Tera Bimar Mera Dil - 3 in Hindi Love Stories by Wishing books and stories PDF | तेरा बीमार मेरा दिल - 3

The Author
Featured Books
  • શ્રાપિત પ્રેમ - 18

    વિભા એ એક બાળકને જન્મ આપ્યો છે અને તેનો જન્મ ઓપરેશનથી થયો છે...

  • ખજાનો - 84

    જોનીની હિંમત અને બહાદુરીની દાદ આપતા સૌ કોઈ તેને થંબ બતાવી વે...

  • લવ યુ યાર - ભાગ 69

    સાંવરીએ મનોમન નક્કી કરી લીધું કે, હું મારા મીતને એકલો નહીં પ...

  • નિતુ - પ્રકરણ 51

    નિતુ : ૫૧ (ધ ગેમ ઇજ ઓન) નિતુ અને કરુણા બીજા દિવસથી જાણે કશું...

  • હું અને મારા અહસાસ - 108

    બ્રહ્માંડના હૃદયમાંથી નફરતને નાબૂદ કરતા રહો. ચાલો પ્રેમની જ્...

Categories
Share

तेरा बीमार मेरा दिल - 3

अब तक :

राधिका को देखते हुए उसकी आंखों में चमक थी मानो आंखें भी मुस्कुरा रही थी ।

वहीं राधिका को उत्कर्ष को देखकर सिर्फ गुस्सा आ रहा था । वो उसे जबरदस्ती अपनी जिंदगी में शामिल कर रहा था ।

अब आगे :

उत्कर्ष उसके सामने आकर खड़ा हुआ और घूंघट की आड़ में छुपे उसके खूबसूरत से चेहरे को देखने की कोशिश करने लगा । घूंघट जाली वाला था इसलिए वो उसके चेहरे को देख भी पा रहा था।

उत्कर्ष के होंठों पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई ।

" खूबसूरत.... " उत्कर्ष ने बहके हुए कहा तो राधिका ने मुट्ठी बना ली ।

उत्कर्ष ने अपना हाथ राधिका की तरफ बढ़ाते हुए कहा " चलें " ।

राधिका ने उसके हाथ को देखा फिर बोली " हमे अपने घर जाना है । आप किसी और की दुल्हन को चुराकर लाए हैं । हम आपके साथ नही जायेंगे "

" अपने आप चलेंगी या हम बाहों में उठा लें " बोलकर वो आंखों में ठहराव लिए उसे देखने लगा । राधिका ने सुना तो एक कदम पीछे जाकर खड़ी हो गई और बोली " आप क्यों ये सब कर रहे हैं ? क्या मिल जाएगा आपको ये सब करके । आप जबरदस्ती किसी रिश्ते को नही चला सकते । धीरे धीरे करके बहुत नफरत हो जायेगी हमें आपसे "

उसकी बात सुनकर उत्कर्ष ने आंखें बंद की और उसकी तरफ कदम लेते हुए बोला " हमे कुछ भी करने के लिए मजबूर मत कीजिए । हम बहुत प्यार से बात कर रहे हैं । नफरत जैसे शब्द आपके मुंह से अच्छे नही लगते हमें । पूजा का महुरत निकला जा रहा है । आपके सवालों का जवाब आपको पूजा के बाद मिल जायेगा "

बोलकर उसने राधिका का हाथ पकड़ा और कमरे से बाहर निकल गया ।

राधिका बिना कुछ कहे उसके पीछे चल दी । उत्कर्ष के कहे कुछ ही शब्द उसकी जुबान को बंद करा चुके थे । चलते चलते उसने अपने और उत्कर्ष के हाथों की तरफ देखा । उसका मेहंदी लगा हाथ उत्कर्ष के सख्त हाथों के सामने बहुत छोटा था।

आखिर वो था भी तो उससे काफी साल बड़ा । कमरे से बाहर निकलकर दोनो बड़े से corridoor से गुजरने लगे । राधिका ने आस पास नजरें घुमाई तो पाया कि वो एक बहुत बड़े बंगले के अंदर थी जो बहुत ज्यादा आलीशान था ।

