Hotel Haunted - 62 in Hindi Horror Stories by Prem Rathod books and stories PDF | हॉंटेल होन्टेड - भाग - 62

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

Categories
Share

हॉंटेल होन्टेड - भाग - 62

प्राची जमीन पर लेती हुई सबकी ओर एक उम्मीद के साथ देख रही थी वो घेरे से 9 फीट की दूरी पर ही गिरी हुई थी इसलिए वो हाथो का इस्तेमाल करके जमीन पर लेटे हुए ही हमारी तरफ बढ़ने लगी,मिस घेरे के अंदर खड़े होकर अपना हाथ बढ़ाएं प्राची की ओर देख रही थी,मैं बस सही मौके की तलाश में था की तभी आंशिका ने दौड़कर हवा में 10 फीट छलांग लगाई और अपनी पूरी ताक़त के साथ दोनों पैरो से प्राची की कमर पर वार किया 'धड़ाम....' की एक पूरी आवाज़ पूरे हॉल में गूंज उठी और इस वार का दबाव इतना जोरदार था कि प्राची के कमर की हड्डियों के साथ वहां आसपास का फ्लोर भी टूट गया।

'आआआहहह......" प्राची की वो दर्द से भरी चीख रिजॉर्ट के बाहर तक सुनाई थी,उसके मुंह से खून की धारा बह रही थी,आंखो से आंसू निकल रहे थे,उसका शरीर इतना दर्द ना सहन करने की वजह से पूरा छटपटाते हुए तड़प रहा था।
"नहीइइई....प्राची....." उसके साथ मिस की वो चीख आंशिका के कानो तक पहुंच गई जिसे सुनकर वो हंसती हुई मेरी ओर देखकर कहने लगी,वो ऐसा कुछ करेगी वो मैने दूर दूर तक नहीं सोचा था इसलिए मैं बस खुली आंखो से वो मंजर देख रहा था तभी मेरे कानो मैं उसकी आवाज पड़ी,"मेरे साथ खेल खेलने चला था,तुझे दिखाती हूं असली खेल किसे कहते है 'मौत का खेल' इतना कहकर वो तेजी से दौड़ते हुए कोरिडोर के अंधेरे में चली गई,उसके जाते ही सबकी नजर प्राची पर है जो हमसे कुछ ही दूरी पर पड़ी कराह रही थी उसमें अब इतनी भी ताक़त नहीं बची थी कि चिल्ला सके,मिस ने रुआंसे गले के साथ कहा,"श्रेयस कुछ तो करो वरना वो इसे मार देगी" पर मेरे पास भी अभी इस बात का कोई जवाब नहीं था तभी उस अंधेरे कोरिडोर से आंशिका भागती हुई आई,उसके हाथो में शराब की कई बॉटल पकड़ी हुई थी।
उसने प्राची को पकड़कर पिलर से सटा कर खड़ा कर दिया और उससे कुछ दूरी पर बॉटल हाथ मैं पकड़े खड़ी हो गई,उसे ऐसा करते हुए देखकर मेरी समझ में आ गया कि वो क्या करना चाहती है इसलिए मैं उसकी ओर देखकर चिल्लाया,"नहीं.... प्लीज़ रुक जाओ,ऐसा मत करो" पर मेरी इस बात वो बस हल्का सा मुस्कुराई और वो बॉटल फेंककर प्राची के सर पर मारी,प्राची के सर से खून बहता हुआ फर्श पर गिर रहा था और वो बॉटल के सिर मैं लगने की वजह से टूट चुकी थी,वो चीखते हुए अपने सर को पकड़कर नीचे बैठी ही थी कि तभी एक ओर बॉटल उसके मुंह पर आकर लगी, जिससे उसके मुंह में कांच के कुछ टुकड़े घुस गए थे,एक आंख फूट गई थी, होठ लगभग कट चुके थे और दांत टुटते हुए जमीन पर पड़े थे।

"प्राची......" उसकी हालत देख सभी बेहद परेशान थे,सभी के गले रुआंसे हो गये थे लेकिन कोई कुछ नहीं कर पा रहा था,सब अपनी ज़िंदगी को बचाएं खड़े थे,यहाँ तक कि मैं भी कुछ नहीं कर पा रहा था। प्राची मदद के लिए तड़प रही थी चिल्ला रही थी लेकिन हम में से कोई आगे नहीं जा रहा था और शायद अब ये उसका अंत था जो हम सब अपनी आंखों से देख रहे थे।आंशिका की हंसी के साथ साथ प्राची के चिल्लाने की आवाज़ें पूरे रिसॉर्ट में गूंज रही थीं,उसके साथ ही एक डरावने खेल का आरंभ हो चुका था, जो आगे जाकर बेहद दर्दनाक बनने वाला था।
उसे चिल्लाता देख मिलन ने अपने कदम बाहर निकाले ही थे कि में उसे पकड़ लिया, वो मेरी तरफ घूरने लगा मैं जानता था कि वो क्या कहना चाहता है लेकिन मैं अब मजबूर था क्यूंकि एक जिंदगी हाथ से फिसल चुकी थी और अब नहीं चाहता था कि दूसरी भी फिसले।

