Sathiya - 105 in Hindi Love Stories by डॉ. शैलजा श्रीवास्तव books and stories PDF | साथिया - 105

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साथिया - 105

शालू चाय और नाश्ता लेकर ईशान के कमरे के बाहर पहुंच गई पर उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी अंदर जाने की। 

उसने गहरी सांस ली भगवान को याद किया और धीरे  से दरवाजा  नोक किया। 

"आ जाओ!" अंदर से आवाज आई तो  शालू ने  दरवाजा खोला और धीमे से अंदर चली गई। ईशान  बालकनी में  खड़ा हुआ था और किसी से फोन पर बात कर रहा था। उसे नहीं पता था कि नाश्ता और चाय लेकर सर्वेंट नहीं बल्कि  शालू  आई है। 

शालू  ने  ईशान  को देखा और फिर  वापस नहीं गई और वहीं खड़ी रही। 

ईशान ने  पलट कर देखा और जैसे ही शालू पर नजर गई उसके चेहरे पर तनाव आ गया। 

उसने फोन कट करके बेड पर फेंका और तुरंत रूम के अंदर आ गया। 

"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे कमरे में आने की?" ईशान ने कहा। 

शालू ने उसकी आँखों मे देखा।

"ईशान वो चाय.!!" 

" तुमसे कहा मैंने   मेरे लिए चाय लाने  के लिए..!! फिर क्यों..?? जरूरत नही तुम्हारी  मुझे..!!"  ईशान ने  कप  उठाकर जोर से फेंक दिया। 

शालू एकदम से कांप गई। 

"वह मैं..!!" शालू ने कहना चाहा तो  ईशान ने एकदम से उसका हाथ पकड़ उसे दीवार से लगा लिया और उसके दोनों तरफ अपने हाथ रख लिए। 

"मिस शालिनी राठौर जिन लोगों से मेरा कोई रिश्ता नहीं है उन लोगों का मेरे रूम में आना  मैं  बर्दाश्त नहीं करता हूं, तो आइंदा मेरे रूम में मत आना।" 

"क्यों नहीं आऊंगी मैं? आऊंगी बिल्कुल आऊंगी। तुम्हारे रूम में हर बार आऊंगी। हर पल आऊंगी चाहे  कितना  डांट लो, चाहे कितना गुस्सा कर लो मैं बिल्कुल भी तुम्हारी बात नहीं सुनूंगी।" शालू ने ईशान की आँखों मे देख भरी  आंखों के साथ कहा। 

"यही तो प्रॉब्लम है... मिस राठौर..!! आपको हर समय अपनी चलानी है। अपना सोचना है। अपना देखना है और अपने एकोर्डिंग करना है। आप क्या चाहती हो वह जरूरी है। आप  जो करती हो वह सही है। दूसरे की फिलिंग्स  की तो आपको  परवाह ही नहीं है। दूसरे के दर्द का  आपको  एहसास ही नहीं है। दूसरा क्या चाहता है  उससे आपको  कोई मतलब ही नहीं है।"  ईशान ने  फिर  गुस्से से बोलते हुए कहा। 

शालू एकदम से उसके सीने से लग गई और उसे बाहों में भींच लिया।


ईशान की आँखे बड़ी हो गई और उसने शालू को दूर करना चाहा पर उसकी पकड़ सख्त थी। 

"तो क्या करूं बोलो न ? अब क्या करूं?? मान  रही  हूँ  ना गलती की मैंने। नहीं बता पाई  तुमको..!! पर मैं मजबूर थी ईशान..!  प्लीज एक बार मेरी मजबूरी भी तो समझने की कोशिश करो। जो सजा देनी है दे लो मुझे। उफ़ नही करूंगी। चाहे तो जान ले लो पर इस तरीके से बेरुखी मत दिखाओ मुझे  इशू प्लीज..!!"  शालू ने भावुक होकर  कहा। 

इससे पहले कि वो कमजोर होता ईशान ने  उसे  झटके से दूर कर दिये।

" इशु बोलने का हक में नहीं है आपको.!! मुझे इशू  सिर्फ मेरे अपने लोग बोलते हैं। तुम्हारे लिए ईशान चतुर्वेदी हूं  मै। सिर्फ ईशान चतुर्वेदी।  तुम  मुझसे इस तरीके से बात मत  करो।" मिस  राठौर। 

" तुम्हें जो कहना है  कहो। जितना नाराज़गी  दिखाना  दिखा लो पर  इस तरीके से मेरे दिल पर  वार  मत करो  ईशान प्लीज..!! तुम जानते हो मैं तुम्हें कितना प्यार करती हूं।" शालिनी  बोली। 

" प्यार..!! प्यार का मतलब भी जानती हो तुम? अगर प्यार का मतलब जानती होती तो ऐसा कभी नहीं करती जैसा तुमने किया..!! 