वो इस वक्त दूसरी मंजिल पर थे जिसका कॉरिडोर गोलाई में बनाया गया था । नीचे जाने के लिए दो तरफ से चौड़ी चौड़ी सीढियां उतरती थी जिनके ऊपर लाल कालीन बिछाई गई थी ।

उत्कर्ष राधिका का हाथ पकड़े सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा तो नीचे खड़े सब लोग उनकी तरफ देखने लगे । दोनो साथ में बहुत अच्छे लग रहे थे ।

निचली मंजिल में बड़ा सा हॉल था जिससे कई सारे कमरों के दरवाजे लगे हुए थे ।

उस बड़े से आलीशान हॉल में एक तरफ बड़ा सा सोफा सेट था और वहीं सामने बने बड़े से मंदिर के अंदर हवन कुंड जल रहा था जिसमे पंडित जी आहुति डाल रहे थे ।

उत्कर्ष राधिका को लेकर नीचे आया तो वहां खड़े कुछ लोग दोनो के पास चले आए।

उत्कर्ष उसे लिए सीधा मंदिर में चला गया । बैठते वक्त राधिका अपनी साड़ी को संभाल नहीं पा रही थी तो उत्कर्ष ने उसकी साड़ी को संभालते हुए उसे बैठा दिया । फिर खुद भी उसके बगल में बैठ गया ।

पंडित जी ने कहा तो उत्कर्ष ने राधिका के हाथ को अपने हाथ में ले लिया । पूजा शुरू हो गई ।

दोनो हवन कुंड में आहुति डालते रहे । करीब आधे घंटे बाद पूजा पूरी हुई तो पंडित जी बोले " आप दोनो के नए जीवन की शुरुवात सुखमय हो । ईश्वर आपको सारी खुशियां दें "

उत्कर्ष और राधिका खड़े हुए और पंडित जी के पैरों को छू लिया ।

उत्कर्ष ने एक सर्वेंट की तरफ देखा तो वो बड़ी सी थाल लिए उसके पास आ गया ।

उत्कर्ष ने थाल को पंडित जी के कदमों के पास रखा और बोला " हमारी तरफ से छोटी सी भेंट । आप आए और इस पूजा को करके अपना आशीर्वाद दिया उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद पंडित जी " बोलकर उसने हाथ जोड़ लिए ।

" ये तो ईश्वर की कृपा है यजमान जो पूजा पाठ के काम को हमारे जीवन में उपहार स्वरूप दिया । अच्छा तो अब हम चलते हैं " कहकर पंडित जी वहां से चले गए ।

घर के सर्वेंट उनके सामान को उठाकर बाहर लेकर चले गए।

उत्कर्ष भी राधिका को लेकर मंदिर से बाहर चला आया था । बाकी सब लोग भी उनके साथ मंदिर में ही थे जो उनके साथ ही बाहर निकल आए ।

सबकी नजरें राधिका पर ही टिकी हुई थी ।

उत्कर्ष ने सबकी तरफ देखा और बोला " ये राधिका राय है , उत्कर्ष सिन्हा की धर्मपत्नी । और राधिका ये हमारा परिवार है । ये हमारे मां बाप हैं , ये हमारे चाचा चाची हैं और ये हमारी बुआ हैं " बोलकर उत्कर्ष ने सबकी तरफ इशारा कर दिया ।

राधिका ने सबको देखा फिर जाकर सबके पैर छुने लगी । उत्कर्ष भी उसके साथ ही पैर छूने झुक गया ।

दोनो के हाथ आपस में छू गए तो राधिका उत्कर्ष को देखने लगी जो उसकी तरफ ही देख रहा था । राधिका ने झट से नजरें फेर ली ।

दोनो ने सबके पैर छुए और खड़े हो गए ।

उत्कर्ष की मां कामिनी सिन्हा आगे आई और राधिका के चेहरे से घूंघट को भी हटाकर उसके सिर के पीछे कर दिया ।

राधिका ने पलकें झुका ली ।

कामिनी मुस्कुराई और बोली " इसमें कोई शक नही है कि उत्कर्ष ने तुमसे क्यों शादी कर ली " कहकर उन्होंने अपने हाथ में पहना एक बेहद खूबसूरत हीरे का कंगन उतारा और राधिका के हाथ में पहनाते हुए बोली " ये किसी ने हमें नही दिया । किसी का पुश्तैनी नही है , लेकिन ये वो कीमती हीरे का कंगन है जो अब कहीं भी मिलना मुश्किल है । हमारे दिल के बहुत करीब है , हमने किसी को कभी छूने भी नही दिया लेकिन आज तुम्हे दे रहे हैं "