" देख कैसे दोस्त हैं तेरे, कोई तुझे बचाने नहीं आ रहा, क्या करेगी तू जी के ऐसे दोस्तों के बीच,मैं तुझे छुटकारा दिला रही हूँ......हीहीहीही" हंसते हुए आंशिका ने सभी बॉटल प्राची के ऊपर फेंक दी थी,प्राची अब नहीं हिल रही थी शायद इतना दर्द सहन करने की वजह से वो बेहोश हो चुकी थी,पर अभी भी इस शैतान का मन नहीं भरा था इसलिए वो चलते हुए उसके पास गई और टूटी हुई बॉटल्स उठाकर प्राची के मुंह,पीठ और छाती मैं घुसा दी,प्राची का चेहरा अब पूरी तरह से बिगड़ चुका था,इसके अलावा उसका पूरा शरीर कांच और खून से सना हुआ था,आंशिका ने उसके चेहरे को पकड़कर जोर से जमीन पर पटका तो वो बॉटल सर फाड़ते हुए पीछे से बाहर निकल आई।उसका शरीर अब बेजान हो चुका था,उसमें कोई हलचल नहीं हो रही थी,आंशिका ने उसके चेहरे से मांस को काटा और चबाते हुए खाने लगी पर उसे यह भी रास न आया तो उसने शरीर को जोर से खिलौने की तरह दीवार पर पटक दिया,जिससे उसका शरीर टुकड़ों में बंट गया।
उसकी इस हालत को देख जेनी को तो चक्कर आ गए और बाकी सभी लड़कियों ने साथ में खड़े इंसान के शरीर में अपना मुंह छुपा लिया, मैं भारी आँखों के साथ इस खेल को देख रहा था,आंखो मैं गुस्से की लाल तरंगें निकल आई थी पर मैं बेबस था।अब रिजॉर्ट के अंदर वो खामोशी बची थी जो प्राची के दर्द को बयां कर रही थी, आंशिका हंसते हुए पूरे हॉल में चक्कर लगाते हुए बोल रही थी,"मर गई....मर गई....." उसकी इस हरकत वो देखकर मेरा सुन्न दिमाग चल पड़ा और एक खयाल आया कि आंशिका की इसी लापरवाही मैं शायद वो मौका मुझे मिल जाए।



इस बेहूदा और बेहद दिल दहला देने वाले पल को देख सभी एकदम शांत खड़े थे, आँख से आंसू की बूंद कब उतर आई पता नहीं चला, सामने कुछ था तो आंशिका का वो भयानक रूप जो उसी तरफ देख रहा था जहाँ उसने अभी-अभी प्राची को फेंका था। फिर उसने मेरी तरफ देखा और मेरी तरफ देखते हुए वो जोर-जोर से हंसने लगी,"देखा मुझसे टकराने का अंजाम" आंशिका ने हंसते हुए हॉल के बीच मैं पहुंची थी कि मैं अपनी पूरी ताक़त से वो कुल्हाड़ी उसकी ओर फेंकी, जिससे मेरे मन मैं अंदेशा था वही हुआ उस कुल्हाड़ी से वो बच गई और मेरी और बढ़ने लगी, मैं तेजी से घेरे के बाहर निकला और कार्पेट के नीचे छुपाई हुई रस्सी को पूरी ताक़त से खींच दिया,वो ऊपर हॉल में लगे झूमर के chain के साथ एक hook से बंधी हुई थी,जिससे उसे तेज झटका लगा और हॉल के बीच में लगे झूमर की chain टूट गई साथ ही वो आंशिका के ऊपर जा गिरा।
वो झूमर करीब 8 फूट चौड़ा और उसका weight 70 kg जितना भारी होगा क्योंकि उसकी बनावट में ग्लास और metal का use हुआ था जो इस रिजॉर्ट के सजावट की शान था।
आंशिका बड़ी आँखें करते हुए ऊपर की ओर ही देख रही थी,एक के बार तुरंत दूसरे वार के लिए वो तैयार नहीं थी फिर भी उसने अपने कदम जमीन पर जमाएं और सारी ताक़त अपने हाथो मैं इकठ्ठा करके ऊपर झूमर की ओर वार किया।

