Shahadole ka chuha in Hindi Drama by Tarunrao books and stories PDF | शाहदोले का चूहा

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शाहदोले का चूहा

____________Narration –1______________

सलीमा की जब शादी हुई तो वो इक्कीस बरस की थी ,
पांच बरस हो गए लेकिन उसके औलाद न हुई उसकी मां और सास को बहुत फिक्र थी । मां को ज्यादा फिक्र थी , इसलिए कि वो सोचती , कहीं सलीमा का पति नजीब दूसरी शादी ना कर ले। कई डाक्टरों से राय–मशवरा भी किया गया , लेकिन कोई बात ना बनी । एक दिन उसकी एक सहेली जो बांझ करार दे दी गई थी उसके पास आई सलीमा को बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि उसकी गोद में एक गुलगूथना–सा लड़का था ।

_____________Scene –1______________


सलीमा :– फातमा , तुम्हारे ये लड़का कैसे पैदा हुआ ?

फातमा:– यह शाहदोले साहब की कृपा है । मुझसे एक स्त्री ने कहा कि यदि तुम संतान चाहती हो तो गुजरात जाकर शाहदोले साहब के मज़ार पर मन्नत करो और कहो कि प्रभु ! मेरे जो पहला बच्चा होगा उसे चढ़ावे के रूप मे आपकी खानकाह पर चढ़ाऊंगी । लेकिन शाहदोले साहब के मजार पर ऐसी मिन्नत की जाए तो पहला बच्चा ऐसा पैदा होता है , जिसका सिर बहुत ही छोटा होता है ।

( सलीम अपने पति के पास जाती है )

सलीमा :– सुनिए , फातमा कह रही है कि शाहदोले साहब की मज़ार पर अगर मन्नत मांगी जाए तो बच्चा हो जाता है

(पति कुछ बोल पाता उससे पहले सलीमा ने चिंतित स्वर में कहा )

सलीमा :– लेकिन पहले बच्चा उनकी खानकाह में छोड़ आना पड़ता है

( नजीब के चेहरे पर असमझंस )

सलीमा:– कौन ऐसी मां है जो अपने बच्चों से हमेशा के लिए अलग हो जाए , उसका सर छोटा हो , नाक चपटी हो , आंखें भीगी हो लेकिन मां उसे घूरे पर नहीं फेक सकती ।

( सलीमा को संतान की चाहत थी बो कुछ भी करने को तैयार थी उसने पति से कहा )

सलीमा:– फातमा मजबूर कर रही है कि मेरे साथ चलो , इसलिए आप मुझे इजाजत दे दें कि उसके साथ चली जाऊं .?

नजीब :– जाओ—लेकिन जल्दी लौट आना ।

Narration –2–1
( Narration with inactment )

वह फातमा के साथ गुजरात चली गई । शाहदोले का मजार जैसा कि उसका विचार था , किसी कीमती पत्थर की इमारत नहीं थी । अच्छी खासी जगह थी, जो सलीमा को पसंद आई । उसने एक और भीड़ में शाहदोले के चूहे देखें , उनके नाक से रीठ बह रहा था । उसके सामने एक जवान लड़की थी जो अपने पूरे यौवन पर थी , लेकिन वह एक ऐसा व्यवहार करती थी कि गंभीर से गंभीर आदमी को भी हंसी आ सकती थी । वो
सोचने लगी

सलीमा :– उस लड़की का क्या होगा । यहां के मालिक उसे किसी के हाथ बेंच देंगे , जो बंदरिया बनाकर उसे जगह-जगह घुमाएंगे । वह बेचारी उनकी रोजी का सहारा बन जाएगी ।

Narration 2–2
लेकिन इन सब अनुभवों के होने पर भी उसने अपनी सहेली फातमा के कहने पर शाहदोले साहब के मजार पर मन्नत मांगी यदि उसके बच्चा हुआ तो वह उनकी भेंट कर देगी । डॉक्टरी इलाज सलीम ने जारी रखा । दो महीने के बाद बच्चे की पैदाइश के आसार हो गए । वह बहुत खुश हुई । निश्चित समय पर उसके लड़का हुआ था जो बहुत ही सुंदर था । गर्भ के बीच में चुकी चंद्रग्रहण हुआ था इसलिए उसके दाहिने गाल पर एक छोटा सा तेल था , जो बुरा नहीं लगता था ।

( सलीमा बच्चों के साथ खेलती है और उस वक्त फातमा आती है )

फातमा :– सलीमा , बच्चे को तुरंत शाहदोले साहब की भेंट कर देना चाहिए ।

सलीमा:– फातमा , तुमने तो ये कहा था कि शाहदोले साहब की मजार पर जो मन्नत मांगता है उसके पहले बच्चे का सिर छोटा होता है .......लेकिन

( फातमा उसका मतलब समझ गईं )

फातमा :–यह कोई ऐसी बात नहीं जिसका तुम बहाना बना सको । तुम्हारा बच्चा शाहदोले साहब की संपत्ति है । तुम्हारा इस पर कोई हक नहीं । अगर तुम अपने वादे से फिर गई तो याद रखो , तुम पर ऐसा शाप पड़ेगा कि तुम जिंदगी–भर याद रखोगी ।

____________Narration–3______________

दुखी दिल से सलमा को अपना गुलगूथना–सा बेटा , जिसके दाहिने गाल पर तिल था , गुजरात जाकर शाहदोले साहब के मजार पर उनके सेवकों को देना पड़ा वह इतनी रोई उसको इतना दुख हुआ कि बीमार हो गई ।


______________Scene–2______________

नजीब :– मेरी जान , अपने बच्चे को भूल जाओ , वह सदके का था ।

सलीमा :– मैं नहीं मानती । सारी उम्र में अपनी ममता पर लानत भेजते रहूंगी कि मैंने इतना बड़ा पाप क्यों किया कि अपनी आंखों का तारा बेटा मजार के उन नौकरों के हवाले कर दिया । यह नौकर मन तो नहीं हो सकते ।

____________Narration–4____________

एक दिन वह गायब हो गई । सीधी गुजरात पहुंची , सात–आठ रोज तक वहां रही अपने बच्चों के बारे में पूछताछ की , लेकिन कोई पता ठिकाना ना मिला , निराश होकर वापस आ गई थीं , और अपने पति से कहा......

सलीमा :– मैं अब उसे याद नहीं करूंगी ।

याद तो वह करती रही , लेकिन दिल ही दिल में । उसके दाहिने गाल का तिल उसके दिल का धब्बा बनकर रह गया था । एक बरस के बाद उसकी लड़की हुई , उसकी शक्ल उसके पहलौठी के लड़के से बहुत मिलती-जुलती थी । उसके दाहिने गाल पर दाग नहीं था । उसका नाम उसने मजीबा रखा , क्योंकि अपने बेटे का नाम उसने मुजीब सोचा था ।

______________Scene –3_______________


( मां बेटी का सीन तैयार करना प्यार कराना काजल लगाना इत्यादि )

मुजीबा :– अम्मी, हम तमाशा देखना चाहते हैं

सलीमा :– क्या तमाशा.?

मुजीबा :– अम्मीजान , एक आदमी है , वह तमाशा दिखाता है ।

सलीमा :–जाओ ,उसको बुला लाओ । घर के अंदर ना आए , बहार तमाशा करे ।

( मुजीबा मां से पैसे मांगने जाती है सलीम पैसे लेकर आती है तो मुजीब को देख कर चौंक जाती है )

मुजीब :– यह.... यह चूहा अम्मीजान , इसकी शक्ल मुझसे क्यों मिलती है , मैं भी क्या चुहिया हूं ..?

(सलीमा मुजीब को खींचकर अंदर ले जाती है )

सलीमा :– बेटे मैं तुम्हारी मां हूं

मुजीब:–( जोर से हंसा अपनी नाक की रीठ आस्तीन से पोंछ कर उसने अपनी मां के सामने हाथ फैलाया —

मुजीब :– 10 रुपए

(सलीमा 1000 ru निकालकर मदारी को देने जाती है )

सलीमा :– आप ये 1000 ru. रख लीजिए और उस चूहे को मेरे पास छोड़ दीजिए

मदारी :– नहीं ! इतनी कम कीमत पर अपनी रोजी के साधन को नहीं बेंच सकता ।

( सलीमा ने उसे ₹5000 दिए और मदारी चला गया जब वह अंदर आई तो मुजीब गायब था )

सलीमा :– मुजीब ! मुजीब!

मुजीबा : अम्मी जान वह तो पीछे से बाहर निकल गया है

सलीमा की कोख उसे पुकारती रही