Shuny se Shuny tak - 33 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 33

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शून्य से शून्य तक - भाग 33

33====

अब दीना जी समय पर ऑफ़िस जाने लगे थे | कर्मचारियों को समझने, उनकी परेशानियों का समाधान निकालने में उन्हें पहले जैसी रुचि होने लगी थी | उन्होंने एक लंबी साँस ली और महसूस किया कि वे जीवित हैं और जैसे तसल्ली का एक टुकड़ा उनके भीतर पसर गया | दरवाज़े पर नॉक हुई ---

“प्लीज़ कम इन----”उन्होंने आँखें उठाकर देखा उनके चैंबर का दरवाज़ा खोलकर मि.केलकर खड़े थे | 

“सर!आपसे एक प्रोजेक्ट के बारे में डिस्कस करना चाहता था--- | ”वहीं खड़े-खड़े उन्होंने कहा | 

“क्यों भई, जब मैं नहीं था तब क्या करते थे? वैसे ही करिए अब भी, काम तो बिलकुल व्यवस्थित चल रहा है | ”

“ऐसा नहीं है सर, बीच में आशी बेबी आती थीं न, उन्होंने ही इस प्रोजेक्ट की रूपरेखा तैयार की थी–”रुककर बोले—“मालूम नहीं, अब फिर से क्यों नहीं आ रही हैं—उन्होंने बड़े मन से, बड़ी मेहनत से इस प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया था, पूरी टीम तैयार की, उनको काम बाँट दिए थे | कुछ दिन आईं थीं---फिर मालूम नहीं क्या हुआ उन्होंने अचानक आना ही छोड़ दिया---मैं सोच रहा था-----”

“मि.केलकर, और मैं सोचता हूँ, यह आशी का प्रोजेक्ट है तो वही संभाले तो ठीक है | ”उस लड़की का भरोसा कहाँ था? एक पल में हाँ तो दूसरे में न! वे इस चक्कर में नहीं पड़ना चाहते थे | इतने लंबे समय के बाद तो वे अब उठे थे | कभी-कभी इंसान को अपनी परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेना आवश्यक हो जाता है | 

“जी सर, बिलकुल ठीक है लेकिन वे तो अब आ ही नहीं रही हैं---”

“कोई बात नहीं, वह आएगी, शी विल कम--आप ऐसा करिए न, जैसा है उसे वैसा ही छोड़ दीजिए---उसका शुरू किया हुआ है, वही संभालेगी---”

“ओके सर, प्रोजेक्ट बहुत अच्छा है, वैरी स्ट्रॉंग---”

“अरे !आप अंदर तो आइए---कब से गेट पर ही खड़े हैं---”उन्होंने कहा | 

“मैं फिर आता हूँ सर, सैक्शन में यंगर्स से कुछ डिस्कस कर रहा था, वह काम करके आता हूँ—थैंक यू---”

“मोस्ट वैलकम मि.केलकर, आइए, बहुत दिन हो गए, कॉफ़ी पीते हैं, कुछ डिस्कस भी हो जाएगा | ”

“जी, सर---विल बी बैक सून--- | ”कहकर वे दरवाज़े से बाहर निकल गए | 

कुछ अजीब सी आवाज़ें दीना के मस्तिष्क में गूंजने लगीं | आशी ने कोई प्रोजेक्ट तैयार किया है ---!! आशी ने कोई प्रॉजेक्ट तैयार किया है!उसने कभी उनसे तो इस विषय पर बात नहीं की। उन्होंने अपने माथे पर हाथ फिराते हुए सोचा | पर आशी उनसे उन दिनों बात ही कहाँ करती थी जो किसी बात या किसी प्रॉजेक्ट पर चर्चा करती | 

उनके मुख से एक लंबी सी साँस निकलकर वातावरण में पसर गई | अब आकर वह ही अपने शुरू किए हुए प्रॉजेक्ट को संभालेगी | उनके मन में एक बात गूंज रही थी, उन्हें लग रहा था कि आशी में ज़रूर बदलाव आएगा | वह महसूस कर रहे थे कि आ ही रहा था किन्तु बहुत धीरे-धीरे!

एक दिन चाय पीते-पीते उन्होंने अपने सबसे करीबी मित्र से कहा था;

“ऐसी स्थिति में समय बहुत लंबा लगता है या महसूस होता है | प्रतीक्षा का समय लंबी अंधियारी रात सा कटता ही नहीं है सहगल---जाने कब ये लड़की---”

“दीना ! तुमने तो बहुत सारी अंधियारी रातें काट ली हैं---तुम्हारा सूरज अब निकलकर तुम्हें रोशन करना ही चाहता है | अब निराशा ठीक नहीं है | जो कुछ हो चुका है, उसे धीरे-धीरे भुलाना ही होगा---“सहगल बोले | 

डॉ.सहगल अक्सर अपना काम खत्म करके उनके पास आकर बैठ जाया करते थे | 

“मनु का काम कैसा चल रहा है, हुआ कुछ इंप्रूवमेंट ? ”

“नहीं भाई कहाँ ---उल्टे उलझता जा रहा है | यह बाटलीवाला कुछ क्लीयर ही नहीं कर रहा है | मनु का मन तो इस कंपनी को छोड़ देने का हो रहा है | ”सहगल ने बताया | 

“हाँ---उस दिन कुछ कह तो रहा था कि कोई मल्टीनेशल कंपनी उसे कब से बुला रही है | पर शायद वह अपने मामा का काम और नाम बरकरार रखना चाहता है---”

“वह कहाँ चाहता है---”सहगल बीच में ही बोल उठे | 

“पर---वो तुम्हारी भाभी--- माँ को भी हर्ट नहीं करना चाहता वह---”

“यह सब तो ठीक है लेकिन आखिर कब तक इससे जूझता रहेगा, आखिर उसे भी अपने कैरियर में सैटिल होना है---”

“हूँ, ”सहगल की पेशानी पर बल पड़े हुए थे | न जाने वह क्या सोच रहे थे? 

