Graveyard of shame... in Hindi Women Focused by pooja books and stories PDF | शर्मिंदगी की कबरगाह...

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शर्मिंदगी की कबरगाह...

हम औरतें अपने शरीर को कितना जानती हैं?

कुछ साल पुरानी बात है। देश की राजधानी के बड़े मीडिया हाउस में वुमेन हेल्थ पर एक सेमिनार हो रहा था। पूरा हॉल महिलाओं से खचाखच भरा था। वुमेन हेल्थ पर महिलाओं को समझाने और जागरूक करने आई एक महिला डॉक्टर ने सवाल पूछा-

"क्या आपको पता है, Pap Smear क्या है?"

सिर्फ दो हाथ ऊपर उठे।

200 महिलाओं के बीच सिर्फ दो को पता था कि Pap Smear क्या होता है।

मैं कई बार जब महिलाओं से पूछती हूं- "पता है, सर्वाइकल कैंसर क्या होता है। तो 20 साल की लड़की से लेकर 40 साल की महिला तक का पहला जवाब होता है, "गर्दन का दर्द।"

उन महिलाओं को ये तो पता है कि गर्दन और कंधा अकड़ जाए तो उसे सरवाइकल पेन कहते हैं, लेकिन ये नहीं पता कि उनके वजाइना के भीतर उसे गर्भाशय से जोड़ने वाले हिस्से को सर्विक्स कहते हैं। और शरीर का वो हिस्सा अगर कैंसर की चपेट में आ जाए तो उसे सर्वाइकल कैंसर कहते हैं।

ये कहानी बहुत निजी है, लेकिन फिर भी मैं इसे सुनाना चाहती हूं। शायद दोबारा मौका न मिले। मेरी मौसी की डेथ यूटेरस कैंसर के कारण हुई थी। उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 50 साल थी। यूटेरस शरीर का एक ऐसा हिस्सा है, जिसे आसानी से निकालकर अलग किया जा सकता है और शरीर की किसी बुनियादी काम में कोई बाधा नहीं आएगी। यूटेरस कैंसर मौत का कारण तभी बनता है, जब उसका पता लगने में बहुत-बहुत देर हो चुकी हो और कैंसर यूटेरस से चलकर शरीर के बाकी हिस्सों में फैल चुका हो।

यूटेरस कैंसर का पता चलने में भी देर नहीं लगती क्योंकि ये ओवरियन कैंसर की तरह सायलेंट किलर नहीं है। यूटेरस में थोड़ी भी गड़बड़ हुई तो आपके पीरियड्स ऊपर-नीचे हो जाएंगे। जल्दी-जल्दी आएंगे, हैवी ब्लीडिंग होगी।

मेरी मौसी के साथ भी यही हुआ था। उन्हें हर 10-15 दिन पर पीरियड्स होते थे। कई बार तो 20-20 दिनों तक ब्लीडिंग होती रहती। खून रुकता ही नहीं था। एक पीरियड खत्म हुए हफ्ता भर न बीतता कि दोबारा ब्लीडिंग शुरू हो जाती।

शरीर बता रहा था कि उसके भीतर सबकुछ ठीक नहीं है। लेकिन उसे कोई सुन नहीं रहा था। दो साल तक तो मौसी ने किसी को बताया ही नहीं कि उनके साथ क्या हो रहा है।

हमारे घर में पीरियड शुरू होने के साथ लड़कियों को ये ट्रेनिंग दी जाती थी कि ये शर्म की बात है। पीरियड शब्द भी तेज आवाज में नहीं बोलना चाहिए। इसे छिपाना चाहिए। घर के पुरुषों को इस बात की भनक भी नहीं लगनी चाहिए। पीरियड का दाग कपड़े में लग जाए तो इससे बड़ी शर्मिंदगी और पाप दूसरा नहीं।

मुझे आश्चर्य होता है कि मौसी ने ये बात इतने सालों तक अपने पति को भी नहीं बताई। उम्र में उनसे दस साल बड़े और तकरीबन संन्यासी जैसा जीवन जीने वाले पति की पत्नी की देह में कोई रुचि नहीं रह गई थी।

यह खबर फैमिली में सार्वजनिक तब हुई, जब नल से गिरते पानी की तरह शरीर से खून बहने लगा। कोई सैनिटरी पैड, कपड़ा उस फ्लो को कंट्रोल नहीं कर सकता था। निशान इतने जाहिर थे कि सबको पता चलना ही था।

जब तक डॉक्टर के पास पहुंच पाते, कैंसर यूटेरस के आसपास के पूरे हिस्से को अपनी गिरफ्त में ले चुका था। चंद दिन अस्पताल के बिस्तर पर गुजरे और फिर वो दुनिया से रुखसत हो गईं।

