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दीनानाथ भी मनु में आए हुए बदलाव को महसूस कर रहे थे, क्या करें वह?उन्हें मनु में आने वाले बदलाव के लिए लेशमात्र भी अफ़सोस नहीं था| बल्कि वे मनु के लिए एक साथी की इच्छा कर रहे थे| उनकी बेटी है तो क्या दूसरे बच्चे को इस प्रकार की सज़ा मिलनी उचित थी?वे मनु को इस प्रकार घुलता हुआ देखकर बहुत अधिक कष्ट पाते थे| उनकी आँखों के सामने लड़का तड़प रहा था और अपनी तड़प को उनसे छिपाकर उन्हें खुश करने की कोशिश करता था| उसका आखिर दोष क्या था?यही कि उसमें ऐसे संस्कार थे कि वह अपनों से बड़ों की बेइज्ज़ती नहीं कर सकता था| वह स्वार्थी बनकर केवल अपने लिए ही नहीं जी सकता था|
आज जैसे ही वे सबके साथ खाने की मेज़ पर बैठे फ़ोन की घंटी बजी, दीनानाथ को अचानक याद आ गया कि जब मनु यहाँ से अपने घर गया था वहाँ एक दिन भी चैन से नहीं रह सका था| रघु ने ही तो बताया था जैसे ही साहब खाने बैठे थे कि उन्हें आपकी याद आ गई और खाना छोड़कर उन्होंने आपको फ़ोन किया कि आपने खाना खाया है या नहीं?आज खाने की मेज़ पर ही थे कि फ़ोन की घंटी बजे जा रही थी और वे कहीं और ही थे|
“आपका फ़ोन अंकल---”उन्होंने फ़ोन उठाया |
“आशी हूँ पापा---”
“हाँ, कैसी हो आशी बेटा?”उनका मन हुआ कि वे आज आशी से साफ़-साफ़ बात कर लें, आखिर चाहती क्या है?
“ठीक हूँ पापा, और वहाँ क्या चल रहा है?”
“सब ठीक है---तुम बताओ कब तक काम हो जाएगा?”
“बताया तो था आपको---मुझे छह महीने से साल तक लग सकता है| ” ”वह रुडली बोली
“मुझे ऑफ़िस की चिंता भी तो है, अनन्या और वे दो लोग अभी नए हैं, सब ठीक से संभाल रहे हैं न?”
मनु और रेशमा भी वहीं बैठे खाना खा रहे थे| कोई बेवकूफ़ नहीं था, सब समझते थे कि उसने अनन्या और मनु के बारे में जानने के लिए फ़ोन किया है| वैसे मनु को पिता का ध्यान रखने के लिए कहकर गई थी लेकिन अब एक बार भी किसी और को तो क्या पूछती, अपने पिता तक के बारे में नहीं पूछा था|
“सब ठीक है यहाँ, अनन्या और दोनों नए एम्पलॉइज़ काम बखूबी संभाल रहे हैं| तुम जल्दी आ सको तो अच्छा ही है| बाद में तो यह तुम लोगों को ही तो मिलकर संभालना है सब कुछ---”एक साँस में वे बोल गए जबकि समझते तो थे ही कि वहाँ से क्या और कैसा उत्तर आएगा|
“पापा! आप भी ---बता तो दिया था आपको---”
“बहुत देर हो जाएगी---”उन्होंने निराशा भरे स्वर में कहा| शायद अब आशी किसी और के बारे में कुछ तो पूछे|
“किसमें---किसलिए देर हो जाएगी?”वह बड़बड़ाई|
“अच्छा, सुनो बेटा, मैं मनु को वहाँ भेज दूँ?नई-नई शादी हुई है तुम लोगों की, कुछ दिन साथ रहो तो---एक वर्ष तो बहुत लंबा समय है---”पिता थे, उन्होंने फिर एक बार समझाने की नाकाम सी कोशिश की| अनन्या के बारे में पूछ रही है तो शायद मनु के वहाँ जाने से उसकी बौखलाहट बंद हो जाए| वह यहाँ पर ही अनन्या से चिढ़ने लगी थी| जब मनु ने उनका परिचय करवाया था तब भी कहाँ उसने अनन्या को मनु की दोस्त के रूप में स्वीकार किया था| वह और सभी एम्पलॉइज़ की तरह थी| वह बात अलग है कि दीना जी अपने सभी साथियों को अपना परिवार ही समझते थे और वे सब भी—
“नहीं पापा, मनु यहाँ आकर क्या करेगा?मेरा प्रॉजेक्ट है, मैं उसको कहाँ टाइम दे सकती हूँ?इतना अच्छा काम चल रहा है, ऐसे में---नहीं, नहीं पापा, मनु को वहाँ का काम ही संभालने दो---एवरीबड़ी इज़ हैपी हियर विद माई वर्क---”वह जैसे एक नशे में ही झूमती रहती थी|
“तुमने कभी मनु की खुशी के बारे में सोचा है?”इस बार वे रूड हो गए थे|
मनु वहाँ से चला गया था, उसे बड़ा अटपटा लग रहा था इस प्रकार से दीना अंकल का उसके बारे में बात करना|
“आप लोग तो खुश हैं न वहाँ?आपका ख्याल रख रहा है न वह?”
कैसी लड़की है यह, इतनी बड़ी होने पर भी उसे बात करने की, समझने की तहज़ीब नहीं है| उनका मन खराब हो गया|
“वह नौकर नहीं है मेरा---”गुस्से में उनके मुँह से निकला|
अंकल का ऐसा मिजाज़ देखकर रेशमा भी वहाँ से उठ गई, खाना तो हो ही चुका था|
“तो---”आशी को जैसे इस प्रकार बात करने में बड़ा मज़ा आ रहा था|
“आशी, कुछ तो समझने की कोशिश करो बेटा, ऐसे बात करना तुम्हें शोभा देता है?उसकी और अनन्या की पहले से दोस्ती है, तुम जानती हो और तुम मनु को दूध की मक्खी की तरह ट्रीट करती हो---ये क्या तरीका है?”उन्होंने कुछ गुस्से से कहा|
“आई डोन्ट केयर, मैंने तो मनु को कह दिया था कि अगर उसे अनन्या में इंटेरेस्ट है तो मुझे कोई परेशानी नहीं है| वह उसके साथ अपना संबंध बढ़ा सकता है---”कुछ रुककर बोली
“मेरे पास बेकार की बातों के लिए टाइम नहीं है, जो जिसको करना है, करे---बाय--”
नहीं समझ में आएगा इस लड़की को कभी भी, इसका अहं इतना अधिक है कि यह न खुद चैन से जीएगी और न ही किसीको चैन से जीने देगी| उनकी आँखों में आँसु भर आए|
माधो पास ही खड़ा था, उसने उन्हें संभाला, उनके हाथ धुलवाकर उन्हें उनके कमरे में ले गया | कमरे में पहुंचते ही दीनानाथ फूट-फूटकर रो पड़े| माधो उनके पैरों के पास बैठकर उन्हें सहलाने लगा, साथ ही खुद भी ज़ोर से रो पड़ा| मनु और रेशमा पहले ही अपने कमरों में चले गए थे| कैसा उदास वातावरण हो जाता है, पल भर में ही!
बस अब और नहीं, उन्होंने सोचा, वे मनु की ज़िदगी से क्यों खेल रहे हैं?आज अगर उसके पिता होते तो शायद अपने बेटे की शादी कभी इस सिरफिरी लड़की से नहीं होने देते| उन्होंने सोचा था कि साथ रहने का, स्पर्श का मूक व्यवहार भी मन में प्यार की लौ जगा देता है| लेकिन वह तब न जब आशी मनु को यानि अपने पति को पति तो समझती और अगर पति भी नहीं कम से कम दोस्त तो समझ लेती| वे अपने आपको बहुत बार स्वार्थी समझते और कहते थे और सारे मन के घाव माधो के सामने खोल देते थे|
‘जैसी ईश्वर की इच्छा, मनु को अपनी ज़िंदगी जीने का पूरा अधिकार है| ईश्वर करे मनु और अनन्या की दोस्ती आड़े बढ़े---‘उन्होंने यह बात माधो से भी कह डाली| शादी के बाद तो हर पल वे अपने आपको मनु का गुनहगार समझने लगे थे| क्या किया उन्होंने?बात-बात में उनकी आँखों में आँसु भर आते|
शादी के बाद जब कई अखबारों में इंडस्ट्रियलिस्ट दीनानाथ की बेटी की शादी की तस्वीरें अखबारों में छपीं तब उनका मन भीतर से कितना रो उठा था| कोई एकाधी तस्वीर होगी आशी की, वह भी न जाने कैसे किसी ने हिम्मत जुटाकर ली होगी| शेष तस्वीरें मनु की थीं, अपनी शादी की तस्वीरों में या तो वह अकेला दिखाई दे रहा था या फिर परिवार और दोस्तों के साथ जो आशी से मिलने के लिए उत्सुक थे| किसी तस्वीर में अनन्या और मनु की बहनें भी दिखाई दे रही थीं|
उस समय प्रेस से कितने सवाल उछले थे!जब दो/तीन दिनों बाद दीनानाथ जी ने बेटी से बात की और उसे कुछ अखबार दिखाए, उसने उन पर एक दृष्टि डालकर उन्हें उठाकर उपेक्षा से एक तरफ़ जैसे पटक ही दिया| उसे था| उसे किसी की परवाह कहाँ थी लेकिन अपने व्यवसाय की परवाह भी न हो, यह तो बड़ी आश्चर्यजनक बात थी अपने काम के बारे में वह बहुत गंभीर थी, उसे इतना तो पता ही होगा कि उसके व्यवहार से व्यवसाय से जुड़े लोगों पर कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा !ऐसा ही हुआ था और बेचारे दीनानाथ अपना सा मुँह लेकर रह गए थे| प्रेस ने, लोगों ने सामने तो बेटी के स्वास्थ्य की चिंता ही दिखाई थी लेकिन पीठ पीछे कितनी कहानियाँ बनी थीं ! यही तो रवैया है दुनिया का, सामने कुछ और पीठ पीछे कुछ और---
कितनी बातें उछली थीं, दीनानाथ जानते ही थे उसके दिमाग को लेकिन यह तो नहीं जानते थे कि उनकी बेटी इतनी बड़ी खिलाड़ी है ! कहाँ मालूम था उन्हें कि आशी ने शादी से पहले मनु के सामने क्या शर्तें रखी थीं| उन्हें लगता कि शादी से पहले के नखरे हैं, साथ रहेंगे तो बाज़ी प्रेम की तरफ़ पलट जाएगी| और आशी ने ऐसी शर्तों पर मनु को शादी करने के लिए राज़ी करवा लिया था जिनको कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था| क्या इतने बरसों पुराना भूत उसमें अभी तक चिपटा हुआ था?कोई मस्तिष्क विहीन पागल भी इन बातों पर यकीन नहीं कर सकता था लेकिन हुआ था ऐसा और सबको मुँह बंद करके और आँखों में आश्चर्य भरकर सब कुछ सहना पड़ा था|