Shuny se Shuny tak - 69 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 69

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शून्य से शून्य तक - भाग 69

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आज समय मिलते ही मनु ने अनन्या का हाथ अपने हाथों में लिया और प्यार से सहला दिया| वह जानता था कि चाहे अनन्या उससे कुछ भी शिकायत न करे किन्तु अंदर से बहुत उदास व चिंता से भरी हुई है| स्वाभाविक भी होता है| हमारा भारतीय समाज चाहे कितना भी स्वतंत्र क्यों न हो जाए एक अविवाहित लड़की के माँ बनने को कभी स्वीकार नहीं कर पाता| जबकि आज का समय बहुत अलग हो गया है, लोग अपने आपको मॉडर्न कहलाने में शेखी समझने लगे हैं लेकिन मॉडर्न होना कपड़ों, गहनों या बड़ी गाड़ियों और बंगलों से नहीं होता| मॉडर्न होने के लिए परिस्थिति को गहराई से समझना होता है, लोगों की बातों में आने से और किसी पर भी लांछन लगा देने से मॉडर्न नहीं हो जाते| 

“क्या बात है मनु?इतने भावुक क्यों हो रहे हो?”अनन्या ने उसे भीतर तक पढ़ा था| वह बात अलग है कि वह उसकी पुरानी दोस्त थी लेकिन उनके बीच में कभी सीमा का उल्लंघन नहीं हुआ था| दोनों ही परिपक्व थे| इन परिस्थितियों में मनु का साथ देने के लिए अनन्या मन से बाध्य हो गई थी| ऐसे संस्कारी व सबके प्रति गंभीर लड़के का क्या हाल बन गया था!

मनु ने दीना अंकल से हुई सारी बात उसको बता दीं और कहा;

“अब तो तुम्हें घर चलकर रहना होगा---”बहुत सी बातें मन में थीं लेकिन अंकल से बातें करके वह और अंकल दोनों ही काफ़ी हल्के हो गए थे| 

“कैसी बातें करते हो मनु ?मैं आशी के पिता के घर में कैसे रह सकती हूँ?”वह सकपका गई थी| 

“अब वह मेरे भी पिता हैं अनु, क्यों नहीं रह सकतीं तुम वहाँ पर?और अगर तुम्हें वहाँ नहीं रहना है तो हम अपने घर भी रह सकते हैं| ”मनु का कर्तव्य भी था कि जो लड़की उसके साथ इतनी कठिन परिस्थिति में खड़ी रही है, उसका साथ दे| उसका अकेले का तो कुछ नहीं था, भविष्य दोनों से साथ ही जुड़ा था, वह दोनों का ही था| 

“मनु पहली बात तो यह है कि क्या तुम मेरे लिए अंकल को अकेले छोड़ दोगे---?”अनन्या ने मनु की आँखों में झाँककर पूछा| 

“और दूसरी बात?”मनु अंकल से बात करने के बाद काफ़ी रिलैक्स लग रहा था| 

“दूसरी बात यह है कि मैं तुम्हारे साथ बिना शादी किए कैसे रह सकती हूँ ?”उसने अपनी आँखें नीची करके कहा| 

मनु की आँखों में आतुरता और चिंता एक साथ ही झलक रहे थे| 

“उसकी चिंता मत करो मनु तुम, मैं उसको जन्म दूँगी| यह हमारा प्यार है, पाप नहीं| मैं इसे पालूँगी अब यह तुम्हें सोचना है कि तुम इसमें कैसे मेरा साथ दे सकोगे!”अनन्या बहुत स्पष्ट थी और हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार थी| 

अनन्या की दृढ़ता से मनु को तसल्ली तो हुई, वैसे वह जानता था कि अनन्या दृढ़ है, मनु से कहीं अधिक! विधाता ने स्त्री को अधिक विवेकी, साहसी और सशक्त बनाया है| समाज न जाने क्यों उसको अबला जैसे विशेषणों से नवाज़ता है| कहीं भी देख लें, ऐसे बहुत उदाहरण मिल जाएंगे कि स्त्री ने विपरीत परिस्थितियों में भी खुद को दृढ़ बनाए रखा है| 

“अनु ! तुम्हारा सोचना बिलकुल सही है लेकिन मैं अपने आपको कितना अशक्त महसूस कर रहा हूँ---”मनु ने कहा| उसका मन एक सहज, सरल जीवन जीने की कल्पना कर रहा था| उसका मन बहुत उद्विग्न था| वह चुप होकर अपने स्थान पर ही बैठा रहा| अनन्या ने बड़े स्नेह व अपनत्व से उसका हाथ सहलाया और उसे सांत्वना देने का प्रयत्न किया| 

दीना जी वैसे तो मनु के लिए खुश थे, उन्होंने जब से उससे बात की थी उनके भीतर पलता हुआ गिल्ट कुछ कम भी हो रहा था लेकिन वे उन बातों को सोचने से बच नहीं पाते थे जिनसे उन्हें व्यथा होती थी | उनका डिप्रेशन बढ़ता जा रहा था| जब वे कभी घर पर होते उन्हें घर मानो फाड़ खाने को आता| एक लड़की ने उनकी तो उनकी, और न जाने कितनी ज़िंदगियों को तबाह कर डाला था| परिवार के वातावरण का प्रभाव सब पर ही तो पड़ता है| वह जितना अधिक आशी के बारे में सोचते, उतना ही अधिक दुखी होते| सबसे अधिक दुख तो उन्हें मनु के लिए ही था जबकि वे अपनी ओर से उसे बहुत सांत्वना दे ही रहे थे| उन्हें न तो मनु से कोई गिला, शिकवा था और न ही अनन्या से! अपने अनुसार सब कुछ  करके भी वे मनु को क्या सुख दे सके थे?इसीलिए वे चाहते थे कि वकील से मिलकर ऐसा कदम उठा सकें कि अनन्या पर भी कोई ऊँगली न उठ सके और ये दोनों सम्मान के साथ अपना जीवन व्यतीत कर सकें| 

धीरे-धीरे उनका ऑफ़िस में जाना भी कम होने लगा, उन्हें लगता कि सब लोग अनन्या को कैसी विचित्र दृष्टि से देखते हैं ! जबकि सभी वास्तविकता से तो परिचित थे ही लेकिन मन के भीतर की पीड़ा कितने लोग महसूस कर सकते हैं?मनु और माधो उन्हें ज़िद करके ऑफ़िस ले आते थे| अनन्या देखती और सोचती कि कैसे संभव हो सकता है कि मनु अपने दीना अंकल को अकेला छोड़ सकता है ?वह ठीक भी नहीं था और आसान भी नहीं था|