Bahurupiya Bakri - 1 in Hindi Horror Stories by Tarkeshwer Kumar books and stories PDF | बहरूपिया बकरी - 1

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बहरूपिया बकरी - 1

जिंदगी कभी कभी अच्छी तो कभी ज़ालिम हो जाती हैं। कभी अच्छे तो कभी बुरे पल दिखाती हैं।जो लिखा हैं वही हो रहा हैं, वही हुआ था और वही होगा।

हर गांव और शहर अपने सीने में अनसुनी अनकही हजारों कहानियां दफ़न कर के रखता हैं जिसका पता तब चलता हैं जब कोई आपबीती हो जाएं और जब किसी पर कोई मुसीबत आ जाए।

ये कहानी हैं ऐसे ही एक शहर का जो दिन में जमाने भर की खुशियां बाटता नजर आ रहा हैं और वही रात के अंधेरे में कई अनजान कहानियां समेटे हुए हैं।

एक रात एक आदमी रात की नौकरी कर के अपनी छोटी सी कंपनी से निकला। सर पर इतनी जिम्मेदारियां और चेहरे पर थकान के भाव लिए अपने घर की और निकला।

रास्ते में एक पुलिस चौकी पड़ता था जहां एक चाय की छोटी सी टपरी थी जहां रुक के वो चाय बनवाता हैं और चुस्की लेके चाय पीता हैं। चाय वाला पूछता हैं भाई साब इतनी रात कहां से आ रहें हैं। आज तक तो नहीं देखा कभी आपको।

वो आदमी बोला के आज जिस रास्ते से में जाता था उस रास्ते पर सड़क बनाने का काम चल रहा हैं इसलिए मैं घूम के जा रहा हूं।

चाय वाला बोला आपको पता तो है ना के आगे शमशान पड़ता हैं जहां से अकेले कोई नहीं गुजरता रात को। कम से कम दो लोग होने चाहिए।

आदमी बोला अरे भैया आप किस जमाने में जी रहें हैं।

ऐसा क्या होगा ,अकेले जाओ या साथ मिल के।

जेब से पैसा निकालते हुए वो आदमी बोलता हैं और साइकिल पर बैठता हैं तभी चाय वाला बोलता हैं भैया खुल्ले पैसे नहीं हैं आप एक काम करो ये माचिस अपने जेब में रख लो।

आदमी मुस्कुरा के बोलता हैं भैया कुछ होना होगा तो माचिस बचा लेगा क्या।
वो साइकिल चला के आगे बढ़ जाता हैं।आगे सुनसान अंधेरा हैं और सड़क के दोनो और बड़े बड़े पेड़ और आगे दाईं और एक शमशान हैं।

आदमी शमशान के पास पहुंचता हैं तो देखता हैं की एक बकरी का बच्चा शमशान के आगे बैठा हैं।

वो सोचता हैं के इतने रात ये कहां से आया होगा जरूर कहीं से भटक के आ गया होगा। इसे में घर ले चलता हूं।

बकरी को पकड़ने के लिए साइकिल रोकता हैं पर बकरी का बच्चा दूर भाग जाता हैं।

आदमी सोचता हैं छोड़ो चलता हूं यहां से। वो जैसे ही साइकिल चलाता हैं बकरी का बच्चा दौड़ के आके साइकिल पर पीछे कूद के बैठ जाता हैं।

और में में में करने लगता हैं।

आदमी साइकिल चलाने लगता हैं और सोचता हैं चलो अच्छा हुआ खुद ही आके बैठ गया।

वो साइकिल चलाता हैं तो धीरे धीरे साइकिल भारी होती जाती हैं। उस आदमी को साइकिल चलाने में मुश्किल हो रहीं हैं। साइकिल का वजन एकदम से इतना कैसे बढ़ गया ये सोचता हैं।

साइकिल भारी होती चली जा रही हैं।

वो आनन फानन में साइकिल रोकता हैं और घबराते हुए पीछे मुड़ता हैं और देखता हैं की........................

आगे की कहानी अगले भाग में।

कहानी अच्छी लगी हो तो लाईक और कमेंट करें।

यह कहानी  काल्पनिक हैं और  इसका किसी भी व्यक्ति के जीवन या घटना से कोई संबंध नहीं हैं। यदि किसी व्यक्ति के जीवन या घटना इसकी समानता होती हैं तो वो मात्र एक संयोग होगा।