Ardhangini - 54 in Hindi Love Stories by रितेश एम. भटनागर... शब्दकार books and stories PDF | अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 54

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 54

शाम को लखनऊ से निकलकर कानपुर पंहुचते पंहुचते रात के करीब आठ बज गये थे, घर के अंदर जाने के बाद जतिन ने सबसे कहा- देर हो चुकी है... सब लोग थके हुये भी हैं तो मै एक काम करता हूं, मै बाहर से खाना ऑर्डर कर देता हूं....

जतिन के ऐसा कहने पर मैत्री धीरे से बोली- मै बना देती हूं ना, मुझे थकान नही हो रही है...

मैत्री की बात सुनकर बबिता ने कहा- नही बेटा आज रहने दो कल से तुम्ही रसोई संभालना मेरे साथ, आज तुम भी आराम करलो...

संस्कारी मैत्री चूंकि बड़ो की बात नही काटती थी इसलिये बबिता की बात सुनकर धीरे से बोली- जी मम्मी जी ठीक है जैसा आप कहें... लेकिन मेरे रहते आप काम करें रसोई के तो ये तो मेरे लिये शर्म की बात है....

मैत्री की बेहद सहज लहजे मे करी गयी इस बात को सुनकर बबिता हंसने लगीं और हंसते हुये बोलीं- बेटा मै बैठ कर भी क्या करूंगी... वैसे भी मेरी आदत है काम करने की, जादा देर बैठने से तो मुझे वैसे ही दिक्कत होने लगती है....

बबिता की बात सुनकर फिर मैत्री ने कुछ नही कहा... वो बस मुस्कुराने लगी और इसके बाद जतिन अपने कमरे मे चला गया... जतिन के कमरे मे जाने के थोड़ी देर बाद मैत्री भी जब अपने कमरे मे गयी तो उसने देखा कि जतिन नहा कर बाथरूम से बाहर आने के बाद शीशे के सामने खड़ा अपने बाल काढ़ रहा है... मैत्री उसके थोड़ा पास गयी और बोली- सुनिये जी.... 
जतिन ने मैत्री की आवाज सुनने के बाद उसकी तरफ देखकर मुस्कुराते हुये कहा- हम्म्... 

मैत्री ने कहा- जी वो एक छोटा सा काम था अगर आप थके ना हों तो... 
जतिन ने कहा- थका तो था... पर नहाने के बाद अब फ्रेश महसूस हो रहा है, तुम बताओ क्या काम था...(चुटकी बजाते हुये जतिन ने कहा) मै अभी कर देता हूं.... 

जतिन को ऐसे प्रतिक्रिया करते देख मैत्री हंसने लगी और हंसते हुये बोली- जी वो आप जिस मंदिर मे जाते हैं... वो पास ही है ना...?? 

जतिन ने कहा- हां... मुश्किल से पांच मिनट की दूरी पर है... मंदिर चलना है क्या? 

मैत्री ने कहा- नही जी... वो असल मे  फूल चाहिये थे अलग अलग रंग के तीन चार तरह के.... थोड़े ज्यादा..!! 

जतिन ने कहा- बस इतनी सी बात... मै बस अभी लेकर आया...  
ऐसा बोलकर जतिन मंदिर जाने के लिये अपने कमरे के दरवाजे तक ही पंहुचा था कि वो बाहर जाते जाते रुका और पलट के मैत्री से बोला- एक काम क्यो नही करती तुम, तुम भी फ्रेश हो जाओ... साथ मे चलते हैं, मंदिर मे दर्शन भी कर लेंगे....   

जतिन की बात सुनकर मैत्री थोड़ा खुश होकर मुस्कुराते हुये बोली- सच मे... मै भी चलूं!! 

जतिन ने कहा- हां हां बिल्कुल इसी बहाने थोड़ी वॉक भी हो जायेगी.... 

जतिन की बात सुनकर मैत्री खुश होते हुये बोली- आप बस दस मिनट रुकिये मै अभी तैयार हो कर आयी.... 

जतिन ने कहा- हां ठीक है तुम आ जाओ तब तक मै ड्राइंगरूम मे बैठकर खाना ऑर्डर कर देता हूं... 

इसके बाद मैत्री नहाने चली गयी और जतिन बाहर ड्राइंगरूम मे बैठकर खाना बुक करने लगा... मैत्री दस मिनट बाद जब नहाने के बाद तैयार होकर आयी तो बहुत सुंदर लग रही थी, जतिन ने जब उसे देखा तो बस देखता ही रह गया... मैत्री ने जब देखा कि जतिन उसकी तरफ ही देख रहा है तो वो शर्मा गयी और शर्माते हुये अपने माथे पर पड़े बालो को अपने कान के पीछे समेटते हुये जतिन से बोली- चलिये जी... मै तैयार हूं... 

