सुरेंद्र जी विटनेस बॉक्स मे आकर खड़े हो गए।
"तो बताइए सुरेंद्र जी आपका क्या रिश्ता है निशांत गजेंद्र और अवतार सिंह के साथ?" अक्षत ने पूछा।
"जी अवतार सिंह हमारे पड़ोसी हैं, मतलब हम लोग एक ही गांव के रहने वाले हैं। बाकी गजेंद्र सिंह मेरे बड़े भाई हैं और निशांत मेरा भतीजा यानी कि मेरे भाई का बेटा। हम सब एक ही परिवार हैं।"सुरेंद्र ने कहा..!!
"आप सब एक ही परिवार है पर आपका पूरा परिवार तो अभी भी गांव में रहता है जबकि आप अपने बेटे सौरभ के साथ दिल्ली में आकर रहने लगे हैं..!" अक्षत ने कहा।
" जी वकील साहब पहले मैं भी इन्हीं के साथ गांव में रहता था। पर गांव की पुरानी मान्यताएं और इन लोगों का अमानवीय व्यवहार मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ। इसलिए मैंने इन लोगों का साथ छोड़ दिया। जिस जगह पर लोग आपके मन मुताबिक काम ना करें, जिस जगह पर लोग लड़कियों पर महिलाओं पर और दूसरे परिवारों पर अत्याचार करें, जहां इंसान को इंसान ना समझा जाए और आपकी कोई सुनवाई ना हो ऐसी जगह पर और ऐसे लोगों के साथ रहने का कोई फायदा नहीं है।" सुरेंद्र ने दुखी होकर उन लोगों को देखते हुए कहा।
"आप अदालत को विस्तार से बताएं कि ऐसा क्या हुआ जो आपने इन लोगों का साथ छोड़ दिया और हमेशा के लिए अपने बेटे के साथ दिल्ली शहर में आकर बस गए। जबकि आप बचपन से इस गांव में रहे हैं।" अक्षत ने कहा।
" कोई एक घटना हो तो बताऊँ, उस गांव का माहौल ही दूषित हो चुका है। वहां पर अभी भी पुरानी मान्यताओं के नाम पर अत्याचार किए जाते हैं। गजेंद्र भाई की बेटी नियति को एक लड़के से प्रेम हो गया था। इन लोगों को पता चल गया तो उसकी जान के दुश्मन बन गए। वह लोग भागने की फिराक में थे पर इन लोगों की पकड़ में आ गए और गांव की पंचायत में फैसला किया गया और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। इन्हीं लोगों ने गांव में के पेड़ पर फंदा लगाकर उन दोनों को टांग दिया। मेरी आंखों के सामने मेरी भतीजी की जान गई और साथ ही साथ उसके प्रेमी की। वो दोनों रोये गिड़गिडाए मिन्नते की पर किसी ने नही सुना।उस समय भी इन लोगों के आगे मैंने हाथ जोड़े और उन लोगों की जिंदगी की भीख मांगी पर किसी का दिल नहीं पसीजा और मार दीया दोनों को। उस घटना को जैसे तैसे में बर्दाश्त कर गया था पर फिर अवतार सिंह की बेटी नेहा के साथ मेरे बड़े भाई गजेंद्र के बेटे निशांत का रिश्ता तय हुआ। इन लोगों ने नेहा को बिना बताए गांव बुलाया और धोखे से उसकी शादी करनी चाही।पर नेहा किसी और को चाहती थी और इस शादी के खिलाफ थी।" सुरेंद्र बोले और गजेंद्र और अवतार को देखा
"यहां पर भी मैंने गजेंद्र भाई साहब से कहा था कि यह मैच नहीं है..!! आपको सोच समझकर रिश्ता करना चाहिए। पर वही गांव की पुरानी सोच और मान्यता जहां पर लड़के की योग्यता और पढ़ाई लिखाई से ज्यादा उसकी पैतृक संपत्ति को जरुरी माना जाता है। तो इन लोगों ने मेरी नहीं सुनी और नतीजा वही हुआ। नेहा को यह विवाह स्वीकार नहीं था और शायद उसने अपने पिता से कहा भी होगा पर अवतार ने भी उनकी बात नहीं मानी और इसलिए मजबूर होकर नेहा घर से भाग गई..!!" सुरेंद्र ने कहा और नेहा को देखा।
" मानता हूँ नेहा ने एक गलती की पर जज साहब जैसा इन लोगो ने कहा नेहा चरित्र हीन नही है। बहुत ही होनहार और काबिल लड़की है और उसे डॉक्टर बनने और एम बी बी एस करने के लिए मुंबई भेजा था न कि उसकी गलत हरकतों के कारण..! " सुरेंद्र बोले तो नेहा के आँसू बह निकले..!!
