Shuny se Shuny tak - 76 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 76

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शून्य से शून्य तक - भाग 76

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  इस प्रकार अनन्या का मनु की पत्नी के रूप में परिवार में प्रवेश हो गया और जैसे एक नया सवेरा पूरे वातावरण में खिल उठा| हाँ, आशी की चिंता तो अभी सबके ही मन में रेंग रही थी| जाने अभी क्या गुल खिलेंगे? सबके मन में यही घबराहट चल रही थी---अब जो ईश्वर को मंजूर होगा, देखा जाएगा, यहीं पर आकर चिंता को ठिठक जाना था| 

   दिन गुजरते जा रहे थे| अभी भी आशी को पिता की खबर लेने की कोई सुध नहीं थी| दीना जी अपने वकील से मिलकर मनु और आशी के तलाक का रास्ता खोजने में लगे हुए थे| अनन्या अब सबके लिए अनु बन गई थी| घर में उसका भी सभी हैल्पर्स के साथ वही विनम्र व्यवहार था जैसा वहाँ सभी लोग करते थे| सबने मन से अनु बहूरानी का मन से स्वागत किया लेकिन अभी वह लीगल नहीं हो पाई थी| सब मना रहे थे कि कोई रास्ता मिल जाए और अनु के रास्ते से आशी हट जाए| 

  दिन गुजरते रहे, मनु के साथ सब ही बहुत प्रसन्न थे| रेशमा और अनु की पटरी बहुत बढ़िया बैठ गई थी| अनन्या की मम्मी भी कभी कभी आती रहतीं| वे कभी भी आ जातीं और उन्हें कोई ड्राइवर या मनु छोड़ आता| वे भी अब इस परिवार का एक अंग सी ही बन गईं थीं| 

 अनन्या ने दीना जी से पूछा कि क्या वह उनको बाबू जी कहकर बुला सकती है?वे बहुत खुश हो गए, आजकल की दुनिया बनावटी संबंधों व दिखावटों की दुनिया है| ऐसे में अगर उन्हें कुछ पिछली स्मृतियाँ आ जाएं तो बात ही क्या है ?वे खुश हो गए, वे अपनी पत्नी सोनी के पिता को बाबू जी ही कहते थे लेकिन वह ज़माना और था| 

  मनु ऑफ़िस चला जाता, रेशमा कॉलेज !अनन्या और दीना जी लॉबी में सोफ़ों पर बैठकर बातें करते, कभी नीचे बगीचे में खिलने वाले पेड़, फूलों के बारे में चर्चा करते, उन सबसे जुड़ी हुई कितनी ही कहानियाँ उनके मन के पिटारे में बंद थीं जिन्हें उन्होंने अपने माधो के सामने तो खोला ही हुआ था अब अनन्या के सामने भी पिटारे का ढक्कन खुल गया था| दोनों का समय खूब अच्छी तरह गुज़र रहा था| कभी वहीं पर या उनके कमरे में दीना जी अनु के साथ चैस भी खेलते| दोनों पिता-पुत्री की भाँति झगड़ा करने लगे थे| माधो तो इन दोनों की तीमारदारी में हाज़िर रहता ही| दोपहर को रेशमा भी आ जाती| घर जैसे स्वर्ग बन गया था| 

  एक परिचित प्रसिद्ध वकील साहब मनु और आशी के तलाक के लिए जुगाड़ लगाने की तैयारी कर रहे थे| न जाने कितनी जल्दी समय व्यतीत हो गया, पता भी नहीं चला अनन्या का नवाँ महीना शुरू हो गया था ! अनन्या थोड़ी अधिक थकने लगी और दीनानाथ जी ने उसकी माँ से यहाँ आकर रहने के लिए रिक्वेस्ट की| 

  सुबह उठकर पूजा करने से लेकर दीना जी की दवाइयाँ व सब कुछ करना अनन्या को अच्छा लगने लगा था| घर तो पहले भी अच्छी प्रकार चल ही रहा था लेकिन अब जैसे परिवार में खुशियों का तड़का लग गया था| नवें माह में दीना जी ने फिर से एक बार अनन्या की मम्मी से अनुरोध किया कि वे आकर अब अपनी बेटी को संभालें| वैसे सब ठीक था लेकिन घर में ऐसे समय में उन्हें एक समझदार स्त्री की उपस्थिति आवश्यक महसूस हो रही थी| 

“बेटी ! तुम थक जाती होगी---इतना लोड मत लिया करो—”दीना जी ने कई बार अनन्या से कहा था| 

“अरे बाबू जी !मैं करती क्या हूँ?इतनी तो हैल्प है यहाँ| वैसे भी हमारी उम्र थकने की कहाँ है और मैं बिलकुल ठीक हूँ| आप बहुत चिंता करते हैं| ”अनन्या उनसे कहती| 

  दीना जी के बार-बार कहने पर उन्हें सब बच्चों ने अब डैडी कहना शुरू कर दिया था| रेशमा से भी वे डैडी ही कहलवाते| उन्हें इससे एक आत्मिक आनंद का अहसास होता था| सबकी इच्छा व प्रयत्न यही रहता था कि वे हर पल प्रसन्न रहें| अब वे ऑफ़िस जाने की ज़िद भी नहीं करते थे| कभी-कभी जाते वर्ना अनन्या के साथ ही बैठकर अपना समय हँसते-खिलखिलाते गुज़ारते| जब रेशमा घर में होती या खाली होती तब वह भी इन दोनों के साथ आ जुड़ती| दीना जी के कहने पर दोनों बेटियों ने अनन्या को भाभी कहना शुरू कर दिया था| घर में सभी उसको बहुरानी कहकर पुकारने लगे| इतने कम दिनों में उसने सबका मन जीत लिया था| 

   इस सबके बावज़ूद भी अनन्या व मनु अपने मन में आशी के भय को ओढ़े रहते| न जाने वह आकर क्या करेगी?अभी वे दोनों तब तक लीगली पति-पत्नी कहलाने के अधिकारी नहीं थे जब तक मनु और आशी का तलाक होकर वे दोनों वैवाहिक गठबंधन में न बंध जाते तब तक एक घबराहट सी तो थी ही| दीना जी की आज्ञा से मनु अनन्या की मम्मी को ले आया था| उनको बेटी के घर रहने में अजीब सी हिचकिचाहट थी लेकिन दीना जी ने उनसे कई बार यह कहा था कि रिश्ते मन के होते हैं, कौन अपना, कौन बेगाना?वे अपने जीवन में यही सब महसूस करते हुए इस आयु तक पहुँचे थे| 

“आपके बड़े भाई का घर है ये बहन, बहन अपने भाई के घर बिना किसी हिचकिचाहट के रह सकती है।फिर आप क्यों हिचक रही हैं?”उन्होंने अनन्या की मम्मी को इतनी बार बोला कि वे भी यहाँ आने के बाद परिवार की सदस्य ही बन गईं| उन्हें यहाँ रहते हुए आठ/दस दिन हो गए थे| अनन्या का चैक-अप लगातार ठीक समय पर हो रहा था| किसी को कोई परेशानी नहीं थी| सब लोग अपने मन की परेशानी भुलाकर नए मेहमान के आने की कल्पना कर रहे थे| डॉक्टर के अनुसार 6/8 दिन में डिलीवरी होने की संभावना थी| आशिमा को भी उसकी ससुराल से यहाँ भेज दिया गया था| सबके साथ रहने से एक-दूसरे का मनोबल बना रहता है| 

   अनन्या की मम्मी को सबसे अधिक चिंता थी कि न जाने आशी तलाक के कागज़ात पर साइन भी करेगी या नहीं?दीना जी व मनु उन्हें समझाते रहते थे कि जब इतना कुछ हुआ है तो ईश्वर ने इस बारे में कुछ तो सोचा ही होगा| आज अनन्या कुछ असहज सी थी| अनु, अनन्या की मम्मी जिन्हें वह भी अब मम्मी कहने लगा था, उनसे व दीना जी से बात कर रहा था कि आज एक बार अनन्या को डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए| डॉक्टर से फ़ोन पर बात हुई थी, वैसे तो पिछले सप्ताह ही मिलकर आए थे लेकिन आज उसे कुछ असहज देखकर मनु ने फिर से बात कर ली थी और डॉक्टर ने उसे क्लीनिक ले आने को कहा था| 

“आप साथ चलिए---”मनु ने अनन्या की मम्मी से कहा और सब जाने के लिए तैयार होने लगे| आशिमा ने कहा कि वह भी साथ चल रही है और तैयार होकर वह बॉलकनी में आकर खड़ी हो गई| अचानक उसकी दृष्टि नीचे के बड़े गेट पर पड़ी जहाँ टैक्सी खड़ी थी| गार्ड ने गेट खोला और आशी बीबी को देखकर घबराते हुए एक जोरदार सैल्यूट मारा| किसी को कोई समाचार ही नहीं था आशी के आने का| जैसे ही उसने घर में प्रवेश किया अफरा-तफ़री सी मच गई| 

“सामान गाड़ी से निकालकर मेरे कमरे में लाओ---”उसने ऑर्डर दिया और खट खट करती ऊपर चढ़ गई| रेशमा अपने कमरे के बाहर ही खड़ी थी;

“हैलो रिशु !कैसी हो?”आशी ने पूछा, वह हकबका गई | 

“अरे ! दीदी आप?मैं अच्छी हूँ, आप कैसी हैं?”उसने पूछा| 

“फर्स्टक्लास !”आशी ने कहा और दीना जी के कमरे की ओर बढ़ गई|