Hotel Haunted - 66 in Hindi Horror Stories by Prem Rathod books and stories PDF | हॉंटेल होन्टेड - भाग - 66

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हॉंटेल होन्टेड - भाग - 66

मैं जल्दी से दौड़ते हुए ऊपर गया क्योंकि वो आवाज आंशिका के कमरे से आई थी,ऊपर पहुंचकर देखा तो कमरा वैसे ही बंद था जैसे हम उसे छोड़कर गए थे और उस पर वही कलावा बंधा हुआ था जो उस आत्मा की शक्तियों को रोकने के लिए था,मैंने थोड़ा आगे बढ़ाकर उस कमरे की खिड़की से अंदर देखा तो आंशिका होश मैं आ चुकी थी पर उसके अंदर का वो शैतान बाहर निकलने के लिए पूरी कोशिश कर रहा था, मैं हर पल उसके मासूम चेहरे को देख रहा था जो हमेशा प्यार से खिला रहता था,उस पर एक शैतान ने जगह ले ली थी,इतनी आवाज़ें सुनकर बाकी सब भी ऊपर आने लगे,सब लोग बस खुली आंखों से आंशिका के बर्ताव को देख रहे थे,वो गुस्से मैं अपना पूरा जोर लगा रही थी पर उस कलावे की वजह से उसकी ताक़त काम नहीं कर रही थी,अपनी ताकत लगाते हुए वो अपनी कलाई पूरी तरह खींच रही थी,जिसकी वजह से उसका हाथ छिल चुका था जिसमे से खून बहने लगा था,वो गुस्से से चिल्लाते हुए बोल रही थी,"छोड़ मुझे कमीने.....तुझे क्या लगता हैं तू मुझे हमेशा के लिए रोक पाएगा,ये सब खिलौने तेरे कुछ काम नही आने वाले, नहीं छोडूंगी....मैं तुम में से किसी को नहीं छोडूंगी.....तुम्हारे इतने टुकड़े करुंगी की किसी को एक नाखून तक हाथ मैं नही आएगा।" इतना कहने के बाद वो ऊपर देखकर बोलने लगी,"बस कुछ दिन ओर इंतज़ार करो फिर हम एक हो जाएंगे,हमे कोई अलग नही कर पायेगा।" इतना बोलकर वो जोरो से हंसने लगी,यह नजारा देखकर विवेक के कदम पीछे होते गए,वो रेलिंग का सहारा लेकर खड़ा हो गया,"ये सब मेरी वजह से हुआ है,मुझे नही पता था की मेरी एक गलती की वजह से यह सब....."
"अब regret करने से कोई फायदा नही है,तुमने जो हमारे trust को तोड़ा है उसके लिए तुम्हे कोई माफी नही मिल सकती।" जेनी गुस्से के साथ बोल पड़ी।
"ये वक्त इन सब बाते करने का नही है,मिलन जल्द से जल्द इन सब के वापस जाने का इंतजाम करो।"
"अब तो हमने उस आत्मा को पकड़ लिया है तो फिर तुम सब भी हमारे साथ चलो।"
"नही मिस मैं ऐसा नहीं कर सकता इसमें बहुत खतरा है।"
"आखिर क्यों" मिस ने हैरान होते हुए पूछा।
"क्योंकि यह एक और आत्मा भी है।" मेरी बात सुनकर सभी के शरीर मैं जैसे खून ही रुक गया हो सब एक साथ बोल पड़े,"क्या.....!!??"
