Sathiya - 115 in Hindi Love Stories by डॉ. शैलजा श्रीवास्तव books and stories PDF | साथिया - 115

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साथिया - 115

अक्षत ने उसे वापस बिस्तर पर लिटाया और उसके माथे को चूम जैसे ही दूर जाने को हुआ सांझ ने उसका हाथ पकड़ लिया। 

अक्षत  ने उसकी आंखों में देखा। 

"प्लीज  जज साहब  मेरे पास ही रहिए ना.!! दूर मत जाइए। बहुत डर लग रहा है मुझे।  पता नहीं अब और क्या होने वाला है..?? इतना सब कुछ हुआ आपसे दूर होते ही। सब कुछ बिखर गया। सब कुछ बर्बाद हो गया। मैं अब आपसे दूर नहीं होना चाहती। प्लीज मुझे खुद से दूर मत कीजिएगा जज साहब.!!" सांझ बार-बार इमोशनल हो रही थी। 

"बस  दो  मिनट वॉशरूम से आ रहा हूं और तुम अगर  कहोगी भी न  तब भी तुमसे दूर नहीं जाऊंगा। कभी भी नहीं नहीं..!! हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा तुम्हारे पास रहूंगा और तुम्हें अपने पास रखूंगा। अब  किसी को भी मौका नहीं दूंगा मैं तुम्हें हर्ट करने का।" अक्षत ने उसके चेहरे से हाथ  लगाकर कहा और वॉशरूम चला गया। 


सांझ बस  एकटक   छत की तरफ देख रही थी। आंखों के आगे वह सारे मंजर आ रहे थे जो कि उस समय उस पर बीते थे और आंसू फिर से निकलने शुरू हो गए। 

थोड़ी देर में अक्षत जब आया तो देखा कि सांझ  सिर्फ छत को देख रही है और लगातार  रोये जा रही है।

वो उसके पास लेट गया  और उसे अपने सीने से लगा लिया। 

"कहा था ना की दुखी नहीं होना है..!! जो बीत गया उसे हम नहीं बदल सकते  सांझ  पर उसे याद कर करके हम दुखी भी तो नहीं रह सकते ना..?? सब चीजों को  भूलाकर आगे बढ़ना होगा ना..??नॉर्मल होना होगा हमें..!!" 

"कैसे भूल जाऊं  जज साहब..!! नहीं भूल  रहा। इससे तो अच्छा मैं तभी थी जब मेरी याददाश्त चली गई थी। कम से कम यह सब बातें तो याद नहीं थी। अब जब याद आया है तो वो  दर्द फिर से महसूस हो रहा है  जो मैंने उस समय बर्दाश्त किया। 

मुझे बचाया ही क्यों इन लोगों ने? मर जाने देते ना तो कम से कम यह तकलीफ दोबारा तो महसूस नहीं होती ..?? तभी तो जान देने कुंदी  थी नदी में।" सांझ ने कहा  तो अक्षत ने उसे अपने और करीब कर लिया। 

"खबरदार जो दोबारा से मरने की बात कही और अगर कभी  सोचा भी तो  पहले मुझे मार देना फिर सोचना। तुम्हें नहीं पता है कि इन दो सालों में तुम्हारे बिना कैसे जिया हूं मैं..?? मैं मानता हूं तुमने बहुत तकलीफ सही है साँझ  ऐसा नहीं होना चाहिए था। पर तुम्हारे बिना मैं जी नहीं सकता और इंसान को ऐसा कुछ  करने के बारे में नहीं सोचना चाहिए। जो लोग उसके साथ हैं उनके साथ जीने के बारे में सोचना चाहिए। तुम्हारे दिमाग में यह नेगेटिव थॉट्स क्यों आ रहे हैं  सांझ? तुम तो ऐसा कभी नहीं सोचती थी। तुम तो जिंदगी के हर पल को जीती थी और अब तुम इस तरीके का क्यों सोच रही हो..?? और  यह तो सोचो कि मेरा क्या होगा तुम्हारे बिना..!!"

"जानती हूं  जज साहब यह सब गलत सोच रही हूं। पर आप आप कल्पना भी नहीं कर सकते क्योंकि आपको कुछ भी नहीं पता है कि क्या-क्या बीता है मेरे ऊपर..!! कितना कुछ हुआ है जज साहब कोई नहीं जानता सिवाय मेरे।" 


