CHAR DHAM KI YATRA in Hindi Travel stories by Arun Singla books and stories PDF | चार धाम की यात्रा : उत्तराखंड - भारत

Featured Books
  • द्वारावती - 73

    73नदी के प्रवाह में बहता हुआ उत्सव किसी अज्ञात स्थल पर पहुँच...

  • जंगल - भाग 10

    बात खत्म नहीं हुई थी। कौन कहता है, ज़िन्दगी कितने नुकिले सिरे...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 53

    अब आगे रूही ने रूद्र को शर्ट उतारते हुए देखा उसने अपनी नजर र...

  • बैरी पिया.... - 56

    अब तक : सीमा " पता नही मैम... । कई बार बेचारे को मारा पीटा भ...

  • साथिया - 127

    नेहा और आनंद के जाने  के बादसांझ तुरंत अपने कमरे में चली गई...

Categories
Share

चार धाम की यात्रा : उत्तराखंड - भारत

चार धाम की यात्रा : उतराकहंड - भारत

चार धाम की यात्रा भारत की सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण तीर्थ यात्राओं में से एक मानी जाती है। इस यात्रा के अंतर्गत चार प्रमुख तीर्थ स्थल आते हैं, जिन्हें "चार धाम" के नाम से जाना जाता है। ये चारों धाम यानी यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में स्थित हैं और हिंदू धर्म में इनका विशेष महत्व है। चार धाम यात्रा हिंदू धर्म में मोक्ष प्राप्ति का मार्ग मानी जाती है।

यात्रा की शुरुआत
चार धाम यात्रा की शुरुआत मैंने दिल्ली से की। दिल्ली से यमुनोत्री की दूरी लगभग 430 किलोमीटर है। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य चार धामों में से एक, यमुनोत्री धाम के दर्शन करना था।
यमुनोत्री: यमुनोत्री धाम, यमुनोत्री यमुना नदी का उद्गम स्थल है । यमुनोत्री धाम समुद्र तल से 3,293 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को पहले हनुमान चट्टी तक वाहन से जाना होता है, और फिर 6 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद यमुनोत्री मंदिर पहुंचा जा सकता है।

कैसे पहुंचे यमुनोत्री

दिल्ली से यमुनोत्री जाने के लिए सबसे पहले मैंने सड़क मार्ग से ऋषिकेश तक का सफर तय किया। दिल्ली से ऋषिकेश की दूरी लगभग 240 किलोमीटर है, जिसे मैंने कार द्वारा लगभग 6-7 घंटे में तय किया। ऋषिकेश से यमुनोत्री के लिए मैंने हनुमान चट्टी जाने का फैसला किया, जो यमुनोत्री धाम का बेस कैंप है। ऋषिकेश से हनुमान चट्टी की दूरी लगभग 215 किलोमीटर है, जिसे मैंने 8-9 घंटे में तय किया। यहां से आगे का सफर पैदल, घोड़े या पालकी के माध्यम से तय करना होता है।

 

पैदल, घोड़ा या पालकी से यात्रा

हनुमान चट्टी से यमुनोत्री धाम तक का रास्ता कठिन लेकिन बेहद रोमांचक है। इस यात्रा को तय करने के तीन मुख्य विकल्प हैं:

·       पैदल यात्रा: यदि आप शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं और ट्रेकिंग का अनुभव लेना चाहते हैं, तो पैदल यात्रा एक अच्छा विकल्प है। पैदल चलने में लगभग 3-4 घंटे का समय लगता है, लेकिन यह आपकी शारीरिक शक्ति पर निर्भर करता है।

·       घोड़ा: यदि आप पैदल नहीं चल सकते या जल्दी पहुंचना चाहते हैं, तो घोड़ा एक विकल्प है। घोड़ा किराए पर लेने का खर्च लगभग ₹1000 से ₹1500 के बीच होता है। घोड़े से यात्रा करने में लगभग 2-3 घंटे का समय लगता है।

·       पालकी: पालकी एक आरामदायक विकल्प है, खासकर बुजुर्गों या शारीरिक रूप से असमर्थ लोगों के लिए। पालकी का किराया लगभग ₹3000 से ₹5000 तक हो सकता है, जो पालकी की संख्या और यात्रियों की संख्या पर निर्भर करता है। पालकी से यात्रा करने में लगभग 3-4 घंटे का समय लगता है।

टिकट और बुकिंग

यमुनोत्री धाम की यात्रा के लिए किसी विशेष टिकट की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन घोड़ा या पालकी की बुकिंग हनुमान चट्टी में ही की जाती है। यात्रा सीजन के दौरान यहां भीड़ होती है, इसलिए बुकिंग पहले से करवा लेना अच्छा रहता है।

 

ठहरने की व्यवस्था

हनुमान चट्टी और यमुनोत्री के बीच कुछ धर्मशालाएँ और होटल उपलब्ध हैं, जहां आप रुक सकते हैं। मैंने हनुमान चट्टी में एक होटल  में ठहरने का निर्णय लिया। यहां के होटल और धर्मशालाओं में भोजन और रहने की व्यवस्था साधारण है लेकिन आरामदायक होती है।

यात्रा के दौरान सावधानियां
·       मौसम: यमुनोत्री का मौसम बहुत ठंडा हो सकता है, खासकर सुबह और शाम के समय। इसलिए गर्म कपड़े, जैकेट, और रेनकोट जरूर साथ रखें।

·       स्वास्थ्य: ऊंचाई पर होने के कारण सांस लेने में दिक्कत हो सकती है, इसलिए दवाईयां और आवश्यक मेडिकल किट साथ में रखें। यात्रा के दौरान हाइड्रेटेड रहें और नियमित रूप से आराम करते रहें।

·       सुरक्षा: यात्रा का मार्ग कठिन और पहाड़ी है, इसलिए सावधानी से चलें। घोड़ा या पालकी का उपयोग करते समय भी सतर्क रहें और केवल अधिकृत सेवाओं का ही उपयोग करें।

यमुनोत्री धाम की यात्रा मेरे जीवन के सबसे यादगार अनुभवों में से एक रही। यहां की आध्यात्मिक शांति और प्राकृतिक सुंदरता ने मेरे मन को शांति प्रदान की। यह यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह प्रकृति के साथ एक अनोखा अनुभव भी है। अगर आप भी अपने जीवन में एक बार इस पवित्र यात्रा का हिस्सा बन सकते हैं, तो इसे जरूर करें।

यमुनोत्री से गंगोत्री की यात्रा:

मेरी इस यात्रा की शुरुआत यमुनोत्री धाम से हुई, जहां से मैं गंगोत्री की ओर बढ़ा। यमुनोत्री धाम पर देवी यमुना के दर्शन करने के बाद, मेरे मन में अद्भुत उत्साह और श्रद्धा थी। गंगोत्री धाम, जहां से मां गंगा का पवित्र प्रवाह धरती पर शुरू होता है, मेरी यात्रा का अगला पड़ाव था।

गंगोत्री: गंगोत्री धाम गंगा नदी के उद्गम स्थल के रूप में प्रसिद्ध है, जो कि हिंदू धर्म में पवित्रता की प्रतीक मानी जाती है। गंगोत्री समुद्र तल से 3,100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। गंगोत्री मंदिर में मां गंगा की पूजा की जाती है । माना जाता है कि राजा भगीरथ की तपस्या के बाद, मां गंगा इसी स्थान पर अवतरित हुईं थीं।

यात्रा का मार्ग

यमुनोत्री से गंगोत्री की यात्रा के लिए हमें पहले उत्तरकाशी पहुंचना पड़ता है, जो कि लगभग 170 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मार्ग पर आपको हिमालय की अद्भुत सुंदरता के दर्शन होंगे, जो आपकी यात्रा को और भी मनोरम बना देती है।

यमुनोत्री से उत्तरकाशी कैसे पहुंचे:

·       सड़क मार्ग: यमुनोत्री से उत्तरकाशी तक की यात्रा सड़क मार्ग से की जाती है। यह दूरी लगभग 4-5 घंटे में तय होती है। इस मार्ग पर टैक्सी, जीप, और बस की सुविधाएं उपलब्ध हैं।

·       ट्रांसपोर्ट ऑप्शन्स: आप अपने निजी वाहन से भी इस यात्रा को कर सकते हैं, या फिर उत्तरकाशी तक टैक्सी या जीप से यात्रा कर सकते हैं। टैक्सी का किराया लगभग ₹3000 से ₹5000 तक हो सकता है, जो कि आपके वाहन के प्रकार और सीजन पर निर्भर करता है।

उत्तरकाशी से गंगोत्री कैसे पहुंचे:

उत्तरकाशी से गंगोत्री की दूरी लगभग 100 किलोमीटर है, जिसे आप सड़क मार्ग से तय कर सकते हैं। इस मार्ग पर आपको हिमालय की घाटियों और बर्फ से ढके पहाड़ों का अद्भुत दृश्य देखने को मिलेगा। यह यात्रा लगभग 4-5 घंटे में पूरी होती है।

 
यात्रा के विकल्प: पैदल, घोड़ा, या पालकी

गंगोत्री तक पहुंचने के बाद, मंदिर तक पैदल जाने का अनुभव अत्यंत रोमांचक होता है। अगर आप लंबी यात्रा के लिए सक्षम नहीं हैं, तो घोड़े या पालकी का विकल्प भी चुन सकते हैं।

घोड़े का किराया: ₹1,500 से ₹2,000 तक (वन-वे)
पालकी का किराया: ₹3,500 से ₹4,500 तक (वन-वे)
यात्रा का समय: घोड़े से यात्रा में 3-4 घंटे और पालकी से 4-5 घंटे का समय लगता है।
टिकट और आरक्षण

गंगोत्री मंदिर में प्रवेश के लिए किसी टिकट की आवश्यकता नहीं होती। मंदिर के प्रांगण में सभी श्रद्धालुओं के लिए दर्शन की व्यवस्था निशुल्क है।

यात्रा के दौरान ठहरने की व्यवस्था
गंगोत्री में ठहरने के लिए कई धर्मशालाएं, गेस्ट हाउस और होटल उपलब्ध हैं। गंगा निकेतन, सिंधु गेस्ट हाउस, और भगवती रेस्ट हाउस जैसे स्थानों पर आप ठहर सकते हैं। इनकी कीमत ₹500 से ₹1500 प्रति रात के बीच होती है, जो सुविधाओं पर निर्भर करती है।

यात्रा के दौरान सावधानियां
·       जलवायु: गंगोत्री की ऊंचाई अधिक होने के कारण, यहां का मौसम ठंडा और परिवर्तनशील रहता है। गर्म कपड़े, जैकेट, दस्ताने और ऊनी टोपी साथ लेकर चलें।

·       स्वास्थ्य: ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी हो सकती है, इसलिए यदि आपको सांस संबंधी कोई समस्या है, तो पहले डॉक्टर से परामर्श करें और आवश्यक दवाएं साथ रखें।

·       खाद्य सामग्री: गंगोत्री में खाने-पीने की अच्छी व्यवस्था होती है, लेकिन अपने साथ हल्का भोजन और पानी अवश्य रखें।

यह यात्रा सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं है, बल्कि यह आपके अंदर छिपी ऊर्जा और विश्वास को जागृत करने का एक साधन भी है।

गंगोत्री से केदारनाथ की यात्रा

चार धाम यात्रा का प्रत्येक चरण अनूठा और अद्भुत अनुभवों से भरा होता है, लेकिन जब आप गंगोत्री से केदारनाथ की यात्रा करते हैं, तो यह यात्रा अपनी कठिनाई और पवित्रता के कारण विशेष महत्व रखती है।

केदारनाथ: केदारनाथ धाम, भगवान शिव को समर्पित है और यह चार धाम यात्रा का तीसरा प्रमुख स्थल है। केदारनाथ मंदिर समुद्र तल से 3,583 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहां तक पहुंचने के लिए गौरीकुंड से लगभग 16 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है।

गंगोत्री से केदारनाथ: स्थान और महत्व

गंगोत्री से केदारनाथ की यात्रा उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में स्थित है। गंगोत्री गंगा नदी के उद्गम स्थल के रूप में प्रसिद्ध है, जबकि केदारनाथ भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक के रूप में पूजनीय है। गंगोत्री से केदारनाथ की दूरी लगभग 250 किलोमीटर है, जो आपको प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक आस्था से परिपूर्ण अनुभव देती है।

 
केदारनाथ कैसे पहुँचें?

गंगोत्री से केदारनाथ तक पहुँचने के लिए आपको पहले सड़क मार्ग से गौरीकुंड तक जाना होता है। यहाँ तक पहुँचने के लिए आप टैक्सी या बस का सहारा ले सकते हैं। गौरीकुंड के बाद केदारनाथ मंदिर तक की यात्रा को पैदल, घोड़े, पालकी, या हेलीकॉप्टर के माध्यम से तय किया जा सकता है।

·       पैदल यात्रा: गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर तक की पैदल यात्रा लगभग 16 किलोमीटर की है। यह यात्रा कठिनाई भरी हो सकती है, लेकिन जो श्रद्धालु इसे पैदल तय करते हैं, उन्हें एक अनूठी आत्मिक शांति का अनुभव होता है। इस यात्रा में आपको लगभग 6-8 घंटे का समय लग सकता है, आपकी शारीरिक स्थिति और गति के आधार पर।

·       घोड़ा या पालकी: अगर आप पैदल यात्रा करने में असमर्थ हैं, तो घोड़े या पालकी का विकल्प भी उपलब्ध है। घोड़े की सवारी में आपको लगभग 4-5 घंटे का समय लगेगा, जबकि पालकी का समय भी लगभग समान ही होता है। घोड़े की सवारी के लिए लगभग ₹3,500 से ₹4,500 का खर्च आ सकता है, और पालकी का खर्च ₹6,000 से ₹8,000 तक हो सकता है, जो आपकी यात्रा के समय और सेवाओं पर निर्भर करता है।

·       हेलीकॉप्टर: यदि आप समय बचाना चाहते हैं और यात्रा को सुविधाजनक बनाना चाहते हैं, तो आप हेलीकॉप्टर सेवा का उपयोग कर सकते हैं। यह सेवा फाटा, गुप्तकाशी, और सिरसी से उपलब्ध है। हेलीकॉप्टर की टिकट की कीमत लगभग ₹7,000 से ₹8,000 तक होती है। हेलीकॉप्टर से केदारनाथ पहुँचने में केवल 10-15 मिनट का समय लगता है।

यात्रा के दौरान रहने की व्यवस्था

केदारनाथ में रहने की व्यवस्था के लिए आपको कई विकल्प मिल जाएंगे। यहाँ पर GMVN (गढ़वाल मंडल विकास निगम) के गेस्ट हाउस, धर्मशालाएँ, और छोटे-छोटे होटल उपलब्ध हैं। यात्रा के समय अत्यधिक भीड़ होने के कारण, यह सलाह दी जाती है कि आप पहले से ही अपनी बुकिंग कर लें। अधिकतर गेस्ट हाउस और होटल में बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं, लेकिन ठंड से बचाव के लिए गर्म कपड़े साथ रखना बेहद ज़रूरी है।