"आखिर तुम्हे कैसे पता? क्या तुम्हे ये बात उस बाबा ने बताई?" अविनाश ने अपना सवाल रखा।
"नही पर जब हमने आंशिका को पकड़ने के लिए candles जलाई थी तब मुझे इसके बारे मैं पता चला क्योंकि जब एक आत्मा इंसानी शरीर पर कब्ज़ा कर लेती ही तो सिर्फ उस इंसान के शरीर की एक ही परछाई दिखती है पर जब आंशिका सामने खड़ी थी तब कैंडल्स की रोशनी मैं मुझे आंशिका के अलावा मुझे कई साये जमीन पर दिखे जो सिर्फ एक छलावा था,जो सिर्फ हमारी मुश्किल बढ़ा रहा था पर मैं इतना ज़रूर के सकता हूं की वो आत्मा इस आत्मा से भी ज्यादा ताकतवर है वो अभी सोई हुई है और सही मौके का इंतज़ार कर रही है।"
"यह तू कैसे कह सकता है?" भाई ने अपना सवाल रखा।
"क्योंकि अगर वो पूरी ताकत के साथ उस आत्मा से मिल जाती तो आज हमारा जिंदा बचना मुश्किल था पर जो कुछ भी हो वो मुझे आंशिका को यहां से नही ले जाने देगी।" मेरी यह बात सुनकर वहा सन्नाटा छा गया था तभी अभिनव बोल पड़ा,"अगर ऐसी बात है तो हम सब क्या दूसरों के मरने का इंतज़ार कर रहे है?इसने कहा वो आंशिका को नही ले जा सकता पर हम सब तो जा ही सकते है।" अभिनव की यह बात सुनकर सबने हामी भरी,मैं भी यही चाहता था की सब इस जगह से दूर रहे।
"मैं कही नही जाऊंगा" सबके पीछे खड़े हुए विवेक ने कहा,"वो जो कोई भी हो उस कमीने की वजह से मेरे पापा आज इस दुनिया मैं नही है जिसका बदला मैं उसे जरूर लूंगा।"
"देखो विवेक जज्बाती मत बनो तुम नही जानते इसमें इतना खतरा है जो तुम सोच भी नही सकते हो"अभी मैने अपनी बात खत्म की थी तभी निशा और आर्यन भी बोल पड़े,"ये हम तीनों के फैसला है।" उनका यह confidence देखकर मैने कुछ नही कहा।

"तुम सब को यहां मरना है तो रुको पर मैं जल्द से जल्द यहा से निकलना चाहता हूं।" ये सुनकर सब लोग नीचे जाकर अपना अपना समान लेकर बाहर की ओर जाने लगे बाहर जाने से पहले मिस ने उपर देखा तो मैं उन सब की ओर देख रहा था, आखिर वो भी सबके पीछे चलने लगी तभी उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा जो हर situation मैं मेरे साथ खड़ी रहती थी,"तूने सब लोगो को जाने के लिए तो कह दिया पर अब आगे क्या करेंगे?"
"अब मुझे वहा जाना होगा जहां मुझे मेरे अतीत के सवालों के जवाब मिल सकते है उसके बिना हम इस लड़ाई को नही जीत सकते।"
"पर ऐसी कौनसी......." अभी ट्रिश ने इतना ही पूछा था की नीचे से किसके चिल्लाने की आवाज सुनाई दी।
नीचे से किसी के चिल्लाने की आवाज सुनकर मैंने ट्रिश ने एक दूसरे की ओर देखा और तेज़ी दौड़ते हुए नीचे पहुंच गए,नीचे पहुंचकर देखा तो रिजॉर्ट का गेट खुला हुआ था,सब लोग यहां से जाने के लिए बाहर निकलें थे पर मैंने सामने देखा तो अविनाश को खून की उल्टी हो रही थी,तो अनमोल की खाँसी नहीं रुक रही थी,वो इतनी तेज़ी से खास रहा था कि उसकी नाक से खून निकल रहा था,दूसरी ओर मिस सांस नहीं ले पा रही थी, वो अपना गला पकड़कर सांस लेने की कोशिश कर रही थी, श्रुति भी नीचे ज़मीन पर बेहोश पड़ी हुई थी और अभिनव पागलों की तरह अपना हाथ खुजा रहा था,जिससे उसका पूरा हाथ छिल गया था और हाथ से खून बह रहा था।
वहा हर्ष बाहर खड़े होकर घबराई हुई नजरो से सबको देख रहा था, अचानक से यह सब हो जाने की वजह से उसे समझ नही आया की क्या करे?हम सब रिजॉर्ट के अंदर गेट के पास खड़े थे,हम सभी को ऐसे खड़े देखकर हर्ष ने हमारी तरफ देखकर कहा,"तुम सब वहा ऐसे क्यों खड़े हो.....जल्दी से मेरी मदद करो....." विवेक, आर्यन और मिलन तीनों बाहर की तरफ भागे ही थे कि श्रेयस ने पीछे से चिल्लाते हुए कहा, "कोई एक कदम भी बाहर मत रखना....सब वहीं खड़े रहो" मेरी बात सुनते ही तीनों रुक गए और ट्रिश भी आगे बढ़ने वाली थी तभी मैंने उसका हाथ पकड़ लिया,वो सब मेरी ओर देख रहे थे।

"क्या कर रहा है श्रेयस!? हमें उनकी मदद करनी चाहिए" ट्रिश ने अपनी बात कही
"नहीं तुम सब यहीं खड़े रहो" कहते हुए मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ा और अपना एक पैर उठा के रिज़ॉर्ट के गेट के बाहर रखा और इतंजार करने लगा पर मेरे शरीर मैं कोई हरकत नहीं हुई, तो मैंने दूसरा पैर भी बाहर रख दिया,दिल ज़ोरों से धड़क रहा था लेकिन मुझे अभी तक कुछ नहीं हुआ था, "श्रेयस क्या कर रहा है.....पागल हो गया क्या तू मर जाएंगे ये सब" कहते हुए मिलन जल्दबाजी मैं जैसे ही बाहर निकला "आआआआहहह....... " चीखते हुए उसने अपना सर पकड़ लिया।
श्रेयस ने देखा तो जैसे उसकी पूरी skin जल रही हो वैसी लाल हो चुकी थी यह देखकर श्रेयस ने तुरंत उसे अंदर धक्का दे दिया,"मैंने कहा ना कोई बाहर नहीं आएगा" इतना कहकर मैने भाई की ओर देखा,जो बिना कुछ बोले इधर उधर देख रहा था,"भाई" उसने नहीं सुना,"भाई....." इस बार जोर से चिल्लाया, मेरी आवाज़ सुनकर वो सकपकाते हुआ मेरी तरफ देखने लगा,"तू ठीक है ना?" मेरा दूसरा सवाल सुन कर उसने हां में गर्दन हिलाई जिससे सुनकर मुझे शांति मिली,"ठीक है.....तो देख, हम दोनों को ही इन सब को उठाकर अंदर ले जाना है, ठीक है??" मैंने ज़ोर से चिल्लाते हुए कहा, मेरी बात सुन कर उसने हां में गर्दन हिलाई, मैंने तुरंत मिस को एक कंधे के सहारे उठाया और दूसरे कंधे के सहारे पर अभिनव को और अंदर ले आया, पीछे-पीछे हर्ष ने घबराते हुए अविनाश को एक कंधा का सहारा दिया और दूसरे कंधे पर अनमोल को डालकर अंदर लाया। "तुम सब इन सब को हॉल मैं ले चलो, मैं श्रुति को लेकर आता हूँ।" मैंने इतना कहा और श्रुति को लेने बाहर चला गया, श्रुति बेहोश पड़ी थी इसलिए मैंने उसे गोद में उठाया और अंदर सोफे पर लाकर लिटा दिया।

अंदर आकर देखा तो अब सब लोग नॉर्मल लग रहे थे,प्रिया श्रुति के बगल मैं बैठी उसकी मदद कर रही थी,हॉल मैं आकर मैंने सबसे पूछा,"अब कैसे हो तुम सब?"
"मरते मरते बचे हैं और कुछ?" अनमोल ने बड़ी रूड टोन में कहा। उसके जवाब के तरीके से मैं समझ गया कि सब की हालत कैसी है।
"पर अचानक से आपको ये सब क्या हुआ?" मेरे साथ बैठते हुए तृष्टि ने पूछा। अविनाश ने पानी पिया और एक गहरी सांस लेते हुए बोलना शुरू किया, "पता नहीं लेकिन बाहर पहुंचते ही मुझे ऐसा लगा मानो मेरे अंदर कोई चीज़ चल रही हो और वो बाहर आना चाहता हो,अजीब सा लग रहा था, उसके बाद तो मुझे कुछ याद नहीं, वो तो अभी निशा ने बताया कि मुंह से बहुत खून निकला" अविनाश की बात सुनकर दिल तेज़ी से धड़कने लगा क्यूंकि ये एक नई मुसीबत थी जिसका मुझे बिल्कुल अंदाजा नहीं था,मैंने नज़रे घुमा के मिस की ओर देखा,मुझे अपनी ओर देखता हुए पाकर वो समझ गई,"मुझे भी कुछ समझ नहीं आया अचानक ही ऐसा लगा मानो मेरे लंग्स में से सारी हवा किसी ने खींच ली हो,मैने सांस लेने बहुत कोशिश की पर सांस नहीं आ रही थी लेकिन अच्छा हुआ वो कुछ ही सेकंड्स मैं ठीक हो गया।"
"मिस कुछ सेकंड नहीं बल्कि आप 5 मिनिट से उसी हालत मैं थी।"
मेरा जवाब सुन कर उनकी आँखें फट गईं, जैसे उन्हें एक गहरा सदमा लगा हो लेकिन बात ही ऐसी थी क्योंकि एक नॉर्मल इंसान इतनी देर सांस नहीं रोक सकता फिर मैंने अभिनव की तरफ देखा जिसने खुजाने की वजह से अपना हाथ और साइड से गर्दन छिल ली थी, मिलन उसकी ड्रेसिंग कर रहा था, मैं अपनी जगह से खड़ा हो गया। अभी मैं कुछ सोचता उससे पहले पीछे से आवाज़ आई...
विवेक: "ये सब क्या था?" सवाल सुन कर मैं उसकी तरफ घुमा और अपना चेहरा साफ करते हुए कुछ पल क्या जवाब दूं ये सोचने लगा। 
"मैं नहीं जानता.....ये क्या हो रहा है बस इतना कह सकता हूं की यह रिजॉर्ट हमे यहां से जाने नही देगा” मैं इस कड़वाहट को सबके सामने नहीं लाना चाहता था लेकिन अब कुछ भी छुपाना एक ओर की मौत को न्यौता देने जैसा था इसलिए मैंने सच कुछ सच बता दिया क्योंकि यही सच था अब ये रिजॉर्ट हमारे लिए चक्रव्यूह बन चुका था, एक ऐसा घेरा जिसे हम सिर्फ देख सकते थे पर पार नही कर सकते।
"पर एक सवाल है....तुझे और हर्ष को कुछ कैसे नहीं हुआ?" मिलन ने अपना सवाल किया।
मैं इस सवाल के बाद मैं कुछ पल शांत हो गया,मैने भाई की ओर देखा जो मुझे ही देख रहा था आखिर मैं एक लंबी सांस छोड़ते हुए कहा,"मुझे खुद इस सवाल का जवाब नही पता है।"
"इन दोनो को ही कुछ ना हो ये जरूरी थोड़ी है, मुझे भी एक बार जाकर देखना चाहिए।" ट्रिश की बात सुनकर मुझे गुस्सा आ गया,"तू पागल हो गई है क्या? अभी कुछ देर पहले मिलन की क्या हालत हुई तूने देखा नही? सब कुछ जानते हुए भी बेवकूफों जैसी बाते क्यूं कर रही हो।" मेरी बात सुनकर ट्रिश ने अपनी नजरें झुका ली।

"लेकिन मिस, हम सब यहां भी नहीं रुक सकते" अभिनव ने अपनी चिंता जताई,"हमारे लिए तो दोनों तरफ मौत है, बाहर जाकर मारे जाएंगे और अंदर रहकर भी तड़प-तड़प के मर जाएंगे।"
"I don't want to die,plz कोई कुछ करो" श्रुति जो होश में आ चुकी थी उसने रोते हुए अपनी बात कही।
"ऐसे रोने से कुछ नहीं होगा, हमें इस मुसीबत से बाहर निकलने के लिए कोई तो रास्ता ढूंढना होगा वरना वो हमे एक एक करके आसानी से मार देगी।" विवेक ने अपने मन की उलझन जताई।
"अगर उसको मारना होता तो तुम में से कोई नहीं बचता" मेरी आवाज़ सुन सब चुप हो गए और मेरी तरफ देखने लगे,"तुम खुद सोचो कोई नॉर्मल इंसान 5 मिनट तक सांस लिए बिना नहीं जी सकता और खून की इस कदर उलटियां होने से कोई नहीं बच सकता लेकिन तुम सब के सब बच गए"
विवेक : तू कहना क्या चाहता है?
