Sathiya - 108 in Hindi Love Stories by डॉ. शैलजा श्रीवास्तव books and stories PDF | साथिया - 108

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

Categories
Share

साथिया - 108

" प्लीज  इशू  खत्म करो ना..!! किसी की गलती नहीं थी। बस हालत गलत हो गए और उन्ही हालातों  के बीच फंसकर में मजबूर हो गई। प्लीज तुम तो कम से कम मुझे समझने की कोशिश करो  कोई समझे ना समझे..!!" शालू ने रोते हुए कहा तो  ईशान ने पलट कर उसे अपने सीने से लगा लिया। 

"ओके बाबा समझ रहा हूं..!! सब समझ रहा हूं और  अब कोई  नाराजगी नही। नाराजगी तो कल ही खत्म हो गई थी जब माही  भाभी  ने लाकर यह फाइल दी थी मुझे। मैं तो  बस सिर्फ तुम्हें परेशान कर रहा था, बाकी और कुछ भी नहीं। और अगर तुम्हें हर्ट किया हो तो मुझे माफ कर दो, पर मैंने जो भी कहा सिर्फ और सिर्फ तुम्हें परेशान करने के लिए कहा। मेरा बिल्कुल भी ऐसा इंटेंशन नहीं है कि तुम मेरे साथ..!!"  ईशान  रुक गया। 

शालू  ने नजर उठा उसकी तरफ देखा और वापस से उसके सीने से सिर   छिपा लिया। 


"सच्ची माफ कर दिया?" शालू  बोली। 

"सच में माफ कर दिया..!! माही भाभी ने भी मुझे समझाया और अक्षत ने भी समझाया और मुझे भी समझ आया कि ठीक है इंसान से गलती होती है और मुझे  अब  इस बात को इतना नहीं खींचना चाहिए कि हम दोनों की आगे की लाइफ  ही स्पॉइल  हो जाए।" ईशान  बोला तो  शालू मुस्कुरा उठी। 

कुछ  पलों बाद   उसे एहसास हुआ कि  ईशान   शर्टलैस है और वह ऐसे ही उसके सीने से लगी  हुई  हैं तो वह एकदम से उसे दूर हो गई। 

"मैं  जाती हूं..!! आंटी वेट कर रही हूं।" शालू ने कहा और  जैसे ही जाने को  मुड़ी  ईशान ने वापस उसका हाथ  पकड़  उसे अपने सीने से लगा लिया। 

"थोड़ा तो सुकून थोड़ी तो ठंडक मिल जाने दो इस दिल को फिर चली जाना। और एक बात इस  बार माफ कर दे रहा हूं पर अगली बार अगर ऐसा कुछ भी किया ना तो बता रहा हूं कभी भी माफ नहीं करूंगा तुम्हें बिल्कुल भी।" ईशान ने  उसके माथे पर अपने होंठ रखते हुए कहा तो  शालू  ने उसकी पीठ पर अपनी हथेलियां  कस दी। 

" ऐसा दोबारा नहीं होगा वादा करती हूं..!!" शालू बोली तो  ईशान  के चेहरे पर भी एक सुकून भरी मुस्कान आ गयी। 


*********

ईशान और शालू के बीच सब सही हो गया था और अरविंद साधना के साथ ही अबीर और मालिनी को भी सब पता चल चुका था और सबने मिलकर ईशान शालू और अक्षत माही की शादी मनु की शादी के एक हफ्ते बाद करने का तय कर लिया।

  मनु की शादी की तैयारियां और प्रोग्राम चल रहे थे। 
****

शालू माही कहाँ है ? " अक्षत ने शालू को बाहर  हॉल  में बैठे देखा जहां पर के मनु की हल्दी  का प्रोग्राम चल रहा था। 

"वह कमरे में ही है..!! तैयार हो  रही है आप देख लीजिए कुछ हेल्प चाहिए होगी तो मुझे बता दीजिएगा। मैं जरा यहां पर साधना आंटी की हेल्प कर रही हूं।" शालू  ने कहा तो अक्षत उस रूम की तरफ बढ़ गया जिसमें शालू और माही  ठहरी हुई थी। 

माही तैयार हो चुकी थी और खुद को आईने में देख रही थी। उसने यल्लो  कलर  की फुल लेंथ ड्रेस पहनी हुई थी  जिस पर पिंक कलर का दुपट्टा था हल्का मेकअप और आंखों में गहरा काजल। तभी अक्षत रूम में आया। 

माही  को अंदाजा नहीं था के रूम में अक्षत आया है। उसे लगा कि शायद  शालू है। 

"देखिए ना  शालू  दीदी मैं ठीक लग रही हूं ना? पहली बार इस तरीके से रेडी हुई हूं। अब तक तो मुझे याद नहीं है कि कभी इस तरीके की ट्रेडिशनल ड्रेस पहनी हो मैंने। जींस टॉप या शर्ट लोवर ही पहनती आई हूं मैं अमेरिका में थे  तब। और यह आपने क्यों कहा कि मैं काजल लगा लूं। कुछ अजीब सा नहीं लग रहा क्या यह ?"  माही ने खुद को आईने में देखते हुए कहा। 

