Aajadi Yek Sach Ya Zuth? in Hindi Women Focused by Sanket Gawande books and stories PDF | आज़ादी एक सच या झूठ?

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आज़ादी एक सच या झूठ?

आज देश को आज़ाद हुए पूरे 78 साल हो गए। लेकिन क्या हम वाकई आज़ाद हैं? क्या हमारी बेटियाँ, हमारी बहनें, इस देश में सुरक्षित महसूस करती हैं? कोलकाता की हालिया घटना ने हमारे समाज के भीतर छिपे अंधकार को उजागर कर दिया है। एक युवा महिला डॉक्टर, जिसने अपनी ज़िंदगी दूसरों की सेवा में समर्पित कर दी थी, वह एक बर्बर अपराध का शिकार बन गई, और वह भी उस जगह पर, जहां वह अपने जीवन का सबसे पवित्र कर्तव्य निभा रही थी—अस्पताल।

वह डॉक्टर, जिसने दिनभर लोगों का इलाज किया, उनकी जिंदगी बचाने की कोशिश की, उस रात जब वह अपनी ड्यूटी पूरी कर रही थी, तो उसे यह नहीं पता था कि वह खुद एक दरिंदे की दरिंदगी का शिकार हो जाएगी। जिस अस्पताल में वह दूसरों की जिंदगी बचा रही थी, वहीं उसकी अस्मिता को रौंदा गया। उस रात, अस्पताल के एक कोने में, वह दर्द और बेबसी से चीखती रही, लेकिन कोई उसकी चीख नहीं सुन पाया। आखिर में, उस दरिंदे ने उसकी जिंदगी भी छीन ली।

उस रात जब वह अस्पताल से घर नहीं लौटी, तब उसके घरवाले चिंतित हो गए। उन्हें क्या पता था कि वह कभी वापस नहीं आएगी। वह डॉक्टर, जो हर दिन दूसरों के परिवारों को संजीवनी देती थी, आज अपने ही परिवार से छीन ली गई।

यह कहानी बस एक लड़की की नहीं है, यह कहानी है उस समाज की, जो अपनी बेटियों की सुरक्षा में हर दिन नाकाम साबित हो रहा है।

क्या बस यह सवाल था कि वह एक लड़की थी? क्या उसका दोष केवल इतना सा था कि वह रात में ड्यूटी पर थी? क्या यह भी उसका दोष था कि वह अपने सपनों को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत कर रही थी? किसी को यह सोचने की जरूरत नहीं है कि वह लड़की क्यों बाहर थी, क्यों वह देर रात तक काम कर रही थी, या फिर क्यों वह एक डॉक्टर बनी। असली सवाल यह है कि क्यों हमारे समाज में ऐसे दरिंदे खुलेआम घूमते हैं? क्यों वे अस्पताल, स्कूल, घर—कहीं भी, कभी भी इस तरह की घिनौनी हरकतें कर सकते हैं? आज़ादी के 78 साल बाद भी, हमारे समाज में लड़कियों के साथ होने वाली दरिंदगी की घटनाएं हमें इस सवाल के जवाब के लिए मजबूर करती हैं कि क्या हम वाकई आज़ाद हैं? क्या हमारी बेटियाँ, हमारी बहनें, सुरक्षित हैं? क्या हम इस देश को उन दरिंदों से आज़ाद कर पाए हैं, जो हर दिन, हर पल हमारी बेटियों की आज़ादी को छीनते हैं? कोलकाता की यह घटना सिर्फ एक घटना नहीं है, यह एक आईना है जो हमें हमारी कमजोरियों का अहसास कराती है। क्या हम इस घटना को बस एक और आंकड़ा मानकर छोड़ देंगे, किसी राजनीतिक साजिश को होते हुए देखेंगे या फिर इस बार हम सच्चे मायनों में आज़ादी की परिभाषा को समझेंगे? वह डॉक्टर अपने छोटे-छोटे सपनों को सजाए रखती थी, अपने परिवार को खुश रखने की कोशिश करती थी, और अपनी मेहनत से समाज की सेवा करती थी। लेकिन उन दरिंदों ने उसकी पूरी जिंदगी एक ही पल में छीन ली। क्या गलती थी उस डॉक्टर की? क्या गलती होती है उन 6 महीने की बच्चियों से लेकर 75 साल की बुजुर्ग औरतों तक में? इन दरिंदों ने तो किसी को नहीं बख्शा। 

कोलकाता की यह घटना हमें याद दिलाती है कि हमें अपनी मानसिकता और समाज को बदलने की ज़रूरत है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई और बेटी, कोई और बहन इस तरह की दरिंदगी का शिकार न बने। इस घटना के बाद देशभर में गुस्से की लहर दौड़ गई। लोग सड़कों पर उतर आए, न्याय की मांग करने लगे। लेकिन क्या न्याय सिर्फ़ फाँसी की सजा से मिलेगा? क्या उस हैवान को ये पता नही था की इसका अंजाम क्या होगा ?उस इंसान  को माफ करना उस हैवान को जिसमें इंसानियत बची ही न हो उसे इंसानियत के बाहर जाकर सजा होनी चाइए जिससे कोई ओर ये अपराध करने से हजार बार सोचे ।

सच तो याह है क्या उस दर्द को मिटाया जा सकता है, जो उस लड़की ने झेला? सच तो यह है कि हमें अपनी बेटियों को वह आज़ादी देनी होगी, जिसकी वे हकदार हैं। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी बेटियाँ, हमारे समाज की आधारशिला, बिना किसी डर के अपने सपनों को पूरा कर सकें। ना की इस आजाद देश के आजाद राज्य में किसी हुई आजाद रास्ते पे ओ डरी सी रहे , अपने आजाद घर के चार दीवारों के बीच डरी सहेमिसी  रोती रहे और खुद को पूछती रहे की लड़की होना क्या अपराध है । हमे इस देश को बदलना होगा इन दरिंदो को बीच रास्ते तड़पना होगा  जब तक उनकी रूह ना काप जाए , तो दोबारा कोई ये गलती करने की सोचे भी ना , तब हमारी सच्ची आज़ादी होगी। यही इस आज़ाद देश की सही परिभाषा होगी।

कोलकाता की इस घटना ने हमें फिर से चेताया है कि हमें अपनी सोच को बदलना होगा, ताकि हमारी बेटियाँ, हमारी बहनें, और हमारी माताएँ सुरक्षित रह सकें। हमें उन दरिंदों को वह सजा दिलानी होगी, जो उनके जैसे किसी और को ऐसी घिनौनी हरकत करने से पहले सौ बार सोचने पर मजबूर कर दे। सिर्फ फाँसी नहीं, बल्कि हमें अपने समाज को इस कदर बदलना होगा कि कोई भी इंसान, इंसानियत से गिर कर हैवानियत की हद तक न पहुँच सके। यही सच्ची आज़ादी होगी। यही हमारी बेटियों की, हमारी बहनों की, और हमारे समाज की सच्ची सुरक्षा होगी।

….............

मैं गलत हु या सही मुझे पता नही ,लेकिन जो मेरे मन में था मैंने आपके सामने बया किया ।

आजाद तो हमारा देश कई  कुर्बानियो के बाद आज है , काश इन सब घिनौने अपराधो से भी आजादी मिल जाए । हमारी  येक मांग देश में हजारों स्त्रीओ की जान बचा सकती है ।


जय हिंद 🇮🇳जय भारत ❤️🙏🏻