" तुम मुझे  समझना क्यों नहीं  चाहते..??" शालू ने दुखी होकर  कहा। 

" नही समझना क्योंकि तुमने भी मुझे कहाँ समझा..!!" ईशान बोला और अगले ही पल  ईशान  ने उसका हाथ पकड़ा और अपने कमरे के बाहर कर दिया। 

शालू  ने भरी आंखों से उसे देखा। 

"मुझे ना तुम्हें जानना है ना तुम्हें समझना है..!! जितना जानना था जितना समझना था उतना समझ लिया और उतना काफी है। इससे ज्यादा मुझसे  उम्मीद मत करना और आगे से मेरे आस-पास बिल्कुल मत आना।" ईशान बोला और दरवाजा बन्द कर लिया। 
शालू ने भरी आँखों से बन्द दरवाजे को देखा तभी अक्षत और माही ने आकर उसके कन्धों पर हाथ रखा। 
" इतनी जल्दी हिम्मत मत हारो शालू दी..!!" माही ने कहा। 

" अब इतने दिन की नाराजगी है। तकलीफ है तो इतनी आसानी से तो  माफी नही मिलेगी। थोड़ा  पेशेंस रखो और कोशिश भी करो। ज्यादा दिन नाराज नही रह पायेगा वो।" अक्षत ने समझाया। 

उधर दरवाजा बन्द  कर ईशान ने दरवाजे से टिक गया। 
आँखों  में लालिमा आ गई थी। 
"समझता हूँ कि प्यार में बदले की भावना नही होती पर प्यार मे ट्रांसपेरैंसी तो होती है न?? विश्वास तो होता है न?  वादा तो होता है न?? और  तुम ने ही विश्वास नही किया। वादा नही निभाया।" ईशान  खुद से बोला और फिर तुरंत वॉशरूम में चला गया साधु को दर्द देकर तकलीफ उसे खुद भी होती थी पर न जाने क्यों चाह कर भी हो शालू को माफ नहीं कर पा रहा था। 

घर में मनु और नील की शादी के प्रोग्राम शुरू हो गए थे और माही और शालू पूरी तरीके से हर प्रोग्राम में इंवॉल्व थे और साथ ही साथ साधना की हर काम में मदद भी कर रहे थे। 

माही भले आज की तारीख में सब कुछ भूल गई थी पर न जाने क्यों उसे न हीं इस घर में अजनबी लग रहा था और ना ही अरविंद साधना अक्षत और  ईशान  के साथ वह  असहज थी। उसे समझ में आ रहा था कि इन लोगों के साथ उसका रिश्ता बहुत गहरा है, तभी वह इन लोगों के साथ कंफर्टेबल है और बिना किसी परेशानी के आराम से उनके साथ रह पा रही है तो वही शालू  लगातार कोशिशें में थी  ईशान को मनाने की। हर पल वह  ईशान के आसपास रहने की कोशिश करती थी। उसका काम करती कभी उसके लिए चाय लेकर जाती।

बदले में  ईशान  अक्सर ही उसे  झिड़क देता पर वह आंखों में आंसू भर और होठों पर मुस्कान लेकर दोबारा  कोशिश में लग जाती थी क्योंकि अक्षत और माही की वजह से उसे ईशान को मनाने का और सभी पुरानी बातों को खत्म कर अपनी जिंदगी को एक दूसरा मौका देने का मौका मिला था तो इसे वह  किसी  भी हाल में खोना नहीं चाहती थी। 

अक्षत भी पूरी कोशिश में था कि माही उसके साथ कम्फरटेबल हो जाए ताकि उनकी शादी हो और उसकी  मिसेज चतुर्वेदी उससे दूर न हो।

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव