Kamvasna se prem Tak - 5 in Hindi Moral Stories by सीमा कपूर books and stories PDF | कामवासना से प्रेम तक - भाग - 5

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कामवासना से प्रेम तक - भाग - 5

मुकेश:- मैं कल फ्री हूं तो मिलते हैं कल डिनर पर, ऐसा करो तुम चाहें छुट्टी ले लो।

अजय:- पर छुट्टी सर /आप तो रात में आ रहे हों।

मुकेश:- हां भाई एक दिन तो मेनेज हो ही जाएगा 

अजय:-जी सर।

" अजय घर पहुंचकर शेफाली से सभी बात बतलाता हैं, और कल रात अच्छा खाना बनाने को कहता हैं, अजय शेफाली की तरफ देख उसे अपनी बाहों में भरता ,तभी शेफाली कहती आज मन नहीं हैं ,

रहने दो, परंतु अजय जबरन अपनी शारीरिक इच्छा पूरी करता, शेफाली उसे मना करती तो वह अपनी जबरदस्ती से भरी मर्दानगी दिखाता, 

शेफाली की ख़ामोशी और आंखों में पानी,

शायद अजय के प्यार करने का यही तरीका हो ,अजय बहुत ही खुश था ,उसका बॉस जो आने वाला था।

सुबह होते ही शेफाली कहती 

शेफाली:-अजय क्या तुम्हें बाॅस फ़िर कभी नहीं आ सकते ,आज मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही।

अजय:-वो बाॅस है,समझती हो ना और वैसे भी खाना खाकर चलें जाएंगे।

शेफाली:-पर।

अजय:- देखो मैं कुछ फ़ालतू का सुनने के मुड़ में नहीं हूं, मैं सामान लेने जा रहा हूं, डियर परेशानी क्या हैं, मैं हूं ना ,और वैसे भी मेरी प्यारी पत्नी के हाथों में जादू है,आज छुट्टी पर भी से मिलकर सब हो जाएगा।

  " शेफाली मुस्कुरा देती हैं और कहती हैं "

शेफाली:- आप मुझे समझ नहीं आते, दिन और रात में ऐसा क्या होता हैं,जो आप में इतना बदलाव आ जाता है।

अजय:- दिन में व्यस्त होता हूं और रात में फ्री,और फ्री हूं तो इच्छाएं जाग्रत हो ही जाती हैं।

" रात हो जाती है, बाॅस मुकेश अजय के घर आता है,  खाना तीनों मिलकर खाते हैं, इसी दोराना, मुकेश शेफाली को अपनी गंदी नज़रों से ताड़ रहा होता हैं,

"तभी मुकेश अजय से कहता है"

मुकेश:- तुम्हारी पत्नी तस्वीर से भी ज़्यादा खुबसूरत है, इसलिए मैं सोच रहा हूं तुम्हारी प्रमोशन कर दूं।

अजय:-थैक्यू सर।

मुकेश:-हा हां ,पर बात पूरी सुनो तो।

अजय:-जी सर।

मुकेश:-तुम्हारी पत्नी पर दिल आ गया हैं।

अजय:-सर ये क्या कह रहे हैं आप, पत्नी हैं वो मेरी।

मुकेश:-तरक्की कोई हलवा नहीं हैं, जो आसानी से मिले कोम्प्रोमाईज़ किया जाता हैं ,कई कई जगहों पर।

अजय:- मैं समझा नहीं।

मुकेश:- एक रात के लिए अपनी पत्नी मुझे दो।

"गुस्से में अजय"

अजय:- प्रमोशन के लिए आप मेरी पत्नी का सौदा कर रहे हो, आपको शर्म आनी चाहिए।

मुकेश:- तुम्हारी पत्नी के जिस्म का ,और वैसे भी ये आम बात हैं, मैंने भी अपनी पत्नी का किया था और आज भी करता हूं, और जो प्रमोशन चाहते हैं ,वो अपनी पत्नी मुझे देते हैं,

दोस्त ये खेल हैं, इसमें तुम्हारा नुकसान बताओ क्या हैं, तुम्हारी पत्नी के साथ एक रात और तुम्हें तरक्की।

अजय:- पत्नी का मतलब समझते हो आप , अपनी पत्नी का सौदा करके मुझे तरक्की नहीं चाहिए, आप जा सकते हैं।

मुकेश:-मेरे लिए नया कुछ नहीं है, हां तुम आराम से सोच लो, ठंडे दिमाग़ से सोचना, जब मैं अपनी पत्नी को किसी ओर के बिस्तर पर भेज सकता हूं ,तो किसी ओर कि पत्नी मेरे बिस्तर पर क्यों नहीं,

अगर तुम चाहो तो मेरी पत्नी के साथ..

हैरत से 

अजय:-छी जी सर आप इस हद तक भी जा सकते हैं, मैंने सोचा नहीं था।

"मुस्कुराते हुए "

मुकेश:-तुम्हारे लिए नया है समझ सकता हूं,पर तुम्हारी पत्नी आग हैं आग।

अजय:-सर आप जाएं, अगर आप मेरे बाॅस न होते तब बताता मैं आपको।

क्रमशः