मैत्री के बोलने पर जतिन जैसे चौंक सा गया बिल्कुल ऐसे जैसे मैत्री को देखकर उसकी सुंदरता मे खो सा गया हो... चौंकते हुये जतिन ने कहा - ह.. हां.. हां चलो चलो चलते हैं.... 

इसके बाद बबिता और विजय से बोलकर जतिन और मैत्री दोनो पैदल पैदल मंदिर चले गये, मंदिर से दर्शन करके थोड़ी देर बाद घर वापस आकर जतिन और मैत्री ने सबके  साथ बैठकर खाना खाया... चूंकि सब थके हुये थे तो खाना खाने के बाद सब जल्दी ही सो गये.... 

अगले दिन सुबह करीब 6 बजे नहा धोकर बबिता पूजा करने के लिये जब अपने कमरे से बाहर ड्राइंगरूम मे आयीं तो उन्होने कुछ ऐसा जिसे देखकर वो चौंक गयीं और चौंकते हुये अपने पति विजय को आवाज लगाते हुये बोलीं- अरे सुनिये... जल्दी आइये.... 

विजय ने बबिता की आवाज सुनकर अंदर कमरे से ही कहा- अरे क्या हुआ सुबह सुबह क्यो चिल्ला रही हो.... 

बबिता ने कहा- चिल्ला नही रही हूं... पर देखिये तो सही... 

विजय बाहर ड्राइंगरूम मे आते हुये बबिता के पास आकर बोले- हां क्या हुआ.... ( इसके बाद जब विजय ने ड्राइंगरूम मे पड़ी टेबल की तरफ देखा तो वो भी चौंक गये और चौंकते हुये बोले) अरे वाह... क्या बात है... कितना खूबसूरत लग रहा है ये.... जरूर मैत्री ने बनाया होगा... 

इतना कहकर विजय ने मैत्री को बड़े प्यार से आवाज लगाते हुये कहा- मैत्री बेटा... जरा इधर आना... 

अपने ससुर विजय की आवाज सुनकर रसोई मे काम कर रही मैत्री ड्राइंगरूम की तरफ आयी तो विजय ने उसे देखकर कहा- मैत्री बेटा ये कब मे बना लिया तुमने... और कितना खूबसूरत है ये.... 

बबिता ने भी विजय की बात मे हां मे हां मिलाकर खुश होते हुये मैत्री से यही कहा कि "वाकई बहुत खूबसूरत लग रहा है, इसको देख कर आंखो को बहुत सुकून मिल रहा है.." 

असल मे मैत्री कल लखनऊ से अपने साथ जो सीक्रेट सरप्राइज गिफ्ट लेकर आयी थी उस बॉक्स मे पीतल का एक बड़ा सा बहुत खूबसूरत पॉट था... मैत्री ने उसे मेज के बिल्कुल बीच मे रखकर उसमे पानी भरा हुआ था और जो फूल रात मे जतिन के साथ जाकर वो मंदिर से लायी थी उन्हे कैंची से काटकर बड़ी ही खूबसूरत रंगोली बनायी हुयी थी.... जो वाकई आंखो को बहुत सुकून दे रही थी....  

बबिता और विजय वो रंगोली देखकर खुश होते हुये मैत्री की तारीफ कर ही रहे थे... कि तभी मंदिर से घर के मेनगेट से अंदर आने के बाद जतिन ड्राइंगरूम के दरवाजे पर खड़ा होकर बोला- मम्मी ये बाहर दरवाजे पर इतनी प्यारी रंगोली किसने बनायी है.... 

जतिन की बात सुनकर बबिता ने मैत्री की तरफ इशारा करते हुये कहा- मैत्री ने बनायी होगी... और ये देख मेज पर क्या है... 

बबिता के कहने पर जतिन ने जब मेज पर रखे पॉट मे बनी रंगोली को देखा तो खुश होता हुआ सरप्राइज़ सा होकर बोला- अरे वाह... ये तो बहुत ही खूबसूरत लग रही है... 

मैत्री की बनायी दोनो रंगोलियां देखकर जतिन सहित बबिता और विजय बहुत खुश हुये... और अपनी मेहनत को सफल होते देख मैत्री को भी एक अलग ही खुशी मिली.... 

क्रमशः