फैमिली में लोग कहते हैं, कैंसर ने उनकी जान ले ली।

मुझे लगता है, औरत होने की शर्मिंदगी ने उनकी जान ली।

हाथ, पैर, नाक, कान, मुंह की बीमारी होती तो इतनी शर्म न महसूस होती बताने में। बीमारी वजाइना के भीतर थी। वजाइना शर्म की जगह है। औरतें उसका नाम नहीं लेतीं, उसके बारे में बात नहीं करतीं, उसकी परेशानियां, दुख, बीमारियां नहीं बतातीं और एक दिन मर जाती हैं।

मेरी मौसी ऐसे ही मर गईं।

ये वही वजाइना है, जिससे उनके बच्चे जन्मे। जिससे मेरे घर के, इस संसार के सारे बच्चे, सारे मर्द भी जन्मे। बच्चा जन सकने की जिस ताकत को ईश्वरीय वरदान समझकर उसके लिए मां की पूजा की गई। मां की महानता के आख्यान सुनाए गए। लेकिन उसी वजाइना की सेहत और उसमें हुई बीमारी शर्म का सबब बनी रही।

उस दिन उस कमरे में मौजूद जिन 198 औरतों ने कभी Pap Smear या सर्वाइकल कैंसर का नाम भी नहीं सुना था, वो भी वही हैं। शर्मिंदगी के एहसास की मारी। अज्ञानता की मारी। वजाइना और उससे जुड़ी बीमारियों के बारे में डर और संकोच की मारी। इतनी कि उससे जुड़ी बेसिक इन्फॉर्मेशन तक उनके पास नहीं है।

हाल ही में लोकसभा में पेश हुए अंतरिम बजट में सरकार ने 9 साल से लेकर 14 साल तक की लड़कियों के लिए फ्री सर्वाइकल कैंसर वैक्सीन की घोषणा की है। ये वैक्सीन लड़कियों को सर्वाइकल कैंसर सेबचा सकती है, जिसकी वजह से हर साल 77 हजार से ज्यादा महिलाओं की मौत हो जाती है। भारत में महिलाओं को होने वाले कैंसर में 29 फीसदी केसेज सर्वाइकल कैंसर के हैं। ये दोनों आंकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के हवाले से हैं।

इतनी औरतों को ये बीमारी अपनी चपेट में ले रही है, फिर भी अधिकांश औरतों को यही नहीं पता कि सर्वाइकल कैंसर होता क्या है। जब उन्हें अपनी देह की संरचना नहीं पता होगी, उसका विज्ञान नहीं पता होगा तो सर्वाइकल कैंसर की वैक्सीन तक वो कैसे पहुंचेंगी।

सर्वाइकल कैंसर का संबंध सेक्शुअल एक्टिविटी से है। जिस वायरस HPV (ह्यूमन पैपिलोमा वायरस) की वजह से यह कैंसर होता है, वो सेक्शुअली ट्रांसमिट होने वाला वायरस है।

इसकी वैक्सीन 9 से 14 साल की उम्र में लगनी इसलिए जरूरी है क्योंकि एक बार सेक्शुअली एक्टिव होने के बाद यह असर नहीं करती।

आप सोचिए, पैरेंट्स अपनी बेटी को सर्वाइकल कैंसर की वैक्सीन लगवाएं, इसके लिए सबसे पहले तो उन्हें खुद जागरूक होना होगा। इस तथ्य को स्वीकारना होगा कि बड़ी होती बेटी सेक्शुअली एक्टिव हो सकती है और हमारा काम उस पर बंदिशें और लगाम लगाना नहीं, उसे अपनी सुरक्षा के बारे में आगाह करना है।

और ये सब तब तक नहीं हो सकता, जब तक औरत का शरीर और उसका सेक्स करना एक टैबू है। शर्म और डर का सबब है।

और सबसे अंत में सबसे जरूरी बात-

जिस Pap Smear टेस्ट का जिक्र मैंने कहानी की शुरुआत में किया, वो एक सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग टेस्ट है। सर्वाइकल कैंसर जिस वायरस के कारण होता है, वो वायरस सालों साल हमारे वजाइना में बैठा रहता है और कभी अचानक कैंसरस हो जाता है। यह स्क्रीनिंग हमें चेता सकती है, आगाह कर सकती है।बता सकती है कि हमारे शरीर में कहीं ये नामुराद HPV वायरस तो नहीं है। समय रहते पता चल जाए तो इलाज आसान होता है।

30 साल की उम्र के बाद हर महिला को यह टेस्ट हर दो साल में जरूर करवाना चाहिए। मैं भी करवाती हूं।

हम औरतों को अपने शरीर को लेकर शर्मिंदा होना छोड़ देना चाहिए। पहली बार अंतरिक्ष में जाने वाले का नाम भले न पता हो, लेकिन ये जरूर पता होना चाहिए कि हमारे रिप्रोडक्टिव ऑर्गन की संरचना कैसी है। ये कैसे काम करता है। इसे कैसे प्रोटेक्ट किया जाता है। इसे कैसे प्यार किया जाता है। कैसे इसका ख्याल रखा जाता है।

हमारा ये शरीर सिर्फ बच्चे पैदा करने के लिए नहीं है। ये हमारे लिए है। और इसका ख्याल हमसे बेहतर और कौन रख सकता है भला।