में इकट्ठा हुए, और उन्होंने एक साथ पूजा की, अपने साहस और विश्वास को संजोते हुए।

रात होते ही, गाँव के ऊपर अजीब सा अंधकार छा गया। यह वह समय था, जब उनकी परीक्षा शुरू होनी थी। बूढ़े रक्षक ने गाँववालों को याद दिलाया कि यह परीक्षा उनके भीतर के भय को परखने की है। अगर वे अपने भीतर के डर पर विजय पा लेंगे, तो यह परीक्षा वे जीत जाएंगे।

रात भर, गाँव के लोग मंदिर के पास एकत्रित रहे, हाथों में हाथ डाले, एक-दूसरे को साहस बंधाते हुए। अंधकार गहराता गया, लेकिन गाँववालों का साहस और श्रद्धा उतनी ही बढ़ती गई। अचानक, अंधकार टूटने लगा और एक तेज रोशनी ने पूरे गाँव को घेर लिया। यह रोशनी देवी की कृपा थी, जिसने गाँववालों की एकता और साहस को स्वीकार किया।

अंधकार छट गया, और गाँववालों ने महसूस किया कि उन्होंने वह परीक्षा सफलतापूर्वक पार कर ली थी। काली वन अब हमेशा के लिए सुरक्षित हो गया था, और वहाँ कोई बुरी शक्ति कभी प्रवेश नहीं कर सकती थी। 

गाँव के लोग अब देवी के मंदिर में रोज़ आकर प्रार्थना करते थे और अपने पूर्वजों की कहानियों को याद करते थे। काली वन, जो कभी एक डरावना स्थान था, अब गाँववालों के लिए एक पवित्र स्थल बन चुका था। 

कहते हैं, आज भी काली वन में देवी की उपस्थिति महसूस की जा सकती है। वह वन अब शांति, सुरक्षा, और समृद्धि का प्रतीक बन चुका था, जहाँ प्रकृति और इंसान साथ-साथ रहते थे। देवी का बलिदान और गाँववालों की एकता ने काली वन को एक नई पहचान दी—एक ऐसा स्थान, जहाँ सिर्फ अच्छाई का वास था।



धीरे-धीरे सब ठीक करने की कोशिश कर रही थी और अचानक अगले भाग में देखिएक्या है वह अदृश्य....
अदृश्य संकट का उदय....