Shuny se Shuny tak - 37 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 37

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शून्य से शून्य तक - भाग 37

37====

अपने अतीत में विचरते हुए पूरी घटना को चित्रित करते हुए आशी के हाथ काँपने लगे | कैसा मनहूस दिन था जिसे ज़िंदगी में कभी नहीं भुलाया जा सकता | इस परिवार का हिस्सा ही तो थे डॉ.सहगल !वह कैसा बिहेव करती रही थी उनके व आँटी के साथ !----

अस्पताल के बाहर बहुत भीड़ थी | डॉ.सहगल गरीबों का फ्री इलाज़ करने के लिए कई इलाकों में जाने-जाते थे | ये दोनों मित्र ही जब किसी की सहायता करने पर आते तब अपने बारे में तो कुछ सोचते ही नहीं थे | दोनों की पत्नियाँ उनका मज़ाक उड़ाया करती थीं कि दोनों को मिलकर ‘सदावरत’खोल लेना चाहिए | ज़रा सा भी कोई परेशान हुआ कि इन दोनों के सिर पर पहले परेशानी मंडराने लगती थी | डॉ.सहगल गरीबों का इलाज़ मुफ़्त में करते और जहाँ अधिक पैसे की ज़रूरत होती, वहाँ उनका दाहिना हाथ था ही न---उनका सेठ दीना !

अक्सर दोनों मित्रों की पत्नियों यानि सोनी और रीना सहगल में चर्चा हो जाती कि ये दोनों दोस्त आखिर बने किस मिट्टी के हैँ? अगर बस चले तो दीना घर को अनाथ आश्रम बना दें | किसी ने कुछ परेशानी बताई नहीं कि उसे कोई न कोई काम बताकर घर का सदस्य ही बना लिया | ऑफ़िस में कुछ मुश्किल हो तो वे पहले परेशान हो जाएंगे और कभी कभी तो सीमा से बाहर जाकर भी कैशियर से कहकर एडवांस दिलवा देंगे | डॉ.सहगल को किसी गरीब को बीमार देखकर उसका इलाज़ जहाँ तक हो बिना पैसा लिए करने की कोशिश करेंगे, चाहे उनकी जेब से कितना लग जाए | अंत में दोनों सखियाँ इस परिणाम पर पहुंचतीं कि ईश्वर ने इतना दिया है तो शायद कहीं ऐसे लोगों के भाग्य के कारण ही! और बात आई-गई हो जाती | 

हाँ, अपने पति की मज़ाक बनाना सहगल की पत्नी रीना कभी नहीं छोड़तीं | 

“भई ! आप लोगों को भगवान ने जैसे दानवीर बनाकर ही भेजा है | कल को कुछ ज़रूरत पड़ी तो---”वह अपने हाथ का अँगूठा दिखाती हुई हँसने लगतीं | 

उन्हें हँसते हुए देख डॉक्टर पूछते;

“भाग्यवान !अभी तक कभी ऐसा हुआ है कि तुमने कुछ चाहा हो और तुम्हें न मिला हो? नहीं न? आगे भी नहीं होगा | ”रीना को हँसते हुए देखकर वे पूछते | दोनों सहेलियाँ मुस्का देतीं ;

“ईश्वर ऐसा दिन कभी नहीं दिखाएंगे---” सोनी भी शरीक हो जाती | 

“नहीं हुआ तो कभी हो नहीं सकता क्या? तीन-तीन जवान बच्चे हैं, अब तो सुधर जाएं और कुछ सोचें | दोनों बेटियों को भी लाड़ से सिर पर चढ़ा रखा है | कभी कहीं कुछ कमी हो गई तो---”

“क्यों होगी कमी? ऐसी शादी करूँगा कि दुनिया देखेगी, विश्वास रखो जिसने अब तक संभाल रखा है, आगे भी संभालेगा | क्यों भाई दीना? ”

ऑपरेशन टेबल पर पड़े हुए डॉक्टर जीवन-मृत्यु से लड़ रहे थे और सोच रहे थे कि आज उन्हें टोकने वाली उनकी रीना सदा के लिए सबको छोड़कर जा चुकी थीं और वे स्वयं जीवन और मृत्यु के बीच में झूल रहे थे | ऑपरेशन थियेटर की जलती हुई लाल बत्ती पर दीना की दृष्टि जैसे चिपक गई थी | उनकी आँखों से आँसुओं का झरना लगातार बह रहा था | माधो पहले से ही उन्हें संभाले हुए था, आशी ने भी आगे बढ़कर उन्हें संभालने की कोशिश की लेकिन वे खड़े न रह सके और अस्पताल की बैंच पर धम्म से बैठ गए | 

अब तक डॉ सहगल के घर पर भी खबर पहुँच गई थी | मनु दोनों बहनों के साथ गाड़ी भगाते हुए अस्पताल के कंपाउंड में पहुंचा ही था कि सब कुछ समाप्त हो गया | ऑपरेशन थियेटर की बत्ती बंद हो चुकी थी और डॉक्टर्स की टीम बाहर निकलकर थके हुए स्वरों में बातें कर रही थी | मनु भागते हुए लॉबी में पहुँचा | डॉ.बोस ने उसके कंधे पर हाथ रखा---डॉ.प्रसाद ने उसके दूसरे कंधे को दबाते हुए कहा;

“वी आर सॉरी मनु---”

मनु फटी-फटी आँखों से डॉक्टर्स की तरफ़ देखता रह गया | उसे डॉक्टर्स की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था | सारे डॉक्टर्स उसके पिता के बहुत अच्छे मित्रों में थे | अचानक उसकी आँखों से आँसु निकलकर उसके गालों को भिगोने लगे, उसे अपनी दोनों छोटी बहनों को संभालना था, वह उन्हें सीने से लगाकर ज़ोर से रो पड़ा | 

फिर न जाने कैसे, क्या किया गया, जो भी किया गया दीना जी के स्टाफ़ और परिचितों के द्वारा किया गया | मनु को जैसे-जैसे कहा जाता, वह वैसे-वैसे करता जाता | दीना दोनों बेटियों को अपने अंक में समेटकर बैठे थे | वे दोनों चीख-चीखकर इस कदर रो रही थीं मानो धरती ही फट जाएगी | मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, जो होना था सो हो गया और कोई उसे रोक नहीं सका | डॉ.सहगल के भाई दिल्ली से परिवार सहित आ गए थे | वे डॉ.सहगल के घर में मेहमान की तरह रहने लगे | दीना अंकल बच्चों के पास ही ठहर गए | आखिर उन्हें सब व्यवस्थाएं करनी थीं | डॉक्टर के भाई ऐसा व्यवहार कर रहे थे मानो वे अपने भाई के घर किसी त्योहार पर आए हों | दीना सहगल के बच्चों के सिर पर साया बनकर बने रहे |