Swayamvadhu - 15 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 15

The Author
Featured Books
  • द्वारावती - 73

    73नदी के प्रवाह में बहता हुआ उत्सव किसी अज्ञात स्थल पर पहुँच...

  • जंगल - भाग 10

    बात खत्म नहीं हुई थी। कौन कहता है, ज़िन्दगी कितने नुकिले सिरे...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 53

    अब आगे रूही ने रूद्र को शर्ट उतारते हुए देखा उसने अपनी नजर र...

  • बैरी पिया.... - 56

    अब तक : सीमा " पता नही मैम... । कई बार बेचारे को मारा पीटा भ...

  • साथिया - 127

    नेहा और आनंद के जाने  के बादसांझ तुरंत अपने कमरे में चली गई...

Categories
Share

स्वयंवधू - 15

वह मुझे गुस्से से घूर रही थी।
"आपने उसे क्या खिलाया?-नहीं! आपने उसे क्यों खिलाया?", उसने गुस्से से पूछा,
मैं उसके सवाल से अचरज में था, "वृषाली?...उसने बस पानी पिया और...उसने खून की उल्टी की। वो कैसी है?",
"वह कैसी है? मिस्टर बिजलानी आपने उसे बर्बाद कर दिया!", वह चिल्लाई,
उसके इस वाक्य से हर कोई स्तब्ध रह गया।
"चिंता करने कि ज़रूरत नहीं। हमे उसके गले का ऑपरेशन करने की ज़रूरत नहीं पड़ी...पर उसके गले कि अंदरूनी सतह लगभग पूरी तरह से तबाह हो गयी है।",
सरयू ने उत्तर दिया, "उसने जो कुछ भी खाया और पीया वह मेरे निरीक्षण पर तैयार किया गया था। आखिरी बार उसने सिर्फ सादा पानी पिया था।",
उसने भौंहें सिकोड़कर कहा, "यह किसी भी ड्रग्स के मुद्दे से संबंधित नहीं है- यह निश्चित रूप से एक शक्ति के द्वारा उत्पन्न किया गया मुद्दा है।",
"क्या तुम्हें उनका कोई सुराग मिला?", मुझे मोटे तौर पर तो अंदाज़ा था कि वो कौन-कौन हो सकता था।
"नहीं सर।", उसने शांति से कहा,
फिर सरयू ने कुछ पूछा कि जैसे ही वह उठे तो मुझे उसकी नियति के रूप में क्या करना चाहिए, "अब इसे क्या करना होगा?",
वह एक सेकंड के लिए रुकी और बोली, "सर को बेहतर पता होना चाहिए।",
"ठीक होने में कितना समय लगेगा?", मैंने पूछा,
मैं कुछ भी आधिकारिक नहीं कर सकता। मैं कुछ भी आधिकारिक नहीं करना चाहता। वह अपने जीवन में मेरे बिना अच्छी होगी। मैं समय पर था जब समीर के आदमी और वो दोंनो, दोंनो शक्तिशाली शक्ति का अपहरण करने वाले थे। मैं समय पर था और सबसे कमज़ोर होने के कारण मैंने उसका अपहरण कर पाया। मैंने हर तरह से सुनिश्चित करने कि कोशिश की वह अकेले अपने लिए लड़ सके... पर चीजें योजना के अनुसार नहीं चल रही थी। 

वह अगले दिन सुबह उठी, तो आधी स्तब्ध थी। वह दर्द से करहा भी नहीं पा रही थी। केवल एक को उसके परिचारक के रूप में रहने की अनुमति थी और उसने मुझसे ऐसा करवाया। मैंने तुरंत राधिका को बुलाया। उसने उसकी जाँच की और उसे चुप रहने के लिए कहा, चाहे वह कितना भी दर्द में हो।
वह दर्द से तड़प रही थी पर शांति से सब कुछ सुन रही थी। यह अतिश्योक्ति लग सकता है पर वह माहौल के हिसाब से ढलना खूब जानती थी।
"तुम्हें कैसा लग रहा है? जैसे तुम्हारा गला में आग हो या खंजर बार-बार घोपा गया हो और अब भी घोंप रहा हो?", राधिका ने उससे पूछा,
उसने दोंनो में पलके बड़ी मुश्किल से झपकाई। 
"इससे बहुत दर्द हो रहा होगा ना? ठीक है?", राधिका ने मीठे स्वर में पूछा,

