Shuny se Shuny tak - 54 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 54

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शून्य से शून्य तक - भाग 54

54====

आशी ने सुदूर पर्वतों के नीचे छिपने की हरकत करते हुए सूर्य को देखा| उसे लगा कि वह पर्वत श्रंखला से छुपम-छुपाई खेल रहा है| कभी ऊँचे पर्वत की पीछे दिखाई दे रहा है तो कभी छोटी पहाड़ी के पीछे से झाँकने लगता है जैसे उसे कोई पकड़ने की कोशिश कर रहा हो लेकिन अंत में वह अस्ताचल में स्वयं को छिपा लेता है प्रात:उदय होने के समय भी वह ऐसी ही शैतानियाँ करता दिखाई देता है | उस समय मानो सोकर उठा हुआ ऐसा बच्चा लगता है जिसके चेहरे पर मुस्कान खिली रहे जो सबको ऊर्जा से भर दे | अचानक वह सोचने लगी कि यह सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति का कण-कण कैसे अपने आपको अनुशासन में बाँधे रखता है!और वह---?? 

उस दिन जब रेशमा उसे आशिमा के घर उसे ले जाने के लिए बुलाने आई तब उसकी अकड़----चाहती तो जा सकती थी लेकिन उसके मन में यह बात फिर से चुभ गई थी कि उसके पिता ने उसे स्वयं क्यों नहीं कहा था? उसके मस्तिष्क का कुछ पता ही नहीं चलता था जाने किस समय क्या कह बैठे और क्या सोचने लगे? मक्खी तो न जाने कब नाक पर आ चिपके ! एक पिता के रूप में बेचारे दीना तो उससे कुछ भी कहते हुए डरते थे, न जाने क्या सोचने लगे| अभी तो वे इस बात से ही खुश थे कि आशी ने मनु से शादी के लिए हाँ कर दी थी और रेशमा के साथ घुलने-मिलने की कोशिश कर रही थी| उन्हें इसमें ही अच्छाई व सकरात्मकता नज़र आ रही थी| कहीं वे कुछ कहें और उनकी बेटी और कुछ गड़बड़ करने लगे तो!

मनु उसके चैंबर के बाहर खड़ा सोच रहा था कैसे ही होगा? इस लड़की से कैसे निभा पाएगा? मनुष्य बहुत बार सब कुछ जानता है लेकिन फिर भी ऐसी परेशानियों में उसे अपनी टाँग फँसानी पड़ती है कि कभी अपनी टाँग ही कटवानी भी पड़ जाती है| वह दीना अंकल को आशी से विवाह की हामी भरकर ऐसा फैसला ले चुका था कि उसकी गर्दन को रस्सी से घुटने से कोई नहीं बचा सकता था| जिन शर्तों पर आशी ने उससे शादी के लिए हामी भरी थी, उन शर्तों को तो कोई देवलोक का देवता या फिर साधु-महात्मा भी पूरी कर पाता, इसमें संदेह ही था| मज़े की बात यह थी कि अपने मन की पीड़ा को वह दीना अंकल से साझा भी नहीं कर सकता था| वैसे भी उन्हें दुखी देखने की उसकी हिम्मत नहीं थी| 

“चलिए भैया---”

उसके विचारों में ब्रेक लगा, रेशमा अकेली उसके सामने खड़ी थी| मनु की प्रश्नवाचक दृष्टि बहन के चेहरे पर पड़ी| 

“शी इज़ बिज़ी---”वह मनु की बाँह पकड़कर गाड़ी की ओर ले गई, ड्राइवर सब सामान गाड़ी में रख चुका था| 

लगभग सवा घंटे में दोनों अनिकेत के घर पहुँच गए| फिर चाय, नाश्ता, गप्पें---ऐसे में समय का कहाँ पता चलता है? आशिमा को खुश देखकर सब खुश थे| अनिकेत आशिमा को कुछ ऐसी दबी नज़रों से देख रहा था जैसे उसे जाने ही न देना चाहता हो| आशिमा के मुख पर मुस्कान देखकर मनु के मन में भी कुछ अजीब सी हुड़क उठी| न जाने उसकी शादी के बाद उसके जीवन का सफ़र कैसा रहेगा? 

“आँटी ! अब चलना चाहिए, बहुत देर हो गई| ”मनु ने कहा तो अनिकेत की मम्मी तुरंत बोलीं कि उन्हें डिनर करके जाना चाहिए| 

“आज नहीं आँटी, अंकल और आशी डिनर पर वेट करेंगे। फिर कभी---”मनु ने उठते हुए कहा| 

“आशिमा को आने दो---”पता नहीं कब वह और अनिकेत अंदर चले गए थे| 

“सामान लेकर आते ही होंगे, बैठो न तब तक---और सुनो मनु बेटा! अंकल से कहो, बहुत दे दिया उन्होंने| हर बार इतना सामान न भेजें| ”अनिकेत की मम्मी ने हर बार की तरह बड़े प्यार से कहा लेकिन उन्होंने खुद उन दोनों के लिए गिफ्ट्स मँगवाकर रखे हुए थे| 

“अब ये क्या है आँटी? वैसे भी मैं आशिमा का बड़ा भाई हूँ, मेरा लेने का अधिकार नहीं बनता| ”

“तुम बहन को लेने को आए हो न? तो उसकी ससुराल से खाली हाथ जाओगे क्या? और आशिमा नहीं मैं लाई हूँ, मैं तो आँटी हूँ न तुम्हारी!!”उन्होंने प्यार से कहा| 

“बस, यही अंकल कहते हैं, अब बताइए किसको कौन समझाए? ”मनु की इस बात पर सब हँस पड़े| मज़े की बात यह थी कि न तो दीना या मनु या कोई भी बँगला रिवाज़ जानते थे, न ही अनिकेत के माता-पिता ने उनसे कुछ बताया था, वैसे भी यह परिवार अब मुंबई का हिस्सा ही बन गया था जहाँ सब प्रदेशों के लोग एकसाथ रहते थे और सबके रीति-रिवाज़ एक-दूसरे में घुल-मिल गए थे| 

लगभग दसेक मिनट बाद नवविवाहित युगल बाहर आया| आशिमा की आँखों में, चेहरे पर प्रेम की चमक सबको दिखाई दे रही थी| वह मुँह नीचा करके अपने सास ससुर के चरण स्पर्श करने लगी| सास ने उसे गले से लगा लिया;

“जल्दी आना, हमारा अनिकेत उदास हो जाएगा| ”अनिकेत की मम्मी ने उन दोनों की तरफ़ देखते हुए कहा तो दोनों फिर से शर्मा गए| 

“और सुनो बेटा, जल्दी डिनर का प्रोग्राम बनाना, सब लोग यानि अंकल और आशी भी---ठीक है ? ”

“जी, आँटी---”

“आशिमा बेटा, वो सब गिफ्ट्स रख लिए या नहीं जो तुम लाई हो ? ”

“जी माँ, सब रख लिए हैं| ”आशिमा के उत्तर से मनु को इतनी तसल्ली हुई कि उसकी आँखें भर आईं| उसने अपना मुँह घुमाकर अपने आँसु छिपा लिए | चलो, आशिमा को तो माँ का प्यार मिला और उसने मन से स्वीकार भी कर लिया है| इतना स्नेहिल परिवार मिलने के लिए मनु ने ईश्वर को न जाने कितनी बार धन्यवाद दिया होगा| 

सब लोग उन्हें गाड़ी तक छोड़ने भी आए थे| 

“दादा!मैं सोमवार से ऑफ़िस जॉयन करूँगा | ”अनिकेत ने मनु से कहा| 

“अरे !आराम से, अपनी थकान उतार लो| तुम्हारा काम आजकल नवीन बहुत अच्छे से संभाल रहा है| तुमने उसे खूब ट्रेंड किया है| ”मनु ने अनिकेत के कंधे को प्यार से हौले से दबा दिया| 

नमस्कार, बाय आदि के बाद सब लोग वहाँ से निकल गए| सबके मन में प्रसन्नता का कारण एक ही था लेकिन उसे महसूस करने के अपने-अपने तरीके थे| मनु सोच रहा था कि यदि छोटी बहन को भी ऐसा ही घर, वर मिल जाए तो? वैसे अभी उसकी पढ़ाई चल रही थी लेकिन आशिमा की खुशी देखकर एक भाई के मन में स्वाभाविक रूप से यह ख्याल आ गया था| आशिमा ने छोटी बहन को अपने से चिपटा रखा था, और रेशमा तो जैसे उसे छोड़ना ही नहीं चाहती थी|