"मेरे कहने का मतलब यही है कि वो तुम सब मैं अपना डर बिठाना चाहता है तुम सब उसी खौफ मैं यहां पर रुको क्योंकि अभी वो इतना ताकतवर नहीं की तुम सब को मार सके।"
"तो फिर तू कैसे कह सकता है की वो हमे यहां रुकने पर कुछ नही करेगा?"
"मेरे पास उसका रास्ता है जिससे मैं जब तक तुम सब को सुरक्षित यहां से ना निकाल लूं तब तक वो कुछ नहीं कर पाएगा पर उसके लिए तुम सबको मेरी बात माननी पड़ेगी अगर इस बार कोई गलती हुई तो उसका हाल भी प्राची जैसा ही होगा।" मेरी बात सुनकर सब मैं एक डर का माहोल बन गया।
"ठीक है बता वो कौनसा रास्ता है?" हर्ष ने आगे बढ़कर कहा।
"तो फिर सुनो जब तक मैं वापस ना आ जाऊ तब तक तुम सब खाने पीने और जरूरत का सब सामान लेकर एक कमरे मैं रहोगे,मैं कमरा बाहर से बंध करके जाऊंगा और उस पर बाबा का दिया हुआ यह कलावा बांध दूंगा" इतना कहकर श्रेयस ने अपनी जेब से एक कलावा निकाला,जैसा आंशिका के कमरे के बाहर लगा हुआ था,"इससे तुम्हारी जान को कोई खतरा नहीं होगा और मैं कमरा बाहर से बंध करके इसे बाहर बांध दूंगा पर जब तक मैं वापस आकर दरवाजा न खोलू तब तक तुम में से कोई भी किसी हालत मैं उस कमरे से बाहर निकलने की कोशिश नही करेगा।" मेरी बात सब बड़े ध्यान से सुन रहे थे,मेरी बात खत्म होने पर सबने हामी भरी क्योंकि यह उनकी जिंदगी और मौत का सवाल था।

श्रेयस की बात खत्म होने पर सब लोग नीचे के एक बड़े से कमरे मैं एक एक करके अपना समान लेकर अंदर जाने लगे,मैं वहा पर खड़े सभी की देख रहा था पर तभी ट्रिश ने मेरा का हाथ पकड़ा और मुझे सबकी नजरों से बचाकर एक ओर ले गई,उसकी इस हरकत से मैंने उससे पूछा,"क्या कर रही है? तू भी जल्दी से अंदर जा"
"मुझे वो सब नही सुनना पर अभी कुछ है जो तू मुझसे छुपा रहा है" उसने मेरी आंखों मैं देखकर पूछा,"साफ साफ बता की तू कहा पर जा रहा है?" ट्रिश का चेहरा देखकर मैने समझ गया की इससे झूठ बोलना का कोई फायदा नहीं है।
"मैं वही जा रहा हूं जहा मैंने बचपन से लेकर अभी तक इतना वक्त गुजारा है,वही जगह जहा पर मेरी मां की सारी यादें है पर मैं ये सब भाई के सामने नही बोल सकता था क्योंकि मुझे लग रहा है कि अभी भी कोई ऐसी बात है जो भाई के अतीत से जुड़ी है और वो सच मैं अभी उसके सामने नही रखना चाहता।" मेरी बात खत्म होते ही उसने मेरा हाथ पकड़कर कहा बस अपना ध्यान रखना इतना कहकर वो कमरे के अंदर चली गई,उसके अंदर जाते ही मैंने दरवाजा बाहर से lock कर दिया और उस पर वही कलावा बांध दिया।

