Shuny se Shuny tak - 49 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 49

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शून्य से शून्य तक - भाग 49

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अचानक आशी टेबल से उठ खड़ी हुई| 

“पापा ! आज मैं कुछ देर में आऊँगी| आप लोग चलिए---”आशी ने दीनानाथ से कहा| 

“क्यों? ”अचानक ही उनके मुँह से निकल गया | 

“नहीं, कुछ खास नहीं , बस कुछ देर में आने का मन है| मैं अपने आप आ जाऊँगी| डोन्ट वरी फ़ॉर मी--”कहकर वह खट खट करती हुई सीढ़ियों से ऊपर चढ़ गई| 

अभी तक बेटी से बात करके दीना का पिता-मन जो गुब्बारे से फूला सा जा रहा था अचानक ही जैसे फिस्स सा हो गया जैसे किसी ने मन के गुब्बारे में सूई से छेद कर दिया हो| 

मनु उनके चेहरे के उतार-चढ़ाव बहुत अच्छी तरह से पढ़ पा रहा था| 

‘ज़रूर आशी ने इनसे कुछ बात की है| ’उसने मन में सोचा किन्तु उसने कुछ नहीं कहा और नाश्ता करके दीनानाथ के साथ ऑफ़िस चल गया| 

आशी आज ऑफ़िस जाना ही नहीं चाहती थी| उसके मन में भी कई सवाल मचल रहे थे| वह मनु और पापा से अलग अलग बात कर चुकी थी लेकिन फिर भी उसे लग रहा था कि क्या वह वाकई इसके लिए मन से तैयार है? उसने मनु से बात की थी और मनु ने स्वीकार भी किया था लेकिन यह ज़ाहिर हो रहा था कि शायद मनु किसी दबाव में आकर ही हाँ कर रहा था| उसकी बात का प्रभाव मनु के चेहरे पर आनंद नहीं ला सका था| जब भी मनु ने उससे बात करने की कोशिश की थी, आशी ने उसका तिरस्कार ही किया था| उसका ही क्या, उसकी माँ का, बहनों का| कहाँ आना चाहती थीं उसकी बहनें भी आशी से मिलने लेकिन समय की बलिहारी! किसने समय को देखा है? मनु भी तो एक हाड़-माँस का इंसान था, उसकी भी तो भावनाएं थीं, संवेदनाएं थीं---फिर? 

आशी जानती थी कि उसके पिता मनु से ऑफ़िस में जहाँ तक है लंच पर ही बात करेंगे| इसीलिए वह आज ऑफ़िस नहीं जाना चाहती थी | वह जानती थी कि गाड़ी में ड्राइवर की उपस्थिति में दीनानाथ मनु से इस नाज़ुक विषय पर बात करना पसंद नहीं करते| वैसे वे भी तो अपनी बात किस प्रकार मनु के सामने रखें, इस बारे में विचार कर रहे होंगे| ’लंच’तक संभवत:उन्हें यह सोचने का समय मिल जाएगा कि वे मनु से बात कैसे करें? अपनी बेटी के व्यवहार के कारण वे वैसे ही बहुत लज्जित रहते थे, अब उसकी हाँ हुई थी तब भी उसके दिमाग के संतुलन के बारे में उन्हें इतना विश्वास भी नहीं था| आखिर वह घड़ी आ ही गई जब उन्हें मनु से बात करनी थी| माधो ने रैस्ट-रूम में उन दोनों का खाना लगा दिया और पानी आदि का सब प्रबंध करके वह बाहर चला गया| 

“मनु! बेटा , आशी ने मुझे विवाह की स्वीकृति दे दी है---तुम्हारा क्या विचार है? ”उन्होंने खाना खाते हुए अचानक ही मनु के सामने आशी के स्वीकार करने के साथ मनु से भी प्रश्न कर दिया| 