" बहुत कुछ मैं जानता हूं और  जो थोड़ा बहुत नहीं जानता वह तुम मुझे बताना और नहीं बताना चाहो तब भी कोई बात नहीं है। और तुम बस सब कुछ भूल कर सिर्फ और सिर्फ हमारे बारे में सोचो। हमारी फैमिली के बारे में सोचो। तुम्हारा मम्मी पापा और शालू के बारे में सोचो। बाकी कुछ लोग अगर जिंदगी में खराब आते हैं तो इतने सारे लोग अच्छे भी तो है ना..?? कुछ कड़वी यादों  को भूलाकर हम आगे बढ़ सकते हैं ना सांझ  क्योंकि हमारे पास कुछ पुरानी खूबसूरत यादें है और कुछ यादें हम आगे बनाएंगे।" अक्षत ने कहा तो सांझ ने भरी आँखों से उसे देखा।

"याद है तुम्हें जब हम लोगों ने कोर्ट मैरिज की थी तुम कितनी खुश थी..!!" अक्षत ने उसके  गालों  को हल्का सा  रब करके  कहा तो सांझ  भरी आंखों से उसकी तरफ देख मुस्करा उठी  और उसके सीने से लिपट गई। 

"आपके साथ बिताया हर एक लम्हा याद है मुझे..!!  और वही खूबसूरत है बाकी तो मेरी जिंदगी में कुछ ऐसा है ही नहीं जिसे मैं याद करूं..??" सांझ ने धीमे से कहा। 

"जो भी खूबसूरत यादें हमारे साथ हैं जो खूबसूरत लम्हें हमने जिए हैं उनसे भी और खूबसूरत यादें बनाएंगे और भी खूबसूरत लम्हें हम एक दूसरे के साथ जिएंगे। जहां  दर्द की  कोई जगह नहीं होगी सिर्फ और सिर्फ प्यार होगा हम दोनों का प्यार है।" अक्षत ने उसे समझाया। 

"पर कैसे जज साहब  कैसे होगा..?? जैसे ही उन लोगों को पता चलेगा कि मैं जिंदा हूं वह मुझे फिर से ले जाएंगे, क्योंकि मैं तो उनकी गुलाम  हूँ। चाचा चाची ने मुझे  बेच  दिया था।"  सांझ ने दुखी होकर कहा। 

"इंसान को बेचा  और खरीदा नहीं जाता है और इस बात के लिए तुम्हारे चाचा गुनहगार है और उन्हें सजा मिलेगी। और तुम्हें खरीदने वाला वह निशांत  भी  दरिंदा है  उसे भी सजा मिलेगी। और वह भी ऐसी  जो उसने  सोची नहीं होगी।"अक्षत का चेहरा कठोर हो गया..!! 

"और साथ  ही जज साहब  सजा तो मुझे भी मिलेगी ना..??" सांझ बोली तो अक्षत ने उसकी आँखों में देखा।


"मैंने उस आदमी को मार..!!" कहते-कहते  सांझ  रुक गई। 

"क्या हुआ था बताओ मुझे..!! इतना पता है मुझे की चाकू मारा था तुमने।" अक्षत बोला। 

"वह निशांत ..!! उसने   मेरा सौदा कर दिया था  किसी दलाल को।और मुझे बेचने से पहले उसने अपने दोस्तों के सामने..!!"  सांझ  बोली और उसकी आंखों से फिर से आंसू निकलने लगे। 

अक्षत ने उसके चेहरे को अपने हथेलियां के बीच लिया। 

"अगर तुम्हें तकलीफ हो रही है तो ऐसी बातों को याद करने की कोई जरूरत नहीं है..!! मुझे कुछ नहीं सुनना है  और न  तुम्हें कुछ बताने की जरूरत है।" अक्षत  ने कहा। 


" नहीं  जज साहब  आपको जानना जरूरी है वरना आपको भी लगेगा कि मैंने उसको मार दिया। मैं कातिल हूँ।पर  जज साहब मैंने उसे जानकर नहीं मारा।" सांझ सिसकते हुए बोली। 

अक्षत बस उसे सुनकर समझने की कोशिश कर रहा था। 

" वो  मेरे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश  कर रहा था जज साहब। और मैं उसे मना कर रही थी। उससे दूर है रही थी, उससे  छूटने की कोशिश कर रही थी पर वह जबरदस्ती किये जा रहा था।  मेरे कपड़े फाड़ रहा था मेरे ऊपर अपनी ताकत आजमा   रहा  था।  मेरे पास चाकू था जो कि मैंने पहले ही छुपा कर रख लिया था तभी..!!" सांझ बोली और एकदम से  कांप  गई। 