कुछ देर पहले राधिका मुझे अपने कमरे में मुझे, उसे अपनी ऊर्जा का एक छोटा सा हिस्सा उसे खिलाने के लिए कहा। मैं चकित रह गया। मुझे जानता था कि वह जानती थी कि ऊर्जा का आदान-प्रदान का अर्थ क्या होता है? यह तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि यह दोनों तरफ से आधिकारिक बंधन ना हो।
"मैं ऐसा नहीं कर सकता, यह उस पर अपना अधिकार जताने जैसा होगा। यह उसके साथ अन्याय है।", मैं कतई उसके साथ ऐसा नहीं कर सकता।
"तो शायद मुझे उसका पेट काटकर ट्यूब डाल देना चाहिए ताकि वो किसकी वजह से भूखी ना मारे।",
"तुम क्या करने वाली हो?",
उसने अपनी नौटंकी शुरू कर दी।
मुझे लगा मैंने ठीक से नहीं सुना।
"आपने सही सुना। किसी की शक्ति से उत्पन्न घावों को सामान्य दवा उसे ठीक नहीं किया जा सकता, इसका मतलब है कि उसे इस तरह जीना सीखना होगा! उसमें आपकी आधी ऊर्जा है और जीवशक्ति भी। इसलिए यदि आप चाहें तो वह शीघ्र-अतिशीघ्र ठीक हो सकती है।"
"हम अपनी जीवन शक्ति साझा करने का यह मतलब नहीं कि तुम उसे मेरे साथ बाँध दो। यह उसके साथ अन्याय होगा!",
"कौन सा अन्याय ज़्यादा होगा? जब आप उसे बचा सकते हैं तो उसे मरने के लिए मजबूर करना? या अपने भाग्य को स्वीकार करना और उसकी मदद करना क्योंकि यह आपका कर्तव्य है?
तो आप क्या चुनेंगे, उसे मरने दें या जीने दें? अगर उसे मरना है तो मैं अभी जा रही हूँ ताकि वह और ना तड़पे।",
"कहाँ?", मैंने पूछा,
कैंची उठाकर, "उसका पेट काटने!",
"रुको!", मैं अभी भी अनिच्छुक था लेकिन जानता था कि क्या करना चाहिए।
फिर उसने कहा, "मुझे लगता है कि आप भूल गए। मुझे पता था कि ऐसा होगा। उस समय आप उस पर इतना ध्यान केंद्रित कर रहे थे कि आपको एहसास भी नहीं हुआ होगा कि मैंने क्या माँगा था?" वह रुकी और मुझसे मेरे लॉकेट का रंग जाँचने को कहा, यह गहरा गुलाबी था।
"और उसकी अंगूठी लाल रंग की था। इसका मतलब है कि आप अनजाने में उसके प्यार में पड़ गए हैं। आप सहमत हों या ना हों, आप उसे इस हद तक पसंद करने लगे हैं कि आप खुद नहीं जानते सर।",
"हाँ, मैं आपसे सहमत हूँ, राधिका। वह वृषाली के बारे में अधिक अधिकारपूर्ण हैं।", हम बातें कर रहे थे तभी सरयू कहते हुए आया।
वह जो कह रहा था, उससे वह बहुत आश्वस्त था, "वृषा, मैं जानता हूँ कि तुम और वह अनजाने में एक-दूसरे के प्यार के रास्ते पर चल पड़े हो, लेकिन समस्या यह है कि तुम दोनों अपनी भावना पकड़ने में बहुत पीछे हो। इससे पहले कि दूसरे उस पर दावा करें और अपना खिलौना बना ले। जाओ!",
(अपने पिता का दास, उन्हीं के रहम पर जीवित! मेरा जीवन कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिस पर मैं गर्व कर सकूँ।)
"मैं- पुष्पी के फूल का रस तुम्हें भिजवा दिया जाएगा। उसे पिला देना।",
*- पुष्पी फूल का रस, शक्ति द्वारा दी गया घावों पर इस्तेमाल किया जाने वाला औषधी है।
"वो अपना थूक भी निगल नहीं सकती। निगल सकती क्या, वो अपने होंठ भी हिला नहीं सकती। वो अपनी किस्मत पर सिसक भी नहीं सकती, सर!",
"...", मैं कुछ नहीं कह सका,
"तो मैं उसे काटने जा रही हूँ।", वो कैंची ले बाहर निकल गयी।
उसी क्षण बिना सोचे-समझे मैं, "नहीं! मैं-मैं करूँगा। पर कोई भी मेरा फैसला नहीं बदल सकता। उसे देश छोड़ना होगा और गुमनामी में जीना होगा।",
"तुम बहुत नरम हो।", दोनों ने टिप्पणी की,
मैंने बातचीत समाप्त कर दी लेकिन उसे जिस ऊर्जा की आवश्यकता थी वह कवच की थी और अर्धकवच होने के नाते मुझमें प्रवाहित हो रही थी।
(क्या मुझे पुष्पी उपयोग करना चाहिए या नहीं?)
किसी भी तरह मैं राधिका से सहमत था। मैं बिना माता-पिता के अनुमति के उनके बच्चे को कैसे काट सकता था? उसने मुझसे बस कुछ ऊर्जा देने के लिए कहा ताकि वह भूखी ना रहे और ठीक हो सके। मैं उसकी देखभाल कर रहा था क्योंकि मैं वृषाली के आसपास सरयू (वृषा को अपनी बहन की देखभाल करने के लिए मजबूर कियाऔर उसे धमकाया।) को छोड़ किसी पर भी भरोसा नहीं कर सकता और उसे मुझ पर विश्वास नहीं था।
मैं मानता हूँ कि जब उसे मेरी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी तब मैंने उसके साथ जो व्यवहार किया वह सबसे क्रूर था। वह मुझसे डरती थी, यहाँ तक कि मेरी नज़र ही उसे डराने के लिए काफी थी। वह मुझसे बचती रही।
सरयू के शब्द मेरे कानों में गूँज रहे थे।
मैंने उसकी लार पोंछी।
(क्या वह इतनी स्थिर थी कि मेरी ऊर्जा सोख ले?)
कई दवाओं के बाद वह शांति से सोने में सक्षम रही। वह ना तो उठ सकती थी और ना ही अपना सिर थोड़ा सा भी हिला सकती थी। दिव्या और साक्षी अपनी प्रतियोगिता में व्यस्त थीं, सरयू घर में व्यस्त था। मैं उसके साथ अकेला था और वह मेरी परछाई से भी डर रही थी। अब जब वह सो रही थी तो मैं वह कर सकता था जो मुझे करना था। मैंने अपनी शक्ति को अपने लॉकेट में केंद्रित करने कि कोशिश की लेकिन असफल रहा। मैंने कई बार कोशिश की लेकिन असफल रहा। मैं थक गया था उसके पास बैठ खुद को कोस रहा था, फिर सोते समय उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और हल्के मुस्कुरा मैं उसके सिर को धीरे-धीरे सहला रहा था।
"बुद्धू बच्चा। दूसरो के लिए कौन खुद को मारता है? तुम्हें, अपने मासूमियत को मुझ जैसो के वजह से त्यागने की कोई अवश्यकता नहीं है। तम अपनी आभा मत खो।"
कहते मैं महसूस कर सकता था कि मेरी ऊर्जा लॉकेट में जमा होने लगी एक बार जब यह चमक गया तो यह मेरा मौका था। जैसे ही वह चमका, मैंने उसका बायां हाथ पकड़ा और हमारे पत्थरों को छुआ। जैसे-जैसे शक्ति संचारित हो रही थी, उसकी अंगूठी आकाश और समुद्र कि तरह हल्के नीले रंग में चमकने लगी फिर वही सामान्य लाल रंग।
अर्ध-महाशक्ति के रूप में उसकी स्थिति को देखते हुए उसे कम से कम दो दिनों तक सोना चाहिए। इस बीच मुझे कॉर्पोरेट दोस्ती के बारे में कुछ करना चाहिए।