मनु जानता था कि दीना अंकल बात तो करेंगे ही क्योंकि आशी कल रात उससे बात करके गई थी और वह पशोपेश में रह गया था| वह न तो न कह सकता था और न ही खुले मन से हाँ कर सकता था| 

“यह तो तुम जानते ही हो कि हमारे तुम दोनों के बारे में क्या विचार थे लेकिन परिस्थितियों ने जो भी तमाशे दिखाए, वे सब भी तुम्हारे सामने ही हुए| मेरे लिए केवल मेरी बेटी ही नहीं तुम तीनों बच्चे भी एक से महत्वपूर्ण हो| किसी के साथ भी न्याय न हो, मैं ऐसा कभी सोच भी नहीं सकता लेकिन अब तुम बड़े हो गए हो और एक तरह से मेरे बेटे ही नहीं दोस्त भी हो तो मैं किसी और से बात न करके तुमसे ही बात कर सकता हूँ| ”

दोनों का खाना लगभग समाप्त हो चुका था, उस समय बात शुरू हुई थी| मनु ‘एक्सक्यूज़ मी’कहकर बेसिन पर हाथ धोने चल गया | उसके पीछे दीना भी---उन्होंने माधो को आवाज़ दी, वह बाहर ही बैठा रहता था| जल्दी से आकर उसने टेबल से सब समेटकर वहाँ साफ़ कर दिया| 

“कॉफ़ी लाऊँ मालिक ? ”माधो ने पूछा | 

“मनु! लोगे अभी--? ”

“नहीं अंकल”मनु ने धीरे से उत्तर दिया, उसका चेहरा बता रहा था कि वह किसी और ही सोच में था| 

माधो वहाँ से चल गया था और बाहर निकलकर उसने कमरे के बाहर ‘डू नॉट डिस्टर्ब’की प्लेट लगा दी थी| वह जानता था कि अब उन दोनों में कुछ बातें भी हो सकती हैँ जो वे आशी बीबी के या फिर किसी के भी सामने नहीं करना पसंद करेंगे| माधो की समझदारी कमाल की थी, किसी को भी समझ में न आए लेकिन वह चेहरे देखकर सब भाँप जाता था| 

आशी ने जिन शर्तों पर मनु से शादी की बात की थी उनसे मनु क्या कोई भी बौखला सकता था| उसने गई रात अचानक ही मनु के कमरे में आकर बहुत खुलकर बात की थी| उसको समझ में ही नहीं आ रहा था कि अंकल को क्या उत्तर दे? 

अब तक दोनों आमने-सामने सोफ़े पर बैठ चुके थे लेकिन अभी तक मनु कुछ बोल नहीं पाया था| 

“तुम अच्छी तरह से सोच लो मनु, मैं तुम पर कोई दबाव नहीं डाल सकत| प्लीज़ डोन्ट टेक अदरवाइज़, मैं तुम्हें भी परेशानी में नहीं देख सकता| तुम आराम से सोच लो---” उन्होंने फिर से कहा

“परेशान मत हो बेटा, आराम से---”

“नहीं, ऐसा कुछ नहीं है अंकल—“उसने जल्दी से कहा| दीना अंकल की बात का उत्तर न देना, उनका अपमान करने जैसा ही था| 

“नहीं, नहीं बेटा---मैं तुम्हारी मानसिक स्थिति को अच्छी तरह समझ सकता हूँ---कोई भी होता तो---”उनका गला भर आया और बात अधूरी रह गई| 

“अंकल ! आप मेरा बुरा सोच सकते हैं क्या? ”मनु ने एकदम कहा| उसे अंकल का ऐसा दीन स्वर चुभ गया था| 

“बेटा!मैं नहीं चाहता कि तुम किसी दबाव में आकर फैसला लो---तुम अच्छी तरह सोच लो, कोई जल्दी तो है नहीं—”उन्होंने अपने रुँधे हुए स्वर को संभालते हुए कहा| 

“नहीं अंकल , मैंने सोच लिया---अगर आशी तैयार है तो मेरी भी हाँ ही समझ लीजिए—”