अक्षत ने उसकी आंखों में देखा तो सांझ ने  उसके सीने में अपना चेहरा छुपा लिया।

"तभी उसने  अपने कपड़े हटा दिए और कहते-कहते  सांझ  का शरीर  फिर से कांप गया। 

अक्षत ने उसे मजबूती से अपनी बाहों में  जकड़ लिया।

"उसने मेरे बाल पकड़े और जबरन  अपनी तरफ झुकाने लगा। ही फोर्स मि  फॉर फेलेटियो. . !! 
मैंने उसके हाथ जोड़े  पर  उसने नहीं सुना और इस वक्त मैंने वह चाकू उसे वहां मार दिया, उसके प्राइवेट पार्ट पर..!! मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था  जज साहब.!!  या तो  मैं  उसकी जान ले सकती थी या मैं खुद की जान दे सकती थी। पर मुझे विश्वास नहीं था की चाकू मैं खुद को मारूंगी तो मेरी जान जाएगी भी कि नहीं जाएगी। इसलिए मैंने उस वक्त खुद को बचाने के लिए  उस पर कर दिया और वहां से भाग कर नदी में कूद गई क्योंकि मेरे लिए सभी रास्ते बंद हो चुके थे और मैं जानती थी कि अगर उन लोगों के हाथ लगी तो वह मेरे साथ बहुत बुरा व्यवहार करेंगे।"  सांझ ने रोते हुए कहा। 

अक्षत की आंखों में खून उतर आया था और उसकी  नशे  खींच  गई थी। 

उसने सांझ  को अपनी बाहों में छुपा लिया और उसके  सिर के ऊपर अपना चेहरा  टिका दिया। 

"भूल जाओ सब कुछ..!! तुम्हारी कहीं से कोई गलती नहीं है और इस मुद्दे को मैं हैंडल कर लूंगा। और जो यह लड़कियों  को अपनी जागीर समझते हैं उनके साथ जबरदस्ती करना चाहते हैं उनके जिस्म को किसी भी कीमत पर पाना चाहते हैं  उनका यही अंजाम होता है। इसलिए तुमने कुछ भी गलत नहीं किया और तुम्हें इनोसेंट मैं  साबित कर दूंगा इसलिए  तुम्हें कोई सजा नहीं होगी। और वैसे भी ऐसे राक्षस को तो सजा यही मिलनी चाहिए।" अक्षत ने कहा तो सांझ ने उसकी तरफ देखा। 

"हां यह बात सच है कि  नॉर्मल इंसानों को सजा देने का हक नहीं है पर  सेल्फ डिफेंस में किया किया गया हमला कत्ल की श्रेणी में नहीं आता है। और तुमने यह सब सेल्फ डिफेंस में किया। इस बात को मैं  दो मिनट में साबित कर दूंगा।" अक्षत ने कहा तो सांझ ने आँखे बड़ी कर   उसकी तरफ देखा। 

अक्षत के चेहरे पर कठोरता थी। 

"सॉरी  जज साहब..!!" सांझ  ने  धीरे से कहा और वापस से उसके सीने से लग गई। 

"तुम्हें सॉरी कहने की जरूरत नहीं है  सांझ..!! सॉरी तो मुझे कहना चाहिए जो  तुम्हारे साथ नही था। सॉरी तो तुम्हारे चाचा जी को कहना चाहिए जिन्होंने तुम्हारा इस्तेमाल किया अपनी बेटी के बदले तुम्हें  बेच  दिया जबकि  किसी इंसान को दूसरे इंसान को बेचने का अधिकार नहीं है और तुम्हारे चाचा चाची तो तुम पर वैसे भी अधिकार नहीं रखते क्योंकि तुम उनकी बेटी नहीं हो। सॉरी  तो उन गांव वालों को बोलना चाहिए जिनके सामने इतना सब हुआ और वह चुपचाप बैठे रहे। माफी तो उन पंचो  को मांगनी चाहिए जिन्होंने यह सौदा होने दिया और एक इंसान की खरीद  फरोख्त  उनके सामने हुई। सॉरी उन्हे बोलनी चाहिए जिन्होंने यह बिना मतलब के नियम और कानून बनाए जिनमें फंसकर लोगों को अपनी सहूलियत के हिसाब से सजा दी जाती है और उसे न्याय का नाम किया जाता है। शर्मिंदगी तो  निशांत और उसके परिवार को होनी चाहिए जिन्होंने इतना घृणित  काम किया। तुम्हे  शर्मिंदा होने की जरूरत नही है सांझ, शर्मिंदगी तो निशांत  और उसके उन सभी दोस्तों और उसके घर वालों को होनी चाहिए जो उसके इस घृणित कार्य में उसके साथ थे।" अक्षत  सख्त और भारी  आवाज के साथ कहा और सांझ  को अपने करीब समेट लिया। 


" तुम अब  मेरे पास हो मेरे करीब..!! अब तुम्हें कोई भी नहीं छू सकता इसलिए तुम बिल्कुल निश्चित रहो।  और  अब सजा मिलने की वारी उन लोगों की है। तुम्हें तो उन्हें जितनी तकलीफ देनी थी दे चुके अब तकलीफ बर्दाश्त करने की हद उनकी देखनी है मुझे।" 

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव