Sunee Haveli - Part - 8 in Hindi Crime Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | सूनी हवेली - भाग - 8

Featured Books
  • ભાગવત રહસ્ય - 149

    ભાગવત રહસ્ય-૧૪૯   કર્મની નિંદા ભાગવતમાં નથી. પણ સકામ કર્મની...

  • નિતુ - પ્રકરણ 64

    નિતુ : ૬૪(નવીન)નિતુ મનોમન સહજ ખુશ હતી, કારણ કે તેનો એક ડર ઓછ...

  • સંઘર્ષ - પ્રકરણ 20

    સિંહાસન સિરીઝ સિદ્ધાર્થ છાયા Disclaimer: સિંહાસન સિરીઝની તમા...

  • પિતા

    માઁ આપણને જન્મ આપે છે,આપણુ જતન કરે છે,પરિવાર નું ધ્યાન રાખે...

  • રહસ્ય,રહસ્ય અને રહસ્ય

    આપણને હંમેશા રહસ્ય ગમતું હોય છે કારણકે તેમાં એવું તત્વ હોય છ...

Categories
Share

सूनी हवेली - भाग - 8

अनन्या बार-बार दिग्विजय के कमरे के बाहर यहाँ से वहाँ घूम रही थी। दिग्विजय भी ऐसे ही किसी मौके की तलाश में था। दोनों का इरादा एक ही था, उनके बदन आग की तरह तप रहे थे।

आखिरकार वह उठकर बैठ गया और उसने अनन्या को आवाज़ दी, "अनन्या!"

अनन्या ने पहली ही आवाज़ पर जवाब दिया, "जी सर, क्या बात है?"

"अनन्या, एक गिलास पानी ला दो।"

"लाती हूँ," कहते हुए वह कुछ ही पलों में पानी का गिलास लेकर अंदर आ गई।

इस समय उसने काले रंग का पतला-सा गाउन पहना हुआ था। उसे इस तरह आते देखकर दिग्विजय की आंखें उस पर जा टिकीं। उसने कहा, "अनन्या दर्द के कारण मेरा सर फटा जा रहा है। यशोधरा भी नहीं है वरना वह दबा देती।"

यह शब्द क्यों बोल गए थे अनन्या जानती थी। उसने कहा, "कोई बात नहीं मैं हूँ ना सर, मैं उनकी कमी पूरी कर दूंगी," कहते हुए वह दिग्विजय के सिरहाने बैठ गई और अपनी कोमल उंगलियों को उसके माथे पर सहलाने लगी।

अनन्या का सर दबाने का अंदाज़ बिल्कुल अलग था और वह अंदाज़ ही दिग्विजय को इस तरह हरा सिग्नल दे रहा था कि तुम जो चाहो कर सकते हो मैं तैयार हूँ। इस समय वहाँ सन्नाटा था इसलिए दोनों के दिलों की धड़कनों की आवाज़ और गति साफ-साफ उन्हें सुनाई दे रही थी।

दिग्विजय ने अपनी बड़ी-बड़ी आंखों को जैसे ही ऊपर की तरफ़ उठाया जहाँ अनन्या की आंखें उसकी आंखों से मिलीं तो वह शरमा गई। तब दिग्विजय ने बिना देर किए उसे खींच कर अपने सीने से लगा लिया और उसके होठों को अनन्या के होठों के ऊपर मानो सील ही कर दिया। इस काली रात को उन्होंने उनके जीवन की यादगार रात बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वह एक दूसरे में नाग और नागिन की तरह लिपटते ही जा रहे थे। उसके बाद उन्हें बिल्कुल भी समय नहीं लगा और वह दोनों दो से एक हो गए। इस समय वह दोनों सुख की उन गलियों में सैर कर रहे थे जहाँ से वापस निकल पाना इतना आसान नहीं होता। जहाँ इस समय दिग्विजय को असीम सुख की प्राप्ति हो रही थी वहीं अनन्या को भी सुख के साथ ही साथ सफलता का एहसास भी हो रहा था।

काफ़ी दिनों तक एक दूसरे के लिए तड़पने के बाद आज के इस मिलन ने उनकी हसरतों को पूरा कर दिया। वह दोनों बहुत देर तक एक दूसरे को बाँहों में लिए प्यार से बातें कर रहे थे और बार-बार एक दूसरे का चुंबन ले रहे थे।

दिग्विजय ने कहा, "अनन्या आज की यह रात मेरे जीवन की सबसे खूबसूरत रात है। इतनी सुंदर रात मैंने पहले कभी नहीं महसूस की। तुम सच में अप्सरा जैसी ही हो, जितनी खूबसूरत हो उतनी ही मनमोहक भी हो। मर्द को जीतना तुम्हें अच्छी तरह आता है। तुम्हारे अंदाज़ ने तो मुझे दीवाना ही कर दिया है। अब तो मुझे हर रात ऐसी ही सुहाग रात का इंतज़ार रहेगा। "

"अनन्या क्या तुम्हारे साथ यह सब पहले कभी ...?"

"जी नहीं कभी नहीं। आपने ही शुरुआत की है।"

"तो कैसा लगा तुम्हें?"

"इस अनुभव को मैं शब्दों में बयाँ नहीं कर सकती परंतु इसे दोहराना ज़रूर चाहती हूँ। हर रात तुम्हारे साथ तुम्हारी बाँहों में गुजारना चाहती हूँ परंतु डरती हूँ तुम्हारी पत्नी आ गई तब ...? तब क्या होगा? कैसे होगा?"

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः