Shuny se Shuny tak - 56 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 56

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शून्य से शून्य तक - भाग 56

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सब खाने पर बेमन से इधर-उधर की बातें करते रहे लेकिन आशी का न होना सबको खल रहा था| वैसे चिंता की कोई बात नहीं थी, बंबई जैसे शहर की सारी सड़कें उसने अकेले ही जाने कितनी बार नापी हुईं थीं| उसके अप्रत्याशित व्यवहार की ही चिंता थी सबको| आज तो वैसे भी उसके साथ ड्राइवर था| 

रात के साढ़े ग्यारह बज चुके थे| सभी थके हुए थे| अब सब बच्चे दीनानाथ के कमरे में आकर बैठे थे| 

“चलो, अब चेंज कर लिया जाए, बहुत देर हो गई है---”उन्होंने कहा| 

“अंकल ! आशी दीदी----”

“अरे !---, आ जाएगी---कुछ काम होगा---”उन्होंने ऐसे कहा मानो उन्हें बेटी की कोई चिंता ही नहीं हो| 

सब अपने-अपने कमरों में चले गए| रेशमा जैसे अपनी बहन को छोड़ना ही नहीं चाहती थी| आज बड़े दिनों बाद अपनी दीदी के पास सोएगी, रेशमा खुशी से उछली जा रही थी| आज माधो भी सब काम निबटाकर अपनी जगह पर लेट गया था| आज वह निश्चिंत था, सबको देखकर वह बहुत खुश था| सबके आने से घर का सूनापन जाने कहाँ चला जाता है!

दीना स्वयं में उलझे हुए थे| इन बच्चों के यहाँ रहने से वे प्रफुल्लित रहते थे, बस---आशी की चिंता ही उन्हें छोड़ नहीं पाती थी| उन्हें यही चिंता खाती कि मनु बेचारा कहीं पिस न जाए उनकी बेटी के साथ!वह बेचारा भला लड़का है| कैसे निबाहेगा इस ज़िद्दी लड़की के साथ? कब क्या सोचे? कब क्या कर बैठे? कुछ पता नहीं उसके दिमाग का! उन्हें लगता कि वे कितने स्वार्थी हो रहे हैं मनु बेचारे की ज़िंदगी दाँव पर लगाकर !कभी अचानक उसमें बदलाव दिखाई देता तो वे खुश हो जाते तो कभी अचानक फिर से वैसी ही सपाट जवाब देने वाली ज़िद्दी, अभिमानी लड़की उनकी बेटी में से झाँकने लगती| 

सब अपने कमरों में चले गए थे और माधो उनके कमरे के बाहर अपनी सदा की जगह पर लेट गया था| वह जानता था कि जब तक आशी बेबी आ नहीं जाएंगी, मालिक सो नहीं पाएंगे| अंदर दीना करवटें बदल रहे थे तो उनके कमरे के बाहर माधो करवटें बदल रहा था| 

रात के साढ़े बारह का घंटा ज़ोर से बजा---टन्न और गार्ड के गेट खोलने की आवाज़ सुनाई दी| वीराने में गाड़ी की आवाज़ भी सुनाई दी| महाराज, रघु सभी जाग रहे थे| 

“बेबी! खाना लगा दूँ ? ”उसके अंदर आते ही महाराज जल्दी से उसके पास पहुँच गए थे| 

“नहीं----”कहकर वह खटखट करती सीढ़ियाँ चढ़ गई| 

आशिमा और रेशमा दोनों बातें करती हुई जाग रही थीं | आवाज़ सुनकर दोनों दरवाज़ा खोलकर बाहर आईं| 

“दीदी---”आशिमा उसकी ओर बढ़ी| 

“अरे! तुम लोग अभी तक जाग रही हो? ”वह जानती थी सब लोग जाग ही रहे होंगे| उसने अपनी तिरछी दृष्टि पापा और मनु के कमरे की ओर डाली| दरवाज़ा तो बंद होना ही था लेकिन वह जानती थी कि सब जाग ही रहे होंगे| उसकी दृष्टि पापा के कमरे के बाहर साइड में हमेशा की तरह माधो के दीवान पर भी पड़ी, वह करवट बदल रहा था| वह भी कहाँ सोता था जब तक उसके मालिक को ठीक से नींद न आ जाए? 

“दीदी! हम लोग आपका इंतज़ार ही कर रहे थे| आइए, देखिए तो आशिमा दीदी आपके लिए क्या लाई हैं, देखिए तो? ”रेशमा आशी का हाथ पकड़कर अपने कमरे में ले जाने लगी| 

“बहुत थक गई हूँ, सुबह को---”आशी ने उससे हाथ छुड़ाकर उसके गाल थपथपाए और अपने कमरे की ओर बढ़कर दरवाज़ा बंद कर लिया| दोनों बहनों का उत्साह से भरा मुँह लटक गया और वे अपने कमरे में समा गईं| आशिमा छोटी बहन को कमरे में ले गई और वे दोनों बातें करने लगे| 

आशिमा रेशमा को तस्वीरें दिखा रही थी और रेशमा खुशी से उछली पड़ रही थी| 

“हाय!कितनी सुंदर जगह है न दीदी ? ” उसने खिलते हुए कहा| 

“ठीक है, तुझे भी यहीं भेज देंगे हनीमून पर---”आशिमा ने कहा| 

“मैं क्या अभी जा रही हूँ? खुश तो होने दो देखकर---”

“जब भी जाएगी---वैसे ज्यादा दिन तो रखने वाले नहीं हैं अंकल तुझे---”आशिमा ने बहन को चिढ़ाया| 

“देखा जाएगा जब अनिकेत जीजू जैसा लड़का मिलेगा---वैसे दीदी, तू खुश तो है न? ”रेशमा बहन से न जाने कितनी बातें जान लेना चाहती थी| 

“तुझे क्या लगता है? ”

“मुझे तो बहुत खुश लग रही है तू दीदी और तेरे इन-लॉज़ भी---अंकल और भाई भी खुश हैं| ”

“सच ही रेशमा अनिकेत ही नहीं, उनका सारा परिवार ही बहुत अच्छा है| उनकी बहन भी, बहुत प्यार करने वाले लोग हैं और सिम्पल भी!रीयली!थैंक्स टू गॉड---और सबसे बड़ी बात ये है कि सभी लोग इतने एडजस्टेबल हैं कि पता भी नहीं चलता कि ये बँगला परिवार है| ”बहन को अपने ससुराल की बातें बताते हुए वह स्नेह से भीगी जा रही थी| न जाने कब दोनों बहनें बातें करते-करते सो गईं|