Ajib-si Sharuaat - 2 in Hindi Horror Stories by Abhishek Chaturvedi books and stories PDF | अजीब-सी शुरुआत - भाग 2

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

Categories
Share

अजीब-सी शुरुआत - भाग 2

अध्याय 2:
 हवेली का श्राप


राजवीर ने जब उस किताब का पहला पन्ना पलटा, तो उसके भीतर छिपे रहस्यों की गहराई ने उसे पूरी तरह से जकड़ लिया। किताब के पन्नों पर लिखी इबारतें एक अनजानी भाषा में थीं, जिसे वह समझ नहीं पा रहा था। लेकिन उन शब्दों के बीच छिपे चित्र और प्रतीक उसे एक अलग ही कहानी बयां कर रहे थे। 

तभी, हवेली के अंदर एक अजीब सी गूंज उठी। यह गूंज किसी जीवित प्राणी की आवाज नहीं थी, बल्कि यह मानो दीवारों से निकल रही हो। राजवीर ने चारों ओर देखा, लेकिन उसे कुछ नजर नहीं आया। वह समझ नहीं पा रहा था कि यह सब उसकी कल्पना है या सच में कुछ अनहोनी होने वाली है। 

उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि हवेली के अंदर कुछ अदृश्य शक्तियाँ सक्रिय हो गई हैं, जो उसकी हर हरकत पर नजर रख रही हैं। अचानक, हवेली के एक कोने में उसे कुछ हलचल होती दिखी। उसने टॉर्च की रोशनी उस दिशा में फेंकी, लेकिन वहां कुछ नहीं था। वह धीरे-धीरे उस कोने की ओर बढ़ा। 

हवेली के उस हिस्से में अजीब सी ठंडक थी, मानो सदियों से वहां कोई जीवित प्राणी नहीं आया हो। जैसे ही वह उस कोने के पास पहुंचा, उसे दीवार पर एक छोटा सा छेद दिखाई दिया। छेद के अंदर से हल्की रोशनी झांक रही थी। राजवीर ने सोचा कि शायद यह एक गुप्त दरवाजा हो सकता है। 

उसने दीवार के चारों ओर छानबीन की, और अचानक ही उसे दीवार पर एक पत्थर थोड़ी सी जगह पर हिला हुआ महसूस हुआ। उसने उस पत्थर को दबाया और तुरंत ही एक गुप्त दरवाजा खुल गया। दरवाजे के पीछे एक सीढ़ी थी, जो हवेली के नीचे एक गुप्त तहखाने में जा रही थी। 

राजवीर ने बिना समय गवाएं सीढ़ियों से नीचे उतरना शुरू किया। नीचे जाने पर उसे महसूस हुआ कि वह एक बड़े कमरे में पहुंच गया है, जिसकी दीवारों पर पुरानी पेंटिंग्स लगी हुई थीं। पेंटिंग्स में ऐसी छवियां बनी हुई थीं, जो मानो किसी प्राचीन सभ्यता से संबंधित हों। 

अचानक, उसकी नजर एक बड़ी पेंटिंग पर पड़ी। यह पेंटिंग एक राजसी व्यक्ति की थी, जिसके चेहरे पर रहस्यमय मुस्कान थी। पेंटिंग के नीचे कुछ लिखा हुआ था। राजवीर ने नजदीक जाकर देखा। लिखा था, "जो इस रहस्य को उजागर करेगा, वह अपने अतीत से बच नहीं सकेगा।"

यह वाक्य पढ़ते ही राजवीर को अपने शरीर में अजीब सी सिहरन महसूस हुई। वह समझ नहीं पा रहा था कि इस वाक्य का क्या अर्थ है, लेकिन उसे यह अहसास हो रहा था कि वह कुछ बहुत बड़ा और खतरनाक करने जा रहा है। 

राजवीर ने कमरे के बीच में रखे एक पुराने ताबूत पर नजर डाली। ताबूत के ऊपर भी वही प्रतीक चिन्ह बने हुए थे, जो उसने हवेली के दरवाजे पर देखे थे। उसने डरते हुए ताबूत का ढक्कन उठाया। ताबूत के अंदर एक पुरानी तलवार और एक छोटी सी चमकती हुई वस्तु थी। वह वस्तु एक छोटा सा ताबीज था, जो हल्की रोशनी बिखेर रहा था। 

जैसे ही राजवीर ने ताबीज को छुआ, अचानक हवेली के अंदर का माहौल बदल गया। हवेली के चारों ओर की दीवारें हिलने लगीं, और उसे ऐसा लगा जैसे पूरा भवन उसके ऊपर गिरने वाला है। वह तेजी से ताबूत को छोड़कर पीछे हट गया। 

तभी, उसे महसूस हुआ कि हवेली की हवा में बदलाव आ गया है। वह ठंडक जो अभी तक उसके चारों ओर थी, अब और भी तेज हो गई थी। उसे लगा कि शायद वह ताबीज कोई साधारण वस्तु नहीं थी, बल्कि उस पर कोई प्राचीन श्राप था।

राजवीर ने फौरन वहां से निकलने का फैसला किया। वह तेजी से ऊपर की ओर भागा, लेकिन तभी उसने सुना, कोई उसके पीछे आ रहा है। उसके कानों में एक धीमी सी फुसफुसाहट गूंजने लगी। 

"तुमने उसे छुआ है, अब तुम नहीं बचोगे," यह आवाज उसके पीछे से आई थी।

राजवीर के कदम और तेज हो गए। वह भागता हुआ बाहर निकला और हवेली का दरवाजा बंद कर दिया। लेकिन दरवाजा बंद होते ही उसने महसूस किया कि उसके हाथ में अभी भी वह ताबीज था। 

वह समझ नहीं पा रहा था कि अब क्या करे। वह हवेली से बाहर तो आ गया था, लेकिन अब वह उस रहस्यमयी ताबीज का मालिक बन चुका था, जो शायद उसके जीवन का सबसे बड़ा खतरा साबित हो सकता था।

क्या राजवीर उस श्राप से बच पाएगा? क्या वह उस ताबीज के रहस्य को सुलझा पाएगा, या फिर वह भी हवेली के श्राप का शिकार बन जाएगा?


**अध्याय 3: ताबीज का रहस्य**

(जारी...)