राधिका ने सुना तो हैरानी से उन्हें देखने लगी । वो ये कंगन राधिका को क्यों दे रही थी । क्या उन्हें नहीं पता था कि ये शादी राधिका को अगवा करके की गई है । या फिर सब जानने के बाद भी उनके लिए ये साधारण बात थी ।

राधिका ने हैरानी से उत्कर्ष को देखा तो उत्कर्ष बोला " हम अब आराम करना चाहते हैं मां "

कहकर उसने राधिका का हाथ पकड़ा और वापिस अपने कमरे की तरफ निकल गया ।

दोनो कमरे में आए तो राधिका अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली " क्या आपके घर में अभी तक किसी को नही पता कि आपने हमारे साथ क्या किया है ? या फिर ये सब लोग भी आपके साथ मिले हुए हैं ? या फिर आपने इनको भी धोखे में रखा है ? " बोलते हुए राधिका उसके जवाब का इंतजार करने लगी थी ।

उत्कर्ष ने अपनी शर्ट के बटन ढीले किए और शीशे के सामने खड़ा होकर स्लीव्स चढ़ाते हुए बोला " पास वाले टेबल का ड्रॉअर खोलिए.. "

" आप हमें जवाब दीजिए । हमने पूछा है आपसे कुछ "

उत्कर्ष शांत भाव से बोला " ड्रॉअर खोलिए राधिका "

राधिका अब उसके बिहेवियर से चिढ़ते हुए बोली " नही खोलना हमे कोई ड्रॉअर । हमें जवाब चाहिए । आपकी वजह से ना जाने हमारे परिवार का अभी क्या हाल होगा । जबरदस्ती आपने हमें यहां रोके रखा है । हमे जाना है यहां से । और हम अभी जा रहे हैं , अगर आपके परिवार को कुछ पता नही है तो उनको भी बताकर जायेंगे " बोलकर राधिका कमरे से बाहर जाने लगी तो उत्कर्ष ने आकर उसके हाथ को पकड़ा और अपनी तरफ खींच लिया ।

" नही जा सकती आप " बोलकर उत्कर्ष ने उसे बाहों में भर लिया ।

" छोड़िए हमें " चिल्लाते हुए राधिका अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करने लगी ।

" राधिका हमने कहा ना , चुप हो जाइए " उत्कर्ष ने सख्ती से कहा लेकिन राधिका अब उसकी एक भी बात सुनने को तैयार नहीं थी ।

वो लगातार छटपटा रही थी ।

" हमें नही रहना यहां । हम चले जायेंगे "

राधिका चिल्लाई तो उत्कर्ष ने उसे कमर से कसकर पकड़ा और उसके होठों पर अपने होंठ रख दिए और किस करने लगा ।

इसी के साथ राधिका की आवाज अब उसके गले में ही दबकर रह गई । वो दूर होने की कोशिश करने लगी तो उत्कर्ष ने उसकी गर्दन के पीछे अपना हाथ रख दिया ।

राधिका उसके सीने पर मारते हुए दूर धकेलने लगी पर उत्कर्ष पर उसका कोई असर नहीं हुआ । वो बेहद जुनून से उसके होठों पर चूमता रहा ।

थोड़ी देर बाद राधिका की कोशिशें भी रुक गई । वो उसे धकेलते हुए थक चुकी थी । वहीं उत्कर्ष का किस शुरुवात में बहुत सख्त था लेकिन धीरे धीरे उसकी किस नर्म हो चुकी थी । पहले उसकी कोशिश राधिका को चुप कराने की थी लेकिन उसके होठों को छूने के बाद अब उसकी भावनाएं जागने लगी थी ।

उसकी बॉडी राधिका के लिए रिएक्ट करने लगी थी ।उसका एक हाथ राधिका की गर्दन पर था तो दूसरा उसकी कमर पर सहला रहा था ।

क्या निकल पाएगी राधिका ?