तभी पीछे अक्षत  आकर उसके पीछे खड़ा हो गया। 

माही ने  आईने में ही अक्षत को देखा तो अक्षत ने उसके करीब आ  उसकी बैली   पर अपने दोनों हाथ रख दिए और उसके कंधे पर अपना चेहरा टिका दिया। 

माही  के चेहरे पर गुलाबी मुस्कराहट आ गई और दिल की धड़कनें  हमेशा की तरह सुपरफास्ट स्पीड में चलने लगी। 

"भले तुम पिछले दो सालों से जींस टॉप पहन रही होगी..!! भले कोई मेकअप नहीं करती होगी पर उन दो  सालों  के पहले तुम ज्यादातर समय ट्रेडिशनल ड्रेस ही पहनती थी। सलवार सूट या फिर जींस के साथ कुर्ती या टॉप..!! और हां आंखों का गहरा काजल हमेशा से तुम्हारी विशेषता रही है। भले तुम कोई और मेकअप करो ना करो पर तुम्हारी आंखों को बिना काजल के मैंने आज तक नहीं देखा।" अक्षत ने धीमी से उसके कान के पास  कहा  तो माही को अपने कानों के पास गर्मी महसूस हुई। 

"सच  जज साहब..??"  माही ने धीमे से कहा 

"बिल्कुल सच ..!! कहा है ना तुमसे  जितनी बात तुम मुझसे पूछती हो कभी भी मैं तुमसे झूठ या गलत नहीं बोलता। बाकी अपने आप से कुछ भी तुम्हें इसलिए नहीं बताता ताकि तुम्हारे दिमाग पर कोई प्रेशर ना आए। आज तुमने पूछा इसलिए बता दिया..!!" अक्षत ने उसकी उंगलियों मे अपनी उंगलियाँ फंसा हाथ को चूमते हुए कहा तो माही ने नजर झुका ली।

"और रही बात की तुम कैसी लग रही हो? तो तुम मुझे हमेशा से बहुत ही प्यारी लगती रही हो। पहले भी तुम बेहद खूबसूरत और बहुत प्यारी लगती थी और अभी भी  बहुत प्यारी लगती हो। धीमे-धीमे यह चेहरा  भी मेरे दिल में  बसने  लगा है।" अक्षत ने  हौले  से उसकी  गर्दन पर अपने होठों से हरकत करते हुए  कहा  तो माही ने एकदम से अपनी आंखें भींच ली। 

" भले सूरत बदल गई है पर वही स्पर्श वही  जिस्म से उठने वाली मनोहर  मधुर सुगंध और वही छूने पर होने वाला कोमल और शीतल स्पर्श..!" अक्षत खुद से बोला और हौले से उसकी गर्दन पर किस किया और फिर   उसे अपनी तरफ घुमाया। 

उसके चेहरे को हथेलियां के बीच लिया तो माही ने आंखें खोल उसकी तरफ देखा। 

" और एक बात माही चेहरे की खूबसूरती उतनी मायने नहीं रखती जितना इंसान का व्यक्तित्व उसकी पर्सनालिटी मायने रखती है। तुम्हारे व्यक्तित्व से तुम्हारी पर्सनालिटी से तुम्हारी अंतरात्मा से मैंने प्यार किया है। इसलिए कभी भी इस बात को हमारे बीच मत लाना कि तुम्हारा चेहरा कैसा दिख रहा है  या कैसा नहीं दिख रहा है? तुम्हारा हर रूप से  मेरे दिल को सिर्फ और सिर्फ सुकून और ठंडक पहुंचती है।" अक्षत ने कहा तो माही ने  आंखें बड़ी कर उसे देखा। 

"अभी आपने ऐसा क्यों कहा  जज साहब  कि यह चेहरा भी आपके दिल में बस रहा है?? कोई और चेहरा भी है आपके दिल मे क्या??" माही ने पूछा तो अक्षत को अपनी गलती का एहसास हुआ। 

अक्षत ने उसकी आंखों में  झाँका  और उसके चेहरे के थोड़ा और नजदीक आ गया। 

उसके इस तरीके से करीब आने पर माही एकदम से घबरा  गई। 

"मैंने यह नहीं कहा कि यह चेहरा भी मेरे दिल में  बसने लगा है। मैंने कहा कि यह चेहरा कब से मेरे दिल में बसा हुआ है। और  इन  सालों में जो हमारे बीच दूरी आई थी तो  अब तुम  वापस आ गई हो तो फिर से तुम मेरे दिल में समाने लगी हो और यह चेहरा भी।" अक्षत ने उसके चेहरे के नजदीक होते हुए  कहा। 

