Shuny se Shuny tak - 62 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 62

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शून्य से शून्य तक - भाग 62

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“अंकल!प्लीज़ अदरवाइज़ मत लीजिए, बहुत दिनों से हम उधर की तरफ़ निकले भी नहीं हैं, चौकीदार तो है पर कैसी सफ़ाई वगैरह होती है, यह तो हमें वहाँ जाकर देखना चाहिए, माली ने भी गार्डन कैसे मेन्टेन किया है? कभी-कभी वहाँ कोई रहे तो इन लोगों को भी ध्यान रहता है| ” फिर कुछ ठहरकर बोला;

“कोई बात नहीं, आशी का मन नहीं है तो न सही, मैं एक दिन चक्कर लगाकर आ जाऊँगा| ”उसने देखा दीना अंकल बहुत मुरझा गए थे| वह उनका मूड ठीक करना चाहता था| 

“मैं और रेशमा संडे को चले जाते हैं, कुछ दिन रहते हैं| आप प्लीज़ आशी को फोर्स मत करिए।उसका मन होगा तो अपने आप आ जाएगी नहीं तो हम थोड़े दिनों में आपके पास आ ही जाएंगे| ”मनु बहुत समझदारी से निर्णय लेता था| माता-पिता के न रहने पर वह कितना गंभीर बन गया था| 

रविवार को लंच के बाद मनु और रेशमा ने अपने घर जाने की तैयारी कर ली | लंच पर बात हो ही रही थीं| मनु ने आशी से बात करके एक बार और कोशिश करने का साहस करने की सोची| लेकिन पहले ही रेशमा ने उसे पूछ लिया;

“चलिए न आप भी, आ जाइएगा फिर वापिस, अभी हमारे साथ चलिए तो---”

“नहीं, अभी नहीं रेशु, मैं आ जाऊँगी | वन दे आई विल डैफ़िनेटली कम---ओ.के, बाय—टेक केयर—”कहकर वह धमाधम सीढ़ियाँ चढ़ती हुई ऊपर चली गई| 

दीनानाथ जी ने रघु और उसकी माँ को इन दोनों के साथ भेज दिया था जिससे इन्हें कोई परेशानी न हो| माली और चौकीदार वहाँ थे ही, इनके आने की खबर पाते ही दोनों एलर्ट हो गए| 

“कितना ध्यान रखते हैं अंकल हमारा---”रेशमा ने घर की सफ़ाई करवाते हुए कहा| उसे दीना अंकल को अकेले छोड़कर आने में तकलीफ़ हुई थी| 

मनु न जाने किस सोच में था, वह कुछ नहीं बोला;

“भैया मैं आपसे ही बात कर रही हूँ| ”उसने थोड़ी ज़ोर से कहा| 

“मैं सुन रहा हूँ रेशु, वाकई अंकल हमें बहुत प्यार करते हैं, कितना ध्यान रख्तर हैं हमारा---”उसने एक लंबी सान भरकर कहा| 

“पर, उनको अकेले छोड़कर हमने उनके साथ अन्याय ही किया है---”मनु काफ़ी दुखी था| 

“मैं भी कुछ ऐसा ही सोच रही थी, आशिमा दीदी की शादी में वे कितने खुश थे---कहीं अब उनकी तबियत फिर से न बिगड़ जाए---”

ठीक ही तो कह रही थी रेशमा, पर क्या करे वह भी—आशी को देखते ही वह असहज हो उठता है| 

“सच कहूँ तो रेशु, मेरा दम घुटता है वहाँ पर, खासतौर से शादी के बाद---”छोटी बहन के सामने उसकी आँखों में आँसु छलक आए| 

“मैं समझती हूँ भैया, भगवान ने भी तो हमारा एक्जाम लेने में कोई कमी नहीं छोड़ी| अगर मम्मी-पापा के साथ यह सब न हुआ होता तब हम क्यों इस तरह वहाँ जाते और यह सब होता---क्या पता मम्मी-पापा कुछ और ही सोच लेते अपने बच्चों के बारे में !”

“रेशु, अब जो है सो है, अपने भाग्य को कोई नहीं बदल सकता| ”

दोनों भाई बहन अपने बगीचे में टहलते हुए बात कर रहे थे, माली ने बगीचे को बहुत अच्छी तरह मेन्टेन किया था, जिसे देखकर दोनों भाई-बहन खुश हो गए| मनु ने एक सूखी डंडी तोड़ी और सोचने लगा कि यदि वह इसी तरह रहेगा तो कभी भी इस सूखी टहनी की तरह टूट जाएगा| एक बहन को अच्छा घर-वर मिल गया है, अभी छोटी बहन भी उसकी ड्यूटी है| वैसे दीना अंकल के बिना यह सब कहाँ संभव था?

माता पिता की दुर्घटना का सदमा वे झेल गए थे लेकिन दीना अंकल की बदौलत ही आज तीनों बहन-भाई सुरक्षित व स्वस्थ थे| मनु अपने और दीना अंकल के साथ हुए व्यवहार का सदमा नहीं झेल पा रहा था| 

रघु की माँ ने खाना तैयार कर दिया था, रघु उन्हें खाने के लिए बुलाने आया| 

“चलिए साहब, खाना तैयार है---”

“चलिए भैया, रेशमा भाई का हाथ पकड़कर रसोईघर से लगे डाइनिंग की ओर ले गई---”वह मनु के मन में चलने वाले द्वन्द को भली भाँति समझती थी| कैसे अपने भाई को उस पीड़ा से मुक्ति दिलवाए?उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था| वह स्वयं भी तो उदास थी, यहाँ आकर भी मन के आँगन में कुछ परिवर्तन महसूस नहीं हो रहा था| 

रघु की माँ भी महाराज की तरह बहुत अच्छा खाना बनाती थी, महाराज ने उसे सबकी पसंद का खाना बनाना सिखा दिया था इसलिए उसे सबकी पसंद भी मालूम थी| उसने मनु और रेशमा की पसंद का खाना बनाया और गरम फुल्के बनाने के लिए उनकी प्रतीक्षा कर रही थी| कुछ भी हो उदर-पूर्ति तो करनी ही पड़ती है| रेशमा भाई को लेकर आ गई, रघु माँ की बनाई सब्जियों के डोंगे लाकर रखने लगा| प्लेट्स वह पहले ही लगा चुका था| दीनानाथ जी को हर चीज़ सलीके की पसंद आती थी इसलिए महाराज के साथ रहकर रघु भी ट्रेंड हो गया था|