“मैं भी सोचता हूँ कि उससे कह ही दूँ कि भई, अब काफ़ी कोशिश हो चुकी है | इतने ‘क्लूज़’तो उसके पास हैं ही कि‘कोर्ट’में मुकदमा दायर कर सकता है | पिछले दिनों किसी वकील से बात भी हुई थी उसकी फिर चुप लगा गया और जूझने लगा उसी में अपने आप---”वे बेटे के लिए चिंतित थे | 

“सहगल !अगर तुम अदरवाइज़ न लो तो उससे कहना कि दीना अंकल को ज़रूरत है तुम्हारी--”

“दीना ! तुम इस मामले में बहुत भाग्यशाली हो कि तुम्हारा सारा कर्मचारी वर्ग तुम्हें व तुम्हारे काम को अपना काम मानता है | मुझे तो अब मनु के साथ बेटियों की शादी की भी चिंता होने लगी है | हर चीज़ समय पर ही अच्छी लगती है | बच्चे बड़े तो हो ही रहे हैं---”

“हाँ, यह सच है सहगल, मैं तो तुम्हारे सामने अपनी ही नज़रों से गिर गया हूँ | चाहकर भी मनु को अपना बेटा--” वे उदास हो गए थे | सहगल ने उनका हाथ पकड़ लिया और सहलाने लगे | 

“दीना ! कमाल करते हो दोस्त, तुम भला कैसे किसी की भी नज़रों से गिर सकते हो? —और मनु आज भी तुम्हारा ही तो बेटा है जैसे आशी हमारी बेटी है | ”उन्होंने दीनानाथ का ढाढ़स बढ़ाते हुए कहा | वे कहना चाहते थे कि मनु आशी से प्यार करता है लेकिन उसके स्वभाव के कारण उसका इधर आना भी कम हो गया है | वैसे दीना भी तो इससे वकिफ़ थे लेकिन आशी को कुछ भी समझाना, दीवार पर सिर दे मारना! जबकि आशी स्वयं मनु से प्रेम करती थी, कई बार उसके व्यवहार से पता चलता था लेकिन ज़िद और अहं !---सब अंधकार में था | 

“एक बात बड़ी अजीब है सहगल---मेरी अनुपस्थिति में आशी यहाँ ऑफ़िस में आती रही है और किसी नए प्रोजेक्ट की रूपरेखा तैयार करके उस पर काम करती रही है | उसने यहाँ के स्टाफ़ से मुझे न बताने के लिए बोल रखा था | आज केलकर मुझसे उस प्रोजेक्ट के बारे में बात करना चाहते थे लेकिन मैंने कहा कि जैसा आशी ने कहा है, वैसा ही करें | उससे ही डिस्कस करें उस प्रोजेक्ट के बारे में | कुछ तो होगा न उसके दिमाग में---”

वे पिता थे, अपनी बेटी के बारे में बात करते हुए उनका मुख खिल उठता था | 

“यह तो बहुत ही खुशी की बात बताई---”सहगल ने प्यार से दीना के कंधे दबाते हुए कहा | 

“मुबारक हो दोस्त, मुझे तो लगता है कि वह पहले की तरह बिलकुल ठीक और नॉर्मल हो जाएगी | ”

“हाँ, होगी नॉर्मल और कब होगी यह तो पता नहीं पर--हाँ, वह मुझसे भी कह रही थी कि ऑफ़िस आएगी कब? यह नहीं पता--- | ” दीना ने कुछ मायूसी से कहा | 

“ठीक है न भाई, लैट हर टेक हर ओन टाइम---यह क्या कम है कि वह इस विषय में सोच रही है-- | ”

“हाँ, मुझे भी बहुत बदलाव लग रहा है उसमें ---पर उसके मन में झाँककर पता लगाना कि उसमें आखिर चल क्या रहा है, यह तो एक टेढ़ी खीर है | बहुत ही मुश्किल काम है---”दीना ने एक लंबी साँस ली | 

“पर---तुम उसे खुद ही खुलने दो न, जहाँ तक मैं समझता हूँ उसके भीतर एक कशमकश चल रही है | उसे उसकी उलझन से निकलने का मौका दो न, गिव हर टाइम---” सहगल ने कहा तो दीना को लगा कि वास्तव में उनका दिमाग भी तो यही सोचता था, वह एक दिन बिलकुल नॉर्मल हो जाएगी | कब? यह नहीं मालूम --!!उनका मन यह सोचकर ही एक छोटे बच्चे की तरह पुलकित हो जाता था कि उनकी बिटिया किसी दिन फिर से वैसी ही अपने पिता से आकर लिपट जाएगी |