उसके इतने करीब आने से  माही  को अपनी सांसे अटकती हुई थी  फील  हो रही थी। 

"और पता है हमारी शादी की डेट फाइनल हो  गई है तो अब बस तुम सिर्फ एक  हफ्ते  के लिए  मुझसे दूर होगी और वापस पूरे हक से तुम्हे विदा करा के ले आऊंगा और  बस फिर मेरी बाहों मे कैद करके रहूँगा।" अक्षत बोला तो माही के चेहरे पर उदासी आ गई।।

" जज साहब शादी..??" माही ने कहा।

" क्यो? .. क्या प्रोबलम है..? तुम्हे अब भी विश्वास नही क्या मुझ पर..??  क्या  तुम्हारे दिल मे बिल्कुल फीलिंग्स नही..??" अक्षत  एकदम से उदास हो गया। 

माही  खामोश  रही।

" इट्स ओके..!! मैं मना कर देता हूँ..!!" अक्षत बोला और जाने को मुड़ा तो माही ने उसका हाथ पकड़  लिया। 

" जज साहब बिना मेरी मजबूरी जाने मुझे गलत मत  समझिये प्लीज..!" माही बोली तो  अक्षत ने उसकी तरफ देखा।

माही ने धीमे से उसका हाथ पकड़ अपनी पीठ के उपरी हिस्से पर रखा।।

" मैरिज बहुत ही गहरा और आत्मिक  रिश्ता होता है। जहाँ दिलों के साथ साथ जिस्म भी एक होते है। दो आत्माओं के साथ साथ दो शरीर भी पूरी तरह मिल जाते है।' माही ने कहा।

अक्षत एकटक उसे  देख रहा था और उसे समझने की कोशिश कर रहा था।

" आप बहुत हैंडसम है जज साहब..!! बेहद सुंदर लड़कों की गिनती मे आते है आप और जितने आप बाहर से गुड लुकिंग है उससे भी ज्यादा प्यारा आपका दिल है..!! हमारा रिश्ता पहले से तय था और आप उस रिश्ते को दिल से निभा रहे हो।मुझे एक्सेप्ट कर रहे हो..!! लेकिन??" 

" लेकिन क्या?" 

" मैं खुद को आपके काबिल नही मानती..!!" माही बोली तो अक्षत ने आँखे छोटी कर उसे देखा। 


" आप बेहद खूबसूरत समझदार और आपके जैसी स्मार्ट लड़की डिजर्व करते हो जबकि  मुझे तो ये भी याद नही कि मैं पढ़ी लिखी कितना हूँ..!! जॉब करने लायक नही यहाँ तक कि अकेले घर से बाहर जाने लायक नही।" माही भरी आँखों के साथ बोली।

अक्षत अब भी उसे एकटक देखता रहा।।


" मैं न ही दिमाग से और न ही शरीर से खुद को आपके योग्य समझती हूँ।  आपने सिर्फ चेहरा देखा है मेरा..!! लेकिन ये जिस्म जिस पर अनिगिनित घावों के अनिगिनित निशान है जज साहब..!! आप शायद देखना भी पसंद न करो..!! घावों के सूखने के बाद के स्कार टिश्यू है जज साहब जोकि इस जिस्म को खूबसूरत नही बल्कि भद्दा और...??" माही सिसक उठी।।


" आपका प्यार आपका कंसर्न देखा है मैने। आपकी आँखों में बेशुमार प्यार और चाहत के अनिगिनित रंग देखे है। अब खुद  के लिए दया घृणा और नफ़रत ने बर्दास्त कर पाऊँगी..!! माही बोली और अपनी बैक जिप हल्की सी खोल अक्षत का हाथ वहाँ रखा।

" ऐसे निशानों से  जिस्म भरा हुआ है जज साहब..!! और आपको ये  जानना जरूरी है कि अब मैं  पहले जैसी खूबसूरत नही रही। कोई भी निर्णय लेने से पहले सारा सच जानना आपका अधिकार है।" माही ने भरी आँखों से उसकी तरफ देखा  और फिर नजर झुका  ली।

अक्षत की आंखों  में नमी आ गई और उसने धीमे से उसकी बैक जिप बन्द  कर उसके चेहरे को हथेलियों मे थामा। 

" तुमसे पहले भी कहा है माही आज फिर से कह रहा हूं  बेहद  मोहब्बत करता हूं तुम्हें...!! बहुत चाहता हूं। और हमारा प्यार सिर्फ  चेहरे तक  या सिर्फ शरीर तक सीमित नहीं है। हम दोनों के एहसास दिलों से जुड़े हुए हैं।" अक्षत ने उसके  चेहरे  के पास झुककर  धीमे से कहा। 

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव