Fagun ke Mausam - 39 in Hindi Fiction Stories by शिखा श्रीवास्तव books and stories PDF | फागुन के मौसम - भाग 39

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फागुन के मौसम - भाग 39

भाग- 39

 

ऑडिटोरियम की तरफ बढ़ते हुए जानकी के मन में बार-बार ये ख़्याल आ रहा था कि राघव सिर्फ उसकी ख़ातिर लखनऊ में रुक रहा है।

उसकी ऐसी अनेकों छोटी-छोटी बातों से जानकी समझने लगी थी कि उसने राघव के दिल में अपनी जगह बना ली है।

 

इसी अहसास को मन में लिए हुए जब वो मंच पर उतरी तब उसकी आज की प्रस्तुति के माध्यम से राधा और कृष्ण के प्रेम की पवित्र झलक देखते हुए वहाँ बैठे तमाम दर्शक भावविभोर हो गए थे।

 

उनकी तालियों की गूँज के बीच में जब जानकी मंच से उतरी तब रात के नौ बज रहे थे।

 

मार्क ने जानकी से कहा कि अब इस समय वो राघव वाले होटल में तो जा नहीं सकती है इसलिए वो उनके साथ चले लेकिन जानकी ने कहा कि उसे राघव के पास ही जाना है, और संभव होगा तो वो आज की रात ही बनारस लौट जाएगी।

 

लीजा ने भी जब जानकी का साथ दिया तब उन दोनों से बनारस में मिलने की बात कहकर जानकी राघव के पास चल पड़ी।

 

अपना डिनर करने से पहले राघव आज अकेला ही लखनऊ के बाज़ार में घूम रहा था।

सहसा एक दुकान के सामने जाकर वो रुक गया जहाँ खूबसूरत रंग-बिरंगे झुमके मिल रहे थे।

 

इन झुमकों को देखकर उसे ख़्याल आया कि जानकी भी अक्सर अपनी ड्रेसेस के साथ ऐसे मैचिंग झुमके पहनती है।

 

उसने दुकान में जाकर चार अलग-अलग रंगों के झुमके खरीदे और फिर वो उस दुकान की तरफ बढ़ गया जहाँ लखनऊ की प्रसिद्ध चिकनकारी कला से सजे हुए दुपट्टे मिल रहे थे।

 

दुपट्टों की खरीददारी करने के बाद उसे याद आया कि कुछ दिन पहले दफ़्तर में ही अचानक जानकी की पायल टूट गई थी और उसके बाद वो ख़ासी उदास हो गई थी।

 

जानकी के होंठो पर मुस्कुराहट की कल्पना करते हुए राघव ने पास ही स्थित ज्वेलर की दुकान से उसके लिए एक जोड़ी पायल भी खरीदी और फिर अपने आप से संतुष्ट होकर वो वापस होटल की तरफ चल पड़ा।

 

होटल पहुँचकर उसने इन सभी चीज़ों को सहेजकर अपने बैग में रखा और कमरे में ही डिनर का ऑर्डर देने के बाद वो आराम से बिस्तर पर पैर फैलाकर टीवी देखने लगा।

 

थोड़ी देर बाद जब कॉलबेल बजी तब राघव ने वहीं से लेटे-लेटे कहा, “आ जाओ।”

 

“आ गई मैं।” सहसा जानकी की आवाज़ राघव के कानों में पड़ी तो उसने चौंककर अपनी नज़रें उठाईं।

 

“तुम तो सुबह आने वाली थी न?” राघव के पूछने पर जानकी ने कहा, “हाँ लेकिन मौसी के घर में पहले से ही इतने मेहमान थे कि अगर मैं भी वहाँ रुक जाती तो बेचारी परेशान हो जाती।”

 

“अच्छा, तुम रुको मैं तुम्हारे लिए दूसरा कमरा बुक करके आता हूँ। फिर तुम डिनर करके वहाँ चली जाना।”

 

“नहीं, उसकी कोई ज़रूरत नहीं है।”

 

“मतलब?”

 

“मतलब मैं सोच रही थी चार घंटे की ही बात है और हाईवे पर गाड़ियां चलती ही रहती हैं तो ऐसा कोई डर है नहीं, इसलिए हम अभी ही बनारस के लिए निकल जाते हैं।”

 

“नहीं प्लीज, ग्यारह बजते-बजते तुम सो जाओगी और तुम्हें देखकर अगर मेरी भी पलकें झपकने लगीं तो...।”

 

“ऐसा कुछ नहीं होगा, मैं नहीं सोऊँगी सच्ची। फिर अभी सड़कें खाली होंगी तो हम और जल्दी घर पहुँच सकते हैं।”

 

“अच्छा ठीक है, फिर जल्दी से खाना खाकर निकलते हैं।”

 

“ठीक है।”

 

जानकी ने अभी कहा ही था कि वेटर खाना लेकर आ गया।

 

राघव ने उसे जानकी के लिए भी खाना लाने के लिए कहा और उसका खाना आने तक वो रिसेप्शन पर टोटल बिल क्लियर करने चला गया।

 

डिनर खत्म करने के बाद रात के लगभग दस बजे राघव और जानकी की गाड़ी बनारस की ओर चल पड़ी।

 

राघव के लिए भी ये अहसास बहुत सुखद था कि जानकी उस पर विश्वास करती है, उसके साथ ख़ुद को सुरक्षित महसूस करती है, क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो वो दोनों इस अँधेरी रात में लगभग सुनसान सड़क पर एक साथ नहीं होते।

 

इस विश्वास का मान बनाए रखना राघव बखूबी जानता था।

इसलिए आज सहज ही गाड़ी में जानकी द्वारा बजाए जा रहे उसके पसंदीदा गीतों में से एक गीत राघव भी गुनगुना उठा।

 

उसे यूँ गुनगुनाते हुए देखकर जब जानकी ने भी उसका साथ दिया तब उन दोनों के ही चेहरे खिल उठे।

 

फिर तो एक के बाद एक कई ड्यूट्स गाते हुए उन दोनों ने एक-दूसरे को ऐसी मनोरंजक कम्पनी दी कि नींद उन दोनों की आँखों से कोसों दूर भाग गई।

 

आख़िरकार रात के सवा दो बजे के आस-पास राघव ने अपनी गाड़ी जानकी की बिल्डिंग में रोकी।

 

जब जानकी ने देखा कि राघव गाड़ी से नहीं उतर रहा है तब उसने कहा, “सुनो राघव, अब इतनी रात में तुम कहाँ अपने घर जाकर चाची की नींद खराब करोगे? इसलिए आज तुम यहीं रुक जाओ। कुछ घंटों की ही तो बात है।”

 

राघव उसे मना नहीं कर पाया और वो भी अपना बैग लेकर उसके साथ चल पड़ा।

 

फ्लैट का ताला खोलने के बाद जब वो दोनों अंदर आए तब राघव ने कहा, “चलो तुम अपने कमरे में जाकर सो जाओ, मेरे लिए तो ये सोफा है ही।”

 

“नहीं, इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। तुम मेरे कमरे में जाकर सो जाओ और मैं लीजा के फ्लैट में जा रही हूँ।

अच्छा ही है कि वो दोनों भी बाहर गए हुए हैं।”

 

जानकी की बात सुनकर राघव ने अगले कुछ मिनट तक जब कुछ नहीं कहा तो उसका हाथ थामकर उसे अपने कमरे में ले जाते हुए जानकी बोली, “देखो ये बिल्कुल साफ-सुथरा है तो तुम परेशान मत हो।”

 

राघव समझ गया कि अब वो जानकी की बात नहीं टाल सकता है, इसलिए उसने कहा, “ठीक है, अगर सुबह मैं देर तक सोया रहा तो जगा देना मुझे।”

 

“जगा दूँगी, डोंट वरी एंड गुड नाईट।” जानकी ने मुस्कुराते हुए कहा और वहाँ से बाहर चली गई।

 

बिस्तर पर लेटे-लेटे जानकी के कमरे को निहारते हुए राघव का मन पुलक से भर उठा था कि सिर्फ उसकी ख़ातिर जानकी ने अपनी वर्षों पुरानी आदत छोड़कर एक नई आदत अपना ली है।

 

“क्या सचमुच हम दोनों के बीच में कोई कनेक्शन है जिसे हम दोनों ही समझ नहीं पा रहे हैं?” इस प्रश्न ने एक बार फिर राघव को परेशान करना शुरू कर दिया।

 

इसी प्रश्न में उलझे हुए जो उसकी आँख लगी तो सीधे सुबह साढ़े पाँच बजे के आस-पास ही खुली।

 

उसे ऐसा लगा जैसे उसने अभी-अभी कहीं आस-पास से तबले की धुन सुनी है।

 

फ्लैट का मुख्य दरवाज़ा खोलकर वो बाहर पैसेज में आया तब उसने देखा इस फ्लोर पर जो एक तीसरा फ्लैट था उसके दरवाजे पर ताला लटक रहा था।

 

“तो क्या ये आवाज़ लीजा के फ्लैट से आ रही थी? लेकिन वहाँ तबला कौन बजाएगा?” राघव अभी इसी उलझन में था कि तभी जानकी भी लीजा के फ्लैट से बाहर आई।

 

राघव को वहीं बाहर खड़ा देखकर उसने चौंकते हुए कहा, “क्या हुआ? तुम इतनी जल्दी क्यों उठ गए?”

 

“नहीं, वो अचानक मुझे तबले की आवाज़ सुनाई दी तो मेरी नींद टूट गई।”

 

ये सुनकर एकबारगी जानकी सकपका गई लेकिन फिर उसने ख़ुद को संयत करते हुए कहा, “हाँ, मुझे भी कभी-कभी ऐसी आवाज़ सुनाई देती है। शायद नीचे के फ्लोर पर कोई संगीत प्रेमी रहता है।”

 

“हो सकता है। वैसे अब तुम वापस अपने फ्लैट में आ सकती हो।” राघव ने किनारे होते हुए कहा तो जानकी लीजा और मार्क के फ्लैट को लॉक करने के बाद अपनी रसोई में जाते हुए बोली, “तुम ब्रश कर लो, मैं चाय बनाती हूँ।”

 

चाय पीने के बाद राघव ने कहा, “अगर तुम्हें दिक्कत न हो तो मैं थोड़ी देर और सो जाऊँ?”

 

“बिल्कुल, बस अपना लैपटॉप मुझे दे दो। आज दफ़्तर में मुझे नए प्रोजेक्ट की रिपोर्ट विकास सर को सौंपनी है।”

 

सहसा इस नए प्रोजेक्ट के ज़िक्र ने राघव को एक बार फिर बेचैन कर दिया लेकिन जानकी का चेहरा देखते हुए उसने किसी तरह ख़ुद को सँभाल लिया और उसे लैपटॉप देने के बाद वो जो सोया तो उसकी आँख सीधे नौ बजे खुली जब जानकी ने उसे आवाज़ देते हुए कहा कि अब दफ़्तर जाने का समय हो रहा है।

 

राघव ने अलसाई हुई आँखों से जानकी को देखा और फिर उसने सोचा कि एक दिन जब वैदेही लौट आएगी और वो उसके साथ रहेगा तब वो भी इसी तरह उसे सुबह-सुबह जगाया करेगी लेकिन फिर अचानक उसके मन में वैदेही की जो छवि थी उसे परे सरकाकर वहाँ जानकी खड़ी हो गई और राघव के अंतर्मन ने महसूस किया कि वो इस तरह जानकी को वैदेही की जगह लेते हुए देखकर ज़रा भी परेशान नहीं था।

 

अपने इन्हीं ख़्यालों के बीच उसने अचानक जानकी से कहा, “सुनो, तुम जाओ अपने दफ़्तर और सँभालो अपना प्रोजेक्ट। वैसे भी फ़िलहाल मेरे पास कुछ काम नहीं है तो मुझे सोने दो। अगर मेरा मन करेगा तो मैं लंच ब्रेक तक आ जाऊँगा।”

 

“ठीक है, पर तुम्हारी सैलरी कटेगी याद रखना।”

 

“हाँ-हाँ ठीक है। कोई दिक्कत नहीं है मुझे। अब तुम निकलो।”

 

“ठीक है, तुम्हारा नाश्ता किचन में है खा लेना और जो टिफिन मैंने बनाया था वो भी मैं छोड़कर जा रही हूँ , उसे लंच के समय खा लेना।”

 

“हम्म... थैंक्यू सो मच।” इतना कहकर राघव ने वापस अपनी आँखें बंद कर लीं और जानकी अपना पर्स उठाकर दफ्तर के लिए निकल गई।

 

सुबह-सुबह जानकी को दफ़्तर में देखकर सबने हैरानी से पूछा कि वो कब वापस आई तब उसने सबको बताया कि वो और राघव भी रात में ही आ गए थे।

 

तारा ने जब पूछा कि राघव कहाँ है तो जानकी ने उसे बता दिया कि वो आज छुट्टी पर है।

 

“सर कभी इस तरह दफ़्तर से गायब नहीं होते हैं। इसका एक ही अर्थ है कि इस नए प्रोजेक्ट ने अभी तक उन्हें परेशान कर रखा है।” हर्षित ने जब कहा तो राहुल बोला, “कोई बात नहीं। जिस तरह इस प्रोजेक्ट की प्रोग्रेस हो रही है इसकी सफ़लता में कोई संदेह नहीं है, इसलिए हमें चुपचाप अपने काम पर फोकस करना चाहिए।”

 

उसकी बात से सहमत होते हुए विकास ने जानकी से उसकी बनाई हुई रिपोर्ट माँगी तो जानकी ने एक पेनड्राइव उसकी तरफ बढ़ा दिया।

 

अपने केबिन में बैठी हुई जानकी तल्लीनता से अपने काम में डूबी हुई थी कि तभी अंदर आते हुए राघव ने कहा, “कभी घड़ी की तरफ भी देख लिया करो।”

 

“उसके लिए आप हैं न।” जानकी ने लैपटॉप बंद करते हुए कहा और उठकर राघव के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई जहाँ राघव अब तक उन दोनों के साथ-साथ तारा के लिए भी लंच लगा चुका था।

 

तारा के आने के बाद जब उन्होंने खाना शुरू किया तब राघव ने तारा से कहा, “मिस मैनेज़र, आप ज़रा अपने एम्प्लॉयीज़ का भी ध्यान रखा कीजिए। आज अगर मैं नहीं आता तो मिस जानकी न जाने कब तक अपनी भूख-प्यास भूलकर बस काम ही करती रहतीं।”

 

राघव के इस उलाहने पर तारा ने पहले जानकी की तरफ देखा और फिर वो राघव से बोली, “सर, फ़िलहाल तो ये ज़िम्मेदारी आपको ही उठानी होगी क्योंकि हमारे गेम लॉन्च इवेंट के दस दिन बाद ही मेरे विवाह के कार्यक्रम शुरू हो जाएंगे और मैं कम से कम बीस दिन तक छुट्टी में रहूँगी।”

 

“ओह हाँ! मैं तो भूल ही गया था।” राघव ने अपने माथे पर हाथ रखते हुए कहा और सहसा उसने देखा जानकी का चेहरा यकायक कुम्हला सा गया था लेकिन दफ़्तर में उसने उससे कुछ भी पूछना सही नहीं समझा, इसलिए घड़ी देखते हुए वो बस शाम का इंतज़ार करने लगा।

 

दफ़्तर की छुट्टी के बाद जब जानकी अपने घर जाने के लिए निकली तब राघव ने उससे कहा कि उसका बैग जानकी के घर पर ही है इसलिए वो भी उसके साथ चलेगा।

 

घर आने के बाद जब चाय बनाकर जानकी राघव के साथ बैठी तब राघव ने उससे पूछा कि वो दोपहर में अचानक उदास क्यों हो गई थी?

 

“हमारे इवेंट के एक दिन पहले ही दिवाली है न और ये पहली दिवाली होगी जब माँ मेरे साथ नहीं होगी।” जानकी ने कहा तो राघव ने उसे सुझाव देते हुए कहा, “तुम इवेंट की चिंता मत करो और छुट्टी लेकर अपनी माँ के पास चली जाओ। कब से तुम कह रही हो माँ के पास जाना है पर अब तक नहीं गई।”

 

“कहाँ जाऊँ मैं राघव? वो अपने परिचितों के साथ लम्बी तीर्थयात्रा पर निकल गई हैं। आज वो इस तीर्थ पर होती हैं तो अगले दिन कहीं और के लिए निकल जाती हैं। उनका कोई तय शेड्यूल ही नहीं है।”

 

“अच्छा, फिर भी तुम्हें उदास होने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम ये सोचकर खुश रहो कि तुम्हारी माँ अपनी ख़्वाहिश पूरी कर रही है, अपनी ज़िंदगी जी रही है और रही दिवाली की बात तो मैं हूँ, मेरी माँ है, और तारा भी तो है।

वैसे भी तारा हर वर्ष अपने घर लक्ष्मी-गणेश की पूजा करने के बाद मेरे घर आ जाती है और तब हम मिलकर पटाखे जलाते हैं।

इस बार तुम भी साथ रहोगी तो हम सबको अच्छा लगेगा।”

जानकी ने जब हामी भरी तो उसे अपना ध्यान रखने और मुस्कुराते रहने के लिए कहकर राघव अपने घर चला गया।