सांझ भी भावुक हो गई पर फिर तुरन्त सम्भल गई और चेहरे पर कठोरता आ गई।
" नेहा के गाँव से जाने के बाद क्या क्या हुआ सुरेंद्र जी अदालत को बताइये..!" अक्षत ने कहा तो सुरेंद्र ने सामने बैठे सौरभ को देखा।
सौरभ ने हिम्मत देते हुए पलकें झपकाई तो सुरेंद्र ने जज साहब की तरफ देखा।
" जज साहब नेहा के जाने के बाद निशांत और गजेंद्र भैया बहुत नाराज हो उठे और इन्होंने तुरंत पंचायत बुलाई।
मैंने उन्हे रोकने की बहुत कोशिश की पर उन्हे ये अपनी बेइज्जती लगी। और सांझ भी उस समय अवतार के घर में थी तो निशांत ने उसका फोन छीन लिया।" सुरेंद्र बोले तो अक्षत ने पीछे बैठी सांझ को देखा जिसकी गर्दन झुकी हुई थी।
" फिर क्या हुआ?" अक्षत ने गहरी सांस लेकर कहा।
"पंचायत में कई बातें हुई और फिर निर्णय लिया गया कि इज्जत के बदले इज्जत। और निशांत ने भावना भाभी को गाँव मे निर्वस्त्र घुमाने की मांग की।" सुरेंद्र जैसे ही बोले अदालत मे एकदम शांति पसर गई।
अक्षत के की आँखे नम हो गई तो वही नेहा रो पड़ी और सांझ की आँखे भी बहने लगी तभी उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा।
सांझ ने पलट के देखा तो अबीर उसके पास बैठे थे।
अबीर ने उसका सिर कन्धे से टिका लिया और अपने हाथो मे उसके ठंडे होते हाथ थाम लिए।
अबीर के आने से अक्षत को भी सांझ की टेंशन कम हुई और उसने सुरेंद्र की तरफ देखा।
" फिर क्या भावना जी को ये सजा दी गई..?" अक्षत ने पूछा।
" नही..!! क्योंकि उसके बदले अवतार ने अपने भाई की पूरी संपत्ति और उनकी बेटी सांझ को दांव पर लगा दिया। निशांत को अविनाश की पूरी प्रॉपर्टी दी और उनकी बेटी सांझ को भि उसके हाथों बेच दिया। बाकायदा पेपर साइन हुए और फिर अवतार सांझ को बेहोशी की हालत मे निशांत को सौंप गांव छोड़ चले गए..!"
जज साहब ने अपना चश्मा उतारा और टेबल पर रखा और गहरी सांस ली।
" अलग किस्म का केस है ये और अगर आरोप साबित होते है तो शायद निर्णय भी ऐतिहासिक होगा। अगली तारीख तीन दिन बाद की।" जज बोले और उठ खड़े हुए।
सभी आरोपियों को पुलिस वापस ले गई और अक्षत तुरंत वहाँ मौजूद अपने साथी वकील के कैबिन की तरफ भागा जहाँ अबीर सांझ को लेकर गए थे।
क्रमश:
डॉ. शैलजा श्रीवास्तव