सावधानियाँ और महत्वपूर्ण जानकारी
·       शारीरिक तैयारी: केदारनाथ की यात्रा शारीरिक रूप से थकाने वाली हो सकती है, इसलिए यात्रा से पहले कुछ दिनों तक नियमित रूप से चलने या चढ़ाई करने की आदत डालें।

·       स्वास्थ्य जांच: यात्रा के दौरान ऊँचाई पर ऑक्सीजन की कमी हो सकती है, इसलिए हृदय रोगियों और सांस की समस्या वाले लोगों को विशेष ध्यान देना चाहिए। अपनी मेडिकल किट साथ ले जाना न भूलें।

·       सही समय का चुनाव: केदारनाथ की यात्रा के लिए मई से अक्टूबर का समय सबसे उत्तम माना जाता है। इस दौरान मौसम अनुकूल होता है और यात्रा के दौरान बर्फबारी का सामना नहीं करना पड़ता।

·       सामान और कपड़े: गर्म कपड़े, बरसाती, टोपी, दस्ताने, और ऊनी मोज़े अवश्य रखें। साथ ही खाने-पीने की हल्की चीज़ें जैसे कि ड्राई फ्रूट्स और चॉकलेट भी साथ रखें।

·       सावधानी: रास्ते में कहीं भी थकावट महसूस हो तो तुरंत आराम करें। तेज धूप, बारिश, और ठंड से बचाव के लिए उचित कपड़े पहनें और पूरी यात्रा के दौरान हाइड्रेटेड रहें।

गंगोत्री से केदारनाथ की यात्रा एक ज़िंदगी भर याद रहने वाली यात्रा है । गंगोत्री की शीतल धारा से शुरू होकर केदारनाथ के पवित्र ज्योतिर्लिंग तक का यह सफर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि प्राकृतिक सुंदरता से भी परिपूर्ण है। जैसे-जैसे आप गौरीकुंड से केदारनाथ की ओर बढ़ते हैं, हिमालय की ऊँचाइयाँ और बर्फीली चोटियाँ आपकी यात्रा को अद्भुत बनाती हैं। यह यात्रा कठिन हो सकती है, लेकिन जब आप केदारनाथ मंदिर के सामने पहुँचते हैं, तो सारी थकान एक पल में गायब हो जाती है।

केदारनाथ के मंदिर में भगवान शिव के दर्शन कर आपको आत्मिक शांति और अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त होता है। यह यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसे करने के बाद आप अपनी आंतरिक शक्ति को भी पहचानते हैं।

केदारनाथ से बद्रीनाथ यात्रा:
चार धाम यात्रा के दौरान केदारनाथ और बद्रीनाथ का सफर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह एक साहसिक और अद्वितीय अनुभव भी है।

बद्रीनाथ: बद्रीनाथ धाम, भगवान विष्णु को समर्पित है और यह चार धाम यात्रा का अंतिम और सबसे प्रमुख स्थल है। बद्रीनाथ धाम समुद्र तल से 3,133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है।

कैसे पहुँचे बद्रीनाथ
·       केदारनाथ से बद्रीनाथ की दूरी लगभग 218 किलोमीटर है। यह यात्रा दो प्रमुख मार्गों से की जा सकती है: केदारनाथ से गौरीकुंड: केदारनाथ से गौरीकुंड की दूरी लगभग 16 किलोमीटर है। यह दूरी पैदल, घोड़े, खच्चर, या पालकी द्वारा तय की जा सकती है। पैदल यात्रा में लगभग 6 से 8 घंटे लग सकते हैं, जबकि घोड़े या पालकी से यह दूरी 4 से 5 घंटे में तय की जा सकती है।

·       गौरीकुंड से बद्रीनाथ: गौरीकुंड से बद्रीनाथ के लिए सड़क मार्ग से यात्रा की जाती है। गौरीकुंड से पहले आपको सोनप्रयाग, फिर रुद्रप्रयाग और उसके बाद जोशीमठ होते हुए बद्रीनाथ जाना होता है। यह यात्रा लगभग 10-12 घंटे का समय लेती है, जिसमें रास्ते की प्राकृतिक सुंदरता और गंगा-भागीरथी संगम का नजारा आपको मंत्रमुग्ध कर देता है।

बद्रीनाथ कैसे पहुंचे

यहाँ से सड़क मार्ग से यात्रा की जाती  है। केदारनाथ से बद्रीनाथ की यात्रा के लिए आप पहले सोनप्रयाग पहुंचें और फिर गौरीकुंड से बस या टैक्सी द्वारा बद्रीनाथ की ओर बढ़ सकते हैं।

यात्रा के साधन: पैदल, घोड़ा, पालकी या हेलीकॉप्टर
केदारनाथ से बद्रीनाथ के बीच यात्रा के लिए कई साधन उपलब्ध हैं:

·       पैदल: पैदल यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह एक कठिन लेकिन अत्यंत पुण्यदायी मार्ग है। पहाड़ों की चढ़ाई और प्राकृतिक सौंदर्य इस यात्रा को और भी खास बनाते हैं।

·       घोड़ा/पालकी: अगर आप शारीरिक रूप से सक्षम नहीं हैं, तो घोड़ा या पालकी एक अच्छा विकल्प है। घोड़े की सवारी में प्रति किलोमीटर लगभग ₹350-₹500 का खर्च आता है, जबकि पालकी के लिए यह खर्च ₹4000-₹6000 तक हो सकता है। इस यात्रा में लगभग 4-5 घंटे का समय लगता है।

·       हेलीकॉप्टर: समय की कमी और शारीरिक कठिनाई से बचने के लिए हेलीकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध है। केदारनाथ से बद्रीनाथ के बीच हेलीकॉप्टर की टिकट लगभग ₹7,000-₹9,000 प्रति व्यक्ति होती है। यह यात्रा केवल 15-20 मिनट में पूरी हो जाती है।

रहने की व्यवस्था

बद्रीनाथ में कई धर्मशालाएं, होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं, जहाँ श्रद्धालु ठहर सकते हैं। GMVN (गढ़वाल मंडल विकास निगम) के गेस्ट हाउस भी एक अच्छा विकल्प हैं। बद्रीनाथ में रहने की व्यवस्था पहले से बुक करना बेहतर रहता है, खासकर यात्रा के पीक सीजन में।

सावधानियाँ
ऊँचाई पर स्थित होने के कारण मौसम में अचानक बदलाव हो सकता है, इसलिए गर्म कपड़े साथ रखें।
बद्रीनाथ की यात्रा के दौरान अपने साथ पर्याप्त मात्रा में पानी, सूखे मेवे और प्राथमिक चिकित्सा का सामान रखें।
मौसम की जानकारी लेते रहें और स्थानीय प्रशासन के निर्देशों का पालन करें।
उच्च ऊँचाई पर यात्रा करने से पहले अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें, विशेषकर यदि आपको कोई स्वास्थ्य समस्या है।
हेमकुंड साहिब जैसे ऊँचाई वाले स्थानों पर यात्रा करते समय साँस की दिक्कतों से बचने के लिए आराम से चलें और बीच-बीच में रुककर आराम करें।


मेरे लिए केदारनाथ से बद्रीनाथ की यह यात्रा एक अद्वितीय और आध्यात्मिक अनुभव था। हिमालय की गोद में बसे इन पवित्र स्थलों का दर्शन करना मन को शांति और आत्मा को संतुष्टि देता है। जब आप इस यात्रा को खुद करेंगे, तो आप समझेंगे कि क्यों इस यात्रा को इतना पुण्यदायी और महत्वपूर्ण माना जाता है। यह न केवल भगवान के दर्शन की यात्रा है, बल्कि स्वयं को और प्रकृति को जानने और समझने का भी एक अवसर है।