फ़र्श समेत पूरा झूमर जमीन मैं धराशाही हो गया और उसके कांच के टूटने की वजह से कुछ टुकड़े हवा में उड़ते हुए श्रेयस के शरीर में भी घुस गए, एक तेज आवाज पूरे रिजॉर्ट मैं फैल गई,सबको लगा आंशिका उस झूमर के नीचे दबकर कही मर गई इसलिए घेरे में खड़े सभी लोगो के चेहरों पे एक सुकून भरे भाव थे पर श्रेयस वो टुकड़े अपने शरीर से निकाल रहा था,साथ ही अपनी नजर उस झूमर पर गढ़ाए हुए था जिसके टूटने की वजह से उसके कांचे के टुकड़े सब जगह फैले हुए थे और उसके साथ वो metal का पार्ट भी पूरी तरह से मुड़ गया था,जिसे देखकर उसे समझ आ गया कि आंशिका के वार से ही यह झूमर टूटा है।

अभी वो आगे कुछ सोचता उससे पहले 'धाडडड्.....' करके झूमर बीच से दो टुकड़ों में बात गया और उसके बीच से आंशिका बाहर निकलती हुई दिखाई दी।सामने पलटवार करने की वजह से उसके पूरे हाथ में कांच के टुकड़े घुस गए थे जिसकी वजह से उसका खून जमीन पर टपक रहा था पर उसको इस बात की कोई परवाह नहीं थी,वो तो बस अपनी प्यासी नज़रों से श्रेयस की तरफ देख रही थी जैसे अब श्रेयस की बारी थी और वो उसके खून की प्यासी हो,वो बाहर निकलकर धीरे धीरे श्रेयस की ओर बढ़ने लगी।

उसको श्रेयस की ओर जाते हुए देखकर ट्रिश ने चिल्लाते हुए कहा,"श्रेयस hurry up उठो वहां से जल्दी यहां आ जाओ" उसके आवाज मैं चिंता के साथ एक डर भी जलक रहा था क्योंकि वो अपनी आँखों के सामने श्रेयस का प्राची जैसा हाल नहीं होने दे सकती थी।श्रेयस शांत होकर बस सामने की ओर देखे जा रहा था जैसे वो केके गहरी सोच मैं हो।



आंशिका चलते हुए श्रेयस के पास पहुंच गई थी उसे जमीन पर बैठे हुए देखकर आंशिकाने कहा,"खुद को बचाने की कोशिश भी नहीं करेगा?या तो तू हिम्मतवाला है या फिर बेवकूफ" इतना कहकर वो जोरो से हंसने लगी।
उस तरफ घेरे में खड़े हुए ट्रिश की आंखो से आंसू बह रहे थे, वो घेरे से बाहर निकलने ही वाली थी कि मिलन ने उसे पकड़ लिया,"नहीं छोड़ो मिलन मैं उसे ऐसे अकेला नहीं छोड़ सकती।"
"देख तेरी दोस्त कैसे तेरी चिंता मैं तड़प रही है,उसके खातिर भी तू बचने की कोशिश नहीं करेगा।" आंशिका की बात सुनकर श्रेयस बस उसे देखने लगा,"ठीक है जैसी तेरी मर्जी" इतना कहकर आंशिका ने एक कांच का टुकड़ा उठाकर श्रेयस पर वार करने ही वाली थी कि एक जोर का झटका उसके पूरे शरीर में दौड़ गया और उसके हाथ से कांच छुटकर नीचे गिर गया।


"ये....ये क्या हो रहा है मुझे?" इतना बोलते हुए वो धीरे धीरे हांफने लगी,सांसे उखड़ने लगी,उसको ऐसा लगने लगा मानो एक साथ कितना सारा बोझ उसके शरीर पर डाल दिया हो और उसकी आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा।
"यह क्या माया है! क्या किया है तूने?" उसकी बात सुनकर श्रेयस ने खड़े होते हुए कहा,"जैसा कि मैने सोचा था और अब वक्त है प्राची के साथ किए गए ज़ुल्म का हिसाब लेने का।"
"यह नहीं हो सकता मैं तुझे जिंदा नहीं जाने दूंगी" लड़खड़ाते पैरो के साथ वो चिल्लाने लगी और अपना सारा जोर इक्ट्ठा करके वो एक आखिरी वार करने के लिए श्रेयस की ओर दौड़ने लगी पर इस बार श्रेयस भी तैयार था पीछे पड़ी भस्म की थैली मैं आधी मुठ्ठी जितना भस्म बचा हुआ था,उसने अपनी मुठ्ठी में दबा रूद्राक्ष निकालकर भस्म मैं मिलाया और वापस अपने हाथो मैं दबाकर आंशिका के सामने दौड़ पड़ा,दोनो आमने सामने आ रहे थे,वो आत्मा बेबसी की वजह से पागलों की तरह चिल्लाते हुए आगे बढ़ रही थी,जैसे दोनों पास आए वो अपने नाखूनों से श्रेयस का चेहरा चीर देना चाहती थी पर श्रेयस ने थोड़ा side होकर एक अच्छा मौका देखकर अपनी पूरी ताक़त से आंशिका के पेट पर वार किया और इस रूद्राक्ष की ताक़त से वो उड़ती हुई हॉल की दीवार तोड़ते हुए उसमें धंस गई।



To be Continued......