मैं लॉबी में अपने फोन पर था। मैंने अपने बगल वाले दरवाज़े से दुर्घटना की आवाज़ सुनी। परिवार वाले जमा हो रहे थे। रो रहे थे।
तब किसी बुज़ुर्ग को कहते हुए सुना, "यही जीवन का सत्य है। जीना, मरना अपने हाथ में नहीं है, है तो बस कर्म! जिस तरह तुम्हारे पिता ने तुम्हारी माँ के देहांत के बाद तुम्हें संभाला, पाल-पोसकर बड़ा किया, तुमलोगो की शादी करवाई और तुम्हें हर मुसीबत का सामना करना सिखाया, उसने अपना फ़र्ज़ पूरा किया अब उसे ज़िम्मेदारी से मुक्त करो और उसके आगे के सफ़र के लिए उसका साथ दो और उसे जाने दो। उसकी तरह अपने कर्म पर भरोसा रखो और इस सीख को अगली पीड़ा तक पहुँचाओ।",
('कर्म पर भरोसा रखो और उसे जाने दो'?)- वृषा।
"जाने देने के लिए उसकी याद को जड़ से मिटाना ज़रूरी नहीं। उसे अपने दिल में संजो।", बुजुर्ग ने कहा।
मैंने उस शव को प्रणाम किया।
फोन में-
"विराज वीर? मुझे पता है कि तुम अधिक सक्षम हो इसलिए मैं मदद करने के बारे में सकता हूँ। पर मेरी कुछ शर्त है।", यही एक रास्ता था,
"मंज़ूर है।", जैसा मेरा अंदाज़ा था, उसने मेरी शर्त बिना सुने मान ली,
"समझ गया।"

मैं वृषाली को देखने के लिए उसके कमरे में गया। सरयू को मेरी जगह उसकी देखभाल करने के लिए कह, अपना कर्म करने चला गया।
दो दिन के काम के बाद जब मैं उसे चेक करने गया वह जगी हुई थी और सबकी बात पर मुस्कुरा भी रही थी। इस बार मेरे अंदर जाने से वह ना तो चौंकी ना तो घबराई बस मुझे नज़रअंदाज कर दिया।
उसके बाद मैं राधिका के ऑफिस गया, जहाँ मुझे पता चला कि किसी ने उसका अपहरण करने की कोशिश की थी, लेकिन असफल रहा। जब मैं बाहर जा रहा था तब मैंने उसे सुरक्षा कवच से ढक दिया था। वह भागने में सफल रहा लेकिन उसने कार्ड गिरा दिया।
"क्या सरयू ने उसका पता लगा लिया?", मैंने सामान्य रूप से पूछा लेकिन मुझे अंदर से पता था कि यह तो नरक की शुरुआत थी।
कुछ दिनों कि और ऊर्जा वितरण के बाद उसने पहली बार तरल पदार्थ जैसे पीना पीया। उसने दर्द के कारण उसे उगल दिया। कुछ और अनिच्छुक प्रयासों के बाद उसकी हालत स्थिर हो गई, तो उसकी सुरक्षा के लिए उसे छुट्टी दे दी गई।

मैंने उससे पूछा कि क्या वह मुझसे डरती है या नहीं? उसने मुझसे नज़रे चुरा ली। वह अपने आप चलने-फिरने में असमर्थ थी, इसलिए मैंने उसे अस्पताल के बिस्तर से कार तक, फिर कार से घर तक और फिर अंततः उसके बिस्तर तक पहुँचाया। दिव्या और साक्षी उससे मिलने आई और उसके अच्छे होने की कामना की। वे शाम तक उसके साथ थे। तनावपूर्ण शाम के बाद वह अंततः दवाइयाँ लेने के बाद लेटते ही एक बच्चे की तरह सो रही थी। मैंने सब कुछ व्यवस्थित किया और बाहर चला गया।
वहाँ मेरी मुलाकात कायल से हुई जो मुझसे बात करना चाहती थी। वो मुझे बात करने के लिए छत पर गयी।