सबको अंदर सुरक्षित करने के बाद मैं ऊपर अपना बेग और कार की चाबी लेने गया को विवेक ने ऊपर छोड़ी थी,सब समान लेकर मैं अपने कमरे से निकला और तभी मेरी नजर आंशिक के कमरे की ओर पड़ी,मैने धीरे से खिड़की से अंदर देखा तो वो बेड पर बेसुध सी पड़ी हुई थी,कांपते हुए मैने अपना हाथ खिड़की पर रखते हुए कहा,"हिम्मत मत हारना, आंशिका......मैं जल्द ही वापस आऊंगा" भले ही हमारे बीच दीवार थी पर उसका दर्द इस वक्त मुझे महसूस हो रहा था,मैं ज्यादा देर तक वहा खड़ा नही रह पाया और वहा से निकलते वक्त आंखो से एक आंसू बह निकला। 
रिजॉर्ट के बाहर निकलते ही जब मेरी नजर सामने पड़ी तो कुछ देर पहले वाला हादसा सामने आ गया,एक गहरी साँस छोड़ी और वहाँ से जाने के लिए आगे बढ़ा था कि तभी मेरी नजर अंधेरे में पड़े खून पे अटक गयी पर मुझे उसमें कुछ अजीब लगा तो मेंने तुरंत उसको पास जाकर देखने का फैसला कर लिया, जब में उसके पास पहुंचा तो देखा की वो थोड़ा सुख चुका था पर मुझे वहा कुछ हलचल महसूस हुई, मैंने पैर से वहां के पत्तो और मिट्टी को खिसकाया तो मेरे सामने एक कीड़ा आ गया,ये देखकर मैं थोड़ा हैरान हो गया तभी मुझे याद आया की ये खून की उल्टी अविनाश ने की थी यानी यह कीड़ा अविनाश के मुंह से निकला! यह बात सोचकर मेरे दिमाग मैं अविनाश की कही बात याद आ गई उसने कहा था कि कोई चीज उसके पेट में थी को बाहर आना चाहती हो,इस बात ने मुझे ओर हैरान कर दिया,अब मैं ज्यादा वक्त नहीं गवा सकता था इसलिए में जल्दी से अपनी मंज़िल की ओर निकल पड़ा।
मैं तेज़ी से गाड़ी चला रहा था, अंधेरी रात में दोनो तरफ घने पेड़ों के बीच से गुजरते हुए मैं आगे बढ़ रहा था,काली अंधेरी रात में घने बादल और तेज़ गिरती बारिश कार के शीशे पर पड़ रही थी, जिसकी वजह से गाड़ी का वाइपर तेज़ी से चल रहा था जो सिशे पे पड़ती बूँदें को हटा रहा था,रास्ते पर कुछ जगह स्ट्रीट लाइट्स नही थी फिर भी मेरी रफ्तार कम नहीं हुई थी,सफ़र अभी लम्बा था लेकिन मुझे जल्द से जल्द पहुँचना था,उस वक्त जितनी रफ़्तार इस वक़्त इस गाड़ी की थी उससे कहीं ज़्यादा मेरे दिल की रफ़्तार थी,करीब 2 घंटे की driving के बाद आखिर मैं अपनी मंज़िल पर पहुँच गया जहाँ मुझे मेरे अतीत के सवालों के जवाब मिलने वाले थे,कुछ ऐसे राज थे जिससे मैं अभी तक अंजान था,बाबा ने कहा था हर मुझे जवाब चाहिए तो मुझे वहा जाना होगा जहा से मैंने शुरुआत की है और वो जगह थी मेरा घर।

To be Continued.......